Sunday, October 26, 2008

बाराक हुसैन ओबामा और भारत


Rajasthan Patrika 26-10-2008
2008 के अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी से नामांकन के लिए सफल हुए प्रत्याशी बराक हुसैन ओबामा चुनाव जीतंेगे या नहीं ये तो कुछ ही दिनों में साफ हो ही जायेगा। पर इसमें शक नहीं कि ओबामा ने अपनी ताकतवर शख्सयित के बल पर अमरीका में रह रहे एशियाई मूल के निवासियों और अश्वेतों का ही नहीं, गोरों का भी दिल जीत लिया है।

ईराक युद्ध के शुरू से कटु आलोचक रहे ओबामा की बातों में गोरों को दम नजर आता है। गोरों का दिल जीतने का उनका अपना अंदाज है। यह कहते हैं, ‘‘मैं इन लोगों को जानता हूँ। ये मेरे दादा-दादी, नाना-नानी के समान हैं... इनका आचरण, इनकी संवेदनशीलता, इनका सही या गलत मानने का अधिकार - मैं इन सबसे परिचित हूँ।’’ दरअसल अफ्रीकी मूल के पिता और अमरीकी मूल की श्वेत माँ से जन्मे ओबामा की परवरिश उनके गोरे नाना-नानी ने की है। इसलिए वे इन दोनों ही समाजों की संवेदनशीलता से भली-भाँति परिचित हैं। राजनैतिक हथकण्डा कहा जाए या एक उदार हृदय और खुले दिमाग का प्रमाण, ओबामा, मुसलमान पिता के इसाई बेटे हैं और अपने गले की जंजीर में हनुमान जी की मूर्ति अपनी रक्षा के लिए सदा साथ रखते हैं। आज की बदलती दुनिया में जब शहरी युवा पीढ़ी इण्टरनेट के जरिए, देश, धर्म, व जाति की सीमाओं को तोड़कर तेजी से अंतर्राष्ट्रीय वैवाहिक बंधनों में बंध रही है। दुनिया के हर कोने में नौकरी लेने में उसे गुरेज नहीं है और वो खुले दिल से दूसरों की तहजीब और जीवन मूल्यों को समझना चाहती है। ऐसे में अमरीकी इतिहास में राष्ट्रपति पद के पाँचवे सबसे युवा उम्मीदवार, ओबामा में इस पीढ़ी को अपना नेता नजर आता है।

यूँ तो उनके प्रतिद्वन्दी जाॅन मैक्केन और खुद ओबामा दोनों ही पर्यावरण और आर्थिक प्राथमिकताओं के सवाल पर क्रान्तिकारी सोच रखते हैं और दावा करते हैं कि अगर वे जीते तो अमरीका की नीतियों में भारी बदलाव लायेंगे। पर भारत के राजनैतिक नेतृत्व को जाॅन मैक्केन अपने ज्यादा करीब लगते हैं। कारण साफ है, रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति जाॅर्ज बुश ने जिस तरह अनेक मसलों पर लीक से हटकर भारत का साथ दिया है, उससे भारतीय नेतृत्व का यह मानना स्वाभाविक ही है कि रिपब्लिकन पार्टी का उम्मीदवार अगर चुनाव जीतता है तो बुश की विदेश नीति को ही आगे बढ़ायेगा। उधर अमरीका में रह रहे भारतीयों का मानना है कि जीते चाहे जो भी, उसे भारत केन्द्रित विदेश नीति अपनानी चाहिए। उनका तर्क है कि चीन से आर्थिक प्रतिद्विन्दता का सवाल हो या आतंकवाद से लड़ने का, भारत अमरीका के लिए दक्षिण एशिया में ही नहीं पूरे विश्व में एक ताकतवर और विश्वसनीय सहयोगी सिद्ध हो सकता है। इसलिए अमरीका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को भारत के प्रति अपनी नीति और दृष्टि साफ कर देनी चाहिए। इन भारतीयों का मानना है कि जाॅन मैक्केन ईरान के कट्टर दुश्मन हैं और वे इस बात को पचा नहीं पायेंगे कि भारत अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए ईरान के निकट बना रहे। ऐसे में भारत के लिए दुविधा खड़ी हो सकती है।

इसमें संदेह नहीं कि पर्यावरण, आतंकवाद और अब अर्थव्यवस्था, तीनों ही सही मायनों में वैश्विक मुद्दे बन चुके हैं। यह सम्भव नहीं कि भारत में हो रहे पर्यावरण के विनाश का असर अमरीका पर न पड़े और अमरीका में हो रही बेइन्तहा पेट्रोल की खपत या उत्तरी धु्रव पर हिमखण्डों का पिघलना भारत के लिए मुसीबत खड़ी न कर दे। इसलिए यह जरूरी है कि अमरीका के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की दृष्टि वास्तव में वैश्विक हो। क्योंकि अमरीका हमेशा अपने देश की भौगोलिक, राजनैतिक और आर्थिक सीमाओं से परे देखने का आदि रहा है। हाल ही में अनेक देशों के राजनायिकों के एक भोज में मुझे यह सुनना काफी रोचक लगा कि यूरोप के राजदूतों की पत्नियाँ अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में शेष दुनिया के प्रतिनिधि वोटों को सम्मिलित किये जाने का तर्क दे रही थीं। उनका कहना था कि अमरीका का राष्ट्रपति केवल अमरीका का ही नेतृत्व नहीं करता। बल्कि शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद जब से दुनिया दो धु्रवों से सिमटकर एक धु्रव तक सीमित हो गयी है, तब से अमरीका बिना उद्घोषणा के विश्व का नेता बन गया है। अमरीका का राष्ट्रपति जो नीति अपनाता है, उसका शेष दुनिया पर भी असर पड़ता है। तो फिर क्यों न शेष दुनिया की राय भी उसके चुनाव में शामिल की जाए? यह बात एक मजाक के तौर पर कही गयी पर इससे अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव की अहमियत का पता चलता है। सारी दुनिया का मीडिया यूँ ही इस चुनाव को इतना महत्व नहीं देता। अगर यह सच है तो यह भी सच है कि अमरीका का राष्ट्रपति वास्तव में व्यापक दृष्टि वाला हो। श्वेत और अश्वेत समाज, अमीर और गरीब लोगों या विकसित और अविकसित देशों में फर्क न करके, सर्वजन हिताय की सोचता हो। आज की तारीख में तो यही लगता है कि ओबामा सही मायने में ऐसी ही सोच का व्यक्तित्व हैं। जिसने अपने बचपन और जवानी में इन सब रंगों का स्वाद चखा है। इनके अन्र्तविरोधों को भोगा है और इन समाजों की महत्वकांक्षाओं को नजदीक से जाना है। बाबजूद इसके यह दावे से नहीं कहा जा सकता कि चुनाव में ओबामा विजयी होंगे। अमरीका का श्वेत समाज बात चाहे कितनी कर ले पर व्हाइट हाउस में एक काले को देखने के लिए अभी तैयार नहीं है और इसलिए वोट डालते समय उनके हाथ काँप सकते हैं। फिर भी अगर ओबामा जीत जाते हैं तो अमरीका का ही नहीं शायद दुनिया का भी नया इतिहास लिखा जाए।