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Monday, December 25, 2023

क्यों जरुरी था अयोध्या का भव्य विकास?


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(ट्विटर) पर एक पोस्ट देखी जिसमें अयोध्या में रामलला के विग्रह को रज़ाई उढ़ाने का मज़ाक़ उड़ाया गया है। उस पर मैंने निम्न पोस्ट लिखी जो शायद आपको रोचक लग। वैष्णव संप्रदायों में साकार ब्रह्म की उपासना होती है। उसमें भगवान के विग्रह को पत्थर, लकड़ी या धातु की मूर्ति नहीं माना जाता। बल्कि उनका जागृत स्वरूप मानकर उनकी सेवा- पूजा एक जीवित व्यक्ति के रूप में की जाती है।


ये सदियों पुरानी परंपरा है। जैसे श्रीलड्डूगोपाल जी के विग्रह को नित्य स्नान कराना, उनका शृंगार करना, उन्हें दिन में अनेक बार भोग लगाना और उन्हें रात्रि में शयन कराना। ये परंपरा हम वैष्णवों के घरों में आज भी चल रही है। ‘जाकी रही भावना जैसी-प्रभु मूरत देखी तीन तैसी।’


इसीलिए सेवा पूजा प्रारंभ करने से पहले भगवान के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। इसका शास्त्रों में संपूर्ण विधि विधान है। जैसा अब रामलला के विग्रह की अयोध्या में भव्य रूप से होने जा रही है।



यह सही है कि हर राजनैतिक दल अपना चुनावी एजेंडा तय करता है और उसे इस आशा में आगे बढ़ाता है कि उसके जरिये वह दल चुनाव की वैतरणी पार कर लेगा। ‘गरीबी हटाओ’, ‘चुनिए उन्हें जो सरकार चला सकें’ या ‘बहुत हुई महंगाई की मार-अबकी बार मोदी सरकार’ कुछ ऐसे ही नारे थे जिनके सहारे कांग्रेस और भाजपा ने लोक सभा के चुनाव जीते और सरकारें बनाई। इसी तरह ‘सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे’ ये वो नारा था जो संघ परिवार और भाजपा ने 90 के दशक से लगाना शुरू किया और 2024 में उस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। इसलिए आगामी 22 जनवरी को अयोध्या के निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर में भगवान के श्री विग्रहों की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन किया जा रहा है। स्वाभाविक है कि मंदिर का निर्माण पूर्ण हुए बिना ही बीच में इतना भव्य आयोजन 2024 के लोक सभा चुनावों को लक्ष्य करके आयोजित किया जा रहा है। पर ये कोई आलोचना का विषय नहीं हो सकता। 



विगत 33 वर्षों में श्रीराम जन्मभूमि को लेकर जितने विवाद हुए उनपर आजतक बहुत कुछ लिखा जा चुका है। हर पक्ष के अपने तर्क हैं। पर सनातन धर्मी होने के कारण मेरा तो शुरू से यही मत रहा है कि अयोध्या, काशी और मथुरा में हिन्दुओं के धर्म स्थानों पर मौजूद ये मस्जिदें कभी सांप्रदायिक सद्भाव नहीं होने देंगी। क्योंकि अपने तीन प्रमुख देवों श्रीराम, श्री शिव व श्री कृष्ण के तीर्थ स्थलों पर ये मस्जिदें हिन्दुओं को हमेशा उस अतीत की याद दिलाती रहेंगी जब मुसलमान आक्रांताओं ने यहां मौजूद हिन्दू मंदिरों का विध्वंस करके यहां मस्जिदें बनाईं थीं। अपने इस मत को मैंने इन 33 वर्षों में अपने लेखों और टीवी रिपोर्ट्स में प्रमुखता से प्रकाशित व प्रसारित भी किया। इसलिए आज अयोध्या में भव्य मंदिर का निर्माण हर आस्थावान हिन्दू के लिए हर्षोल्लास का विषय है।



हर्ष का विषय है कि प्रभु श्रीराम के जन्म से लेकर राज्याभिषेक की साक्षी रही अयोध्या नगरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भव्य स्तर पर विकसित करने का संकल्प लिया और उसी प्रारूप पर आज अयोध्या का विकास हो रहा है ताकि दुनिया भर से आने वाले भक्त और पर्यटक अयोध्या का वैभव देखकर प्रभावित व प्रसन्न हों। भगवान श्री राम की राजधानी का स्वरूप भव्य होना ही चाहिए।  


एक बात और कि जब मोदी जी प्रधान मंत्री बने और मुझे उनकी ‘ह्रदय योजना’ का राष्ट्रीय सलाहकार नियुक्त किया गया, तब से यह बात मैं सरकार के संज्ञान में सीधे और अपने लेखों के माध्यम से ये बात लाता रहा हूँ कि अयोध्या, काशी और मथुरा का विकास उनकी सांस्कृतिक विरासत के अनुरूप होना चाहिए एकरूप नहीं। जैसे अयोध्या राजा राम की नगरी है इसलिए उसका स्वरुप राजसी होना चाहिए।  जबकि काशी औघड़ नाथ की नगरी है जहां कंकड़-कंकड़ में शंकर बसते हैं। इसलिए उसका विकास उसी भावना से किया जाना चाहिए था न कि काशी कॉरिडोर बनाकर। क्योंकि इस कॉरिडोर में भोले शंकर की अल्हड़ता का भाव पैदा नहीं होता बल्कि एक राजमहल का भाव पैदा होता है। ऐसा काशी के संतों, दार्शनिकों व सामान्य काशीवासियों का भी कहना है। इसी तरह मथुरा-वृन्दावन में जो कॉरिडोरनुमा निर्माण की बात आजकल हो रही है वह ब्रज की संस्कृति के बिलकुल विपरीत है। यह बात स्वयं  बालकृष्ण नन्द बाबा से कह रहे हैं, नः पुरो जनपदा न ग्रामा गृहावयम्, नित्यं वनौकसतात् वनशैलनिवासिनः (श्रीमदभागवतम, दशम स्कंध, 24 अध्याय व 24 वां श्लोक), बाबा ये पुर, ये जनपद, ये ग्राम हमारे घर नहीं हैं। हम तो वनचर हैं। ये वन और ये पर्वत ही हमारे निवासस्थल हैं। इसलिए ब्रज का विकास तो उसकी प्राकृतिक धरोहरों जैसे कुंड, वन, पर्वत और यमुना का संवर्धन करके होना चाहिए, जहां भगवान श्री राधा-कृष्ण ने अपनी समस्त लीलाएं कीं। पर आज ब्रज तेजी से कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा है। इससे ब्रज के रसिक संत और ब्रज भक्त बहुत आहत हैं। हमारे यहां तो कहावत है, ‘वृन्दावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय, डाल-डाल और पात पे राधे लिखा होय।’  



यहां एक और गंभीर विषय उठाना आवश्यक है। वह यह कि नव निर्माण के उत्साह में प्राचीन मंदिरों के प्राण प्रतिष्ठित विग्रहों को अपमानित या ध्वस्त न किया जाए, बल्कि उन्हें ससम्मान दूसरे स्थान पर ले जाकर स्थापित कर दिया जाए।यहाँ ये याद रखना भी आवश्यक है कि किसी भी प्राण प्रतिष्ठित विग्रह की उपेक्षा करना, उनका अपमान करना या उनका विध्वंस करना सनातन धर्म में जघन्य अपराध माना जाता है। इसे ही तालिबानी हमला कहा जाता है। जैसा अनेक मुसलमान शासकों ने मध्य युग में और हाल के वर्षों में कश्मीर, बांग्लादेश व अफ़ग़ानिस्तान में मुसलमानों ने किया। इतिहास में प्रमाण हैं कि कुछ हिंदू राजाओं ने भी ऐसा विध्वंस बौद्ध विहारों का किया था।


अगर किसी कारण से किसी प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को या उसके मंदिर को विकास की योजनाओं के लिए वहाँ से हटाना आवश्यक हो तो उसका भी शास्त्रों में पूरा विधि-विधान है। जिसका पालन करके उन्हें श्रद्धा पूर्वक वहाँ से नये स्थान पर ले ज़ाया जा सकता है।

पर उन्हें यूँ ही लापरवाही से उखाड़ कर कूड़े में फेंका नहीं जा सकता। ये सनातन धर्म के विरुद्ध कृत्य माना जाएगा। हर हिंदू इस पाप को करने से डरता है। 

Monday, August 21, 2023

तीर्थों की भीड़ संभालें !

प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री योगी जी ने हिन्दू तीर्थों के विकास की तरफ जितना ध्यान पिछले सालों में दिया है उतना पिछली दो सदी में किसी ने नही दिया था। ये बात दूसरी है कि उनकी कार्यशैली को लेकर संतों के बीच कुछ मतभेद है। पर आज जिस विषय पर मैं अपनी बात रखना चाहता हूँ उससे हर उस हिन्दू का सरोकार है जो तीर्थाटन में रुचि रखता है। जब से काशी, अयोध्या, उज्जैन व केदारनाथ जैसे तीर्थ स्थलों पर मोदी जी ने विशाल मंदिरों का निर्माण करवाया है, तब से इन सभी तीर्थों पर तीर्थयात्रियों का सागर उमड़ पड़ा है। इतनी भीड़ आ रही है कि कहीं भी तिल रखने को जगह नही मिल रही।

इस परिवर्तन का एक सकारात्मक पहलू ये है कि इससे स्थानीय नागरिकों की आय तेज़ी से बढ़ी है और बड़े स्तर पर रोजगार का सृजन भी हुआ है। स्थानीय नागरिक ही नहीं बाहर से आकार भी लोगों ने इन तीर्थ नगरियों में भारी निवेश किया है। इससे यह भी पता चला है कि अगर देश के अन्य तीर्थ स्थलों का भी विकास किया जाए तो तीर्थाटन व पर्यटन उद्योग में भारी उछाल आ जायेगा। इस विषय में प्रांतीय सरकारों को भी सोचना चाहिए। जहाँ एक तरफ इस तरह के विकास के आर्थिक लाभ हैं वहीं इससे अनेक समस्याएँ भी पैदा हो रही हैं।



उदाहरण के तौर पर अगर मथुरा को ही लें तो बात साफ़ हो जाएगी। आज से 2 वर्ष पहले तक मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन व बरसाना आना-जाना काफ़ी सुगम था। जो आज असंभव जैसा हो गया है। कोविड के बाद से तीर्थाटन के प्रति भी एक नया ज्वार पैदा हो गया है। आज मथुरा के इन तीनों तीर्थ स्थलों पर प्रवेश से पहले वाहनों की इतनी लम्बी कतारें खड़ी रहती हैं कि कभी-कभी तो लोगों को चार-चार घंटे इंतज़ार करना पड़ता है। यही हाल इन कस्बों की सड़कों व गलियों का भी हो गया है। जन सुविधाओं के अभाव में, भारी भीड़ के दबाव में वृन्दावन में बिहारी जी मंदिर के आस-पास आए दिन लोगों के कुचलकर मरने या बेहोश होने की ख़बरें आ रही हैं। भीड़ के दबाव को देखते हुए आधारभूत संरचना में सुधार न हो पाने के कारण आए दिन दुर्घटनाएँ हो रही हैं। जैसे हाल ही में वृंदावन के एक पुराने मकान का छज्जा गिरने से पांच लोगों की मौत और पांच लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। अब नगर निगम ने वृन्दावन के ऐसे सभी जर्जर भवनों की पहचान करना शुरू किया है जिनसे जान-माल का खतरा हो सकता है। ऐसे सभी भवनों को प्रशासन निकट भविष्य में मकान-मालिकों से या स्वयं ही गिरवा देगा, ऐसे संकेत मिल रहे हैं। ये एक सही कदम होगा। पर इसमें एक सावधानी बरतनी होगी कि जो भवन पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं या जिनकी वास्तुकला ब्रज की संस्कृति को प्रदर्शित करती है, उन्हें गिराने की बजाय उनका जीर्णोद्धार किया जाना चाहिए।



इस सन्दर्भ में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि जो नए निर्माण हो रहे हैं या भविष्य में होंगे उनमें भवन निर्माण के नियमों का पालन नही हो रहा। जिससे अनेक समस्याएँ पैदा हो रही हैं। इस पर कड़ाई से नियंत्रण होना चाहिए। पिछले दिनों यमुना जी की बाढ़ ने जिस तरह वृन्दावन में अपना रौद्र रूप दिखाया उससे स्थिति की गंभीरता को समझते हुए मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने यमुना डूब क्षेत्र में हुए सभी अवैध निर्माण गिराने के आदेश दिए हैं। फिर वो चाहें घर हों, आश्रम हों या मंदिर हों। स्थानीय नागरिकों का प्रश्न है कि यमुना के इसी डूब क्षेत्र में हाल के वर्षों जो निर्माण सरकारी संस्थाओं ने बिना दूर-दृष्टि के करवा दिए क्या उनको भी ध्वस्त किया जायेगा?


जहाँ तक तीर्थ नगरियों में भीड़ और यातायात को नियंत्रित करने का प्रश्न है इस दिशा में प्रधान मंत्री मोदी जी को विशेष ध्यान देना चाहिए। हालांकि यह विषय राज्य का होता है लेकिन समस्या सब जगह एक सी है। इसलिए इस पर एक व्यापक सोच और नीति की ज़रूरत है, जिससे प्रांतीय सरकारों को हल ढूँढने में मदद मिल सके। वैसे आन्ध्र प्रदेश के तीर्थ स्थल तिरुपति बालाजी का उदाहरण सामने है जहाँ लाखों तीर्थयात्री बिना किसी असुविधा के दर्शन लाभ प्राप्त करते हैं। जबकि मुख्य मंदिर का प्रांगण बहुत छोटा है और उसका विस्तार करने की बात कभी सोची नही गई। इसी तरह अगर काशी, मथुरा व उज्जैन जैसे तीर्थ नगरों की यातायात व्यवस्था पर इस विषय के जानकारों और विशेषज्ञों की मदद ली जाए तो विकराल होती इस समस्या का हल निकल सकता है।


तीर्थ स्थलों के विकास की इतनी व्यापक योजनाएँ चलाकर प्रधान मंत्री मोदी जी ने आज सारी दुनिया का ध्यान सनातन हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित किया है। स्वाभाविक है कि इससे आकर्षित होकर देशी पर्यटक ही नही बल्कि विदेशों से भी भारी मात्रा में पर्यटक इन तीर्थ नगरों को देखने आ रहे हैं। अगर उन्हें इन नगरों में बुनियादी सुविधाएँ भी नही मिलीं या भारी भीड़ के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ा, तो इससे एक ग़लत संदेश जायेगा। इसलिए तीर्थों के विकास के साथ आधारभूत ढांचे के विकास पर भी ध्यान देना चाहिए। केंद्र और राज्य की सरकारें हमारे धर्मक्षेत्रों को सजाएं-संवारें तो सबसे ज्यादा हर्ष हम जैसे करोड़ों धर्म प्रेमियों को होगा, पर धाम सेवा के नाम पर, अगर छलावा, ढोंग और घोटाले होंगे तो भगवान तो रुष्ट होंगे ही, भाजपा की भी छवि खराब होगी।


2008 से मैं, अपने साप्ताहिक लेखों में मोदी जी के कुछ अभूतपूर्व प्रयोगों की चर्चा करता रहा हूँ जो उन्होंने गुजरात का मुख्य मंत्री रहते हुए किये थे। जैसे हर समस्या के हल के लिए उसके विशेषज्ञों को बुलाना और उनकी सलाह को नौकरशाही से ज्यादा वरीयता देना। ऐसा ही प्रयोग इन तीर्थ नगरों के लिए किया जाना चाहिए क्योंकि कानून-व्यवस्था की दैनिक जिम्मेदारी में उलझा हुआ जिला-प्रशासन इस तरह की नई जिम्मेदारियों को सँभालने के लिए न तो सक्षम होता है और न उसके पास इतनी ऊर्जा और समय होता है। इसलिए समाधान गैर-पारंपरिक तरीकों से निकला जाना चाहिए। 

Monday, January 30, 2023

मिस्र की प्राचीन संस्कृति और कट्टरपंथी हमले के नुक़सान


हम भारतीय अपनी प्राचीन संस्कृति पर बहुत गर्व करते हैं। बात-बात पर हम ये बताने कि कोशिश करते हैं कि जितनी महान हमारी संस्कृति है, उतनी महान दुनिया में कोई संस्कृति नहीं है। निःसंदेह भारत का जो दार्शनिक पक्ष है, जो वैदिक ज्ञान है वो हर दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ है। लेकिन अगर ऐतिहासिक प्रमाणों की दृष्टि से देखा जाए तो हम पायेंगे कि भारत से कहीं ज़्यादा उन्नत संस्कृति दुनिया के कुछ दूसरे देशों में पायी जाती है।
 

पिछले तीन दशकों में दुनिया के तमाम देशों में घूमने का मौक़ा मिला है। आजकल मैं मिस्र में हूँ। इससे पहले यूनान, इटली व अब मिस्र की प्राचीन धरोहरों को देखकर बहुत अचम्भा हुआ। जब हम जंगलों और गुफ़ाओं में रह रहे थे या हमारा जीवन प्रकृति पर आधारित था। उस वक्त इन देशों की सभ्यता हमसे बहुत ज्यादा विकसित थी। हम सबने बचपन में मिस्र के पिरामिडों के बारे में पढ़ा है।पहाड़ के गर्भ में छिपी तूतनख़ामन की मज़ार के बारे में सबने पढ़ा था। यहाँ के देवी-देवता और मंदिरों के बारे में भी पढ़ा। पर पढ़ना एक बात होती है और मौक़े पर जा कर उस जगह को समझना और गहराई से देखना दूसरी बात होती है।


अभी तक मिस्र में मैंने जो देखा है वो आँखें खोल देने वाला है। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि आज से 5,500 साल पहले, क़ुतुब मीनार से भी ऊँची इमारतें, वो भी पत्थर पर बारीक नक्काशी करके, मिस्र के रेगिस्तान में बनाई गयीं। उनमें देवी-देवताओं की विशाल मूर्तियाँ स्थापित की गईं। हमारे यहाँ मंदिरों में भगवान की मूर्ति का आकर अधिक से अधिक 4 से 10 फीट तक ऊँचा रहता है। लेकिन इनके मंदिरों में मूर्ति 30-40 फीट से भी ऊँची हैं। वो भी एक ही पत्थर से बनाई गयीं हैं। दीवारों पर तमाम तरह के ज्ञान-विज्ञान की जानकारी उकेरी गई है। फिर वो चाहे आयुर्वेद की बात हो, महिला का प्रसव कैसे करवाया जाए, शल्य चिकित्सा कैसे हो, भोग के लिये तमाम व्यंजन कैसे बनाए जाएँ, फूलों से इत्र कैसे बनें, खेती कैसे की जाए, शिकार कैसे खेला जाए। हर चीज़ की जानकारी यहाँ दीवारों पर अंकित है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इसे सीख सकें। इतना वैभवशाली इतिहास हैं मिस्र का कि इसे देख पूरी दुनिया आज भी अचंभित होती है। 


फ़्रांस, स्वीडन, अमरीका और इंग्लैंड के पुरातत्ववैत्ताओं व इतिहासकारों ने यहाँ आकर पहाड़ों में खुदाई करके ऐसी तमाम बेशुमार चीज़ों को इकट्ठा किया है।सोने के बने हुए कलात्मक फर्नीचर, सुंदर बर्तन, बढ़िया कपड़े, पेंटिंग और एक से एक नक्काशीदार भवन। अगर उस वक्त की तुलना भारत से की जाए तो भारत में हमारे पास अभी तक जो प्राप्त हुआ है वो सिर्फ़ हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की संस्कृति के अवशेष है। हड़प्पा व मोहनजोदड़ो की संस्कृति में जो हमें मिला है वो केवल मिट्टी के कुछ बर्तन, कुछ सिक्के, कुछ मनके और ईंट से बनी कुछ नींवें, जो भवनों के होने का प्रमाण देती हैं। लेकिन वो तो केवल साधारण ईंट के बने भवन हैं। यहाँ तो विशालकाय पत्थरों पर नक़्क़ाशी करके और उन पर आजतक न मिटने वाली रंगीन चित्रकारी करके सजाया गया है। इनको यहाँ तक ढोकर कैसे लाया गया होगा, जबकि ऐसा पत्थर यहाँ पर नहीं होता था? कैसे उनको जोड़ा गया होगा? कैसे उनको इतना ऊँचा खड़ा किया गया होगा जबकि उस समय कोई क्रेन नहीं होती थी? ये बहुत ही अचंभित करने वाली बात है।

किंतु इस इतिहास का एक नकारात्मक पक्ष भी है। हर देश काल में सत्ताएँ आती-जाती रहती हैं और हर नई आने वाली सत्ता, पुरानी सत्ता के चिन्हों को मिटाना चाहती है। क्योंकि नई सत्ता अपना आधिपत्य जमा सके। यहाँ मिस्र में भी यही हुआ। जब मिस्र पर यूनान का हमला हुआ, रोम का हमला हुआ या जब अरब के मुसलमानों का हमला हुआ तो सभी ने यहाँ आ कर यहाँ के इन भव्य सांस्कृतिक अवशेषों का विध्वंस किया। उसके बावजूद भी इतनी बड़ी मात्रा में अवशेष बचे रह गए या दबे-छिपे रह गये, जो अब निकल रहे हैं। यही अवशेष मिस्र में आज विश्व पर्यटन का आकर्षण बने हुए हैं। दुनिया भर से पर्यटक बारह महीनों यहाँ इन्हें ही देखने आते हैं। इन्हें देख कर दांतों तले उँगली दबा लेते हैं। इसी का नतीजा है कि आज मिस्र की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा आधार पर्यटन उद्योग ही है। 

परंतु जो धर्मांध या अतिवादी होते हैं, वो अक्सर अपनी मूर्खता के कारण अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार लेते हैं। आपको याद होगा कि 2001 में अफ़ग़ानिस्तान के बामियान क्षेत्र में गौतम बुद्ध की 120 फीट ऊँची मूर्ति को तालिबानियों ने तोप-गोले लगाकर ध्वस्त किया था। विश्व इतिहास में ये बहुत ही दुखद दिन था। आज अफ़ग़ानिस्तान भुखमरी से गुज़र रहा है। वहाँ रोज़गार नहीं है। खाने को आटा तक नहीं है। अगर वो उस मूर्ति को ध्वस्त न करते। उसके आस-पास पर्यटन की सुविधाएँ विकसित करते, तो जापान जैसे कितने ही बौद्ध मान्यताओं वाले देशों के व दूसरे करोड़ों पर्यटक वहाँ साल भर जाते और वहाँ की अर्थव्यवस्था में बहुत बड़ा योगदान करते। 

जब अरब मिस्र में आए तो उन्होंने सभी मूर्तियों के चेहरों ध्वस्त करना चाहा। क्योंकि इस्लामिक देशों में बुतपरस्ती को बुरा माना जाता है। जहाँ-जहां वे ऐसा कर सकते थे उन्होंने छैनी हथौड़े से ऐसा किया। लेकिन आज उसी इस्लाम को मानने वाले मिस्र के मुसलमान नागरिक उन्हीं मूर्तियों को, उनके इतिहास को, उनके भगवानों को, उनकी पूजा पद्धति को दिखा-बता कर अपनी रोज़ी-रोटी कमा रहे हैं। फिर वो चाहे लक्सर हो, आसवान हो, अलेक्ज़ेंडेरिया हो या क़ाहिरा हो, सबसे बड़ा उद्योग पर्यटन ही है। आज मिस्र के लोग उन्हीं पेंटिंग और मूर्तियों के हस्तशिल्प में नमूने बनाकर, किताबें छाप कर, उन्हीं चित्रों की अनुकृति वाले कपड़े बनाकर, उन्हीं की कहानी सुना-सुनाकर उससे कमाई कर  रहे हैं। 

अब मथुरा का ही उदाहरण ले लीजिए। मथुरा में काम कर रही संस्था द ब्रज फ़ाउंडेशन ने पिछले बीस वर्षों में पौराणिक व धार्मिक महत्व वाली दर्जनों श्रीकृष्ण लीला स्थलियों का जीर्णोद्धार और संरक्षण किया है। परंतु योगी सरकार ने आते ही द्वेष वश फाउंडेशन द्वारा सजाई गई दो लीलास्थलियों का तालिबानी विनाश करना शुरू कर दिया। ताज़ा उदाहरण तो मथुरा के जैंत ग्राम स्थित पौराणिक कालियामर्दन मंदिर, अजय वन व जय कुंड का है, जहां भाजपा के एक स्थानीय नेता ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से ग्राम सभा के फ़र्ज़ी प्रस्ताव पर एक सार्वजनिक कूड़ेदान का निर्माण करा रहा है। ग्राम सभा के 15 सदस्यों में से 14 निर्वाचित सदस्य मथुरा के ज़िलाधिकारी को व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखित शिकायत दे चुके हैं कि कूड़ेदान के लिए कोई उनकी सभा में कोई प्रस्ताव पास नहीं हुआ। जिस प्रस्ताव के आधार पर ये निर्माण हो रहा है वो फ़र्ज़ी है। इससे पवित्र तीर्थ पर गंदगी का अंबार लग जाएगा। सारा गाँव इसका घोर विरोध कर रहा है। पर अभी तक प्रशासन की तरफ़ से इसे रोकने की कोई कारवाई नहीं हुई। एक ओर तो योगी सरकार हिंदुत्व को बढ़ाने का दावा करती है। दूसरी तरफ़ उसी के राज में मथुरा में तीर्थ स्थलों का विनाश इसलिए किया जा रहा है क्योंकि वो राजनैतिक रूप से उन्हें असुविधाजनक लगते हैं। शायद भाजपा और आरएसएस की मानसिकता यह है कि हिन्दू धर्म का जो भी काम होगा वो यही दो संगठन करेंगे। यदि कोई दूसरा करेगा तो उसका कोई महत्व नहीं और उसे नष्ट करने में किसी तरह की धार्मिक भावना को ठेस पहुँचाने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं होगा। यह बहुत ही दुखद है।

इस लेख के माध्यम से मैं उन सभी लोगों तक ये संदेश भेजना चाहता हूँ कि धरोहर चाहे किसी भी देश, धर्म या समुदाय की हो, वो सबकी साझी धरोहर होती है। वो पूरे विश्व कि धरोहर होती है। सभ्यता का इतिहास इन धरोहरों को संरक्षित रख कर ही अलंकृत होता है। जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता है। चाहे किसी भी धर्म में हमारी आस्था हो हमें कभी भी किसी दूसरे धर्म की धरोहर का विनाश नहीं करना चाहिए। आज नहीं तो कल हम ये समझेंगे कि इन धरोहरों को बनाना और सँभालना कितना मुश्किल होता है और उनका विनाश करना कितना आसान। इसलिए ऐसे आत्मघाती कदमों से बचें और अपने इलाक़े, प्रांत और प्रदेश की सभी धरोहरों कि रक्षा करें। इसी में पूरे मानव समाज की भलाई है।    

Monday, August 10, 2020

राम मंदिर से राम राज तक

जो यश सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर निर्माण करवा कर या जगमोहन ने वैष्णो देवी श्राईन बोर्ड बना कर अर्जित किया था, उससे कहीं ज़्यादा यश आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री राम मंदिर के निर्माण की आधारशिला रख कर अर्जित कर लिया। क्योंकि अयोध्या, मथुरा और काशी पर मौजूद मस्जिदें दुनिया के हिंदू बाहुल्य देश की जन भावनाओं पर नासूर की तरह रहीं हैं। इसलिए आज वहाँ मंदिर निर्माण का सपना साकार होते देख दुनिया भर के हिंदुओं में हर्ष है।

कुछ मोदी आलोचकों का आरोप है कि धर्म निरपेक्ष सम्विधान की शपथ खाने वाले प्रधानमंत्री ने मंदिर के भूमिपूजन में जा कर उसका उल्लघन किया है। उनका यह भी आरोप है कि तत्कालीन मुख्य  न्यायाधीश रंजन गोगोई से मंदिर के पक्ष में निर्णय एक ‘डील’ के तहत हुआ। जिसमें गोगोई को राज्य सभा में भेज दिया गया। 

इन आलोचकों को मैं बताना चाहूँगा कि 1989 में मैंने एक बार दिल्ली के दबंग कांग्रेसी नेता एच.के.एल. भगत से पूछा था कि आपके किस गुण के कारण आपकी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से इतनी निकटता थी ? उनका जवाब सुनकर 33 वर्ष का मैं युवा पत्रकार धक्क रह गया था। जवाब था, मैं इंदिरा जी के लिए न्यायपालिका को मैनेज करने का काम करता था। इसके 20 वर्ष बाद जब मैंने भारत के पदासीन मुख्य न्यायाधीशों के घोटाले खोले तो सारा खेल समझ में आ गया। इसलिए इसमें नया कुछ भी नहीं है। 

वैसे भी क़ानून जनता के हित के लिए होते है, जनता क़ानून के लिए नहीं होती। मोदी जी ने बहुसंख्यक समाज की सदियों पुरानी पीड़ा को समझा और साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपनाकर प्रबल इच्छा शक्ति का प्रमाण दिया। जिससे  निश्चय ही हिंदू समाज अभिभूत है। अगर यह कहा जाए कि मोदी का लक्ष्य मंदिर को राजनैतिक रूप से भुनाना  है, तो इसमें भी कौन सी नई बात है। सभी राजनैतिक दल वोटों पर निगाह रख कर ही तो अपना एजेंडा बनाते हैं। मैं तो कहूँगा कि अगर मोदी जी इसी माहौल में मथुरा और काशी को भी मुक्त करा दें तो सदियों की पीड़ा से हिंदू समाज को राहत मिलेगी।   

5 अगस्त को अयोध्या में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण में दो विशेष बात थीं। पहली; उन्होंने बिना किसी का नाम लिए ही बड़ी विनम्रता और दीनता के साथ उन सबका स्मरण किया जिन्होंने पिछले 500 वर्षों में राम मंदिर की मुक्ति के लिए कुछ भी योगदान किया था। दूसरी विशेषता; वे पूरी तरह राम भक्ति के रंग में रंगे हुए थे। उन्होंने भाजपा का राजनैतिक नारा ‘जय श्रीराम’ न लगा कर राम भक्तों में सदियों से प्रचलित ‘जय सियाराम’ का उदघोष  किया। इतना ही नहीं उनका उद्बोधन भगवान राम के जीवन, आदर्शों व रामचरित मानस के आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित था। पूरे भाषण का भाव भक्तिमय था। उन्होंने भगवान श्री राम को और उनके राम राज्य को हर भारतीय के लिए आदर्श बताया और उस पर चलने की प्रेरणा लेने को कहा। 

मोदी जी के इस भक्ति भाव का सम्मान करते हुए मैं अयोध्या के उस धोबी का स्मरण दिलाना चाहूँगा, जिसकी निराधार टिप्पणी को भी गम्भीरता से लेते हुए भगवान श्रीराम ने सीता माता का त्याग कर दिया था। ताकि समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों का भी आदर हो। 

6 वर्ष बीत गए जब मोदी जी ने ब्रज विकास की मेरी प्रस्तुति को डेढ़ घंटा बैठ कर देखा और सराहा था। इन 6 वर्षों में मैंने अनेक लेखों, सोशल मीडिया और मोदी जी  के विश्वासपात्र अफ़सरों के माध्यम से बार-बार उनका ध्यान इस ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है कि जिन पूर्ववर्ती सरकारों को वे हर भाषण में भ्रष्ट बताते हैं उन्हीं सरकारों के समय स्थापित हुए तौर तरीक़ों से आज भी तीर्थों के विकास के नाम पर जनता के धन की भारी बर्बादी और भ्रष्टाचार हो रहा है। इसके तमाम प्रमाण भी मैंने समय समय पर प्रकाशित किए। एक सनातनी हिंदू होने के कारण मेरी प्राथमिकता केवल ब्रज है। या यूँ कहें कि हमारी आस्था के सभी केंद्र हैं। हिंदूधर्म के प्रति आस्था जताने वाले राज में धर्मक्षेत्रों में ये लूट क्यों? 

1993 से हवाला कांड उजागर करके मैं दुनिया को सप्रमाण यह बता चुका हूँ कि भ्रष्टाचार के मामले में सभी दलों का एक सा हाल होता है। यह आज की व्यवस्था में भी सप्रमाण सिद्ध किया जा सकता है। पर मैं उस ओर न जा कर केवल धर्म क्षेत्र की ही बात करना चाहता हूँ। क्योंकि न सिर्फ़ मोदी जी ने बल्कि  सरसंघचालक डा मोहन भागवत जी ने और भाजपा ने लगातार भगवान राम के आदर्शों से प्रेरणा लेने का आवाहन किया है। 

इस संदर्भ में इन सभी महानुभावों को सम्बोधित करते हुए मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पिछले हफ़्ते सोशल मीडिया पर यह खुला पत्र भेजा है, आप जानते हैं कि दशरथ जी के देहांत के बाद भरत जी ननिहाल से अयोध्या लौटने पर विलाप करते हुए कहते हैं कि ‘अगर मैंने स्वप्न में भी भैय्या राम की जगह राजा बनने का सोचा हो तो मेरी वही दुर्गति हो जो ‘धर्मध्वजियों’ (जो धर्म का दोहन करते हैं) की होती है।’ यानि मुझे घोर नारकीय यातना मिले। धर्म के आवरण में अधर्म करने वालों को  बिना दंड दिये छोड़ देना अपने धर्म का स्वयं नाश करने जैसा है। 

आप जानते हैं कि सभी ब्रजवासियों, संतों व भक्तों द्वारा आजतक सराही जा रही ब्रज (मथुरा) की अभूतपूर्व सेवा जो द ब्रज फ़ाउंडेशन ने गत 18 वर्षों में की है, उसे विधर्मी औरंगज़ेब के तरीक़े से रोकने और नष्ट करने का घृणित कार्य गत 3 वर्षों में यूपी शासन में बैठे कुछ लोगों द्वारा, ‘उत्तर प्रदेश ब्रज तीर्थ विकास परिषद’ के साथ षड्यन्त्र करके, हम पर मिथ्या आरोप थोप कर किया गया, जिससे वे लोग ब्रज में धाम सेवा के नाम पर रोज़ाना ख़ूब घोटाले कर सकें और जगह- जगह गौशालाएँ हड़पने का काम बेरोकटोक कर सकें। जो ब्रज में धड़ल्ले से आज हो रहा है। ये सब कुछ जानकर भी आप मौन क्यों हैं ? 

हमारे विनम्र प्रयास से गोवर्धन (मथुरा) के अन्योर गाँव के संकर्षण कुंड का जीर्णोद्धार करके 34 फ़ीट ऊँचा व तिरुपति बाला जी से से लाकर चिन्नाजीयरस्वामी द्वारा 2017 में प्राणप्रतिष्ठित संकर्षण भगवान का (ब्रज का सबसे बड़ा) विग्रह आज इनके कारण 3 वर्षों से बिना सेवा पूजा के मल मूत्र के गंदे पानी में उपेक्षित खड़ा है। 

इन लोगों ने तो ईर्ष्यावश श्री राहुल बजाज और श्री अजय पीरामल जैसे दानदाताओं के नाम के व हमारे शिलालेख तक पुतवा दिये। जैसे भविष्य में कोई आने वाला प्रधानमंत्री अयोध्या में आपके ऐतिहासिक योगदान से ईर्ष्या करके वहाँ 5 अगस्त 2020 को लगे आपके नाम के शिलापट्ट को नष्ट कर दे, तो आपको कैसा लगेगा? 

हिंदू धर्म की तन मन धन से निस्वार्थ सेवा करने वालों से ये कैसा हिंदुत्ववादी व्यवहार है? आशा है आप इस लम्बित विषय पर कुछ करेंगे ? 

तो क्या ये माना जाए कि मोदी जी, भागवत जी और योगी जी अयोध्या के अपने उद्बोधन के तारतम्य में रामराज्य के मुझ ‘धोबी’ की भावना का सम्मान करते हुए, मथुरा, काशी, अयोध्या जैसे धर्मस्थलों के विकास और सौंदर्यकरण में चले आ रहे भ्रष्ट और संवेदनाशून्य ढ़र्रे से हट कर हमारे अनुभवजन्य ज्ञान को महत्व देंगे? रामराज्य की दिशा में यह एक छोटा पर महत्वपूर्ण कदम होगा। 

Monday, July 15, 2019

क्यों जरूरी है मोदी जी की ‘हृदय योजना’?

अपनी सनातनी आस्था और अंतराष्ट्रीय समझ के सम्मिश्रण से मोदी जी ने 2014 में ‘स्वच्छ भारत’ या ‘हृदय’ जैसी चिरप्रतिक्षित नीतियों को लागू किया। इनके शुभ परिणाम दिखने लगे हैं और भविष्य और भी ज्यादा दिखाई देंगे। हृदय योजना की राष्ट्रीय सलाहकार समिति का मैं भी पांच में से एक सदस्य था। इस योजना के पीछे मोदी जी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत के प्राचीन नगरों की धरोहरों को सजा-संवाकर इस तरह प्रस्तुत किया जाय कि विकास की प्रक्रिया में कलात्मकता और निरंतरता बनी रहे। ऐसा न हो कि हर आने वाली सरकार या उस नगर में तैनात अधिकारी अपनी सीमित बुद्धि और अनुभहीनता से नये-नये प्रयोग करके ऐतिहासिक नगरों को विद्रुप बना द, जैसा आजतक करते आये हैं ।
जिन बारह प्राचीन नगरों का चयन ‘हृदय योजना’ के तहत भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने किया, उनमें से मथुरा भी एक था। राष्ट्रीय स्तर पर एक पारदर्शी चयन प्रक्रिया के तहत ‘द ब्रज फाउंडेशन’ को मथुरा का ‘सिटी एंकर’ बनाया गया। जिसकी जिम्मेदारी है मोदी जी की इस सोच को धरातल पर उतारना। इसलिए कार्यदायी संस्थाओं और प्रशासन की यह जिम्मेदारी रखी गई कि वे ‘सिटी एंकर’ के निर्देशन में ही कार्य करेंगे। 
आजादी के बाद पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने योग्यता और अनुभव को इतना सम्मान दिया। ये बात दूसरी है कि इस अनूठी योजना से उन अधिकारियों और कर्मचारियों को भारी उदर पीड़ा हुई, जो विकास के नाम पर आजतक कमीशनखोरी और कागजी योजनाऐं लागू करते आए हैं। उन्हें ‘सिटी एंकर’ की दखलअंदाजी से बहुत चिढ़ मचती है। फिर भी हमने वृंदावन के यमुना घाटों को व मथुरा के पोतरा कुंड जैसे कई पौराणिक स्थलों को मलवे के ढेर से निकालकर अत्यन्त लुभावनी छवि प्रदान की है, ऐसा हर तीर्थयात्रियों व दर्शक का कहना है। 
दुख की बात ये है कि पुराना ढर्रा अभी भी चालू है। ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद्’ से जुडे़ अधिकारी ब्रज विकास के नाम पर एक से एक फूहड़ योजनाऐं लागू करते जा रहे हैं। मोदी सरकार और योगी सरकार द्वारा प्रदत्त शक्ति और अपार धन की सरेआम बर्बादी हो रही है, जिसे देखकर ब्रजवासी और तीर्थयात्री ही नहीं संतगण भी बेहद दुखी हैं। पर कोई सुनने को तैयार नहीं।
कुछ उदाहरणों से स्थिति स्पष्ट हो जाऐगी। वृंदावन में 400 एकड़ में ‘सौभरि ऋषि पार्क’ बनने जा रहा है। जबकि सतयुग के  सौभरि ऋषि का द्वापर  में वृंदावन की श्रीकृष्ण लीला से कोई संबंध नहीं है। वृंदावन तो श्रीराधारानी और भगवान श्रीकृष्ण की नित्यविहार स्थली है, जहां उनकी लीला के अनुरूप कुँज-निकुँज का भाव और उससे संबंधित नामकरण किया जाना चाहिए । 
इतना ही नहीं , पता चला है कि इस पार्क का स्वरूप ‘डिज्नीलैंड’ जैसा होने जा रहा है। पहले जब वृंदावन में प्रवेश करते थे, तो राष्ट्रीय राजमार्ग से मुड़ते ही एक अद्भुत आध्यत्मिक भावना पनपती थी। पर मथुरा-वृंदावन विकास प्राधिकरण ने अब वृंदावन का प्रवेश वैसा ही कर दिया, जैसा आज गुडगाँव का है, जहां बहुमंजलीय इमारतें हैं जिनकी वास्तुकला में वृंदावन की कोई छाप नहीं है। जबकि 300 वर्ष पहले मिर्जा इस्माइल ने जयपुर और मैसूर जैसे शहरों को कलात्मकता के साथ योजनाबद्ध किया था। इतना ही नहीं इस कॉलोनी का नाम भी ‘रूकमणि विहार’ रखा गया है। रूकमणि जी द्वारिकाधीश भगवान की रानी थीं। उनका ब्रज ब्रजलीला से कोई नाता नहीं था। जबकि ब्रजलीला में ऐसी सैंकड़ों गोपियां हैं, जिनके नाम पर इस कॉलोनी का नाम रखा जा सकता था। 
इसी हफ्ते गुरू पूर्णिंमा के अवसर पर श्री गोवर्धन पर्वत की हैलीकॉप्टर से परिक्रमा प्रारंभ की गई है। इससे बड़ा अपमान गोवर्धन भगवान का हो नहीं सकता, जिनके चारों ओर राजे-महाराजे तक नंगे पाव चलकर या दंडवती लगाकर परिक्रमा करते आऐ हों, जिन्हें अपनी अंगुली पर धारणकर बालकृष्ण ने देवराज इंद्र का मानमर्दन किया हो, उन गिर्राज जी के ऊपर उड़कर अब ‘ब्रजतीर्थ विकास परिषद्’ गिर्राज जी का मानमर्दन करवा रही है। 
राधारानी के श्रीधाम बरसाना में चार पर्वत शिखर हैं, जिन्हें ब्रह्माजी का मस्तक माना जाता है। इन पर राधारानी की लीलाओं से जुड़े चार मंदिर हैं-भानुगढ़, विलासगढ़, दानगढ़ व मानगढ़ । ज़रूरत इन पर्वतों के प्राकृतिक सौंदर्य को सुधारने और इनकी पवित्रता सुनिश्चित करने कीं है पर ‘ब्रजतीर्थ विकास परिषद्’ इन पर रेस्टोरेंट बना रही है । जहां हर दम हुड़दंग मचेगा, प्लास्टिक की बोतलें व थर्माकोल जैसे जहरीले कूड़े के ढेर जमा होंगे और 5000 साल से यहां की संरक्षित पवित्रता नष्ट हो जायेगी, जो हाल केदारनाथ और बद्रीनाथ का हुआ। जहां की पवित्रता और प्रकृति से विकास के नाम पर विवेकहीन छेड़छाड़ की गई।
एक लंबी सूची है, जो ये सिद्ध करती है कि मोदीजी और योगीजी की श्रद्धायुक्त धामसेवा की उच्च भावना को अनुभवहीन, भावहीन, अहंकारी और आयतित अधिकारी किस तरह से ब्रज में पलीता लगा रहे हैं।
ब्रजतीर्थ विकास परिषद्’ की संरचना करते समय हमने यह प्रावधान रखा था कि ब्रज संस्कृति के विशेषज्ञ और अनुभवी लोगों की सामूहिक व पारदर्शी सलाह के बिना कोई योजना नहीं बनाई जायेगी। पर आज इसका उल्टा हो रहा है। ब्रज संस्कृति के विशेषज्ञ, संतगण, ब्रजवासी और ब्रज को सजाने में अनुभवी लोगों को दरकिनार कर करोड़ों रूपये की ऐसी वाहियात योजनाऐं लागू की गई है, जिनसे न तो धाम सजेगा और न ही संत और भक्त प्रसन्न होंगे। हां ठेकेदारों की और कमीशनखोरों की जेबें जरूर गर्म हो जाऐंगी।
इसलिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की ‘हृदय योजना’ को और प्रभावशाली तरीके से लागू करने की तुरंत आवश्यक्ता है। जिससे सरकार की सद्इच्छा के बॉवजूद तीर्थों में हो रहा विकास के नाम विनाश और धरोहरों की बर्बादी रूक सके। क्या प्रधानमंत्रीजी कुछ पहल करेंगे ?

Thursday, June 6, 2019

Restoring Hindu Heritage Sites is a Crime in India


Kind Attention: Lawyers and Concerned Citizens  

In May 2018 Hon’ble Member NGT Mr. Raghuvendra Singh Rathore passed several harsh orders against our organisation, The BrajFoundation





Our crime is that we have been restoring and maintaining ancient water bodies, forests and heritage buildings in Mathura, including Rudra Kund & Sankarshan Kund, located on Goverdhan Parikrama.

He did so despite the fact that entire village community in writing had given their appreciation to NGT for our efforts of converting heaps of garbage, which these ancient Kunds were for decades, into world class pilgrim destinations, while they were ignored by local Admn. for decades. 



Mr. Rathore humiliated us in the court, despite the fact that The Braj Foundation has won 6 UNESCO backed ‘Best Water NGO of India’ Awards for restoring Ancient Water Bodies in Mathura, PM Mr. Narendra Modi, several Union Cabinet Ministers, CMs, CEO Niti Aayog, millions of pilgrims, prominent Saints & media praise The Braj Foundation for its selfless restoration works in Mathura. This work is being done for the past 17 years. Fortunately, Hon’ble SC next day granted stay against the NGT order else other sites restored by us would have also fallen prey to such order.


Mr. Rathore not only did this but also humiliated us by calling 'land grabbers,' while two DMs of Mathura had already given affidavits in the Hon’ble Allahabad High Court stating that The Braj Foundation only restores these water bodies while the ownership always remains under village common. Mr. Rathore also passed several other damaging verbal orders against us and instructed DM Mathura to paint the names of donors like Mr. Ajay Piramal, Mr. Rahul Bajaj & Dr. Rameshwar Rao etc and that of The Braj Foundation, on the stone plaques installed at the sites after the restoration. Have you ever seen such an attack except by the barbaric invaders, who destroy the culture of defeated countries?


Mr. Rathore passed all such orders by ignoring the facts available on case file & all legal arguments presented therein and instructed Mathura Admn. to deprive us from maintaining these sites. As a result within one year these sites have returned to very pitiable conditions. Thousands of trees, planted by us, have died due to no irrigation, 34ft. tall beautiful black granite deity carved in Tirupati Balaji and installed by HH Chinna Jeeyar Swami ji at Sankarshan Kund is collecting dust in the absence of regular Sewa Puja which earlier  we were doing.

Everyone who visits these Kunds on Goverdhan Parikrama, literally sheds tears looking at the damage Mr. Rathore’s orders have done. 

Condition of the trees at Sankarshan Kund
Interestingly Mr. Rathore is doing all this on a PIL field by a fake Anand Baba, who is accused of selling forest lands in Bharatpur (Raj)  and facing criminal charges. The other petitioner  is a  CA, both are agents of a well-known scam master of Jaipur, Anoop Bartaria, who is also facing several criminal charges under CBI & DRI.

It is also very disturbing that on one side Mr. Rathore is humiliating and punishing The Braj Foundation, which has done unprecedented work of restoring Environmental & Cultural heritage in Mathura, while on the other side he is regularly passing orders to construct circular roads on Goverdhan Parikrama, take over management of temples, create shrine boards etc. Is this the mandate of NGT to interfere in civil administration and worry about temple management etc?
Condition of the water at Sankarshan Kund now



We are waiting for the Hon’ble SC to hear our pending matter but meanwhile I am requesting all of you to generate a debate in legal fraternity or amongst your fraternity about this draconian style of functioning of NGT. You know that right from the 'Jain Hawala Case'(1993) till now I have always fought for public causes and have never chased political or monetary rewards for my dangerous and long drawn crusades. That is why legal illuminates like Mr. L M Singhvi, Mr. Ashok Desai, Mr. Anil Divan, Mr. KK Venugopal, Mr. Ram Jethmalani, Mr. Fali Nariman, Mr. Shanti Bhushan, Mr. Abhishek Manu Singhvi and so many others have always stood for me in the SC, without ever charging a penny from me. I am grateful to all of them.

Condition of Rudra Kund now
This issue of Mathura is bigger than all others I fought during past three decades, because it questions the very fundamentals of our approach to development. While we know that govt. money is siphoned off before it reaches at the implementation level, here is an NGO which has done tremendous developmental work, without taking a penny from the govt., yet it is being attacked by NGT. The spirit of young IITians, MBAs & Architects etc. who voluntarily contribute to this cause with us is being hampered by such negative attitude of NGT, which is otherwise supposed to be concerned about Environment and not Temple Management? I beg you to respond to our humble plea and take up this matter with Hon’ble Judges of SC, even in your private conversations and in formal professional discussions?

Let the spirit to serve our motherland not die !


Yours truly
Sr. Journalist,New Delhi
&
Chairman, The Braj Foundation, Vrindavan.

Monday, December 31, 2018

‘हृदय’ को हृदयाघात


मोदी जी ने ‘हृदय योजना’ इसलिए शुरू की थी कि हेरिटेज सिटी में डिजाइन की एकरूपता बनी रहे। ये न हो कि उस शहर में आने वाला हर नया नेता और नया अफसर अपनी मर्जी से कोई भी डिजाइन थोपकर शहर को चूं-चूं का मुरब्बा बनाता रहे, जैसा मथुरा-वृन्दावन सहित आजतक देश के ऐतिहासिक शहरों में होता रहा है। यह एक अभूतपूर्व सोच थी, जो अगर सफल हो जाती, तो मोदी जी को ऐतिहासिक शहरों की संस्कृति बचाने का भारी यश मिलता। पर दशकों से कमीशन खाने के आदी नेता और अफसरों ने इस योजना को विफल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी क्योंकि उन्हें डर था कि अगर ये योजना सफल हो गई, तो फर्जी नक्शे बनाकर, फर्जी प्रोजेक्ट पास कराने और माल खाने के रास्ते बंद हो जाएंगे। चूंकि मथुरा-वृंदावन में ‘हृदय’ के ‘सिटी एंकर’ के रूप में भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने ‘द ब्रज फाउंडेशन’ को चुना था, इसलिए उसी अनुभव को यहां साझा करूंगा।

दुनिया के खूबसूरत पौराणिक शहर वृन्दावन का मध्युगीन आकर्षक चेहरा एमवीडीए. के अफसरों के भ्रष्टाचार और लापरवाही से आज विद्रूप हो चुका है। आज भी भोंडे अवैध निर्माण धड़ल्ले से चालू हैं। इस विनाश के लिए जिम्मेदार रहे अफसर ही अब योगी राज  में बनाऐ गऐ ‘ब्रज तीर्थ विकास परिषद् के कर्ता-धर्ता बनकर ब्रज का भारी विनाश करने पर तुले हैं।

ऊपर से दुनिया भर के मीडिया में हल्ला ये है कि ब्रज का भारी विकास हो रहा है। योगी जी ने खजाना खोल दिया है। अब ब्रज अपने पुराने वैभव को फिर पा लेगा। जबकि जमीनी हकीकत ये है कि वृन्दावन, गोवर्धन और बरसाना सब विद्रूपता की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। ब्रज के संत, भक्त व ब्रज संस्कृति प्रेमी सब भारी दुखी हैं। मोदी सरकार द्वारा इसी वर्ष पद्मश्री से सम्मानित ब्रज संस्कृति के चलते-फिरते ज्ञानकोश डा. मोहन स्वरूप भाटिया भी 'ब्रजतीर्थ विकास परिषद्' के इन कारनामों से भारी दुखी हैं और बार-बार इसका लिखकर विरोध कर रहे हैं, पर कोई सुनने वाला नहीं।

जयपुर व मैसूर दो सर्वाधिक सुन्दर शहरों में ‘मिर्जा इस्माईल रोड’ उस वास्तुकार के नाम पर हैं, जिसने इन शहरों का नक्शा बनाया था। पेरिस की ‘एफिल टावर’ किसी नेता के नाम पर नहीं बल्कि उसका डिजाइन बनाने वाले इंजीनियर श्री एफिल के नाम पर है। पर योगी सरकार को इतनी सी भी समझ नहीं है कि मथुरा, अयोध्या और काशी के विकास के लिए उन लोगों की सलाह लेती जिनका इन प्राचीन नगरों की संस्कृति से गहरा जुड़ाव है, जिनके पास इस काम का ज्ञान और अनुभव है। पर ऐसा नहीं हुआ। हमेशा की तरह नौकरशाही ने घोटालेबाज या फर्जी सलाहकारों को इन प्राचीन शहरों पर थोपकर, इनका आधुनीकरण शुरू करवा दिया। अब इनका रहा-सहा कलात्मक स्वरूप भी नष्ट हो जाऐगा। बंदर को उस्तरा मिले तो वो क्या करेगा ?

उदाहरण के तौर पर मोदी जी की प्रिय ‘हृदय योजना’ में जब व्यवाहरिक, सुंदर व भावानुकूल वृन्दावन परिक्रमा मार्ग 2.5 किमी० बन ही रहा है, तो शेष 8 किमी. परिक्रमा पर एक नया डिजाइन बनाकर लाल पत्थर का भौंडा काम कराने का क्या औचित्य है ? पर ये पूछने वाला कोई नहीं।

योगी जी के मंत्रियों और अफसरों ने अपने अहंकार और मोटे कमीशन के लालच में, ब्रज में ऐतिहासिक जीर्णोद्धार करती आ  रही ‘द ब्रज फाउंडेशन’ की महत्वपूर्ण भूमिका को नकार कर, विकास के नाम पर, पैसे की बर्बादी का तांडव चला रखा है। जबकि ब्रज फाउंडेशन के योगदान को मोदी जी से लेकर हरेक ने आजतक खूब सराहा है।

उल्लेखनीय है कि योगी सरकार के आते ही 9 पौराणिक कुंडों के जीर्णोद्धार का 27 करोड़ रुपये के काम का ठेका 77 करोड़ रुपये में दिया जा रहा था। गोवर्धन क्षेत्र के विकास का काम जयपुर के मशहूर घोटालेबाज अनूप बरतरिया को सौंपा जा रहा था। द ब्रज फाउंडेशन ने जब इसका विरोध किया, तो सब एकजुट होकर गिद्ध की तरह उस पर टूट पड़े । जिससे ये सब मिलकर ब्रज विकास के नाम पर खुली लूट कर सकें।

उधर सभी संतगण व भक्तजन गत 15 वर्षों से द ब्रज फाउंडेशन के कामों को पूरे ब्रज में देखते व सराहते आये हैं। मोदी जी के खास व भारत के  नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत का कहना है कि, ‘जैसा काम बिना सरकारी पैसे के 15 वर्षों में ब्रज में ब्रज फॉउंडेशन ने  किया है वैसा काम 80 प्रतिशत प्रान्तों के पर्यटन विभागों ने पिछले 71 वर्ष में नहीं किया’।

सारी दुनिया के श्री राधाकृष्ण भक्तों, संतगणों व ब्रजवासियों के लिए ये चिंता और शोभ की बात होनी चाहिए कि 71 वर्षों से आश्रम के नाम पर केवल अपने लिए गेस्ट हाउस बनाने वाले राजनैतिक लोग आज ब्रज की सेवा व विकास के नाम हम सबका खुलेआम उल्लू बना रहे हैं । ब्रज विकास के नाम पर इनकी बनाई हर योजना एक धोका है। इससे न तो ब्रज के कुंड, सरोवर, वन सुधरेंगे और न ही आम ब्रजवासियों को कोई लाभ होगा। ब्रज को ‘डिज्नी वर्ल्ड’ बनाकर बाहर के लोग यहां कमाई करेंगे।

गत 4 वर्षों से मैं इन सवालों पर केंद्र और राज्य सरकार का ध्यान इसी कालम के माध्यम से और पत्र लिखकर भी आकर्षित करता रहा हूं, पर किसी ने परवाह नहीं की। अब मैंने प्रधानमंत्री जी से समय मांगा है, ताकि उनको जमीनी हकीकत बताकर आगे की परिस्थितियां सुधारने का प्रयास किया जा सके। बाकी हरि इच्छा।