Friday, November 26, 2004

शंकराचार्य की गिरफ्तारी पर मन्दिरों की राजनीति

Panjab Kesari 26-11-2004
शंकराचार्य की गिरफ्तारी ने देश के हिन्दू समाज को उद्वेलित कर दिया है। कानून की निगाह में सब समान हैं इस बात से हिन्दुओं को परहेज नहीं, पर उनका सवाल है कि एक दर्जन मुकदमे कायम होने के बावजूद क्या वजह है कि सरकार आज तक जामा मस्जि़द के इमाम बुखारी को कभी गिरफ्तार नहीं कर पायी। क्या वजह है कि न्याय पालिका के उच्च पदों पर आसीन लोगों के भ्रष्टाचार उजागर होने के बावजूद संसद ने उन पर महाभियोग नहीं चलाया और देश को ऐसे भ्रष्ट न्यायाधीशों के रहम पर छोड़ दिया? क्या वजह है कि हत्या, बलात्कार, लूट और अपहरण करने वाले देश में कानून के निर्माता और मंत्री बन जाते हैं और पुलिस और न्याय व्यवस्था उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती? इस सन्दर्भ में शंकराचार्य की गिरफ्तारी काफी अटपटी लगती है। वे हत्या में स्वयं शामिल नहीं हैं। तमिलनाडु पुलिस के अनुसार उन पर हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप है। शंकराचार्य जैसी सख्शीयस को आधी रात में गिरफ्तार करने की जरूरत नहीं थी। उन्हें बाकायदा दिन में भी गिरफ्तार किया जा सकता था। उनकी धार्मिक स्थिति और दैनिक साधना व कर्मकाण्ड को ध्यान में रखकर उन्हें जेल की तंग कोठरी के बजाय किसी ऐसे स्थान पर भी रखा जा सकता था जहाँ उनकी दिनचर्या में व्यवधान न पड़ता। धर्म निर्पेक्षतावादी इस तर्क से सहमत नहीं होंगे। उनका मानना है कि हत्या के लिए सशंकित व्यक्ति से वैसा ही व्यवहार किया जायेगा। जैसा इस स्थिति में किसी सामान्य व्यक्ति से किया जाता। पर इस बात का क्या जबाव है कि भ्रष्टाचार के आरोपी बड़े राजनेताओं को पांच सितारा सुविधाओं के बीच कैद किया जाता है। शंकराचार्य पर अभी हत्या की साजिश में शामिल होने का आरेाप है। अभी वे अपराधी सिद्ध नहीं हुए। ऐसी स्थिति में उनसे इतना कड़ा व्यवहार करना हिन्दू धर्मामवलम्बियों के गले नहीं उतर रहा।

गले तो उनके यह भी नहीं उतर रहा कि शंकराचार्य जैसा व्यक्ति हत्या की साजिश में शामिल हो सकता है। पर जो प्रमाण पुलिस ने देश के सामने प्रस्तुत किये हैं उन्हें देखकर शक की ज्यादा गुंजाइश नहीं रहती। अलबत्ता असलियत तो पुलिस जांच पूरी होने के बाद सामने आयेगी। आयेगी भी या नहीं यह भी दाबे से नहीं कहा जा सकता। क्यों कि इस देश में अनेक राजनैतिक हत्याओं और घोटालों की जांच दशकों में भी पूरी नहीं हुई है। खुफिया एजेन्सियों का जाल पालने वाला यह गरीब देश आज तक यह भी पता नहीं लगा सका कि इसके दो प्रधानमंत्रियों श्रीमती इन्दिरा गांधी और श्रीराजीव गांधी की हत्या के पीछे कौन था? पर यह भी सही है कि जिन धार्मिक संगठनों के पास धन और वैभव के भण्डार भरते जाते हैं वहाँ भ्रष्टाचार और हत्या जैसी घटनाएँ होना कोई अनहोनी बात नहीं। हर धर्म में ऐसा होता है। भारत में भी ऐसे कई उदाहरण हैं। इस सन्दर्भ मंे स्वामी विवेकानन्द के कथन को याद करना होगा। उन्होंने कहा था कि हर धार्मिक संस्था अन्ततः पतन की ओर बढ़ती है और उसका नाश हो जाता है। आदि शंकराचार्य, प्रभु यीशु, गुरुनानक देव, गौतम बुद्ध, श्रीचैतन्य महाप्रभु आदि सब ऐसे दिव्य पुरुष थे जिन्होंने गरीबी, त्याग, तप व विरक्तता में जीवन जिया और अपनी साधगी, करुणा व प्रेम से लाखों लोगों का जीवन बदल दिया। दुर्भाग्य से चाहे गिरिजाघर हों या मसजि़दें, चर्च और या मन्दिर आज सब धन और सत्ता के केन्द्र बनते जा रहे हैं। इसीलिए उनमें नैतिक पतन भी हो रहा है और आध्यात्म से हठकर उनका दुरुपयोग भी खुलेआम हो रहा है। शंकराचार्य का काची मठ इसका अपवाद नहीं। जानकार तो यह भी कहते हैं कि मठ का तलिमनाडु की मुख्यमंत्री सुश्री जय ललिता से जो मतभेद पैदा हुआ उसकी जड़ में वह करोड़ों रूपया जो मठ के पास चढ़ावें में जमा हुआ है। सच्चाई तो केवल भगवान जानता है या जांच एजेन्सियाँ। 

भगवद्गीता में आस्था रखने वाला हर हिन्दू कर्म के सिद्धान्त को मानता है। वह मानता है कि हर व्यक्ति को अपने पूर्व में किये कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। चाहे वह कितना ही ताकतवर, उच्च पदासीन, साधन सम्पन्न या प्रतिष्ठित व्यक्ति क्यों न हो। इस धर्म के अनुसार तो शंकराचार्य की गिरफ्तारी भी उनके पूर्व कर्मों का ही परिणाम है। कहते है कि जैसा खाओ अन्न तो वैसा बने मन। इसीलिए देश के तमाम विरक्त संत किसी का दिया अन्न नहीं खाते। पर शंराचार्यों को तो लगातार देश और विदेश का भ्रमण करना होता है। घाट-घाट का पानी और घाट-घाट का अन्न स्वीकारना पड़ता है। ऐसे ही दूषित अन्न को खाने का परिणाम शायद शंकराचार्य की गिरफ्तारी के रूप में सामने आया है।

कानून की अपनी प्रक्रिया है। उसमें अभी वक्त लगेगा, तब तक हिन्दू आहत मन को मरहम लगाने की जरूरत है। अगर तलिमनाडु की पुलिस ने किसी भी कारण से काची कामकोटि के शंकराचार्य पर हाथ डाला है तो देश के वाकी राज्यों की पुलिस और केन्द्र सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जघन्य अपराध में शामिल किसी भी धर्म के धर्मगुरु को छोड़ा न जाय ताकि हिन्दुओं के दिल पर मरहम लग जाये। उन्हें यह भ्रम न रहे कि हर मामले में हिन्दु ही पिटते हैं। पर यहाँ यह भी विचारणीय प्रश्न है कि क्या शंकराचार्य की गिरफ्तारी को राजनैतिक मुद्दा बनाकर किसी भी संगठन या दल का राजनीति करना उचित है? पिछले दिनों भाजपा और विहिप ने शंकराचार्य की गिरफ्तारी के विरोध में देशव्यापी आंदोलन शुरू किया। 21 नवम्बर को देश भर के मन्दिरों को भी बंद रखने की अपील की और कुछ शहरों में सफल भी रहे। पर जो विहिप अयोध्या मसले को हर चुनाव से पहले उछाल कर भाजपा की राजनीति करती रही और मन्दिर निर्माण नहीं हुआ। वहीं विहिप अब शंकराचार्य की गिरफ्तारी पर भारतभर के मन्दिरों के साथ आध्यात्मिक अपराध करने से नहीं चूकी। 21 नवम्बर को मथुरा के द्वारिकाधीश मन्दिर के सामने इस जबरदस्ती के बंद को लेकर श्रद्धालुओं और कुछ स्थानीय पण्डों की बीच गरमा-गर्मी हो गयी। गहवरवन बरसाना के विरक्त संत श्री रमेश बाबा जब 6500 भक्तों को ब्रज चैरासी कोस की पैदल परिक्रमा करवाते हुए द्वारिकाधीश के मन्दिर पहुँचे तो असमय मन्दिर के कपाट बंद देखकर उन्हें बहुत निराशा हुई। उन्होंने स्थानीय पण्डा समाज से मन्दिर खोलने का आग्रह किया जिसे केवल कुछ मन्दिरों के पण्डों ने स्वीकार कर मन्दिर खोल दिये जबकि द्वारिकाधीश के पट बंद ही रहे। बाबा का कहना है कि हिन्दू मन्दिरों में भगवान के विग्रह केवल पत्थर की मूर्ति नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद वे जागृत विग्रह हो जाते हैं। किसी भी कीमत पर उनकी सेवा, पूजा, दर्शन बंद नहीं किये जा सकते। ऐसा करना दानवी कृत्य है। औरंगजेब और हिरण्यकश्यप जैसे शासक मन्दिर के द्वार बंद करवाते हैं। बाबा ने मंदिर के द्वार पर महाप्रभु बल्लभाचार्य के अनुयायियों को याद दिलाया कि जब स्वयं महाप्रभु ने, सूरदास जी ने, कुंभादास जी ने या भक्तिन मीराबाई ने महाप्रयाण किया। तब भी मन्दिरों के कपाट बंद नहीं किये गये थे। बाबा का कहना था कि शंकराचार्य की गिरफ्तारी से आहत लोगों को दुनिया की सर्वोच्च अदालत भगवान के मन्दिर में आकर प्रार्थना, भजन व कीर्तन करना चाहिए था। विहिप ने देश भर मन्दिरों को बंद करवा कर एक अपशगुनी परम्परा की शुरूआत की है। यह सनातन धर्म के प्रति अपराध है। ऐसे कृत्य से शंकराचार्य को लाभ नहीं होगा। क्यों कि देश भर के हजारों लाखों भक्त अपने आराध्य के दर्शनों से वंचित रह गये। भक्तों को भगवान से दूर रखना राक्षसों का कार्य है। विहिप और भाजपा ने मन्दिरों का राजनीति के लिए इस्तेमाल कर हिन्दू धर्म की अपूर्णनीय क्षति की है। इस विषय पर सारे देश के हिन्दू समाज को और संत समाज को विचार करना चाहिए। शास्त्रों का सहारा लेना चाहिए और यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि किसी भी हालत में कभी भी ठाकुर जी की सेवा और उनके दर्शनों को बंद करने की घिनौनी राजनीति नहीं की जायेगी। ऐसा करने वाले हिन्दू धर्म के शुभचिंतक कदापि नहीं हो सकते।

Friday, November 12, 2004

सिक्किम में आयकर क्यों नहीं वसूला जा रहा है ?


सब जानते है कि देश में आयकर कानून है। एक सीमा से अधिक आया होने पर हम सभी को आयकर देना पड़ा है। समय पर आयकर भुगतान न करने वाले के दण्ड दिया जाता है। आयकर की चोरी व्यापारी और कारखानेदार तो करते ही है, पर सरकारी अधिकारियों या मंत्रियों को अपनी आय पर तो कर देना ही पड़ता है क्योंकि उसे छिपाया नहीं जा सकता। हां, रिश्वत से होने वाली अवैध आय जरूर कर के जाल से बच जाती है। पर भारत में एक राज्य ऐसा भी है जहां के अधिकारी और मंत्री अपने सरकारी वेतन में से भी आयकर नहीं कटवाते। देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले आम हिन्दुस्तानी यह सवाल कर सकते हैं कि एक ही देश में एक ही कानून को दो तरह से क्यों लागू किया जा रहा है?

दरअसल, 1989 में वित्तीय अध्यादेश के खण्ड 26 के अनुसार आयकर कानून को सिक्किम राज्य पर लागू कर दिया गया था। पर यह आश्चर्य की बात है कि सिक्किम में रहने वाले लोग पिछले 15 वर्षों से आयकर जमा नहीं कर रहे हैं। आयकर जमा न करने वालों में केवल स्थानीय नागरिक ही नहीं बल्कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, सिक्किम राज्य सरकार के मंत्री, उद्योगपति व व्यापारी शामिल हैं। इस तरह भारत सरकार को हर वर्ष करोड़ों रूपए के राजस्व की हानि हो रही है। बावजूद इसके न तो प्रत्यक्ष कर विभाग, न वित्त मंत्रालय और न ही भारत सरकार कुछ कड़े कदम उठा रही है। सिक्किम के प्रति इस पक्षपातपूर्ण व्यवहार का कोई तार्किक कारण वित्तमंत्री श्री पी. चिदाम्बरम नहीं दे सकते। मौजूदा वित्तमंत्री ही क्यों पिछले 15 वर्षों में भारत सरकार के जो भी वित्तमंत्री रहे हैं उन सबकी जवाबदेही बनती है।

सिक्किम गणराज्य के भारत में विलय के बाद स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी ने वहां की आर्थिक तरक्की को ध्यान में रखकर सिक्किम पर भारत का आयकर कानून लागू नहीं किया था, जिसका खूब नाजायज फायदा उठाया गया। 1987 में जब मैं गंगटोक (सिक्किम) गया तब मुझे इसकी जानकारी मिली। मैंने दिल्ली लौटकर टाइम्स आफ इंडिया के तत्कालीन संपादक श्री गिरीलाल जैन को अपनी रिपोर्ट दी तो उन्होंने उसे तुरंत प्रमुखता से छापा। इस रिपोर्ट में मैंेने बताया कि किस तरह सिक्किम की इस विशिष्ट स्थिति का प्रभावशाली लोगों द्वारा दुरूपयोग किया जा रहा है। सिक्किम के नागरिक ही नहीं बल्कि देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले साधन संपन्न लोगों ने आयकर कानून की दृष्टि से कागजों में अपना स्थायी निवास सिक्किम में दिखा रखा था ओर इस तरह आयकर की छूट का लाभ ले रहे थे। इस तरह का अवैध लाभ लेने वालों में बाॅलीबुड की अनेक हीरोइने और हीरों शामिल हैं। सिगरेट और शराब बनाने वाली कुछ मशहूर कंपनियों ने तो अपना उत्पादन केन्द्र ही सिक्किम में दिखा रखे थे। इन कंपनियों का उत्पादन हकीकत में तो देश के दूसरे प्रांतों में होता था पर रिकार्ड में उसे सिक्किम में हुआ दिखा कर आबकारी शुल्क और आयकर आदि से छूट ले ली जाती थी। अगर उस समय के दस्तावेजों की जांच कराई  जाए तो कई बड़ी सिगरेट और शराब कंपनियों के मालिक धोखाधड़ी के आरोप में जेल जा सकते हैं। क्योंकि जितना माल इन्होंने सिक्किम से निर्यात हुआ अपने खातों में दिखा रखा है उतने माल के उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल और पैकिंग मैटीरियल आदि की सिक्किम में आमद का कोई प्रमाण नहीं है। तो क्या बिना तम्बाकू और कागज आए ही वहां सिगरेट बन रहीं थी, वो भी करोड़ों रूपए कि हर साल ?

टाईम्स आफ इंडिया में छपी मेरी इस रिपोर्ट ने दिल्ली में सोए हुए वित्तमंत्रालय को जगा दिया। मैं यह दावा नहीं करता कि मेरी इस रिपोर्ट छपने के कारण ही पर यह सत्य है कि 1989 में सिक्किम में भी शेष भारत की तरह भारत का आयकर कानून लागू कर दिया गया। इसके बाद सिक्किम में रहने वाले हर व्यक्ति को अपना आयकर समय से जमा कराने चाहिए था। सिक्किम राज्य पर आयकर के मामले में निगरानी रखने का काम वित्त मंत्रालय ने सिल्चर स्थित अपने आयकर कार्यालय को सौप दिया। आश्चर्य की बात है कि पिछले 15 वशर्¨ं में इस विभाग ने आयकर वसूलना तो दूर यह सूची बनाने की भी कोशिश नहीं कि कि सिक्किम में कौन-कौन व्यक्ति आयकर देने की क्षमता रखता है। नतीजा यह कि सिक्किम में आज 15 वर्ष वाद भी आयकर नहीं वसूला जा रहा है। आयकर न देने वालों में व्यपारी ओर उद्योगपति तो है कि केन्द्र व राज्य सरकार के कर्मचारी और राज्य के मुख्यमंत्री व मंत्री आदि सभी शामिल हैं। एक बार को रिश्वत की आय को तो छुपा भी लिया जाए पर सरकार से मिलने वाले वेतन को छिपाना संभव नहीं होता। फिर भी सिक्किम के लगभग सभी सरकारी कर्मचारी धड़ल्ले से आयकर की चोरी कर रहे हैं और भारत सरकार के वित्त मंत्रालय का प्रत्यक्षकर विभाग आँखें पर पट्टी बांधे बैठा है।  इस तरह केन्द्र सरकार को प्रति वर्ष कर¨ड रूपए की हानि हो रही है। आश्चर्य की बात है कि टेलीविजन और अखबारों में आर्थिक मुुद्दों पर बड़े-बड़े भाषण झाड़ने वाले विशेषज्ञ भी इस मुद्दे पर खामोश हैं। ऐसे में यह जवाबदेही वित्त मंत्री की ही बनती है कि वे इतने बड़े अपराध को क्यों होने दे रहे हैं ?

दरअसल आयकर कानून का पालन देश के किसी भी हिस्से में ठीक से नहीं हो रहा हैं। सब जानते है कि इस वक्त देश में सबसे ज्यादा पैसा भ्रष्ट नेताओं, अफसरों और उद्योगपतियों के पास हैं। अगर इनके द्वारा दिए जा रहे टैक्स की मात्रा का अध्ययन करें तो सुनने वाला दंग रह जाएगा। जितना बड़ा आदमी उतना कम आयकर। इसी तरह सभी राजनैतिक दल आयकर की चोरी करते हैं। शायद यही वजह है कि वे आयकर कानून को ठीक से लागू नहीं करना चाहते। जबकि आयकर लगाने का उद्देश्य सरकार चलाने के राजस्व  की वसूली करना है। सिक्किम जैसे राज्य को तो विकास के लिए केेन्द्र सरकार से सैकड़ो करोड़ रूपए का अनुदान मिलता है। फिर वहां के लोग आयकर क्यों नहीं देते ? अक्सर देखने में आया है कि इस तरह के कानून या उन्हें लागू करने में दी जाने वाली छूट के पीछे असली मकसद कुछ और ही होता है। इस तरह के पोल वाले कानून बना कर देश के सत्ताधीश या उनके नातेदार अपने काले धन को धोने का काम करते हैं। इसलिए सिक्किम जैसे राज्य पर किसी निगाह नहीं जा रही है। जबकि यह संगीन मामला है और एक बहुत बड़ा घोटाला भी जिसकी जांच सीबीआई को सौप देनी चाहिए। पर आज देश का माहौल बदल गया है, आज सूचना तेजी से फैलती है इसलिए जब देश के दूसरे हिस्सों में आयकरदाताओं का सिक्किम की इस विशेष स्थिति पर ध्यान जाएगा तो वे शोर जरूर मचाएंगे। हो सकता है उनका शोर सुनकर श्री पी. चिदाम्बरम जाग जाएं और सिक्किम में रहने वाले लोगों से अगला पिछला सभी आयकर वसूल करें और आज तक आयकर न देने वाले सिक्किम के अधिकारियों के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही करें।