Monday, May 27, 2019

विपक्ष क्यों हारा? मोदी क्यों जीते?

विपक्ष के किसी नेता को इतनी बुरी हार का अंदाजा नहीं था। सभी को लगता था कि मोदी आर्थिक मोर्चे पर और रोजगार के मामले में जिस तरह जन आंकाक्षाओं पर खरे नहीं उतरे, तो आम जनता में अंदर ही अंदर एक आक्रोश पनप रहा है, जो विपक्ष के फायदे में जाऐगा। मोदी के आलोचक राजनैतिक विश्लेषक मानते थे कि मोदी की 170 से ज्यादा सीटें नहीं आऐंगी। हालांकि वे ये भी कहते थे कि मोदी लहर, जो ऊपर से दिखाई दे रही है, अगर वह वास्तविक है, तो मोदी 300 से ज्यादा सीटें ले जाऐंगे।
उनके मन में प्रश्न है कि मोदी क्यों जीते? कुछ नेताओं ने ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगाया है। जबकि ज्यादातर लोग ऐसा मानते हैं कि इस आरोप में कोई दम नहीं है। दोनों पक्षों के अपने-अपने तर्क हैं। पर यह भी सही है कि दुनिया के ज्यादतर देश ईवीएम से चुनाव नहीं करवाते। इसलिए विपक्षी दलों की मांग है कि पुरानी व्यवस्था के अनुरूप मत पत्रों से ही मतदान होना चाहिए।
पर जो सबसे महत्वपूर्णं बात विपक्ष नहीं समझा, वो ये कि मोदी ने चुनाव को एक महाभारत की तरह लड़ा और हर वो हथियार प्रयोग किया, जिससे इतनी भारी विजय मिली। सबसे पहले तो इस बार का चुनाव सांसदों का चुनाव नहीं था। अमरीका की तरह राष्ट्रपति चुनने जैसा था। देशभर में लोगों ने अपने संसदीय प्रत्याशी को न देखकर मोदी को वोट दिया। ‘हर हर मोदी, घर घर मोदी’ का नारा चरितार्थ हुआ। हर मतदाता के दिलोंदिमाग पर केवल मोदी का चेहरा था। यह अमित शाह और मोदी की रणनीति का सबसे अहम पक्ष था। दूसरी तरफ मोदी को टक्कर देने वाला एक भी नेता, उनके कद का नहीं था। जिससे पूरा देश नेतृत्व करने की अपेक्षा रखता।
यूं तो उ.प्र. में गठबंधन कोई विशेष सफलता हासिल नहीं कर पाया। पर सभी राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सारे विपक्षी दल एक झंडे और एक नेता के पीछे लामबंद हो जाते, तो उन्हें आज इतनी अपमानजनक पराजय का मुंह न देखना पड़ता। पर ऐसा नहीं हुआ। इससे मतदाता में यह साफ संदेश गया कि जो विपक्ष अपना नेता तक नहीं चुन सकता, जो विपक्ष एक साथ एक मंच पर नहीं आ सकता, वो देश को क्या नेतृत्व देगा। इसलिए जो लोग मोदी की नीतियों से अप्रसन्न भी थे, उनका भी यह कहना था कि ‘विकल्प ही कहाँ है’। इसलिए उन्होंने भी मोदी को वोट दिया।
मोदी की सफलता का एक अन्य कारण यह भी था कि मोदी ने विकास के मुद्दों को छोड़कर राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को चुनाव अभियान का मुख्य लक्ष्य बनाया। जब देश की सीमाओं की सुरक्षा की बात आती है, तब हर भारतीय भावुक हो जाता है। ‘वंदे मातरम्’ और ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष हर घर में होने लगता है। इसलिए मतदाता मंहगाई, रोजगार, सामाजिक लाभ की न सोचकर, केवल देश की सुरक्षा पर सोचने लगा और उसे लगा कि इन हालातों में मोदी ही उनकी रक्षा कर सकते हैं।
हिंदू-मुस्लिम का कार्ड भी बेखटक खेला गया। जिससे हिंदूओं का मोदी के पक्ष में क्रमशः झुकाव बढ़ता चला गया और पाकिस्तान को अपनी दुश्मनी का लक्ष्य बनाकर, मतदाताओं के बीच देशभक्ति का जज्बा पैदा किया गया। ऐसा कोई ऐजेंडा विपक्ष नहीं दे पाया, जिस पर समाज का इतना बड़ा झुकाव उनकी तरफ हो पाता। विपक्ष ने भ्रष्टाचार के जिन मुद्दों को उठाया, उस पर वह मतदाताओं को आंदोलित नहीं कर पाया। क्योंकि एक तो वे उनसे सीधे जुड़े नहीं थे, दूसरा मुद्दा उठाने वाला विपक्ष ही हमेशा से भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा है।
जहां एक तरफ नीरव मोदी, विजय माल्या, अनिल व मुकेश अंबानी और अडानी जैसे उद्योगपतियों पर मोदी राज में देश लूटने का आरोप लगाया गया, वहीं विपक्ष यह भूल गया कि मोदी ने बड़ी होशियारी से गांवों में अपनी पैठ बनाकर, कुछ ऐसे सीधे लाभ ग्रामवासियों को दिलवा दिए, जिससे उनकी लोकप्रियता गरीबों के बीच बहुत तेजी से बढ़ गई। मसलन गांवों में बिजली और सड़क पहुंचाना, निर्धन लोगों के घर बनवाना और लगभग घर-घर में शौचालय बनवाना। जिन्हें ये मदद मिली, उनका मोदी से खुश होना लाजमी है। पर जिन्हें यह लाभ नहीं मिल पाए, वे इसलिए मोदी का गुणगान करने लगे जिससे कि जल्द ही उनकी बारी भी आ जाऐ। ऐसा एक भी आश्वासन विपक्ष इन गरीब मतदाताओं को नहीं दे पाया।
मोदी या भाजपा की जीत का एक सबसे बड़ा कारण इनकी संगठन क्षमता है। आज भाजपा जैसा संगठन, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसा समर्पित कार्यकर्ता किसी भी राजनैतिक दल के पास नहीं है, जो मतदाताओं को बूथ स्तर तक प्रभावित कर सके। जहां तक संसाधनों की बात है, आज भाजपा के पास अकूत दौलत है। जिससे उसने इन चुनावों को एक महाभारत की तरह लड़ा और जीता।
ये पहला मौका है, जहां संघ प्रेरित भाजपा, अपने आप पूर्णं बहुमत में है। निश्चय ही हर हिंदू को मोदी से अपेक्षा है कि वे अविलंब राम मंदिर का निर्माण करवाऐंगे, धारा 370 और 35 ए समाप्त करेंगे, कश्मीरी पंडितों को कश्मीर में बसाऐंगे, बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालेंगे और देश के करोड़ों नौजवानों को रोजगार देंगे, जिसका वे जोरदारी से दावा करते आऐ हैं। भारी बहुमत से मोदी को जिताने वाली जनता इनमें से कुछ लक्ष्यों की प्राप्ति अगले 6 महीनों में पूरी होती देखना चाहती है। अब यह बात निर्भर करेगी, परिस्थतियों पर और मोदी जी की इच्छा शक्ति पर, कि वे कितनी जल्दी इन लक्ष्यों की पूत्र्ति कर पाते हैं।

Monday, May 20, 2019

इस चुनाव से सबक

सारी दुनिया की निगाह 23 मई पर है। भारतीय लोकसभा के चुनावों के नतीजे कैसे आते हैं, इस पर आगे का माहौल बनेगा। अगर एनडीए की सरकार बनती है या अगर गठबंधन की सरकार बनती है तो भी भारत की जनता शांति और विकास चाहेगी। इस बार का चुनाव जितना गंदा हुआ, उतना भारत के लोकतंत्र के इतिहास में कभी नहीं हुआ। देश के बड़े-बड़े राजनेता बहुत छिछली भाषा पर उतर आऐ। जिसे जनता ने पसंद नहीं किया। जनता अपने नेता को शालीन, परिपक्व, दूरदर्शी और सभ्य देखना चाहती है।

इस चुनाव का पहला सबक ही होगा कि सभी दलों के बड़े नेता यह चिंतन करें कि उनके चुनाव प्रचार में कहीं कोई अभद्रता या छिंछोरापन तो नही दिखाई दिया। अगर उन्हें लगता है कि ऐसा हुआ, तो उन्हें इस पर गंभीरता से विचार करना होगा कि वे भविष्य में ऐसा न करें।

भारत के चुनाव आयोग ने भी कोई प्रशंसनीय भूमिका नहीं निभाई। उसके निर्णंयों पर बार-बार विवाद खड़े हुए। इतना ही नहीं खुद आयोग के तीन में से एक सदस्य ही अपने बाकी दो साथियों के निर्णयों से सहमत नहीं रहे और उन्होंने अपने विरोध का सार्वजनिक प्रदर्शन किया।

इस चुनाव में सबसे ज्यादा विवाद ईवीएम की विश्वसनीयता पर खड़े हुए। जहां एक तरफ भारत का चुनाव आयोग ईवीएम मशीनों की पूरी गांरटी लेता रहा, वहीं विपक्ष लगातार ईवीएम में धांधली के आरोप लगाता रहा। आरटीआई के माध्यम से मुबंई के जागरूक नागरिक ने यह पता लगाया कि चुनाव आयोग के स्टॉक में से 22 लाख ईवीएम मशीनें गायब हैं। जबकि इनको बनाने वाले सार्वजनिक प्रतिष्ठानों ने इस दावे की पुष्टि की कि उन्होंने ये मशीने चुनाव आयोग को सप्लाई की थी। जाहिर है कि इस घोटाले ने पूरे देश को झकझोर दिया। विपक्षी दलों को भी चिंता होने लगी कि कहीं लापता ईवीएम मशीनों का दुरूप्योग करके फिर से भाजपा या एनडीए सत्ता में न आ जाऐ।

इसी आशंका के चलते सभी विपक्षी दलों ने सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया। पर अदालत ने विपक्षी दलों की बात नहीं मानी। अब तो 23 मई को ही पता चलेगा कि चुनाव निष्पक्ष हुए या धांधली से।

इस हफ्ते एक और खबर ने विपक्षी दलों की नींद उड़ा दी। हुआ यूं कि दिल्ली के एक मशहूर हिंदी पत्रकार ने यह लेख छापा कि हर हालत में 23 मई की रात को नरेन्द्र मोदी प्रधानमत्री पद की शपथ ले लेंगे, चाहे उनकी सीट कितनी ही कम क्यों न आऐं। इस खबर में यह भी बताया गया कि भाजपा के अध्यक्ष ने राष्ट्रपति भवन के वरिष्ठ अधिकारियों की मिलीभगत से 23 तारीख के हिसाब से लिखित खाना पूर्ति अभी से पूरी करके रख ली है। जिससे परिणाम घोषित होते ही नरेन्द्र मोदी को पुनः प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई जा सके और फिर विश्वास मत प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति महोदय से लंबा समय मांग लिया जाऐ।

अगर ये खबर सच है, तो विपक्षी नेताओं का चिंतित होना लाज्मी है और शायद इसीलिए सब भागदौड़ करके एक बड़ा संगठन बनाने में जुट गऐ हैं। लेकिन अलग-अलग महत्वाकांक्षाऐं इन्हें बहुत दिनों तक एकसाथ नहीं रहने देंगी और तब हो सकता है कि देश को मध्यावधि चुनाव का सामना करना पडे़। ऐसे में आम नागरिक बहुत असुरक्षित महसूस कर रहा है। उसे डर है कि अगर यही नाटक चलता रहा, तो रोजगार, महंगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य इन पर कब ध्यान दिया जाऐगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि राजनीति का ये सरकस चुनावों के बाद भी चलता रहेगा और जनता बदहवास ही रह जाए। अगर ऐसा हुआ, तो देश में हताशा फैलेगी और हिंसा और आतंक की घटनाऐं भी बढ़ सकती है।

राजनेताओं के भी हित में है कि वे जनता को भयमुक्त करे। उसे आश्वासन दें कि अब अगले चुनाव तक राजनीति नहीं, विकास की बात होगी। तब जाकर देश में अमन चैन कायम होगा।

भारत की महान सांस्कृति परंपरा राजा से ऋषि होने की अपेक्षा करती है। जो बड़ी सोच रखता हो और अपने विरोधियों को भी सम्मान देना जानता हो। जो बिना बदले की भावना के शासन चलाए। इसलिए प्रधानमंत्री कोई भी बने उन्हें ये सुनिश्चित करना होगा कि उनका या उनके सहयोगियों का कोई भी आचरण समाज में डर या वैमनस्य पैदा न करे। चुनाव की कटुता को अब भूल जाना होगा और खुले दिल से सबको साथ लेकर विकास के बारे में गंभीर चिंतन करना होगा।

आज देश के सामने बहुत चुनौतियां है। करोड़ों नौजवान बेरोजगारी के कारण भटक रहे हैं। अर्थव्यवस्था धीमी पड़ी है। कारोबारी परेशान हैं। विकास की दर काफी नीचे आ चुकी है। ऐसे में नई सरकार को राजनैतिक हिसाब-किताब भूलकर समाज की दशा और दिशा सुधारनी होगी।

Monday, May 13, 2019

चुनाव का अंतिम दौर

अंतिम चरण का चुनाव बचा है। तस्वीर अभी भी साफ नहीं है। भक्तों को लगता है कि मोदी जी पूर्णं बहुमत लाकर फिर से प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही नजर आ रही है। ऐसा लगता है मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने अरबों रूपया खर्च करके और हर हथकंडा अपनाकर लोगों की ब्रेन वॉशिंगकी है, तभी हकीकत और तर्क से बचकर मोदी भक्त उनके नाम की माला जप रहे हैं। मगर कुछ संकेत ऐसे हैं, जो उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं है। मसलन जिस काशी में घर-घर मोदीऔर हर-हर मोदीका शोर था। जहां मोदी के नामांकनऔर रोड शोपर हवाई जहाज से गुलाब की पंखुड़ियाँ मंगवाकर काशी की सड़को को पाट दिया गया, वहां भी आम आदमी काफी मुखर होकर मोदी की कमियां और वादा खिलाफी बता रहा है। ये बात दूसरी है कि सशक्त उम्मीदवार विरोध में न होने के कारण मोदी की जीत काशी से सुनिश्चित है। पर जिस काशी पर मोदी ने पूरी भारत सरकार को जुटा दिया, उस काशी के समझदार लोगों का खुलकर मोदी विरोध उनके दिल के दर्द को बयान करता है। साफ जाहिर कि मोदी की शोमैनशिप ने लोगों को दिगभ्रमित जरूर किया है, पर उनके दिलों को नहीं छू पाए। इसलिए राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी की जो हवा समाचार मीडिया और सोशल मीडिया के सहारे बड़े-बड़े पंखे लगवाकर बहाई जा रही है, उसका असर मतदान में नहीं दिखाई देगा। क्योंकि मतदान करते समय मतदाता एक बार यह सोचेगा जरूर कि मोदी ने 5 बरस पहले कितने सपने दिखाए थे और उसमें से उसे क्या हासिल हुआ।
प्रधानमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों का प्रधानमंत्री कार्यालय को छोड़कर जाना साधारण घटना नहीं है। उन्होंने भी समय रहते, अपने दूसरे विकल्प के लिए रास्ता बनाने का काम शुरू कर दिया है। भारत सरकार के एक मंत्रालय के सचिव ने अपने अधीन कार्य करने वाले वरिष्ठ अधिकारियों से कहा कि वे कांगे्रस का घोषणा पत्र पढना शुरू कर दें, क्योंकि जल्द ही उस पर काम करना पड़ेगा। भारत के अर्टोनी जनरल के साथ मोदी सरकार का मतभेद भी खुलकर सामने आ गया है। जिस तरह भारत के मुख्य न्यायधीश श्री रंजन गोगोई को महिला उत्पीड़न के मामले में बिना निष्पक्ष जांच के क्लीन चिटदे दी गई। उससे श्री केके वेणु गोपाल नाखुश हैं। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों से लिखकर अनुरोध किया था कि इस जांच समिति में बाहर के सदस्य भी होने चाहिए। वरना निष्पक्ष जांच नहीं हो पाऐगी। उनकी सुनीं नहीं गई और इसलिए वे मोदी सरकार से पल्ला झाड़ने का संकेत दे चुके हैं।
2014 के चुनाव में अरूण शौरी, राजेश जैन जैसे अनेक दिग्गज मोदी के साथ हर मंच पर खड़े थे। पर इस बार ये सब मोदी के मंच से नदारद् हैं। या तो मोदी को अपने अलावा किसी और की जरूरत नहीं महसूस होती या वे अपने हर शुभ चिंतक को इस्तेमाल करके पटकने में कोई संकोच नहीं करते। इस मामले में मोदी और केजरीवाल दोनों एक जैसे हैं। जिनके कंधों पर पैर रखकर चढे, उनके कंधे ही तोड़ दो, तो फिर चुनौती कौन देगा?
सट्टा बाजार और शेयर मार्केट का रूख भी मोदी की हवा के विरूद्ध है। इतना ही नहीं मोदी द्वारा नियुक्त किये गए, तीनों चुनाव आयुक्तों में से एक ने मोदी के खिलाफ फैसला दिया है। इन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का कहना है कि अगर नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में चुनावी आचार्य संहिता का उल्लंघ्न किया है, तो उन्हें भी सजा दी जानी चाहिए।
अगर विपक्षी दलों के स्थाई रूप से समर्थक एकजुट हैं, तो फिर भाजपा उन्हें कैसे हरा पाऐगी? जबकि महागठबंधन की खासियत ही यही है कि उनके समर्पित वोट टस से मस नहीं हुआ करते, जोकि 2014 में हिल गये थे।
एक और बात सुनने में आई है कि अमित शाह ने 80 सीटों पर ऐसे उम्मीदवारों को टिकट दी है, जिनका न तो उस क्षेत्र में कोई योगदान है और न ही कोई पहचान। ये सब वे लोग बताए जाते है, जो अमित शाह की गणेश प्रदक्षिणा करते आऐ हैं। इसलिए राजनैतिक विश्लेषकों का अंदाजा है कि इनमें से 85 फीसदी उम्मीदवार चुनाव हार जाऐंगे।
दूसरी तरफ भाजपा और संघ के खेमे में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई। भाजपा के महासचिव राम माधव का यह कहना कि भाजपा को सरकार बनाने के लिए अनेक सहयोगी दलों की जरूरत पड़ेगी, इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि खुद भाजपा का नेतृत्व अपनी जमीन हिलती हुई देख रहा है। अलबत्ता विपक्षी दलों को इस बात का अंदेशा जरूर है कि अगर ईवीएम की मशीनों में घपला किया गया, तो मोदी फिर से रिकॉर्ड जीत हासिल कर लेंगे। इसी शंका को दूर करने के लिए सभी विपक्षी दल गुहार लगाने सर्वोच्च न्यायालय गऐ थे और उससे मांग की थी कि आधी मशीनों का पर्चियों से मिलान किया जाऐ, जिससे घपले की गुंजाईश न रहे। पर सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी यह महत्वपूर्णं मांग ठुकरा दी। इसलिए विपक्षी खेमों में आशंका बनी हुई है कि कहीं ईवीएम की मशीनों से खिलवाड़ न हो जाऐ।
नाई नाई बाल कितने-जजमान अभी आगे आ जाऐंगे। अब अटकल लगाने का समय बीत गया। 23 मई पास ही है। जब इस चुनाव के नतीजे सामने आ जाऐेंगे। तब तक मतदाता और राजनेताओं के बीच इस तरह की चिंताऐं व्यक्त की जाती रहेंगी।

Monday, May 6, 2019

सरकार का मौन रहना जैट ऐयरवेज व देश को मंहगा पड़ा

हाल ही में कैंसर से पीड़ित जैंट ऐयरवेज के एक कर्मी शैलेश सिंह ने अपने घर से कूदकर आत्महत्या कर ली। इस आत्महत्या के पीछे उनके शरीर के अंदर का कैंसर नहीं बल्कि नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डीजीसीए में लिप्त भ्रष्टाचार का कैंसर जिम्मेदार है। इस कॉलम के माध्यम से हम पाठकों को नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय, डीजीसीए व जैट ऐयरवेज के बीच चल रही भ्रष्ट साजिश के विषय में गत चार वर्षों  से अवगत कराते रहे हैं। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री कार्यालय, सीबीआई, सीवीसी व नागरिक उड्डयन मंत्रालय को लगातार 2014 से इस मामले में मय प्रमाण के जैट ऐयरवेज द्वारा की गई खामियों का कच्चा चिट्ठा देते आऐ हैं। लेकिन न जाने किन कारणों से इन सभी के कुछ अधिकारी जैट ऐयरवेज व उनके मालिक नरेश गोयल के साथ अपनी वफादारी निभाने के चक्कर में इस निजी कम्पनी को बचाने में जुटे रहे। इस घोटाले के तार बहुत दूर तक जुड़े हुए हैं। वो चाहे यात्रियों की सुरक्षा की बात हो या देश की शान माने जाने वाले महाराजा एयर इंडिया की बिक्री की बात हो। ऐसे सभी घोटालों में जैट ऐयरवेज का किसी न किसी तरह से कोई न कोई हाथ जरूर है।

आश्चर्य की बात ये है कि जब हमने जैट ऐयरवेज के इतने घोटाले खोले तो सत्ता के गलियारों और मीडिया में उफ तक नहीं हुई। अब जब इस पर तूफान मच चुका है और जैट ऐयरवेज किसी भी तरह के हवाई ऑपरेशन को करने में नाकाबिल है, तो अचानक चारों ओर से इस घोटाले पर शोर मचना शुरू हो रहा है। गौरतलब है कि अभी भी इस घोटाले से संबंधित असल मुद्दे नदारद हैं। कुछ समय पहले दिल्ली उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर की खंडपीठ ने नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय, डीजीसीए व जैट ऐयरवेज को कालचक्र ब्यूरो के समाचार संपादक राजनीश कपूर की जनहित याचिका पर नोटिस दिया था। उन तमाम आरोपों पर इन तीनों से जबाव तलब किया जो कालचक्र ने इनके विरुद्ध उजागर लिए थे। याचिका में इन तीनों प्रतिवादियों पर सप्रमाण ऐसे कई संगीन आरोप लगे हैं, जिनकी जांच अगर निष्पक्ष रूप से होती है, तो इस मंत्रालय के कई वर्तमान व भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी संकट में आ जाऐंगे। लेकिन ये तीनों किसी न किसी कारण से माननीय न्यायालय को जवाब देने में कोताही बरत रहे हैं। 

अब जब जैट ऐयरवेज पूरी तरह से ‘ग्राउंड’ हो गई है और इसके हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो चुके हैं, तो जाहिर सी बात है कि अन्य निजी ऐयरलाईन्स जैट ऐयरवेज के पायलेट व अन्य कर्मचारियों पर नजर गढ़ाऐं बैठे हैं। उम्मीद है कि इन ऐयरलाईन्स के ‘एचआर’ विभाग में तैनात अधिकारियों को इस बात का ज्ञान जरूर होगा कि जैट ऐयरवेज पर देश की विभिन्न अदालतों में मुकदमें विचाराधीन हैं। ऐसे में अगर जैट ऐयरवेज के दोषी पायलेटों/कर्मचारियों को किसी अन्य ऐयरलाईन्स में भर्ती होते हैं और अदालत उन्हें दोषी करार देते हुए, कोई सजा सुनाती है, तो फिर इन पायलेटों/कर्मचारियों का दूसरी ऐयरलाईन में न जाना एक समान हुआ। इतना ही नहीं वे पायलेट/कर्मचारी जिस भी ऐयरलाईन में जाऐंगे और दोषी पाऐ जाने पर सजा काटेंगे, तो वह उस ऐयरलाईन की साख पर एक कलंक से कम नहीं होगा।

उदाहरण के तौर पर दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर याचिका का एक आरोप जैट ऐयरवेज के एक ऐसे अधिकारी, कैप्टन अजय सिंह के विरुद्ध है, जो पहले जैट ऐयरवेज में उच्च पद पर आसीन था और दो साल के लिए उसे नागरिक उड्ड्यन मंत्रालय के अधीन डीजीसीए में संयुक्त सचिव के पद के बराबर नियुक्त किया गया था। यह बड़े आश्चर्य की बात है कि ‘कालचक्र’ की आरटीआई के जबाव में डीजीसीए ने लिखा कि ‘उनके पास इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि कैप्टन अजय सिंह ने डीजीसीए के ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर नियुक्त होने से पहले जैट ऐयरवेज में अपना त्याग पत्र दिया है या नहीं‘। कानून के जानकार इसे ‘कन्फ्लिक्ट आफ इन्ट्रेस्ट’ मानते हैं। समय-समय पर कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद पर रहकर जैट ऐयरवेज को काफी फायदा पहुंचाया था। जब कालचक्र ने एक अन्य आरटीआई में डीजीसीए से यह पूछा कि कैप्टन अजय सिंह ने ‘सी.एफ.ओ.आई.’ के पद से किस दिन इस्तीफा दिया? उसका इस्तीफा किस दिन मंजूर हुआ? उन्हें इस पद से किस दिन मुक्त किया गया? और इस्तीफा जमा करने व पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन अजय सिंह ने डीजीसीए में जैट ऐयरवेज से संबंधित कितनी फाइलों का निस्तारण किया? जवाब में यह पता लगा कि इस्तीफा देने और पद से मुक्त होने के बीच कैप्टन सिंह ने जैट ऐयरवेज से संबंधित 66 फाइलों का निस्तारण किया। ये अनैतिक आचरण है। ऐसे आचरण वाले जैट ऐयरवेज के पायलेट/कर्मचारी अनेक हैं।
अब जब जैट ऐयरवेज किसी भी तरह की उड़ान किसी भी सेक्टर में नहीं भर रहा है, तो जैट ऐयरवेज द्वारा खाली किये गऐ रूट, भारत के ‘राष्ट्रीय कैरियर ‘एयर इंडिया’ को न देना, एक और घोटाले का संकेत है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक अन्य निजी ऐयरलाईन में ऐसा क्या देखा कि जैट ऐयरवेज द्वारा किये जाने वाले मुनाफे वाले रूट घाटे में चल रहे भारत के ‘राष्ट्रीय कैरियर ‘एयर इंडिया’ को न देकर, उस निजी ऐयरलाईन को दे डाले।


प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैट ऐयरवेज के संकट पर एक आपातकालीन बैठक बुलाई और जैट ऐयरवेज को संकट से ऊबारने की कोशिश जरूर की। लेकिन सूत्रों की मानें तो, प्रधान मंत्री कार्यालय में तैनात कुछ अधिकारी जैट ऐयरवेज को इस संकट से बाहर आने देना नहीं चाहते। पता चला है कि जैट ऐयरवेज के मालिक नरेश गोयल को जैट साम्राज्य औने-पौने दाम में किसी निजी ऐयरलाईन्स को सौंपने के लिए कहा गया है। अब वो ऐयरलाईन भारतीय है या विदेशी ये तो समय आने पर ही पता चलेगा। लेकिन एक बात जरूर है कि हर साल करोड़ों रोजगारों वायदा करने वाली भाजपा सरकार जैट ऐयरवेज के मौजूदा हज़ारों कर्मचारियों की नौकरी बचा न सकी। अब देखना यह है कि 23 मई के बाद बनने वाली सरकार इस संकट से कैसे निपटेगी और न सिर्फ जैट ऐयरवेज के कर्मचारियों का क्या हित करेगी, बल्कि हवाई यात्रा करने वाले करोड़ों यात्रियों को इस संकट के दौरान महंगी टिकट लेकर यात्रा करने के कष्ट से भी क्या निदान मिलेगा?