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Monday, February 13, 2017

शराब की भी दुकानें क्यों न हों कैशलेस?

प्रधानमंत्री पूरी ताकत लगा रहे है भारत को कैशलेस समाज बनाने के लिए। सरकार से जुड़ी हर ईकाई इस काम के प्रचार में जुटी है। यह तो प्रधानमंत्री भी जानते हैं कि सौ फीसदी भारतवासियों को रातों-रात डिजीटल व्यवस्था में ढाला नहीं जा सकता। पर कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इस काम को प्राथमिकता पर किया जा सकता है। इसलिए भारत और राज्य सरकारों को सबसे पहले शराब की सभी दुकानों को अनिवार्यतः कैशलेस कर देना चाहिए। क्योंकि यहां प्रतिदिन हजारों लाखों रूपये की नकदी आती है। हर शराबी नकद पैसे से ही शराब खरीदकर पीता और पिलाता है। सरकार को चाहिए कि शराब खरीदने के लिए  बैंक खाता, आधार कार्ड व बीपीएल कार्ड (जिनके पास है) दिखाने की अनिवार्यता हो। बिना ऐसा कोई प्रमाण दिखाये शराब बेचना और खरीदना दंडनीय अपराध हो।

इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा कि सरकार को ये भी पता चल जाएगा की जिन लोगों को सरकार आरक्षण, आर्थिक सहायता, सब्सिडी, फीस में छूट, नौकरियों में छूट, 2 रू.किलो गेहूं, मुफ्त आवास व बीपीएल के लाभ आदि दे रही है उनमे कितने लोग किस तरह शराब पर पैसा खर्च कर रहे हैं। कितने फर्जी लोग जो अपना नाम बीपीएल सूची में सम्मिलित करवाये बैठे हैं वो भी स्वतः ही पता चल जाएंगे । क्योंकि प्रतिमाह हजार डेढ़ हजार रुपया शराब पर खर्च करने वाला गरीबी फायदे लेने वका हकदार नहीं है।

शराब की बिक्री को कैशलेस करने के अन्य कई लाभ होंगे। जो लोग भारी मात्रा में एकमुश्त  शराब खरीदते हैं जैसे अपराधी, अंडरवलर्ड, सरकारी अधिकारी और पुलिसबल को शराब बांटने वले व्यापारी, माफिया व राजनीतिज्ञ इन सबकी भी पोल खुल जाएगी। क्योंकी इन धंधों में लगे लोगों को प्रायः भारी मात्रा में अपने कारिंदों को भी शराब बांटनी होती है। जब पैनकार्ड या आधार कार्ड पर शराब खरीदने की अनिवार्यता होगी तो थोक में शराब खरीदकर बाँटने वाले गलत धंधो में लगे लोग बेनकाब होंगे। क्योंकि तब उनसे इस थोक खरीद की वजह और हिसाब कभी भी माँगा जा सकता है। माना जा सकता है कि ऐसा करने से अपराध में कमी आयेगी।

उधर बड़े से बड़े शराब कारखानो में आबकारी शुल्क की चोरी धड़ल्ले से होती है। चोरी का ये कारोबार अरबों रुपये का होता है। मुझे याद है आज से 43 वर्ष पहले 1974 में मैं एक बार अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट मित्र के साथ शराब कारखाने के अतिथि निवास में रुका था। शाम होती ही वहां तैनात सभी आबकारी अधिकारी जमा हो गए और उन लोगों का मुफ्त की शराब और कबाब का दौर देर रात तक चलता रहा। चलते वख्त वो लोग अपने दोस्तों और  रिश्तेदारों को बाँटने के लिए अपने साथ मुफ्त की शराब की दो-दो बोतलें भी लेते गए। जिसका कोई हिसाब रिेकार्ड में दर्ज नहीं था। पूछने पर पता चला कि आबकारी विभाग के छोटे से बड़े अधिकारी, सचिव और मंत्री को मोटी रकम हर महीने रिश्वत में जाती है। जिसकी एवज में कारखानों में तैनात आबकारी अधिकारी शराब कारखानों के मालिकों के बनाये फर्जी दस्तावेजों पर स्वीकृति की मोहर लगा देते हैं। मतलब अगर 6 ट्रक शराब कारखाने से बाहर जाती है, तो आबकारी रिकॉर्ड में केवल एक ट्रक ही दर्ज होता है। ऐसे में कैशलेस बिक्री कर देने से पूरा तंत्र पकड़ा जायेगा। 

पर सवाल है कि क्या कोई भी सरकार इसे सख्ती से लागू कर पाएगी? गुजरात में ही लंबे समय से शराबबंदी लागू है। पर गुजरात के आप किसी भी शहर में शराब खरीद और पिला सकते है। तू डाल- डाल तो वो पात-पात।

शराब के कारोबार का ये तो था उजाला पक्ष। एक दूसरा अँधेरा पक्ष भी है। पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत से देश के हर इलाके में भारी मात्रा में नकली शराब बनती और बिकती है। जब कभी नकली शराब पीने वालों की सामूहिक मौत का कोई बड़ा कांड हो जाता है तब दो चार दिन मीडिया में हंगामा होता है, धड़ पकड़ होती है, पर फिर वही ढाक के तीन पात। इस कारोबार को कैशलेस कैसे बनाया जाय ये भी सरकार को सोचना होगा।                       
 
शराब के दुर्गणों को पीने वाला भी जानता है और बेचने वाला भी। कितने जीवन और कितने घर शराब बर्बाद कर देती है। पर ये भी शाश्वत सत्य है कि मानव सभ्यता के विकास के साथ ही शराब उसका अभिन्न अंग रही है। बच्चन की ‘मधुशाला’ से गालिब तक शराब की तारीफ में कसीदे कसने वालों की कमी नहीं रही। गम गलत करना हो, मस्ती करनी हो, किसी पर हत्या का जुनून चढ़ाना हो, दंगे करवाने हों, फौज को दुर्गम परिस्थियों में तैनात रखना हो और उनसे दुश्मन पर खूंखार हमला करवाना हो तो शराब संजीवनी का काम करती है। इसीलिये मुल्ला-संत कितने भी उपदेश देते रहें कुरान, ग्रन्थ साहिब या पुराण कितना भी ज्ञान दें, पर शराब हमेशा रही है और हमेशा रहेगी। जरूरत इसको नियंत्रित करने की होती है। फिर कैशलेस के दौर में शराब की बिक्री को क्यों न कैशलेस बना कर देखा जाय ? देखें क्या परिणाम आता है।

Monday, June 13, 2016

कुरान, ग्रंथसाहब व शास्त्रों को मानने वाले शराब क्यों पीते हैं ?

अन्ना हजार ने फौज की वर्दी उतारकर अपने गांव रालेगढ़ सिद्धी को सबसे पहले शराबमुक्त किया। क्योंकि परिवारों में दुख, दारिद्र और कलह का कारण शराब होती है। पर उनके ही स्वनामधन्य शिष्य दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में महिलाओं के लिए विशेष शराब की दुकानें खोल रहे हैं। जहां केवल महिलाएं शराब खरीदकर पी सकेंगी। जबकि वे खुद पंजाब, राजस्थान, गोवा, बिहार राज्यों में जाकर नीतीश कुमार के साथ और अपनी पार्टी की ओर से शराब के विरोध में जनसभाएं कर रहे हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। हर राजनेता के दो चेहरे होते हैं। केजरीवाल अब राजनेता बन गए हैं, तो उन्हें अधिकार है कि कहें कुछ और करें कुछ।

पर सवाल उठता है कि हमारी मौजूदा केंद्रीय सरकार, जो सनातन धर्म के मूल्यों का सम्मान करती है। उसकी शराबनीति क्या है ? ये तो मानी हुई बात है कि इस तपोभूमि भारत में विकसित हुए सभी धर्म जैसे सनातन धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म आदि हर किस्म के नशे का विरोध करते हैं। हमने आजादी की एक लंबी लड़ाई लड़ी। क्योंकि हम विदेशी भाषा से, विदेशियों की गुलामी से, शराब से और गौवंश की हत्या से आजादी चाहते थे। आजादी की लड़ाई में भारत के हर बड़े नेता और क्रांतिकारी ने भारत को शराबमुक्त बनाने का सपना देखा और वायदा भी किया। पर आज आजादी के 68 साल बाद भी देश का शराबमुक्त होना तो दूर शराब का मुक्त प्रचलन होता जा रहा है। मंदिर हो या गुरूद्वारा, मस्जिद हो या मठ, स्कूल हो या अस्पताल, सबके इर्द-गिर्द शराब की दुकानें धड़ल्ले से खुलती जा रही हैं। सरकार की आबकारी नीति शराब से कमाई करने की है। जबकि सच्चाई यह है कि शराब इस देश के करोड़ों गरीब लोगों को बदहाली के गड्ढे में धकेल देती है। कितनी महिलाएं और बच्चे शराबी मुखिया से प्रताड़ित होते हैं। गरीब मजदूर शराब पीकर असमय काल के गाल में चले जाते हैं। शराब की मांग को देखते हुए नकली शराब का कारोबार खुलकर चलता है और अक्सर सैकड़ों जानें चली जाती हैं।

देश की आधी आबादी महिलाओं की है, जो शराब नहीं पीती। 25 फीसदी आबादी बच्चों की है, जो शराब नहीं पीते। कुल देश की 25 फीसदी आबादी बची, जिसमें हम और आप जैसे भी बहुत बड़ी तादाद में हैं, जो शराब को छूते तक नहीं। कुल मिलाकर बहुत थोड़ा हिस्सा होगा, जो शराब पीता है। पर उस थोड़े से हिस्से के कारण पूरा समाज बर्बाद हो रहा है। महात्मा गांधी ने कहा था कि, ‘अगर मैं तानाशाह बन जाऊं, तो 24 घंटे के अंदर बिना मुआवजा दिए सारी शराब दुकानें बंद कर दूंगा।’, वही महात्मा गांधी, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी तक राष्ट्रपिता कहती हैं। हम अपने राष्ट्रपिता की कैसी संतान हैं कि उनकी भावनाओं की कद्र करना भी नहीं सीखे।

आज पंजाब में सबसे ज्यादा शराब का प्रचलन है। पर सिख धर्म को प्रतिपादित करने वाले मध्ययुगीन संत गुरूनानकदेव जी कहते हैं कि, ‘नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन-रात, ऐसा नशा न कीजिए, जो उतर जाए परभात’। तुम शराब पीते हो, तो सुबह को तुम्हारा नशा उतर जाता है। पर एक बार भगवतनाम का नशा करके तो देखो, जिंदगीभर नहीं उतरेगा। हमारा कौन-सा धर्म ग्रंथ या धर्मगुरू ऐसा है, जो हमें शराब पीने की इजाजत देता है। ये रमजान का पाक महीना है और इस्लाम में शराब हराम है।

इस लेख को कश्मीर को कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक अलग-अलग अखबारों में पढ़ने वाले मुसलमान भाई अपने सीने पर हाथ रखकर बताएं कि क्या उनमें से सभी ऐसे हैं, जिन्होंने कभी शराब नहीं पी ? अगर पीते हो, तो अपने को मुसलमान क्यों कहते हो ? शराबी न मुसलमान हो सकता है, न सिख हो सकता है, न हिंदू हो सकता है, न बौद्ध हो सकता है और न ही जैन हो सकता है। शराबी तो केवल एक हैवान हो सकता है। विड़बना देखिए कि हमारी सरकारें इंसान को देवता बनाने की बजाए हैवान बनाती हैं। दिनभर कमा। शाम को दारू पी। अपने घर जाकर औरत को पीट। बच्चों को भूखा मार और फिर बीमार पड़कर इलाज के लिए अपना घर भी गिरवी रख दे। जिससे शराब बनाने वालों की तिजोरियां भर जाएं। इतना ही नहीं, जहां शराब बनती है, वहां शराब के कारखानों से निकलने वाला जहर आसपास की नदियांे और पोखरों को जहरीला कर देता है। पर्यावरण को नष्ट कर देता है। पर हमारा पर्यावरण मंत्रालय इतना उदार है कि वो धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांधकर शराब के कारखानों को बेदर्दी से पर्यावरण का विनाश करने की खुली छूट देता है।

पर्यावरण मंत्रालय ही नहीं, खाद्य मंत्रालय भी इस साजिश का हिस्सा है। जान-बूझकर सरकारी गोदामों में खाद्यान्न को सड़ने दिया जाता है। फिर इस सड़े हुए अनाज को मिट्टी के दाम पर शराब निर्माताओं को बेच दिया जाता है। जो इस सड़े अनाज से शराब बनाते हैं और अरबों रूपया कमाते हैं। 

इस दिशा में एक सार्थक पहल ‘इंसानियत धर्म संगठन’ ने की है, जो देश के सभी धर्म के गुरूओं, संतों, सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित लोगों और विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं को एक मंच पर लाकर ‘शराबमुक्त भारत’ का अभियान चला रहा है। इस अभियान के संयोजक दास गौनिंदर सिंह कहते हैं कि, ‘यह चुनौती तो हमारे दबंग प्रधानमंत्री के सामने है, जो खुद आस्थावान हैं और शराब को हाथ नहीं लगाते और डंके की चोट पर जो चाहते हैं, वो कर देते हैं। उन्होंने गुजरात में शराब पहले ही प्रतिबंधित कर रखी थी, उन्हें अब इस नई जिम्मेदारी के साथ शराब की भयावहता को समझकर इसके अमूल-चूल नाश की कार्ययोजना बनानी चाहिए। ऐसा किया तो देश की तीन चैथाई आबादी मोदीजी के पीछे खड़ी होगी।’