Monday, June 24, 2019

मोदी इफैक्ट के फायदे?

जब से  नरेन्द्र मोदी ब्रांड को हर मतदाता के मन में बसाकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा को अप्रत्याशित विजय दिलाई है, तब से मोदी जी के आलोचकों और विपक्षी दलों को एक भय सता रहा है कि अब मोदी यथाशीघ्र भारत को राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ ले जाऐंगे। उन्हें दूसरा डर इस बात का है कि अब मोदी जी खुल्ल्मखुल्ला अधिनायकवाद की स्थापना करेंगे। उनका ये भी कहना है कि भाजपा के जीते हुए सांसद ये मानते है कि उनकी विजय उनके अपने कृतित्व के कारण नहीं बल्कि मोदी जी के नाम के कारण हुई है। इसलिए उनका तीसरा भय इस बात का है कि ये सभी सांसद संसद में केवल हाथ उठाऐंगे या नारे लगायेंगे। इनसे संसद की बहसों को कोई, गरिमा प्रदान नहीं होगी। इस तरह संसद का स्तर लगातार गिरता जायेगा। हम इन तीनों मुद्दों का विवेचन करेंगे।

जहाँ तक देश को राष्ट्रपति प्रणाली की ओर ले जाने की बात है, तो यह कोई गलत विचार नहीं है। दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में राष्ट्रपति प्रणाली है और कुछ अपवादों को छोड़कर ठीक-ठाक काम कर रही है। आयाराम-गयाराम की संस्कृति में सांसदों की खरीद-फरोख्त से बनी सरकारें ब्लैकमेल का शिकार होती है। छोटे-छोटे दल अल्पमत की सरकार को समर्थन देने की एवज में कमाऊ मंत्री पद हड़पना चाहते हैं। कैबिनेट की  सामूहिक जिम्मेदारी की बजाय हर सहयोगी दल अपने क्षेत्रीय दल, नेता व क्षेत्र के लिए ही सक्रिय रहता है, बाकी देश के प्रति गंभीर नहीं रहता। ‘हवाला कांड’ के बाद राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को लेकर पूरी रात संसद का अधिवेशन चला, पर आज तक कुछ भी नहीं बदला। जिन दलों और लोगों को आज मोदी जी की मंशा पर संदेह है, उन्होंने पिछले 23 वर्षों में राजनीति की दशा सुधारने के लिए कितने गंभीर प्रयास किये? जब वो ढर्रा देश 72 साल तक ढोता रहा, तो अब एकबार अगर मोदी जी राष्ट्रपति प्रणाली लाकर नया प्रयोग करना चाहें, तो इससे इतनी घबराहट क्यों होनी चाहिए?

राष्ट्रपति प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि पूरे देश की जनता अपनी पंसद के नेता को 5 साल के लिए देश की बागडोर सौंप देती है। ऐसे चुना गया राष्ट्रपति, बिना किसी दबाव के, अपने मंत्रीमंडल का गठन कर सकता है। जाहिरन तब वह अपनी पसंद के और अनुभवी लोगों को किसी भी क्षेत्र से उठाकर मंत्री बना सकता है। जैसा- इस बार मोदी जी ने विदेश मंत्री के संदर्भ में प्रयोग किया। फिर वो व्यक्ति चाहे प्रोफेसर हो, वैज्ञानिक हो, उद्योगपति हो, पत्रकार हो, समाजसेवी हो या रणनीति विशेषज्ञ हो। अमरीका में आज ऐसा ही होता है। इससे कैबिनेट की योग्यता, कार्यक्षमता और निर्णंय लेने की स्वतंत्रता बढ़ जाती है। हां एक नुकसान हो सकता है, अगर राष्ट्रपति अहंकारी हो, अनैतिक आचरण वाला हो या लालची हो, तो वह देश को मटियामैट भी कर सकता है। पर जिसे पूरा देश अपने विवेक से चुनेगा, उससे ऐसे आचरण की उम्मीद कम ही की जा सकती है।

मोदी जी के आलोचकों को डर है कि वे हिटलर या मुसौलनी की तरह धीरे-धीरे अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहे हैं। चुनाव के दौरान व्हाट्सएप्प समूहों में हिटलर की आदतों को लेकर ऐसे कई संदेश प्रचारित किये गये, जिनमें मोदी जी की तुलना हिटलर से की गई। यहां एक बुनियादी फर्क है। हिटलर प्रजाति के अहंकार से ग्रस्त एक गैर आध्यात्मिक व्यक्ति था। जिसकी मंशा विश्व विजेता बनने की थी। जबकि मोदी जी ने योग को विश्वस्तर पर मान दिलाकर, राष्ट्राध्यक्षों को श्रीमद्भगवत्गीता भेंटकर और देश के सभी प्रमुख देवालयों में पूजा अर्चन कर अपने-अपने सनातनी होने का प्रमाण दिया है। निश्चित तौर पर उन्होंने श्रीमद्भागवत् के राजा रहुगण व जड़ भरत संवाद को पढ़ा होगा। जो कल राजा था, वो आज पालकी उठाने वाला बन गया और जो आज सड़क के पत्थर तोड़ता है, वो कल भारत का राष्ट्रपति बन सकता है। जिसने वैदिक दर्शन के इस मूल सिद्धांत को समझ लिया, वह राजा अधिनायकवादी नहीं, राजऋषि बनेगा। अब यह तो समय ही बतायेगा कि मोदी जी स्वान्तः सुखाय अधिनायकवादी बनेंगे या बहुजन हिताय?

मोदी जी की एक शिकायत आम है, जो उनके आलोचक नहीं, बल्कि चाहने वालों के बीच है। उनका नौकरशाही पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर होना। जबकि इस देश के तमाम ईमानदार और चरित्रवान व उच्च पदासीन रहे नौकरशाहों ने अपने स्मरणों में बार-बार इस बात पर दुखः प्रगट किया है कि नौकरशाही के तंत्र में उलझ कर वे कुछ भी ठोस और सार्थक नहीं कर पाये। एक घिसीपिटी मशीन का पुर्जा बनकर रह गऐ। यह पीड़ा मेरी भी है। गत 5 वर्षों से बार-बार स्मरण दिलाने के बावजूद प्रधानमंत्री कार्यालय में ब्रज को लेकर मेरी अनुभवजन्य व स्वयंसिद्ध उपलब्धियों पर आधारित चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया और आज भी ब्रज का विकास नये पुराने नौकरशाहों पर छोड़ दिया है, जो 5 वर्ष में भी एक भी काम उल्लेखनीय या प्रशंसनीय नहीं कर पाये। अमरीका की प्रगति के पीछे सबसे बड़ा कारण वहां मिलने वाला वो सम्मान है, जो अमरीकी सरकार और समाज हर उस व्यक्ति को देता है, जो अपनी योग्यता सिद्ध कर देता है।

रही बात संसद की। यह सही है कि भाजपा के अधिकतर सांसद अपने काम और नाम की बजाय मोदी जी के नाम पर जीतकर आये हैं। पर इसका अर्थ ये नहीं कि वो किसी गड़रिये की भेडे़ हैं। लाखों लोगों ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना है। उनकी बहुत अपेक्षाऐं हैं। जनता से जुड़ाव के बिना कोई नेता बहुत लंबी दूरी तक नहीं चल सकता। न सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर पकड़ जरूरी है, बल्कि राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय मुद्दों पर भी हस्तक्षेप करने की अपेक्षा देशवासी हर सांसद से करते हैं। ‘निंदक नियरे राखिये’ वाले सिद्धांत में आस्था रखते हुए मोदी जी को चाहिए कि वे अपने सांसदों को यह निर्देश और शिक्षा दें कि वे संसद की बहसों में सक्रिय रहकर अपना योगदान करें और जहाँ आवश्यक हो, अपनी ही सरकार की कमियों की ओर इशारा करने से न चूकें। इससे सरकार की विश्वसनीयता व लोकप्रियता दोनों बढ़ती है। आशा की जानी चाहिए कि मोदी जी अपने आलोचकों की शंकाओं के विरूद्ध एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण की तरफ कदम बढ़ाऐंगे।

Monday, June 17, 2019

मोदी जी हम टैक्स चोर नहीं हैं!


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हमारी सहपाठी रहीं भारत की वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की जनता से आगामी बजट के लिए रचनात्मक सुझाव मांगे है। इसकी प्रतिक्रिया में एक डॉक्टर ने भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी को एक रोचक पत्र लिखा है। जिसमें डॉक्टर का कहना कि मोदी जी हम टैक्स चोर नहीं हैं। फिर हम क्यों टैक्स चोरी करते हैं? ये पत्र उन्होंने हर उस व्यापारी या प्रोफेश्नल की तरफ से लिखा है, जिसकी क्षमता आयकर देने की है।

वे लिखते हैं कि हमें अपने घर, दफ्तर और कारखानों में जेनरेटर चलाकर बिजली पैदा करनी पड़ती है, क्योंकि सरकार 24 घंटे बिजली नहीं दे पाती। हमें सबमर्सिबल पंप लगाकर अपनी जलापूर्ति करनी पड़ती है, क्योंकि जल विभाग हमें आवश्यकतानुसार पानी नहीं दे पाता। हमें अपनी सुरक्षा के लिए सिक्योरिटी गार्ड भी रखने पड़ते हैं, क्योंकि पुलिस हमारी रक्षा नहीं करती। हमें अपने बच्चों को मंहगे प्राइवेट स्कूलों में पढाना पड़ता है, क्योंकि सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। हमें अपना इलाज भी मंहगे प्राइवेट अस्पतालों में करवाना पड़ता है, क्योंकि सरकारी अस्पताल खुद ही आई.सी.यू. में पड़े हैं। हमें आवागमन के लिए अपनी कारें खरीदनी पड़ती हैं, क्योंकि सरकारी ट्रांस्पोर्ट व्यवस्था की हालत खस्ता है।

सेवानिवृत्त होने के बाद एक आयकरदाता को इज्जत से जिंदा रहने के लिए सरकार से मिलता ही क्या है? कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती। बल्कि उसकी जिंदगीभर की मेहनत की कमाई से सरकार जो कर उघाती है, वह राजनेता वोटों के लालच में बड़ी-बड़ी खैरात बांटकर लुटा देते हैं। प्रश्न ये है कि हमारे कर की आय से सरकार क्या-क्या करती है? अदालत चलाती है? जहां वर्षों न्याय नहीं मिलता। थाने बनाये गए हैं? जहां केवल राजनेताओं और आला-अफसरों की सुनी जाती है। आम आदमी की तो शिकायत भी रिश्वत लेने के बाद दर्ज होती है। स्कूल और अस्पतालों के भवनों को बनाने पर सरकार खूब खर्च करती है, जो कुछ सालों में खंडहर हो जाते हैं। सरकार सड़के बनवाती है, जिसमें 40 फीसदी तक कमीशन खाया जाता है। यह सूची बहुत लंबी है।

पश्चिमी देशों में जिस तरह की सामाजिक सुरक्षा सरकार देती है, उसके बाद वहां के नागरिक टैक्स चोरी क्यों करें ? जब हर सुविधा उन्हें सरकार से ही मिल जाती है, तो उन्हें चिंता किस बात की? जबकि हमारे यहां अरबों-खरबों रूपया केवल नेताओं और अफसरों के ठाट-बाट, सैर-सपाटों और ताम-झाम पर खर्च होता है। जनता पर खर्च होने के लिए बचता ही क्या है?

एक कारखानेदार 2 से 10 फीसदी मुनाफे पर उत्पादन करता है। जबकि सरकार को अपनी आय का 30 फीसदी अपनी व्यवस्था चलाने पर ही खर्च करना होता है। ये कहां तक न्याय संगत है?

यही कारण है कि भारत में कोई सरकार को कर अदा नहीं करना चाहता। हम टैक्स बचाते हैं, अपने परिवार की परवरिश के लिए और बुढ़ापे में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए। जबकि ये सब जिम्मेदारी अगर सरकार लेती, तो हमें इसकी चिंता नहीं करनी पड़ती।

दूसरी तरफ अगर सरकार ये घोषणा करे कि उसे सेना के लिए या बाढ़ व तूफान में राहत पहुंचाने के लिए 1000 करोड़ रूपये चाहिए, तो हम सब देशवासी इतना धन 2 दिन में जमा करवा सकते हैं और करवाते भी हैं। सरकार की ऐसी किसी भी मांग पर हम सभी करदाता खुले दिल से सहयोग करने में आगे बढ़ेंगे। इससे स्पष्ट है कि हम सरकार का सहयोग करना चाहते हैं। हम सरकार की उन रणनीतियों और कार्यक्रमों के लिए धन देने को भी तैयार हैं, जिनसे देश की सुरक्षा हो, गरीबों को न्याय मिले और हम सबका जीवन आराम से गुजरे। पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए आम करदाता कर देने से बचता है।

जरूरत इस बात की है कि इन सरकारी सेवाओं को सुधारा जाऐ और हमें चोर बताने से पहले जिले से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और नेताओं की कड़ाई से नकेल कसी जाए। जो अभी तक नहीं हो पाया है। चाहे वह राज्य किसी भी दल द्वारा शासित क्यों न हो, आम आदमी को तो हर जा-बेजा बात के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इससे जनता में सरकार की छवि खराब होती है।

जब भ्रष्टचारी अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों पर लगाम कसी जायेगी, तो इसके तीन लाभ होंगे। एक तो भ्रष्टाचार और कालेधन पर प्रभावी रोक लग सकेगी। दूसरा आम जनता के बीच मोदी जी इतने लोकप्रिय हो जाऐंगे कि अगली बार दुगने मतों से जीतेंगे। तीसरा इस देश का आम व्यक्ति ईमानदारी से इतना कर देगा कि सरकार का खजाना कभी खाली न हो। बशर्ते जनता के इस धन का पारदर्शिता से सार्थक उपयोग हो, उसको एय्याशी में बर्बाद न किया जाए।

पिछले 5 वर्षों में मोदी जी ने भारत सरकार में भ्रष्टाचार को रोकने में भारी सफलता हासिल की है। अब दिल्ली के 5 सितारा होटलों में आपको हाई प्रोइफल दलाल कहीं दिखाई नहीं देते। क्योंकि अब कोई ये दावा नहीं कर सकता कि तुम मुझे इतना रूपया दो, तो मैं तुम्हारा काम करवा दूंगा। अब इससे एक कदम और आगे जाने की जरूरत है। प्रांतों और जिलों में भी इसी संस्कृति का अविलंब परिचय मिलना चाहिए। तभी जनता को लगेगा कि ‘मोदी है, तो मुमकिन है’।

Monday, June 10, 2019

विश्व में तेल और गैस के अकूत भंडार उपलब्ध हैं

एक महीना पहले पेट्रोल मंत्रालय ने नोटिफिकेशन निकालकर भारत में तेल और गैस निकालने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर छूट और सुविधाओं की घोषणा करते हुए देशी और विदेशी कंपनियों को आमंत्रित किया। उसके फलस्वरूप एक सप्ताह पहले देश के 85 प्रतिशत तेल और गैस के बचे-खुचे भंडारों का ठेका अनेक कंपनियो को दे दिया गया और अभी हाल ही  में पश्चिमी उ0प्र0 के बागपत क्षेत्र से तेल की खुदाई के लिए काम भी शुरू हो गया। स्मरण रहे कि सेटेलाइट द्वारा ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक के माध्यम से पूरे धरती की 35 किमी. तक गहरी ^crustal layers* की ‘सिग्नेचर फाइल्स’ कई साल पहले विश्व के कई देशों ने पहले से ही तैयार कर रखीं है। इन फाइल्स के अंदर धरती माता के गर्भ में कहाँ-कहाँ तेल और गैस के कितने भंडार हैं, सोने-चाँदी के कितने भंडार हैं, हीरे-रत्नों के कितने भंडार हैं, तांबे-लोहे के कितने भंडार है, आदि को चिन्ह्ति किये जा चुका है। दुर्भाग्यवश कुछ देश अभी तक इस सूचना से वंचित हैं।
अगर इन फाइलों को विश्व कल्याण हेतु सार्वजनिक कर दिया जाए, तो विश्व के 771 करोड़ लोगों की गरीबी, भुखमरी, बदहाली 3 महीने के अंदर दूर हो सकती है। ये बहुत महत्वपूर्णं ‘कम्युनिकेशन गैप’ है, जिसके कारण पूरे विश्व में एक अनिश्चितता और घबराहट का वातावरण छाया हुआ है। चूंकि ये युग परिवर्तन की शुभ और पवित्र बेला है, इसलिए पिछले दिनों ‘ईलौन मस्क’ जैसे उदारशील महापुरूष ने अपनी ‘टेस्ला कार’ का पेटेंट ‘पब्लिक इंट्रस्ट’ में मुफ्त में देने की घोषणा कर दी। उधर बिल गेट्स और स्टीव जॉब जैसे ‘इंटरप्रन्यार्स’ ने जनहित में अपनी फाउंडेशंस के माध्यम से धन के भंडार दान में दे दिये। हम आशा करते हैं अगर अमेरिका भारत को तेल और गैस बेचने के लिए ऑफर कर सकता है, तो वो विश्व कल्याण हेतु जो ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की जो सिग्नेचर फाइल्स हैं, उनको भी मुफ्त में सार्वजनिक कर दे। ऐसा करने से विश्व के जितने विकासशील देश हैं, उनके प्राकृतिक संसाधन ‘पब्लिक डोमेन’ में आ जाने से डिमांड और सप्लाई की रस्साकशी खत्म हो जाएगी। धरती माता जिसको वेदों में कामधेनु और वसुंधरा के नाम से अलंकृत किया गया है, उसके 771 करोड़ बच्चे खुशहाल और संपन्न हो जाऐंगे।
पैट्रोलियम मंत्रालय ने पिछले महीने तेल और गैस की नीति सुधारने के लिए जब अधिसूचना जारी की, तो उसमें ‘सिस्मिक सर्वे’ को तो 20 प्रतिशत ‘वेटेज’ दिया गया। मगर ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की ‘सिग्नेचर फाईल्स’ की चर्चा नहीं की गई। अगर भारत को ‘सुपर पॉवर’ बनना है, तो ईसरो के सेटेलाईट के माध्यम से अपनी ‘पर्सनल सिग्नेचर फाईल्स’ तुरंत तैयार करके अपने देश के प्राकृतिक संसाधानों का नियोजित दोहन करना शुरू करना होगा। इस देव भूमि भारत में प्राकृतिक संसाधनों के अकूत भंडार विद्यमान हैं। मगर ‘कम्युनिकेशन गैप’ होने की बजह से हम अपने देश का 10 लाख करोड़ रूपया हर साल तेल और गैस के आयात में फिजूल में बर्बाद कर देते हैं। अगर ये पैसा बच जाऐ, तो देश विकसित देशों की श्रेणी में आ जाऐगा।
सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ में हीरों की विश्व की सबसे कीमती और महत्वपूर्णं खान का ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक के द्वारा ही पता लगा है। हमें अब ‘सिस्मिक सर्वे’ जैसी कमजोर और अधूरी तकनीक के भरोसे नहीं रहना चाहिए। याद रहे कि सर्जिकल स्ट्राइक और ओसामा के ऊपर हमले में भी इसी ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। अर्थर्वेद के भूमि सूक्त के बारहवें मंत्र (यत्ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः। तासु नो धेह्यभि नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः।।)  की दूसरी लाईन में अथर्वाऋषि ने धरती की नाभि से निकलने वाली ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ के उद्गम स्थल के महत्व को सारगर्भित कहकर प्रशंसा की है। यही ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ धरती की नाभि से चलते हुए धरती की सतह को क्रॉस करके सेटेलाइट के कैमरे में पहुंचकर ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ को अमलीय जामा पहनाती हैं। इसलिए अर्थवा ऋषि ने धरती की नाभि के ऊपर सभी विद्वानों को अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए वाहरवें मंत्र में उपदेश दिया है। याद रहे इसी धरती की नाभि से ^magnetosphere’ का उद्गम होता है। जोकि धरती की सतह से 70000 किमी की ऊँचाईं पर जाकर एक महत्वपूर्णं छाता तैयार करता है। इस छाते की मदद से सूर्य से आने वाली घातक सोलर विंड’ के ‘इलैक्ट्रिकली चार्ज पार्टिकल्र्स’ धरती के उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों की तरफ डाईवर्ट हो जाते हैं। अगर ये ‘मैग्नेटो सफियर’ छाता न हो, तो धरती के ऊपर बसने वाले 771 करोड़ आदमी एक दिन में चनों की तरह भुन जाऐंगे और धरती पर बसी हुई सारी सृष्टि जलकर राख हो जाऐगी। इसलिए अथर्वा ऋषि ने भूमि सूक्त के वारहवें मंत्र में धरती की नाभि से निकलने वाली ऊर्जा को धरती के अस्तित्व के लिए और धरती पर बसने वाले धरतीवासियों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्णं बताया है।
अब आगे पाठकों को हम हम बता दें कि इन्हीं ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ से धरती की सतह जो है, वो पवित्र (स्टेरेलाईज) होती है। नहीं तो धरती के ऊपर बहुत सारी काई जम जाती और धरतीवासी महामारियों से मर जाते। तो कुल मिलाकर भूमि का सबसे महत्वूपूर्णं अंग उसकी नाभि और उससे निकलने वाली अनेक प्रकार की ऊर्जा ही है और साथ ही साथ यह जो धरती फुटबॉल की तरह फूली हुई है, उसको फुलाऐ रखने में इसी ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्णं योगदान है। नहीं तो यह धरती जो फुटबॉल की तरह फूली हुई है, ये सिकुड़कर टेबिल टेनिस का बॉल बन जाती और पूरे के पूरे विश्व के देश 6500 किमी. नीचे धंस जाते। इसी तथ्य को भगवान श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को उपदेश देते हुए श्रीमद्भगवतगीता के 15वें अध्याय के 13 वें श्लोक की प्रथम पंक्ति में कहा है ‘गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा’। इसी पंक्ति का सरलार्थ करते हुए आदि शंकराचार्य ने लिखा है कि ये ऊर्जा की मात्रा संतुलित है। अगर ये ऊर्जा की मात्रा कम हो जाऐ, तो यह धरती नीचे धंस जाएगी और यदि ऊर्जा की मात्रा अधिक हो जाऐ, तो धरती जरूरत से ज्यादा फूलकर गुब्बारे की तरह फट जाऐगी। ये संतुलन सातवें आसमान में स्थित अमृत पुंज द्वारा किया जाता है। जिसकी चर्चा अथर्वा ऋषि ने भूमि सूक्त के आंठवें मंत्र की दूसरी पंक्ति ‘यस्या हृदयं परमे व्योमन्त्सत्येनावृतममृतं पृथिव्याः’ में की है। इन सूचनाओं के स्रोत वैदिक वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर इस गुप्त रहस्य या पृथ्वी के अमृत पुंज से, जिसको श्रीमद्भगवत्गीता में घन परमेश्वर कहा गया है, प्रार्थना करते हैं कि वो विश्व के कल्याण हेतु विकसित देशों को ‘सिग्नेचर फाइल्स’ को सार्वजनिक करने की सद्बुद्धि प्रदान करें।

Thursday, June 6, 2019

Restoring Hindu Heritage Sites is a Crime in India


Kind Attention: Lawyers and Concerned Citizens  

In May 2018 Hon’ble Member NGT Mr. Raghuvendra Singh Rathore passed several harsh orders against our organisation, The BrajFoundation





Our crime is that we have been restoring and maintaining ancient water bodies, forests and heritage buildings in Mathura, including Rudra Kund & Sankarshan Kund, located on Goverdhan Parikrama.

He did so despite the fact that entire village community in writing had given their appreciation to NGT for our efforts of converting heaps of garbage, which these ancient Kunds were for decades, into world class pilgrim destinations, while they were ignored by local Admn. for decades. 



Mr. Rathore humiliated us in the court, despite the fact that The Braj Foundation has won 6 UNESCO backed ‘Best Water NGO of India’ Awards for restoring Ancient Water Bodies in Mathura, PM Mr. Narendra Modi, several Union Cabinet Ministers, CMs, CEO Niti Aayog, millions of pilgrims, prominent Saints & media praise The Braj Foundation for its selfless restoration works in Mathura. This work is being done for the past 17 years. Fortunately, Hon’ble SC next day granted stay against the NGT order else other sites restored by us would have also fallen prey to such order.


Mr. Rathore not only did this but also humiliated us by calling 'land grabbers,' while two DMs of Mathura had already given affidavits in the Hon’ble Allahabad High Court stating that The Braj Foundation only restores these water bodies while the ownership always remains under village common. Mr. Rathore also passed several other damaging verbal orders against us and instructed DM Mathura to paint the names of donors like Mr. Ajay Piramal, Mr. Rahul Bajaj & Dr. Rameshwar Rao etc and that of The Braj Foundation, on the stone plaques installed at the sites after the restoration. Have you ever seen such an attack except by the barbaric invaders, who destroy the culture of defeated countries?


Mr. Rathore passed all such orders by ignoring the facts available on case file & all legal arguments presented therein and instructed Mathura Admn. to deprive us from maintaining these sites. As a result within one year these sites have returned to very pitiable conditions. Thousands of trees, planted by us, have died due to no irrigation, 34ft. tall beautiful black granite deity carved in Tirupati Balaji and installed by HH Chinna Jeeyar Swami ji at Sankarshan Kund is collecting dust in the absence of regular Sewa Puja which earlier  we were doing.

Everyone who visits these Kunds on Goverdhan Parikrama, literally sheds tears looking at the damage Mr. Rathore’s orders have done. 

Condition of the trees at Sankarshan Kund
Interestingly Mr. Rathore is doing all this on a PIL field by a fake Anand Baba, who is accused of selling forest lands in Bharatpur (Raj)  and facing criminal charges. The other petitioner  is a  CA, both are agents of a well-known scam master of Jaipur, Anoop Bartaria, who is also facing several criminal charges under CBI & DRI.

It is also very disturbing that on one side Mr. Rathore is humiliating and punishing The Braj Foundation, which has done unprecedented work of restoring Environmental & Cultural heritage in Mathura, while on the other side he is regularly passing orders to construct circular roads on Goverdhan Parikrama, take over management of temples, create shrine boards etc. Is this the mandate of NGT to interfere in civil administration and worry about temple management etc?
Condition of the water at Sankarshan Kund now



We are waiting for the Hon’ble SC to hear our pending matter but meanwhile I am requesting all of you to generate a debate in legal fraternity or amongst your fraternity about this draconian style of functioning of NGT. You know that right from the 'Jain Hawala Case'(1993) till now I have always fought for public causes and have never chased political or monetary rewards for my dangerous and long drawn crusades. That is why legal illuminates like Mr. L M Singhvi, Mr. Ashok Desai, Mr. Anil Divan, Mr. KK Venugopal, Mr. Ram Jethmalani, Mr. Fali Nariman, Mr. Shanti Bhushan, Mr. Abhishek Manu Singhvi and so many others have always stood for me in the SC, without ever charging a penny from me. I am grateful to all of them.

Condition of Rudra Kund now
This issue of Mathura is bigger than all others I fought during past three decades, because it questions the very fundamentals of our approach to development. While we know that govt. money is siphoned off before it reaches at the implementation level, here is an NGO which has done tremendous developmental work, without taking a penny from the govt., yet it is being attacked by NGT. The spirit of young IITians, MBAs & Architects etc. who voluntarily contribute to this cause with us is being hampered by such negative attitude of NGT, which is otherwise supposed to be concerned about Environment and not Temple Management? I beg you to respond to our humble plea and take up this matter with Hon’ble Judges of SC, even in your private conversations and in formal professional discussions?

Let the spirit to serve our motherland not die !


Yours truly
Sr. Journalist,New Delhi
&
Chairman, The Braj Foundation, Vrindavan.

Monday, June 3, 2019

पशु पक्षियों से भी बात की जा सकती है

यकीन नहीं होता? पर ये सच है। पुणे की अमृता पोत्दार को बचपन से ही इन सब का ज्ञान है। आपका कुत्ता, बिल्ली, तोता, गाय या कोई भी अन्य पशु-पक्षी, जलचर हो, थलचर हो या नभचर हो, वो सबसे बात कर सकती हैं। देश-विदेश में साढ़े तीन सौ से भी ज्यादा लोग अमृता की सेवाओं से गद्गद् हैं और सोशल मीडिया पर अमृता पोत्दार और अपने अनुभवों को साझा करते नहीं अघाते। अमृता पोत्दार ने 20 साल तक बडे़ उद्योग कंपनियों में उच्च पद पर रहकर कार्य किया। लेकिन इन सबको छोड़कर वह पशु-पक्षियों की सेवा में जुट गईं और पहले स्वयं पशु-पक्षियों से बातें करनी शुरू की, बाद में फेसबुक पेज Thesoulconnect के माध्यम से अन्य लोगों की सहायता करनी शुरू की।


उदाहरण के तौर पर दिल्ली में ही रहने वाली एक महिला दीपिका का प्रिय कुत्ता खो गया था। उनहोंने बहुत ढूंढा, विज्ञापन निकलवाऐ और 1 लाख रूपये का ईनाम भी घोषित किया, पर वह कुत्ता नहीं मिला। तब किसी ने दीपिका को अमृता पोत्दार के बारे में बताया। अमृता ने फोन पर सारी आवश्यक जानकारी ली और दो-तीन दिन के बाद दीपिका को बताया कि वह कुत्ता दक्षिणी दिल्ली की झुग्गियों में एक परिवार के साथ रह रहा है। अमृता के बताए संकेतों (जैसे- जिस लड़के के पास वह कुत्ता है, उसके बालों का रंग व ढंग) के आधार पर वह कुत्ता मिल गया। अमृता को उस कुत्ते ने आत्मा से आत्मा के संवाद द्वारा बताया कि उसे किसी व्यक्ति द्वारा गाड़ी में पकड़कर जंगल में छोड़ दिया गया था। तभी उस पर झुग्गियों में रहने वाले एक लड़के की नजर पड़ी, जो उसे अपनी झुग्गी में ले गया और उसे पाल रहा है। है ना अचंभे की बात? कुत्ता मिलने के बाद अमृता ने उनसे किसी तरह का ईनाम नहीं लिया।

एक और घटना फ्रांस के साउथ ईस्ट की है, जहां रहने वाले एक परिवार की पालतू बिल्ली घर से चली गई थी। परिवारीजनों ने बिल्ली को खूब ढूंढा, वो नहीं मिली। किसी तरह उन्हें अमृता के बारे में पता चला, तो उन्होंने संपर्क करके बिल्ली की सारी आवश्यक जानकारी अमृता से साझा की। अमृता ने अपनी मानसिक शक्ति के माध्यम से बिल्ली की आत्मा से संपर्क साधा और बिल्ली की गतिविधयों की जानकारी परिवार को देती रही। यह प्रक्रिया छह दिनों तक चली। जिसमें अमृता प्रतिदिन शाम को बिल्ली से मानसिक संपर्क कर, बिल्ली के स्थान का पता लगाती और परिवारीजनों को सूचित करती। जिसके चलते वे वहां-वहां पहुँचते। इस तरह पाँचवे दिन अमृता ने बताया कि उनकी बिल्ली अमुक स्थान पर एक भूरी बिल्ली के साथ है। इस तरह परिवारीजन उक्त स्थान पर पहुँचे, उन्हें बिल्ली दिखी लेकिन उनके हाथ नहीं लगी। तब अमृता ने बताया कि बिल्ली उनसे डर कर भाग रही है। अमृता ने बिल्ली की आत्मा से संपर्क साधा और कहा कि वह अब कहीं और न जाए, वहीं रूकी रहे। छठवें दिन जब परिवारीजन उक्त स्थान पर पुनः पहुँचे, तो उन्हें उनकी बिल्ली वापिस मिल गई।

अक्सर खो जाने वाले पालतू पशु-पक्षियों को अमृता अपनी इसी दुर्लभ शक्ति के द्वारा ढूंढ निकालती है। अमृता बचपन से ही पशु-पक्षियों की मदद व सेवा में रूचि ले रही है। इस सेवा के बदले वह इन लोगों से कुछ फीस वसूलती है, जिसे वह अपनी सामाजिक सेवाओं में खर्च करती है।

टेलीफोन पर हुई वार्ता में अमृता ने बताया कि इस दुर्लभ शक्ति से संपन्न इस दुनिया में वह अकेली नहीं है। भारत और अन्य देशों में ऐसे काफी लोग हैं, जिन्हें ऐनीमल कम्युनिकेटरकहते हैं। जो किसी भी पशु या पक्षी से ठीक वैसे ही बात कर सकते हैं, जैसे हम और आप करते हैं।

अमृता ने बताया कि यह गुण जन्मजात होता है और अभ्यास से निखर जाता है। जिसके लिए उन्होंने कठिन परिश्रम किया है।

आज के वैज्ञानिकता के दौर में जब हर चीज को प्रमाण और तर्क की कसौटी पर कसा जाता है, अमृता जैसी चमत्कारिक प्रतिभाऐं भी मौजूद हैं, जो अपनी दुर्लभ शक्ति से उन तमाम लोगों का दुख दूर कर सकती हैं, जिन्हें पशु-पक्षियों को अपनी बात कहनी हो या उनकी बात समझनी हो, जिनका प्रिय पालतू पशु उन्हें छोड़कर चला गया या फिर अपने उद्दंड स्वभाव के कारण अपने स्वामी को लगातार परेशान करता रहता है। जब अमृता पशुओं से बड़ी सहजता से बातें करती है और उसके रूखे व्यवहार का कारण पूछती है, तो उस पशु के मालिक को आश्चर्य होता है, जानकर कि इतनी सहज सी बात भी वे समझ नहीं पाए और तब वे अमृता का बार-बार आभार व्यक्त करते हैं कि उसने उनकी बहुत बड़ी समस्या चुटकियों में दूर कर दी।