प्रधानमंत्री पूरी ताकत लगा रहे है भारत को कैशलेस समाज बनाने के लिए। सरकार
से जुड़ी हर ईकाई इस काम के प्रचार में जुटी है। यह तो प्रधानमंत्री भी जानते हैं
कि सौ फीसदी भारतवासियों को रातों-रात डिजीटल व्यवस्था में ढाला नहीं जा सकता। पर
कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इस काम को प्राथमिकता पर किया जा सकता है। इसलिए भारत और
राज्य सरकारों को सबसे पहले शराब की सभी दुकानों को अनिवार्यतः कैशलेस कर देना
चाहिए। क्योंकि यहां प्रतिदिन हजारों लाखों रूपये की नकदी आती है। हर शराबी नकद
पैसे से ही शराब खरीदकर पीता और पिलाता है। सरकार को चाहिए कि शराब खरीदने के
लिए बैंक खाता, आधार कार्ड व बीपीएल कार्ड
(जिनके पास है) दिखाने की अनिवार्यता हो। बिना ऐसा कोई प्रमाण दिखाये शराब बेचना
और खरीदना दंडनीय अपराध हो।
इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि सरकार को ये भी पता चल जाएगा की जिन लोगों
को सरकार आरक्षण, आर्थिक सहायता, सब्सिडी, फीस में छूट, नौकरियों में छूट, 2 रू.किलो गेहूं, मुफ्त आवास व बीपीएल के लाभ आदि
दे रही है उनमे कितने लोग किस तरह शराब पर पैसा खर्च कर रहे हैं। कितने फर्जी लोग
जो अपना नाम बीपीएल सूची में सम्मिलित करवाये बैठे हैं वो भी स्वतः ही पता चल
जाएंगे । क्योंकि प्रतिमाह हजार डेढ़ हजार रुपया शराब पर खर्च करने वाला गरीबी
फायदे लेने वका हकदार नहीं है।
शराब की बिक्री को कैशलेस करने के अन्य कई लाभ होंगे। जो लोग भारी मात्रा
में एकमुश्त शराब खरीदते हैं जैसे अपराधी, अंडरवलर्ड, सरकारी अधिकारी
और पुलिसबल को शराब बांटने वले व्यापारी, माफिया व
राजनीतिज्ञ इन सबकी भी पोल खुल जाएगी। क्योंकी इन धंधों में लगे लोगों को प्रायः
भारी मात्रा में अपने कारिंदों को भी शराब बांटनी होती है। जब पैनकार्ड या आधार
कार्ड पर शराब खरीदने की अनिवार्यता होगी तो थोक में शराब खरीदकर बाँटने वाले गलत
धंधो में लगे लोग बेनकाब होंगे। क्योंकि तब उनसे इस थोक खरीद की वजह और हिसाब कभी
भी माँगा जा सकता है। माना जा सकता है कि ऐसा करने से अपराध में कमी आयेगी।
उधर बड़े से बड़े शराब कारखानो में आबकारी शुल्क की चोरी धड़ल्ले से होती है।
चोरी का ये कारोबार अरबों रुपये का होता है। मुझे याद है आज से 43 वर्ष पहले 1974 में मैं एक बार अपने चार्टर्ड
अकाउंटेंट मित्र के साथ शराब कारखाने के अतिथि निवास में रुका था। शाम होती ही
वहां तैनात सभी आबकारी अधिकारी जमा हो गए और उन लोगों का मुफ्त की शराब और कबाब का
दौर देर रात तक चलता रहा। चलते वख्त वो लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को बाँटने के लिए अपने साथ मुफ्त
की शराब की दो-दो बोतलें भी लेते गए। जिसका कोई हिसाब रिेकार्ड में दर्ज नहीं था।
पूछने पर पता चला कि आबकारी विभाग के छोटे से बड़े अधिकारी, सचिव और मंत्री
को मोटी रकम हर महीने रिश्वत में जाती है। जिसकी एवज में कारखानों में तैनात
आबकारी अधिकारी शराब कारखानों के मालिकों के बनाये फर्जी दस्तावेजों पर स्वीकृति
की मोहर लगा देते हैं। मतलब अगर 6 ट्रक शराब कारखाने से बाहर जाती
है, तो आबकारी
रिकॉर्ड में केवल एक ट्रक ही दर्ज होता है। ऐसे में कैशलेस बिक्री कर देने से पूरा
तंत्र पकड़ा जायेगा।
पर सवाल है कि क्या कोई भी सरकार इसे सख्ती से लागू कर पाएगी? गुजरात में ही लंबे समय से
शराबबंदी लागू है। पर गुजरात के आप किसी भी शहर में शराब खरीद और पिला सकते है। तू
डाल- डाल तो वो पात-पात।
शराब के कारोबार का ये तो था उजाला पक्ष। एक दूसरा अँधेरा पक्ष भी है। पुलिस
और आबकारी विभाग की मिलीभगत से देश के हर इलाके में भारी मात्रा में नकली शराब
बनती और बिकती है। जब कभी नकली शराब पीने वालों की सामूहिक मौत का कोई बड़ा कांड हो
जाता है तब दो चार दिन मीडिया में हंगामा होता है, धड़ पकड़ होती है, पर फिर वही ढाक के तीन पात। इस
कारोबार को कैशलेस कैसे बनाया जाय ये भी सरकार को सोचना होगा।
शराब के दुर्गणों को पीने वाला भी जानता है और बेचने वाला भी। कितने जीवन और
कितने घर शराब बर्बाद कर देती है। पर ये भी शाश्वत सत्य है कि मानव सभ्यता के
विकास के साथ ही शराब उसका अभिन्न अंग रही है। बच्चन की ‘मधुशाला’ से गालिब तक
शराब की तारीफ में कसीदे कसने वालों की कमी नहीं रही। गम गलत करना हो, मस्ती करनी हो, किसी पर हत्या का जुनून चढ़ाना हो, दंगे करवाने हों, फौज को दुर्गम परिस्थियों में
तैनात रखना हो और उनसे दुश्मन पर खूंखार हमला करवाना हो तो शराब संजीवनी का काम
करती है। इसीलिये मुल्ला-संत कितने भी उपदेश देते रहें कुरान, ग्रन्थ साहिब या
पुराण कितना भी ज्ञान दें, पर शराब हमेशा
रही है और हमेशा रहेगी। जरूरत इसको नियंत्रित करने की होती है। फिर कैशलेस के दौर
में शराब की बिक्री को क्यों न कैशलेस बना कर देखा जाय ? देखें क्या परिणाम आता है।