Friday, January 26, 2001

मांसाहार खाने वालों सावधान !

किसी शादी की दावत या नए साल के दावत में अगर चिकन न हो तो यार दोस्त कहते हैं क्या घास-कूड़ा खिला दिया। औसत दर्जंे के लोग बटन चिकन, कढ़ाई चिकन, बोनलैस चिकन, चिकन कोफता, मुर्गा दो प्याजा या मटन की तमाम किस्में खाते हैं। वरना भुना मुर्गा लार टपका कर निगल जाते हैं। जो जरा ज्यादा फैशनेबल हैं उनको सुबह नाश्ते में सासेज, सलामी या बेकन खाने की आदत पड़ जाती है, लंच में चिकन, लैम्ब सूप या प्राॅन (समुद्री जानवर) वगैरह। डिनर में लाॅब्सटर, फिश या कोई और चीनी या समुद्री खाना।

भारत के सभी महानगरों से लेकर छोटे-छोटे कस्बों में यह देखकर आश्चर्य होता है कि किस ललचाई नजरों से लोग मांसाहार के लिए आतुर रहते हैं। जिनके पास साधन हैं वो यह सारी वस्तुएं आयातित मांस से पकाते हैं या पांच सितारा होटलों में ही खाते हैं। वरना क्नाॅट पैलेस में जैसा होटल ‘‘काके दी हट्टी’’ है वैसे ढाबे हर शहर और राजमार्ग पर बिखरे पड़े हैं जहां सलाखों में मुर्गों की मसाला लगी टांगे टंगी रहती हैं।

पर अब जरा दूसरी तरफ देखिए अगर आप देश के बहुत ही संपन्न लोगों की संगति में बैठे हों तो आप पाएंगे कि बहुत से बड़े लोग मांसाहार छोड़ते जा रहे हैं। और तो और अमरीका और यूरोप के देश जहां दस वर्ष पहले तक शाकाहार का नाम तक नहीं जानते थे। लेकिन आज काफी तादाद में मांसाहार पूरी तरह छोड़ चुके हैं। जानते हैं क्यांे ? पहली बात तो यह कि मानव शरीर शाकाहार के लिए बना है मांसाहार के लिए नहीं। यह बात हम अपनी तुलना शाकाहारी और मांसाहारी पशुओं से करने पर समझ सकते हैं। शेर, कुत्ता, घडि़याल व भेडि़या मांसाहारी हैं। गाय, बकरी, बंदर व खरगोश शाकाहारी हैं। मांसाहारी पशुओं को कुदरत ने दोनों जबड़ों में तेज नुकीले कीलनुमा दांत और खतरनाक पंजे दिए हैं। जिनसे ये शिकार करके उसमें से मांस नोच कर खा सकें। पर गाय और बंदर की ही तरह मानव को कुदरत ने ऐसे दांतों और पंजों से वंचित रखा है, क्यों ?

मांसाहारी पशु जैसे कुत्ता जीभ से पसीना टपकाता है। इसलिए हाॅफता रहता है। शाकाहारी पशुओं और मानव के बदन से पसीना टपकता है। मांसाहारी पशुओं की आंते काफी छोटी होती है ताकि मांस जल्दी ही पाखाने के रास्ते बाहर निकल जाए जबकि शाकाहारी जानवरों और मानव की आंते अनुपात में तीन गुनी बड़ी और ज्यादा घुमावदार होती है ताकि अन्न, फल, सब्जियों का रसा अच्छी तरह सोख ले। यदि आप मांसाहारी है तो आपने नोट किया होगा कि रेफ्रिजरेटर के निचले खाने में इतनी ठंडक होने के बावजूद मांस कुछ ही घंटों में सड़ने लगता है। फिर मानव शरीर की गर्मी में मांस के आंत में अटक-अटक चलने में इसकी क्या गति होती होगी, कभी सोचा आपने ? आपने कभी सड़क पर कुचला कुत्ता देखा है कितनी सी देर में उसमें से बदबू आने लगती है तो क्या हमारी आंत में पड़ा मांस तरो-ताजा बना रहता है। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मांसाहारी पशुओं के आमाशय में जो तेजाब रिसता है वह शाकाहारी पशुओं और मानव के आमाशय में रिसने वाले तेजाब से बीस गुना ज्यादा तीखा होता है, ताकि मांस जल्दी गला सके। ऐसे तेजाब के अभाव में हमारे आमाशय में पड़े मांस की क्या हालत होती होेगी ?

भारत जैसे देश में, बहुसंख्यक आबादी किसी न किसी रोग से ग्रस्त है। हमारे शरीर में तरह-तरह की बीमारियां पल रही हैं, तो जो जानवर काटे जा रहे हैं उनके वातावरण, भोजन और रख-रखाव में जो नर्क से बदतर जिंदगी होती है, उससे कैसा मांस आप तक पहुंचता है ? फिर आप तो जानते हैं कि भारत में कितना भ्रष्टाचार है। जिन भी इंस्पेक्टरों की ड्यूटी कसाईखानों में लगी होती है उनसे क्या आप राजा हरिशचन्द्र होने की उम्मीद कर सकते हैं ? या वक्त के साथ-साथ चलने वाला होशियार आदमी। मतलब ये हुआ जो हाकिम यह देखने के लिए तैनात किए जाते हैं कि भयानक बीमारियों से घिरे हुए घायल या गंदे पशु मांस के लिए न काटे जाएं वो निरीक्षक ही अगर आंख बंद किए हुए हों तो आपकी क्या हालत हो रही है, आपको क्या पता ?

कई बरस पहले मैं एक अखबार में संवाददाता था तो दिल्ली के पांच सितारा होटल में पोषण विशेषज्ञों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन को कवर करने गया। वहां दोपहर के भोजन के समय शोर मच गया। दुनिया भर से आए पोषण विशेषज्ञ डाक्टरों ने कहा कि ंलंच में जो मुर्गे परोसे गए वे सड़े हुए हैं। होटल के महाप्रबंधक तक खबर पहुंची। फौरन दौड़े-दोड़े बैंक्वट हाॅल में आए। आयोजकों से माफी मांगी। सरकारी नौकरी चले जाने का हवाला देकर खुशामद की । समझौता हुआ कि लंच का जो बीस-तीस हजार रूपया का बिल बना था वो माफ हो जाएगा। तभी होटल वालों को पता चला कि वहां डाक्टरों की भीड़ में एक संवाददाता भी मौजूद था। घबड़ाए हुए मेरे पास आए और गिड़गिड़ा कर कहने लगे कि ये खबर मत छापिएगा। लालच देने लगे कि आपके शादी में पचास फीसदी बिल माफ कर देंगे। मैं काफी कम उम्र का दिखता था। मैंने कहा मेरी शादी हो चुकी है तो बोले अपने बच्चों का जन्मदिन पार्टी कराइएगा, हम बहुत कम पैसे में करवा देंगे। खैर मैं वहां से चला आया। जम कर तहकीकात की। पता चला कि आमतौर पर कमीशन के चक्कर में सबसे सड़े, बासी और बेकार मुर्गे वहां और कई बड़े होटले में खरीदे जाते हैं। अगले दिन मैंने खबर छाप दी। पोषण विशेषज्ञों को अशोका होटल वालों ने सड़े मुर्गे परोसे।यह पांच सितारा होटल की कहानी है तो बाकी की बात आप खुद ही समझ लीजिए।

अक्सर तर्क दिया जाता है कि लोग मांसाहार नहीं करेंगे तो दुनिया में खाने की कमी पड़ जाएगी। पर क्या कभी सोचा आपने कि व्हेल मछली, हाथी, ऊॅट व जिराफ से बड़े कोई जानवर हैं? ये कभी भूखे पेट नहीं सोते।

अमरीका के अर्थशास्त्रियों ने आंकड़ों से सिद्ध कर दिया है कि एक बकरा कटने से पहले जितना अन्न व सब्जी खाता है उससे एक परिवार का महीने भर का भोजन पूरा हो सकता है। जबकि काटने के बाद एक बकरे को एक परिवार दो-तीन वक्त में खा-पीकर निपटा लेता है। दुनिया भर में मांसाहारियों के लिए जानवरों को खिला-पिला कर मोटा किया जाता है और फिर काट दिया जाता है। यह तो आपको पता ही होगा कि विकसित देशों में गेंहू, सब्जियां, मक्खन, पनीर, पानी के जहाजों में भर कर दूर समुद्र में फेंका जाता है ताकि दुनिया में इनके दाम नीचे न गिरें। कहावत है कि दुनिया में सबके लिए काफी अन्न है पर लालचियों के लिए फिर भी कम है।

अब आते हैं शुद्ध विज्ञान पर। विज्ञान में एक सिद्धांत है कि हर क्रिया की समान और विपरीत प्रतिक्रिया होती है। एवेरी एक्शन हैज इक्वल एंड अपोजित रिएक्शन। याद रखिए एक्शनयानी हर क्रिया की, तो पशु बद्ध करने की भी समान और विपरीत प्रतिक्रिया होगी। सनातन धर्म के शास्त्रों में लिखा है कि जीव हत्या करने वाले को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है। शिकागो दुनियां की सबसे बड़ी मांस की कटाई और बिक्री वाला शहर है और दुनिया में सबसे ज्यादा मानव हत्याएंचाकूबाजी और बलात्कार की वारदातें भी वहीं होते हैं। भगवान् श्रीकृष्ण गीता का उपदेश देते हुए अर्जुन से कहते हैं-

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति। तदहं भक्त्युपह्तमश्नाति प्रयतात्मनः।।

नौवें अध्याय के इस 26वें श्लोक में भगवान् अपने शुद्ध भक्त और सखा अर्जुन से ये कहते हैं कि यदि कोई प्रेम तथा भक्ति से मुझे पत्र, पुष्प, फल या जल प्रदान करता है तो मैं उसे स्वीकार करता हूं। याद रखिए भगवान् अन्न, फल ही स्वीकार करते हैं। पर आपको ऐसे तमाम लोग मिलेंगे जो कृष्ण, महावीर की अराधना का दावा करेंगे और जम कर मांसाहार करेंगे। यह जानते हुए भी कि हिंदु शास्त्रों में इसके भयंकर परिणाम बताए गए हैं।

ईसाई-धर्म की पवित्र-पुस्तक बाईबिल में ईसामसीह जीवों पर करूणा करने का आदेश देते हैं और मांसाहार को मना करते हैं। हर धर्म में दूसरे को कष्ट पहुंचाना पाप कर्म बताया गया है। तो जिस जीव को भोजन के लिए काटा जाए उसे क्या चाकू की धार गर्दन पर चलवाने में आनंद आता होगा ? फिर मांस का उत्पादन कितना महंगा है उसका एक उदाहरण है कि एक किलो मांस बनकर तैयार होने में कुदरत का पचास हजार लीटर पानी खर्च होता है और एक किलो गेंहू कुल आठ लीटर पानी में ही उपज जाता है।

अमेरिकन मैडिकल एसोसिएशन के जर्नल ने यह छापा था कि अमरीका में दिल के दौरों से ग्रस्त होने वालों में 97 फीसदी मांसाहारी हैं। यानी शाकाहारी लोगों को दिल की बीमारी काफी कम होने की संभावना है। एक और मशहूर वैज्ञानिक शेलों रसेल ने 25 देशों के अध्ययन के बाद बताया कि इनमें से 19 देशों में कैंसर की मात्रा बहुत ज्यादा थी। यह सभी देश वो हैं जिनमें मांसाहार का प्रतिशत काफी ऊंचा है। एक भ्रांति है कि मांसाहार से ज्यादा ताकत मिलती है। हकीकत यह है कि मांस आधारित भोजन को पचाने में शरीर की बहुत ऊर्जा बेकार चली जाती है।

गुरू ग्रंथ साहिब में सच्चे गुरू श्री नानक देव कहते हैं कि यदि किसी घायल लाश के खून का छींटा तुम्हारे कपड़ों पर पड़ जाता है तो तुम कपड़ा बदल लेते हो। पर जब लाश को अपने शरीर के अंदर ले जाते हो तो तुम्हारा शरीर कितना गंदा हो जाता है, कभी सोचा सिंह साहब ?

Friday, January 19, 2001

क्यों न राजनैतिक दलों के नाम बदल दें !

लोकशक्ति पार्टी नाम से एक और राजनैतिक दल का जन्म हो गया। केंद्रीय संचार मंत्री श्री रामविलास पासवान इसके संस्थापक प्रणेता हैं। उनका दावा है कि उनका नया दल गरीबों के हक के लिए लड़ाई लड़ेगा। श्री पासवान सभी पत्रकारों के मित्र हैं इसलिए उन्हें पत्रकारों की चुटकी झेलने की आदत है। पर असलियत यह है कि अब रोजाना इतने नए दल बनने लगे हैं कि जनता में किसी भी दल के प्रति उत्साह पैदा नहीं होता। किसी भी दल के नेता के आश्वासनों पर जनता को विश्वास नहीं होता। वेैसे भी आज दलों की स्थिति है क्या ? कौन सा दल ऐसा है जो इस बात का दावा कर सकता है कि उनके दल में पूरी तरह लोकतंत्र है। जवाब होगा कोई दल ऐसा नहीं है। प्रायः हर दल में विभिन्न स्तरों पर पदों के लिए चुनाव नहीं बल्कि मनोनयन होता है। जिसको चुनाव की रस्म अदायगी करके पूरा कर दिया जाता है। पिछले दिनों राजधानी दिल्ली में एक पोस्टर लगा कि इंका नेता श्रीमती सोनिया गांधी को दिल्ली प्रदेश इंका अध्यक्ष पद के लिए श्री सुभाष चैपड़ा के चुने जाने के लिए बधाई ! पोस्टर छापने वाला भ्रमित था। कहना तो वह यह चाहता था कि सुभाष चैपड़ा को अध्यक्ष चुने जाने पर बधाई पर साथ ही उसे पता था कि यह चुनाव नहीं श्रीमती गांधी द्वारा किया गया

मनोनयन है इसीलिए उसके पोस्टर की भाषा में मनोनयन और चुनाव दोनों के बीच दुविधा की भाषा झलकती है। प्रायः हर दल का नेता यह अपेक्षा करता है कि उसके दल के लोगों की पूरी निष्ठा केवल उसी नेता के प्रति हो, उसी दल के किसी अन्य नेता के प्रति नहीं। इसीलिए आए दिन सुनते रहते हैं कि फलां नेता वाजपेयी खेमे का है तो फलां नेता आडवाणी खेमे का। फलां नेता अर्जुन सिंह खेमे का है तो फलां नेता वीसी शुक्ला खेमे का। कोई नेता किसी गुट का तो कोई किसी गुट का। हर गुट का नेता अपने बाकी साथियों के सिर पर पैर रखकर अपने लिए राजनैतिक पद का जुगाड़ करता है। इसीलिए आए दिन एक ही दल के विभिन्न नेताओं के बीच सिर फूटते रहते हैं, उनके अह्म टकराते रहते हैं। बात बात पर नए राजनैतिक दल खड़े हो जाते है। हर नया दल खुद को दूसरे से ज्यादा जुझारू बता कर आम जनता को मीठे सपने दिखाता है। इस तरह चुनावों में और उसके बाद जुगाड़ करके सत्ता में शामिल होने का जुगाड़ करता है। सत्ता में पहुंचने के लिए और उसके बाद उसके मन में विचारधारा को लेकर कोई दुविधा नहीं होती। सत्ता हथियाने के लिए हर तरह के नापाक गठबंधन किए जाते हंै। आए दिन इन नए दलों के नेताओं के खिलाफ विद्रोह होते हैं, वे टूटते हैं और फिर नए दलों का गठन होता है। इतने सारे नेता हैं और इतने सारे दल हैं कि देशवासियों को यह याद करना भी संभव नहीं होता कि प्रमुख दलों के नाम क्या है और उन दलों के नेता कौन है ?

इतना ही नहीं लोकतंत्र की रक्षा की मांग करने वाले ये तमाम नेता नहीं चाहते कि इनके कार्यकर्ताओं की अपनी अलग पहचान बने। ये नेता ऐसे कार्यकर्ताओं को दल में पनपने नहीं देते जिनमें नेतृत्व की क्षमता होती है। दलों के भीतर चुनाव का नाटक करने बाद भी ऐसा कैसे होता है कि सारे सदस्य अपने नेता के भाई बेटा या बेटी को ही नया नेता चुन लेते हैं ? इस किस्म का एक महत्वपूर्ण चुनाव 31 दिसंवर 1984 को किया गया जब श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बेटे और राजनीति में नौसिखिए श्री राजीव गांधी को बिना दिल्ली पहुंचे ही दल का नेता चुन लिया गया। इतना ही नहीं उन्हें बिना सांसद हुए संसदीय दल का नेता भी चुन लिया गया और इस तरह हवाई अड्डे से सीधे राष्ट्रपति भवन ले जाकर उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा दी गई। 1967 में जब कांग्रेस का विभाजन हुआ था और वरिष्ठ कांग्रेसी श्री कामराज व श्री मोरारजी देसाई आदि ने कांग्रेस सिंडिकेट बनाई थी तब श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नाम के आगे इंदिरा जुड़ गया था। शायद दल की जगह व्यक्ति को महत्व देने की यहीं से शुरूआत हुई। सिख धर्म की सेवा के लिए बने अकाली दल का भी नाम अब गुरू गोविन्द सिंह के नाम पर नहीं बल्कि प्रकाश सिंह बादल और सिमरनजीत सिंह मान के नाम पर अकाली दल (बादल) और अकाली दल (मान) है।

चुनाव आयोग के पास आज सैकड़ों दलों के नाम पंजीकृत हैं। ज्यादातर दल केवल कागजों पर ही हैं। पर सक्रिय दलों की भी कमी नहीं। समाजवादी के नाम पर ही कितने दल हैं। श्री मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी, श्री चन्द्रशेखर का समाजवादी दल (राष्ट्रीय) व तमाम और। हकीकत यह है कि कोई भी दल न तो किसी विचारधारा के प्रति समर्पित है और न किसी विचारधारा का विरोधी है। जब जिसे जैसी सुविधा होती है वैसा गठबंधन कर लेता है और सत्ता का सुख भोगता है। राजग में ही आज वे तमाम दल हैं जो कल तक मंचों पर एकदूसरे को जम कर कोसते थे। दरअसल विचारधारा का मुखौटा पहनने के दिन अब लद गए। हर दल बेनकाब हो चुका है जनता जानती है कि जो कहा जा रहा है वह सच नहीं है। फिर भी इतने सारे दल हैं कि उनके नामों को याद रखना भी मुश्किल होता है। इस समस्या का एक सरल समाधान हो सकता है वह यह कि नए दलों के नाम भाषा या विचारधारा के शब्दकोशों में ढूंढ़ने के बजाए उन्हें दल के संस्थापक व नेता के नाम पर ही रख दिया जाए। जैसे, श्री रामविलास पासवान पार्टी, श्री चन्द्रशेखर पार्टी, श्री सुब्रमणयम स्वामी पार्टी, श्रीमती सोनिया गांधी पार्टी, श्री लालू यादव पार्टी, सुश्री जयललिता पार्टी, श्री शरद पंवार पार्टी, श्री ओम प्रकाश चैटाला पार्टी व श्री कांशी राम पार्टी। हंसिए मत यह मजाक नहीं है अगर ऐसा हो जाए तो न सिर्फ राजनैतिक कार्यकर्ताओं को सुविधा हो जाएगी बल्कि पत्रकारों को भी भारी राहत मिलेगी। क्योंकि उन्हें खबर लिखते वक्त यह आश्वस्त होने की चिंता नहीं रहेगी कि जिस दल का वह नाम लिख रहे हैं वह सही है या नहीं।

आज आमतौर पर राजनैतिक कार्यकर्ता किसी दल में देश की सेवा करने तो आते नहीं। आते हैं तो राजनीति को निजी लाभ का जरिया बनाने। इसलिए जिसका पलड़ा भारी दिखता है उधर ही दौड़ पड़ते हैं। हमारे पुराने मित्र श्री संजय सिंह राजनीति में आए इंका की मार्फत। जब श्री वीपी सिंह का पलड़ा भारी हुआ तो भाग कर उनके साथ चले गए। साल भर में जब श्री वीपी सिंह की सरकार गिरने लगी तो वे चन्द्रशेखर के दल के नेता हो गए। बाद में जब राम लहर बही तो भाजपा में आ गए। ऐसे ही तमाम दूसरे लोग भी हैं। यदि दलों के नाम व्यक्ति आधारित हों जाए तो ऐसे सभी राजनेताओं को और कार्यकर्ताओं को बड़ी सुविधा होगी। फिर इंका के सदस्य यह नहीं कहेंगे कि हम अपनी पार्टी के नेता से नाराज हैं और इसलिए तिवारी कांग्रेस में जा रहे हैं। फिर वे कहेंगे कि हम नरसिंह राव पार्टी से नाराज हैं इसलिए नारायणदत्त तिवारी पार्टी में जा रहे हैं। जरा सोचिए सबके लिए कितना सुलभ होगा दलों का नाम याद रखना ? हर नेता के नाम पर एक अलग पार्टी होगी जिसका घोषणा पत्र कहेगा, ‘हम इस दल के संस्थापक श्री क,ख,ग के विचारों के प्रति आस्था रखते हैं। इसलिए उनके श्रीचरणों में अपना राजनैतिक जीवन समर्पित करते हैं। हम शपथ लेते हैं कि हम पूरी निष्ठा ओर स्वामिभक्ति से अपने दल के नेता श्री क,ख, ग के आदेशों का पालन करंेगे। उनके स्वार्थ और अह्म के रास्तों में रोड़ा नहीं बनेंगे। उनके बेटी, बेटों, भतीजों और दामादों की सेवा उन्हें युवराज मानकर पूरी निष्ठा से करेंगे और उन्हें भी अपने सम्मानीय नेता का दर्जा देंगे।’ ऐसे घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद ही कोई राजनैतिक कार्यकर्ता किसी दल में शामिल हो पाएगा। यह बात दूसरी है कि जब उसे लगेगा कि उसके दल के नेता श्री क,ख,ग उसकी उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे। यानी उसे उसकी अपेक्षा अनुरूप आर्थिक लाभ या सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं मिली तो उसे टिका पाना मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति में यह कार्यकर्ता इस बात के लिए स्वतंत्र होगा कि वह श्री क,ख,ग के प्रति समर्पित अपनी स्वामिभक्ति को वापिस लेकर श्री अ,ब,स के चरणों में समर्पित कर दे, जैसा आज भी हो रहा है। इसी तरह जब श्री क,ख,ग के दाहिने हाथ श्री य,र,ल को लगेगा कि उसका नेता उसके साथ ना-इंसाफी कर रहा है तो वह भी झट से य,र,ल नाम से एक नए दल का गठन कर लेगा। अभी हाल ही में समता पार्टी में जोे कुछ हुआ वह ऐसी संभावनाओं की ताजा मिसाल है। इस व्यवस्था में किसी को कोई समस्या नहीं आएगी। जो लोग राम मंदिर बनाने की वायदा करके भाजपा में आए थे उन्हें फिर यह दिक्कत नहीं आएगी कि लोग उनसे पूछे कि सरकार में तो आप आ गए अब मंदिर का क्या होगा ?ऐसा कार्यकर्ता तपाक से कहेगा कि हमें मंदिर से क्या देना-देना हमने तो अपने नेता के प्रति समर्पण किया था और आज भी हम अपने नेता का ही राग अलप रहे हैं, मंदिर जाए भाड़ में। इस तरह एक नई परंपरा की शुरूआत होगी। कालवश जब उस राजनेता का निधन होगा तो दल का नाम पुनः बदल कर युवराज बेटे या बेटी के नाम पर रख दिया जाएगा। इस तरह भारत के लोकतंत्र में एक नया अध्याय जुड़ जाएगा। लोगों को भी किसी राजनैतिक कार्यकर्ता से कोई उम्मीद न रहेगी और दल के संस्थापक और नेता को भी अपनी गद्दी खिसकने की चिंता नहीं रहेगी क्योंकि वह आश्वस्त होगा कि उसका दल उसकी निजी जागीर है और कोई भी सदस्य उसके निर्देशन के बिना काम कर ही नहीं सकता। वैसे हो तो आज भी यही रहा है पर पर्दे की ओट में

Friday, January 12, 2001

जुझारू पत्रकारों की कमर तोड दी जाती है पंजाब में

मुल्क के गलत निजाम और बिगड़े हालात के विरूद्ध जाने तथा इन्हें बदलने की कोशिश करने का साहस बहुत ही कम व्यक्तियों मे होता है। आजादी से पहले ऐसे हिम्मतवाले कारनामें करने वालों को विद्रोही करार दिया जाता था और पत्रकार भी विद्रोही की श्रेणी में ही आते थे। अंग्रेज जानते थे कि विद्रोही उनके लिए अत्यंत खतरनाक हैं क्यांेकि वे आग पैदा कर रहे हैं, विद्रोह को हवा दे रहे हैं। इसलिए वे शुरू से ही इस चिंगारी को कुचल डालने की कोशिश मे लगे रहते थे। आजादी के बाद परिस्थितियांे में कुछ बदलाव जरूर आया है तथा पत्रकारिता के मायने व उद्देश्य भी बदल गए हैं मगर दुव्र्यवस्थाओं का विरोध करने वाले को विद्रोही करार देकर दबाने के प्रयासों में आज भी कोई कमी नहीं आई है, खासकर देश के छोटे शहरों और पिछड़े इलाकों में। परिस्थितियों तथा दुव्र्यवस्थाओं का विरोध करने की हिम्मत जुटाने वाले पत्रकार को धमकियां मिलना अथवा जानलेवा हमलों का शिकार होना हर इलाके में भले ही आम बात न हो मगर पंजाब में समझौता न करने तथा समाजहित को महत्व देने वाले पत्रकारों की स्थिति कुछ ज्यादा ही बदत्तर नजर आ रही है।

पंजाब के ही कुछ जुझारू पत्रकार यह देख कर काफी दुखी हैं कि उनके सूबे में बहुत से पत्रकार केवल सरकार के जनसंपर्क का जरिया बनते जा रहे हैं। कुछ अन्य राज्यों की तरह ही पंजाब में भी जो पत्रकार मंत्रियों के बयान तथा तारीफें बढ़-चढ़ कर छापते हंै उन्हें तमाम तरह की सरकारी एवं गैर सरकारी नियामतें बख्शी जाती है। जबकि सरकार की कुनीतियों तथा मंत्रियों व विधायकों की घपलेबाजियों का भंडाफोड़ करने वाले पत्रकारों को प्रायः तरह-तरह की मुसीबतों से गुजरना पड़ता है। पंजाब पुलिस भी सरकार की पिट्ठू बन कर ऐसे जुझारू पत्रकारों को प्रताडि़त करने का काम बेखौफ करती है। अभी हाल ही में एक ऐसे ही नौजवान पत्रकार के साथ घटे हादसों को सुनकर बहुत तकलीफ हुई। कहते हैं कि इंसान की आंखें उसके दिल का आइना होती हैं। इस नौजवान पत्रकार की आंखों में इस मुल्क के तेजी से बिगड़ते निजाम को लेकर तमाम सवाल तैर रहे हैं। उसके दिल में तमन्ना है कि वो हालात सुधारने का जरिया बने।  शहीदे आजम भगत सिंह की सरजमी पर पैदा होने वाला यह नौजवान जानता है कि मुल्क की खिदमत और इबादत का रास्ता फूलों से नहीं कांटों से भरा होता है। फिर भी वह इस रास्ते पर ही चलना चाहता है। उसकी इसी जिद ने उसे न सिर्फ कई बार जानलेवा हमलों का शिकार बनाया बल्कि कई महीनों के लिए जेल के सींखचों के पीछे बंद करवा दिया।

पंजाब के एक छोटे से नगर के इस युवा पत्रकार से मेरा संपर्क जब खतों की मार्फत हुआ तब वह 18 वर्ष का था आज 26 वर्ष का है। पर इतनी कम उम्र में ही उसमें कुछ कर गुजरने का जज्बा था। बाद के वर्षों में इधर-उधर से खबर मिलती रही कि इस नौजवान ने पत्रकारिता के क्षेत्र में छोटी उम्र में ही नाम कमा लिया। इसकी भावुकता व अपने पेशे के प्रति ईमानदारी का उदाहरण देने के लिए एक घटना का जिक्र करना ही काफी होगा । पंजाब के जिस छोटे से समाचार पत्र के माध्यम से इसने पत्रकारिता में कदम रखा था उससे उसने जल्दी ही इसलिए इस्तीफा दे दिया क्योंकि अखबार के संपादक ने एक तत्कालीन राज्यमंत्री के भ्रष्टाचार को उजागर करने वाला उसका एक तथ्यपरख व मयसबूत समाचार प्रकाशित करने से इंकार कर दिया। अपनी ऐसी जिद के चलते वह ज्यादा देर तक एक अखबार में टिक नहीं सका। कुछ समय विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता करने के बाद जल्दी ही फिर एक अन्य हिंदी दैनिक के जरिए पत्रकारिता में अपना नाम रोशन करने लगा।

 समाज के लिए कुछ करने की भावनाएं इसकी कलम में स्पष्ट झलकती थी। जबकि पंजाब पुलिस की गुंडागर्दी तथा भ्रष्टाचार इस पत्रकार का प्रमुख निशाना रहे। वर्दी में शराब पीते पुलिसकर्मियों के चित्र खींचकर प्रकाशित करवाना, पुलिस थानों में विभिन्न केसों के लिए निश्चित रिश्वत की सूची छापना तथा स्वास्थ्य एवं अन्य विभागों के भ्रष्टाचार के विरूद्ध भी खुलकर लिखना इसे भारी पड़ा। लिहाजा पुलिस के साथ-साथ कुछ एक ताकतवर सफेदपोशों को भी इसने अपना दुश्मन बना लिया। उस पर कुल चार बार हमले हुए। एक बार तो मौत के मुंह में जाते-जाते बचा और एक बार इसके पूरे परिवार को जान से मारने की कोशिश की गई। मगर तमाम घटनाक्रम की जांच करने के बाद भी हमलावरों के विरूद्ध पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। जैसा आमतौर पर होता है कि जब कोई व्यक्ति बिकने, झुकने या डरने से मना कर देता है तो उसका चरित्रहनन करना ही हुकमरानों की कोशिश होती है। उसे विदेशी खुफिया एजेंसी का एजेंट बता दो, देशद्रोही बता दो, किसी झूठे मुकदमें में फंसा दो या उस पर चरित्रहीनता का आरोप लगा कर उसे बदनाम कर दो।  शायद ऐसा ही कुछ इस नौजवान के साथ हुआ। जब उसके इलाके के ताकतवर लोग उसे खरीद नहीं पाए तो इस युवा पत्रकार के विरूद्ध एक औरत को छेड़ने के आरोप में केस दर्ज कर दिया गया। जबकि पुलिस अच्छी तरह से जानती थी कि यह औरत इस पत्रकार पर हमला करने वालों में से ही एक की पत्नी थी। हमलावरों को बचाने में जुटी पुलिस का ऐसा भ्रष्ट रवैया देखकर इस पत्रकार ने अपने परिवार पर हुए हमले के संबंध में अदालत में केस दायर कर दिए। इससे बौखलाई पुलिस और वहां के हुक्मरानों ने इस जुझारू पत्रकार को फंसाने का एक और तरीका ईजाद किया। 23 वर्षीय इस पत्रकार के खिलाफ 48 वर्षीय यानी इसकी मां से भी ज्यादा उम्र की एक अन्य औरत से अदालत में याचिका दायर करवाई गई जिसमें उसने शिकायत की कि इस पत्रकार ने उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी। ऐसा नहीं है कि 23 वर्ष का नौजवान 48 वर्ष की महिला के साथ बलात्कार नहीं कर सकता। पर माना जाता है कि कानून की आंख और कान ज्यादा चैकन्ने होते हैं। कानूनविद और पुलिस अगर ईमानदारी से पूरे हालात की सिलसिलेवार जांच करें तो यह पता चल जाता है कि आरोपी ने वास्तव में जुर्म किया है या उसे झूठे ही फंसाया जा रहा है। पर शायद ऐसी किस्मत इस नौजवान पत्रकार की नहीं थी। उसे इस छोटी सी उम्र में भरपूर यातनाएं दी गई पर इसकी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि इस पत्रकार ने इन सबके बावजूद भी हार नहीं मानी। शायद उसे विश्वास था कि अदालत से उसे एक दिन इंसाफ जरूर मिलेगा।

इसी बीच पता चला कि इस नौजवान को निचली अदालत ने एक वर्ष की कैद की सजा सुना दी। इतना ही कहर काफी न था कि एक और लड़की का अपहरण और बलात्कार करने के आरोप में इसे ही नहीं बल्कि इसके पूरे परिवार को भी फंसा दिया गया हैे। ऐसा यह नहीं कि कोई नौजवान गलत नहीं हो सकता मगर तथ्यों को नजरंदाज करना नाइंसाफी होगी। भुक्तभोगी यह जानते हैं कि पत्रकारिता के महंत बन कर बैठे दलाल किसी छोकरे पत्रकार की जाबांजी को बर्दाश्त नहीं कर पाते। उसे न सिर्फ हतोत्साहित करते हैं बल्कि अपने गाॅड-फादरों के इशारांे पर बदनाम करने से भी बाज नहीं आते। ऐसे दलालनुमा पत्रकार  जुझारू पत्रकारों को अक्सर ब्लैकमेलर कह कर बदनाम करने की कोशिश करते हैं। पर सूरज को बादल हमेशा ढक कर नहीं रख सकते। सच्चाई सामने आ ही जाती है। इस पत्रकार का परिवार आज भी एक किराए के मकान में रह रहा है। औरत को छेड़ने के जिस आरोप में इसे एक वर्ष की सजा सुनाई गई है उसके बारे में मात्र इतनी टिप्पणी काफी है कि इस केस मे कोई स्वतंत्र गवाही नहीं है। दोनों गवाहियां उक्त औरत के रिश्तेदारों यानी पति और भाभी ने ही दीं थीं। यह आश्चर्यजनक बात है कि उसी औरत के पति के विरूद्ध, इसी पत्रकार के परिवार पर हमले के आरोप में चल रहे अदालती केसों को भी नजरंदाज किया गया।

मानवाधिकारों व पत्रकारों की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले पंजाब के वकीलों, पत्रकारों, समाजकर्मियों व बुद्धिजीवियों के लिए इस पत्रकार की कहानी एक चुनौती है। अगर उनके सीने में इंसानी दिल धड़कता है तो उन्हें इस मामले की निष्पक्ष जांच करनी चाहिए। यदि उनकी जांच से यह सिद्ध हो जाए कि इस नौजवान पत्रकार के साथ वाकई नाइंसाफी की गई है या आज भी की जा रही है तो उन्हें इसकी रिपोर्ट छापकर इस पर हल्ला मचाना चाहिए। इस पत्रकार के साथ ही नहीं बल्कि पंजाब के कई शहरों में ऐसे हादसे हुए हैं, जरूरत उन सबकी जांच करने की है। ताकि न सिर्फ बेवजह यातना भोग रहे ये नौजवान पत्रकार चैन से जी सकें बल्कि भविष्य में ईमानदार और जुझारू पत्रकारों का हौसला न टूटे। शहादत और वतनपरस्ती के लिए मशहूर और हम सबके आदरणीय सिख गुरूओं के रास्ते पर चलने वालों और शहीदाने वतन भगत सिंह की हिम्मत और कुर्बानी की दाद देने वालों का यह नैतिक फर्ज है कि वे पंजाब की पाक जमीन को ऐसी नाइ्रंसाफी का ग्रहण न लगने दें। खासतौर पर समर्पित पत्रकारों की  हौसला आफजाई करना उनका धर्म है क्योंकि पत्रकारिता लोकतंत्र का चैथा स्तंभ है और आज इसे तोड़ने की गहरी साजिश की जा रही है।