हवा, पानी
और भोजन आदमी की जिंदगी की बुनियादी जरूरत हैं। अगर इनमें ही मिलावट होगी, तो
जनता कैसे जियेगी? खाद्यान में मिलावट के नियम कितने भी सख्त हों, जब तक
उनको ठीक से लागू नहीं किया जायेगा, इस समस्या का हल नहीं निकल सकता। आज मिलावट का कहर सबसे
ज्यादा हमारी रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर ही पड़ रहा है। संपूर्ण देश में
मिलावटी खाद्य-पदार्थों की भरमार हो गई है । आजकल नकली दूध, नकली
घी, नकली तेल, नकली चायपत्ती आदि सब कुछ धड़ल्ले से बिक रहा है। अगर कोई
इन्हें खाकर बीमार पड़ जाता है तो हालत और भी खराब है, क्योंकि
जीवनरक्षक दवाइयाँ भी नकली ही बिक रही हैं ।
एक अनुमान के अनुसार
बाजार में उपलब्ध लगभग 30 से 40 प्रतिशत समान में मिलावट होती है। खाद्य पदार्थों में
मिलावट की वस्तुओं पर निगाह डालने पर पता चलता है कि मिलावटी सामानों का निर्माण
करने वाले लोग कितनी चालाकी से लोगों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं। इन मिलावटी
वस्तुओं का प्रयोग करने से लोगों को कितनी कठिनाइयाँ उठानी पड़ रही हैं।
आजकल दूध भी
स्वास्थ्यवर्धक द्रव्य न होकर मात्र मिलावटी तत्वों का नमूना होकर रह गया है, जिसके
प्रयोग से लाभ कम हानि ज्यादा है। हालत यह है कि लोग दूध के नाम पर यूरिया, डिटर्जेंट, सोडा, पोस्टर
कलर और रिफाइंड तेल पी रहे है।
बाजार में उपलब्ध खाद्य
तेल और घी की भी हालत बेहद खराब है। सरसों के तेल में सत्यानाशी बीज यानी आर्जीमोन
और सस्ता पॉम आयल मिलाया जा रहा है। देशी घी में वनस्पति घी और जानवरों की चर्बी
की मिलावट, आम बात हो गई है। मिर्च पाउडर में ईंट का चूरा, सौंफ
पर हरा रंग, हल्दी में लेड क्रोमेट व पीली मिट्टी, धनिया
और मिर्च में गंधक, काली मिर्च में पपीते के बीज मिलाए जा रहे हैं।
फल और सब्जी में चटक
रंग के लिए रासायनिक इंजेक्शन, ताजा दिखने के लिए लेड और कॉपर सोल्युशन का छिड़काव व
सफेदी के लिए फूलगोभी पर सिल्वर नाइट्रेट का प्रयोग किया जा रहा है। चना और अरहर
की दाल में खेसारी दाल, बेसन में मक्का का आटा मिलाया जा रहा और दाल और चावल पर
बनावटी रंगों से पालिश की जा रही है ।
ऐसा अर्से से होता आ
रहा है। 50 वर्ष पहले,
एक फिल्म में महमूद ने एक गाना गाया था, जो
ऊपर लिखे गये सारे पदार्थों का इसी तरह वर्णन करता था। मतलब यह हुआ कि 50
वर्षों में कुछ भी नहीं सुधरा। इसके विपरीत अब तो दूध, फल और
सब्जी तक जहरीले हो गये हैं। भारत की पूरी आबादी, इस
जहर को खाकर जी रही है। हमारे बच्चे इन मिलावटी सामानों को खाकर बड़े हो रहे हैं।
भारत की आने वाली युवा पीढ़ी कैसे ताकतवर बनेगी?
मोदी सरकार के आने के
बाद, सबको उम्मीद थी कि खाने के पदार्थों में मिलावट करने
वालों पर, सरकार सख्ती करेगी। स्वयं मोदी जी ने अपने भाषणों में इस
समस्या की भयावहता को रेखांकित किया था। पर उनके अधीनस्थ अफसरों ने ऐसी नीति बनाई
है कि खाद्य पदार्थों में मिलावट का धंधा, दिन-दूना
और रात-चैगुना बढ़ गया है। ‘ईज़ आफ बिजनेस’ के नाम पर खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता
परखने वाले विभागों को कहा गया है कि वे ऐसी किसी भी अर्जी पर, बिना
देर किये, अनापत्ति पत्र जारी कर दिये जायें।
जरा सोचिए कि मलेशिया
से ‘पाम आयल’ आया। आयातक ने अनापत्ति पत्र के लिए अर्जी दी। खाद्य नियंत्रण विभाग, अगर
यह सुनिश्चित करना चाहे कि यह तेल, खाने योग्य है या नहीं, तो
उसे परीक्षा के लिए प्रयोगशाला में भेजना होगा। जहां कैमिस्ट उसकी गुणवत्ता की
जांच कर सकें। खाद्य विभाग को यह जांच रिर्पोट 7 दिन
में चाहिए। प्रयोगशाला के पास इतने सारे सैंपल जांच के लिए आये हुए हैं कि वो तीन
महीने में भी यह रिर्पोट नहीं दे सकती। ऐसे में दो ही विकल्प हैं। पहला कि बिना
जांच के, फर्जी अनापत्ति पत्र दे दिये जायें, दूसरा
जांच आने तक इंतजार किया जाए। ऐसी स्थिति में खाद्य नियंत्रण विभाग पर लाल फीता
शाही और काम में ढीलेपन का आरोप लगाकर,
उसके अधिकारियों को शासन द्वारा प्रताड़ित किया जा सकता है। इसी डर से आज, यह
विभाग बिना जांच करावाए ही, अनापत्ति प्रमाण पत्र देने को मजबूर हैं। जबकि ऐसा करने
से लोगों की जिंदगी खतरे में पड़ती है। पर आज हो यही रहा है। खद्यान के नमूनों की
बिना जांच कराए ही मजबूरी में, अनापत्ति प्रमाण पत्र देने पड़ रहे हैं। नतीजतन पूरे देश
के बाजार में, जहरीले रासायनिक और रंग मिलाकर धड़ल्ले से खाद्यान्न बेचे
जा रहे हैं। जिससे हम सबका जीवन खतरे में पड़ रहा है। मोदी सरकार को, इस
गंभीर समस्या की ओर ध्यान देना चाहिए और खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वालों के
खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करनी चाहिए।