ऑडियो विज्युअल मीडिया
ऐसा खिलाड़ी है कि डिटर्जेंट जैसे प्रकृति के दुश्मन जहर को ‘दूध सी सफेदी’ का लालच
दिखाकर और शीतल पेय ‘कोला’ जैसे जहर को अमृत बताकर घर-घर बेचता है, पर इनसे सेहत पर पड़ने वाले नुकसान की बात तक नही करता । यही हाल सत्तानशीं
होने वाले पीएम या सीएम का भी होता है । उनके इर्द-गिर्द का कॉकस हमेशा ही उन्हें
इस तरह जकड़ लेता है कि उन्हें जमीनी हकीकत तब तक पता नहीं चलती, जब तक वो गद्दी से उतर नहीं जाते ।
टीवी चैनलों पर
साक्षात्कार, रोज नयी-नयी योजनाओं के उद्घाटन समारोह,
भारतीय सनातन पंरपरा के विरूद्ध महंगे-महंगे फूलों के बुके, जो क्षण भर में फेंक दिये जाते हैं, फोटोग्राफरों की
फ्लैश लाईट्स की चमक-धमक में योगी आदित्यानाथ जैसा संत और निष्काम राजनेता भी शायद
दिग्भ्रमित हो जाता है और इन फ़िज़ूल के कामों में उनका समय बर्बाद हो जाता है । फिर
उन्हें अपने आस-पास, लखनऊ के चारबाग स्टेशन के चारों तरफ फैला नारकीय साम्राज्य तक
दिखाई नहीं देता, तो फिर प्रदेश में दूर तक नजर कैसे जाएगी?
जबकि प्रधानमंत्री के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ का शोर हर तरफ इतना बढ़-चढ़कर मचाया जा
रहा है ।
35 वर्ष
केंद्रीय सत्ता की राजनीति को इतने निकट से देखा है और देश की राजनीति में अपनी
निडर पत्रकारिता से ऐतिहासिक उपस्थिति भी कई बार दर्ज करवाई है । इसलिए यह सब
असमान्य नहीं लगता । पर चिंता ये देखकर होती है कि देश में मोदी जैसे सशक्त नेता
और उ.प्र. में योगी जैसे संत नेता को भी किस तरह जमीनी हकीकत से रूबरू नहीं होने
दिया जाता ।
हाँ अगर कोई ईमानदार
नेता सच्चाई जानना चाहे तो इस मकड़जाल को तोड़ने का एक ही तरीका हैं, जिसे पूरे भारत के सम्राट रहे देवानामप्रियदस्सी मगध सम्राट अशोक मौर्य ने
अपने आचरण से स्थापित किया था । सही लोगों को ढू़ंढ-ढू़ंढकर उनसे अकेले सीधा संवाद
करना और मदारी के भेष में कभी-कभी घूमकर आम जनता की राय जानना ।
देश के विभिन्न राज्यों
में छपने वाले मेरे इस कॉलम के पाठकों को याद होगा कि कुछ हफ्ते पहले, मैंने प्रधानमंत्री जी से गोवर्धन पर्वत को बचाने की अपील की थी । मामला
यह था कि एक ऐसा हाई-फाई सलाहकार, जिसके खिलाफ सीबीबाई और
ई.डी. के सैकड़ों करोड़ों रूपये के घोटाले के अनेक आपराधिक मामले चल रहे हैं, वह बड़ी
शान शौकत से ‘रैड कारपेट’ स्वागत के साथ, योगी महाराज और उनकी
केबिनेट को गोवर्धन के विकास के साढ़े चार हजार करोड़ रूपये के सपने दिखाकर, टोपी पहना रहा था । मुझसे यह देखा नहीं गया, तो
मैंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा, लेख लिखे और उ.प्र. के
मीडिया में शोर मचाया । प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री ने लगता है उसे गम्भीरता से
लिया । नतीजतन उसे लखनऊ से अपनी दुकान समेटनी पड़ी । वरना क्या पता गोवर्धन महाराज
की तलहटी की क्या दुर्दशा होती ।
इसी तरह पिछले कई वर्षों
से विश्व बैंक बड़ी-बड़ी घोषाणाऐं ब्रज के लिए कर रहा था । हाई-फाई सलाहकारों से उसके
लिए परियोजनाऐं बनवाई गईं, जो झूठे आंकड़ों और अनावश्यक
खर्चों से भरी हुई थी । भला हो उ.प्र. पर्यटन मंत्री रीता बहुगुणा और प्रमुख सचिव
पर्यटन अवनीश अवस्थी का, कि उन्होंने हमारी शिकायत को
गंभीरता से लिया और फौरन इन परियोजनाओं का ठेका रोककर हमसे उनकी गलती सुधारने को कहा । इस तरह 70 करोड़ की योजनाओं को घटाकर हम 35 करोड़ पर ले आये ।
इससे निहित स्वार्थों में खलबली मच गई और हमारे मेधावी युवा साथी को अपमानित व हतोत्साहित करने का प्रयास किया गया । संत और भगवतकृपा
से वह षड्यंत्र असफल रहा, पर उसकी गर्माहट अभी भी अनुभव की
जा रही है।
हमने तो देश में कई
बड़े-बड़े युद्ध लड़े है । एक युद्ध में तो देश का सारा मीडिया, विधायिका, कानूनविद् सबके सब सांस रोके, एक तरफ खड़े होकर तमाशा देख रहे थे, जब सं 2000 में मैंने
अकेले भारत के मुख्य न्यायाधीश के 6 जमीन घोटाले उजागर किये । मुझे हर तरह से
प्रताड़ित करने की कोशिश की गई। पर कृष्णकृपा मैं से टूटा नहीं और यूरोप और अमेरिका
जाकर उनके टीवी चैनलों पर शोर मचा दिया । इस लड़ाई में भी नैतिक विजय मिली ।
मेरा मानना है कि, यदि आपको अपने धन, मान-सम्मान और जीवन को खोने की
चिंता न हो और आपका आधार नैतिक हो तो आप सबसे ताकतवर आदमी से भी युद्ध लड़ सकते
हैं। पर पिछले 15 वर्षों में मै कुरूक्षेत्र का भाव छोड़कर
श्रीराधा-कृष्ण के प्रेम के माधुर्य भाव में जी रहा हूं और इसी भाव में डूबा रहना
चाहता हूँ। ब्रज विकास के नाम पर अखबारों में बड़े-बड़े बयान वर्षों से छपते आ रहे
हैं। पर धरातल पर क्या बदलाव आता है, इसकी जानकारी हर
ब्रजवासी और ब्रज आने वालों को है। फिर भी हम मौन रहते हैं।
लेकिन जब भगवान की
लीलास्थलियों को सजाने के नाम पर उनके विनाश की कार्ययोजनाऐं बनाई जाती हैं, तो हमसे चुप नहीं रहा जाता । हमें बोलना पड़ता है । पिछली सरकार में जब
पर्यटन विभाग ने मथुरा के 30 कुण्ड बर्बाद कर दिए तब भी हमने शोर मचाया था । जो कुछ
लोगों को अच्छा नहीं लगता । पर ऐसी सरकारों के रहते, जिनका
ऐजेंडा ही सनातन धर्म की सेवा करना है, अगर लीलास्थलियों पर
खतरा आऐ, तो चिंता होना स्वभाविक है ।
आश्चर्य तो तब होता है, जब तखत
पर सोने वाले विरक्त योगी आदित्यनाथ जैसे मुख्यमंत्री को घोटालेबाजों की प्रस्तुति
तो ‘रैड कारपेट’ स्वागत करवा कर दिखा दी जाती हो, पर जमीन पर निष्काम ठोस कार्य
करने वालों की सही और सार्थक बात सुनने से भी उन्हें बचाया जा रहा हो । तो
स्वभाविक प्रश्न उठता है कि इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए, उन्हें जो ऐसी दुर्मति सलाह देते हैं या उन्हें, जो
अपने मकड़जाल तोड़कर मगध के सम्राट अशोक की तरह सच्चाई जानने की उत्कंठा नहीं दिखाते?
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