Monday, May 19, 2025

‘ऑपरेशन सिंदूर’ और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय !


भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास लंबा और जटिल रहा है। दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर दशकों से चला आ रहा विवाद समय-समय पर हिंसक संघर्षों का कारण बनता रहा है। हाल ही में, अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया। इस हमले में 26 पर्यटकों की जान गई थी, जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। इसके जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए गए। इस घटनाक्रम ने दक्षिण एशिया में तनाव को और बढ़ा दिया। इस संदर्भ में, अमरीका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की युद्ध मामलों की विशेषज्ञ प्रोफेसर क्रिस्टीन फेयर ने एक टीवी साक्षात्कार में इस संघर्ष के कारणों, परिणामों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की।


प्रोफेसर फेयर ने अपने साक्षात्कार में बताया कि पाकिस्तान की सेना और उसका खुफिया तंत्र लंबे समय से आतंकी संगठनों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा आदि को समर्थन देता रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये संगठन न केवल कश्मीर में सक्रिय हैं, बल्कि पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तानी सेना इन संगठनों को रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखती है, जो भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने में उपयोगी हैं।



पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इस ऑपरेशन को भारत ने अपनी आत्मरक्षा का अधिकार बताया, जबकि पाकिस्तान ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला करार दिया। प्रोफेसर फेयर ने इस ऑपरेशन को भारत की बदलती रणनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि भारत अब पहले की तरह केवल कूटनीतिक जवाब तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह सैन्य कार्रवाई के जरिए आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश भी देना जानता है। हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम आतंकवाद को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते, क्योंकि पाकिस्तान की सेना के लिए भारत के खिलाफ संघर्ष अस्तित्वगत है।ये उनके वजूद का सवाल है। भारत का डर दिखा -दिखा कर ही पाकिस्तान अनेक देशों से आर्थिक मदद माँगता रहा है । 


प्रोफेसर फेयर ने पाकिस्तानी सेना की भारत के प्रति कार्यशैली पर एक किताब भी लिखी है। इस साक्षात्कार में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान की सेना अपने देश की नीति-निर्माण प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना भारत को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती है और इस धारणा को बनाए रखने के लिए वह आतंकी संगठनों का इस्तेमाल करती है। फेयर के अनुसार, उनकी यह नीति न केवल भारत के लिए खतरा है, बल्कि पाकिस्तान के आंतरिक स्थायित्व को भी कमजोर करती है।



उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तानी सेना के लिए कश्मीर विवाद केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उनकी वैचारिक और रणनीतिक पहचान का हिस्सा है। फेयर ने कहा कि पाकिस्तान की सेना तब तक आतंकवाद को समर्थन देती रहेगी, जब तक कि उसे भारत के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिलता रहेगा। भारत की हालिया सैन्य कार्रवाइयों, जैसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’, ने पाकिस्तान को यह संदेश दिया है कि भारत अब पहले की तरह निष्क्रिय नहीं रहेगा।



साक्षात्कार में प्रोफेसर फेयर ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की रणनीति की भी चर्चा की। उन्होंने डोवाल को एक ऐसे रणनीतिकार के रूप में वर्णित किया, जो भारत की सुरक्षा नीति को आक्रामक और सक्रिय दिशा में ले जा रहे हैं। फेयर ने कहा कि डोवाल की सक्रिय रक्षा की नीति ने भारत को पाकिस्तान के खिलाफ अधिक प्रभावी बनाया है। ऑपरेशन सिंदूर इस नीति का एक उदाहरण है, जिसमें भारत ने न केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि पाकिस्तान को कूटनीतिक और सैन्य रूप से भी जवाब दिया।


हालांकि, फेयर ने यह भी चेतावनी दी कि इस तरह की आक्रामक नीति के अपने जोखिम भी हैं। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान, दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और किसी भी सैन्य टकराव का बढ़ना दक्षिण एशिया में व्यापक विनाश का कारण बन सकता है। उनके अनुसार, भारत को अपनी रणनीति में संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि वह आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए, लेकिन साथ ही स्थिति को पूर्ण युद्ध की ओर बढ़ने से रोके।


10 मई 2025 को भारत और पाकिस्तान ने एक युद्धविराम की घोषणा की, जिसे अमेरिका की मध्यस्थता से संभव माना गया। हालांकि, भारत ने इसे द्विपक्षीय समझौता बताया और अमेरिकी हस्तक्षेप को कमतर करने की कोशिश की। प्रोफेसर फेयर ने इस युद्धविराम को अस्थायी करार दिया। उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तानी सेना अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करती, तब तक इस तरह के तनाव बार-बार सामने आएंगे। उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की कि पाकिस्तान भविष्य में फिर से भारत के खिलाफ आतंकी हमले कर सकता है, क्योंकि यह उसकी रणनीति का हिस्सा है।


फेयर के अनुसार अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका, इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की मध्यस्थता हमेशा दोनों देशों को स्वीकार्य नहीं होती, खासकर भारत के लिए, जो कश्मीर को अपना आंतरिक मामला मानता है।


प्रोफेसर क्रिस्टीन फेयर का टीवी साक्षात्कार भारत-पाकिस्तान संघर्ष की जटिलताओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। उनके विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि इसमें गहरे ऐतिहासिक, वैचारिक और रणनीतिक आयाम हैं। पाकिस्तानी सेना की आतंकवाद समर्थक नीतियां और भारत की आक्रामक जवाबी रणनीति इस क्षेत्र में स्थायी शांति की राह में बड़ी बाधाएं हैं।


हालांकि, फेयर का यह भी मानना है कि दोनों देशों के बीच संवाद और कूटनीति के रास्ते अभी पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। यदि पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव लाता है और भारत संतुलित रुख अपनाता है, तो भविष्य में तनाव को कम करने की संभावना बनी रह सकती है। लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को न केवल अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग भी करना होगा। 

Monday, May 12, 2025

घरेलू कर्मचारियों के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार बनें

भारत में घरेलू कर्मचारी, जिन्हें आमतौर पर नौकर, बाई, या हेल्पर के रूप में जाना जाता है, कई परिवारों के दैनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में, ये कर्मचारी घरों की सफाई, खाना पकाने, बच्चों की देखभाल, और अन्य आवश्यक कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। हालांकि, उनके साथ व्यवहार करने का तरीका अक्सर सामाजिक, आर्थिक, और नैतिक सवाल उठाता है। आज के माहौल में ज़रूरत इस बात की है कि घरेलू कर्मचारियों के साथ सम्मानजनक, निष्पक्ष, और संवेदनशील व्यवहार कैसे किया जाए ताकि एक स्वस्थ और सामंजस्यपूर्ण कार्य वातावरण बनाया जा सके।


घरेलू कर्मचारी भी, भले ही उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति अलग हो, सम्मान के हकदार होते हैं। भारत में, जहां सामाजिक वर्ग-भेद अभी भी प्रचलित है, यह महत्वपूर्ण है कि हम कर्मचारियों को केवल ‘नौकर’ के रूप में न देखें, बल्कि एक व्यक्ति के रूप में समझें, जिनके पास अपनी भावनाएं, जरूरतें, और आकांक्षाएं हैं। कर्मचारी को ‘बाई’ या ‘कामवाली’ जैसे सामान्य शब्दों के बजाय उनके नाम से पुकारें तो यह एक छोटा-सा कदम उनके प्रति सम्मान दर्शाता है। कठोर शब्दों या आदेशात्मक लहजे से बचें। उनकी मेहनत को सराहें और धन्यवाद देना न भूलें। उनके व्यक्तिगत जीवन, परिवार या आर्थिक स्थिति के बारे में अनावश्यक सवाल न पूछें। अगर वे स्वयं कुछ साझा करना चाहें, तो सहानुभूति के साथ सुनें।



घरेलू कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति अक्सर कमजोर होती है, और वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। इसलिए, उन्हें उचित पारिश्रमिक देना और उनके कार्य की सम्मानजनक स्थिति प्रदान करना हमारी जिम्मेदारी है। कई भारतीय शहरों में घरेलू कर्मचारियों के लिए न्यूनतम वेतन निर्धारित किया गया है। अपने क्षेत्र के नियमों का पालन करें और बाजार दर के अनुसार वेतन दें। यदि संभव हो, तो समय-समय पर उनकी वेतन  भी बढ़ाएं। कर्मचारियों को अनिश्चित समय तक काम करने के लिए मजबूर न करें। उनके साथ स्पष्ट रूप से कार्य का समय और जिम्मेदारियां तय करें। उन्हें साप्ताहिक अवकाश, त्योहारों पर छुट्टी, और आपातकालीन स्थिति में अवकाश देने का प्रावधान करें। बीमारी या पारिवारिक जरूरतों के लिए भी लचीलापन दिखाएं।



घरेलू कर्मचारी आपके लिए काम करते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा और आराम का ध्यान रखना आवश्यक है। सुनिश्चित करें कि आपके घर में कोई खतरनाक उपकरण या रसायन कर्मचारी की पहुंच में न हों। उन्हें उपकरणों का उपयोग करने की ट्रेनिंग दें। उन्हें पीने का साफ पानी, बैठने की उचित जगह और यदि वे लंबे समय तक काम करते हैं, तो भोजन भी उपलब्ध कराएं। गर्मियों में पंखे या कूलर और सर्दियों में गर्म कपड़े जैसी मौसमी सहायता देने पर भी विचार करें। यदि संभव हो, उनके लिए स्वास्थ्य बीमा या चिकित्सा खर्चों में सहायता प्रदान करें। यह न केवल धर्मार्थ कार्य है, बल्कि ऐसा करने से आपके और उनके बीच सौहार्द भी बढ़ता है।


घरेलू कर्मचारियों के साथ एक स्वस्थ संबंध बनाए रखने के लिए खुला और स्पष्ट संवाद जरूरी है। यदि कर्मचारी अपनी समस्याएं या सुझाव साझा करना चाहें, तो उनकी बात धैर्यपूर्वक सुनें। उनकी राय को महत्व दें। कर्मचारियों पर अनावश्यक शक न करें। यदि कोई गलती हो, तो उसे शांतिपूर्वक और सम्मानपूर्वक संबोधित करें। कर्मचारियों के साथ दोस्ताना व्यवहार अच्छा है, लेकिन अत्यधिक व्यक्तिगत होने से बचें। स्पष्ट सीमाएं दोनों पक्षों के लिए सहजता बनाए रखती हैं।

भारत में घरेलू कर्मचारियों के अधिकारों को लेकर कानून धीरे-धीरे बेहतर हो रहे हैं। नियोक्ता के रूप में, आपको इन कानूनों का पालन करना चाहिए। घरेलू कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन, यौन उत्पीड़न से सुरक्षा और कार्यस्थल पर भेदभाव से मुक्ति जैसे अधिकार प्राप्त हैं। इनका उल्लंघन न करें। 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को घरेलू कार्य के लिए नियुक्त करना अवैध है। यह सुनिश्चित करें कि आपके कर्मचारी वयस्क हों। यदि संभव हो तो कर्मचारी के साथ एक साधारण लिखित अनुबंध बनाएं, जिसमें वेतन, कार्य घंटे, अवकाश और उनकी जिम्मेदारियां स्पष्ट हों। जिससे बाद में किसी भी तरह का विवाद न हो।


घरेलू कर्मचारी भी हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। फिर भी वे अक्सर उपेक्षित रहते हैं। नियोक्ता के रूप में आप उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव भी ला सकते हैं। यदि आपके कर्मचारी या उनके बच्चे पढ़ना चाहते हैं, तो उन्हें स्कूल या प्रशिक्षण केंद्रों से जोड़ने में मदद करें। उनके कौशल विकास के लिए प्रोत्साहित करें। उन्हें अपने घर के छोटे-मोटे उत्सवों में शामिल करें, जैसे कि जन्मदिन या अन्य त्योहार। इससे उन्हें अपनापन महसूस होता है। यदि आप देखते हैं कि अन्य लोग घरेलू कर्मचारियों के साथ गलत व्यवहार कर रहे हैं, तो इसका विरोध करें और जागरूकता फैलाएं।


कभी-कभी कर्मचारियों के साथ आपके बीच मतभेद या अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। इनका समाधान शांतिपूर्वक और समझदारी से करना चाहिए। यदि कर्मचारी कोई गलती करता है, तो उसे डांटने के बजाय समझाएं और सुधरने का अवसर दें। ग्रामीण क्षेत्रों से आए कर्मचारी शहरी जीवनशैली से अपरिचित हो सकते हैं। उन्हें धैर्यपूर्वक समझाएं और प्रशिक्षित करें। यदि कोई बड़ा विवाद हो, तो परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य या तटस्थ व्यक्ति की मदद लें।


घरेलू कर्मचारियों के साथ व्यवहार केवल एक मालिक-कर्मचारी संबंध तक सीमित नहीं है। यह मानवता, करुणा, और सामाजिक जिम्मेदारी का प्रतीक है। भारत जैसे देश में, जहां सामाजिक और आर्थिक असमानताएं गहरी हैं, घरेलू कर्मचारियों के प्रति हमारा व्यवहार समाज में बदलाव लाने का एक छोटा लेकिन महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। सम्मान, उचित पारिश्रमिक, सुरक्षा, और संवाद के माध्यम से, हम न केवल उनके जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि अपने घरों में भी सकारात्मक और सामंजस्यपूर्ण वातावरण बना सकते हैं। आइए, हम सभी मिलकर एक ऐसी संस्कृति का निर्माण करें, जहां हर मेहनतकश व्यक्ति को वह सम्मान और अधिकार मिले, जिसका वह हकदार है।


आज से 50 वर्ष पूर्व हिंदी की एक प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका में लेख छपा था, ‘चाकरी धर्म सबसे मुश्किल’। उसकी कुछ पंक्तियां मुझे याद आ रही हैं। ‘आपका सेवक अगर ज़ोर से बोले तो आप कहते हैं कि सिर पर क्यो चढ़ा आ रहा है? धीरे से बोले तो आप कहेंगे कि ज़ोर से क्यों नहीं बोलता? क्या मुंह में दहीं जमा है? अगर वो काम में फुर्ती दिखाए और समझदारी की बात करे तो आप कहते हैं कि ये बड़ा चलता पुर्जा है। अगर काम में सुस्ती दिखाए और कम समझदारी की बात करे तो आप उसे अपमानजनक उपमा देकर सबके सामने उसका मज़ाक़ उड़ाते हैं।’ इसलिए कहते हैं कि सेवा का कार्य सबसे कठिन होता है।  

Monday, May 5, 2025

फिर गरजे केसीआर !


अलग तेलंगाना राज्य की स्थापना के लिए सफल संघर्ष करने वाले नेता के चंद्रशेखर राव लगभग दो वर्ष के बाद एक बार फिर से अपने पुराने गरजने वाले तेवर में दिखाई दिए। तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के अध्यक्ष  केसीआर ने हाल ही में अपना दो वर्षीय एकांतवास तोड़ा। नवंबर 2023 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद केसीआर ने खुद को सार्वजनिक कार्यक्रमों से दूर कर लिया था। इसके चलते उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों में भी दूरी बना ली थी। ज़मीन से जुड़े और संघर्षशील नेता का यूँ अचानक ख़ुद को सार्वजनिक जीवन से अलग कर लेना किसी के भी गले नहीं उतरा। 


केसीआर दो बार लगातार प्रभावशाली बहुमत से तेलंगाना के मुख्य मंत्री बने। इस दौरान उन्होंने तेलंगाना का बहुत तेज़ी से विकास किया। उनकी इस मेधा को देखकर दुनिया की मशहूर और बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने तेलंगाना में भारी निवेश किया। केसीआर ने व्यवस्थित शहरीकरण और निरंतर बिजली और पानी की आपूर्ति सुनिश्चित कर शहरी विकास को तीव्र गति प्रदान की, जिससे भवन निर्माण उद्योग को बहुत बढ़ावा मिला। आज हैदराबाद में ज़मीनों के भाव सबसे ज़्यादा हैं। किसानों, महिलाओं, युवाओं और दलितों के लिए उन्होंने अनेक लाभकारी योजनाएँ चालू कीं। सिंचाई के क्षेत्र में कालेश्वरम जैसी अतिमहत्वाकांक्षी योजना के प्रति दुनिया भर का ध्यान आकर्षित किया। इस सब के दौरान उनके विपक्षियों और आलोचकों ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। जिनकी परवाह किए बिना केसीआर एक जुनूनी की तरह अपने अभियान में जुटे रहे। पर उनसे एक भारी चूक हो गई। उन पर ये आरोप लगे कि वे ख़ुद को जनता और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से दूर रखते थे। शायद इसलिए 2023 में उन्हें जनता का समर्थन नहीं मिला और हार का सामना करना पड़ा। 



रामानुजाचार्य सम्प्रदाय के संत श्री चिन्नाजियार स्वामी की सलाह पर मेरा केसीआर से 2022 में परिचय हुआ। पहले परिचय में ही उन्होंने मुझे बहुत स्नेह और सम्मान दिया और इसके बाद पूरे वर्ष मुझे बार-बार हैदराबाद बुला कर विकास के अनेक विषयों पर मुझसे और मेरे साथियों से गहरा संवाद किया। मैंने उनमें एक दूरदृष्टि वाला नेता देखा। जिस तरह उन्होंने हैदराबाद से 60 किलोमीटर दूर यदाद्रीगिरीगुट्टा के इलाके में भगवान लक्ष्मी-नृसिंह देव का, नक्काशीदार ग्रेनाइट पत्थर का, पहाड़ के ऊपर, एक अत्यंत भव्य मंदिर बनवाया है, वह अकल्पनीय है। गौरतलब है कि इस मंदिर का सारा निर्माण कार्य आगम, वास्तु और पंचरथ शास्त्रों के सिद्धांतों पर किया गया है। जिनकी दक्षिण भारत के खासी मान्यता है। केसीआर की सनातन धर्म में गहरी आस्था है। इस मंदिर के चारों ओर उन्होंने तिरुपति जैसा सुंदर वैदिक नगर रातों-रात स्थापित कर दिया। जहाँ उत्तर भारत के मंदिरों का तेज़ी से बाज़ारीकरण होता जा रहा है, वहीं केसीआर ने मंदिर के परिसर और उसके आस-पास फल-फूल, मिठाई, कलाकृतियों या ख़ान-पान की एक भी दुकान नहीं बनने दी। क्योंकि उससे मंदिर की पवित्रता भंग होती। ये सारी व्यावसायिक गतिविधियां पहाड़ी की तलहटी में चारों ओर बसे नवनिर्मित नगर में ही होती है।  



तेलंगाना राज्य को बनवाने के बाद केसीआर नये राज्य के मुख्य मंत्री बन कर ही चुप नहीं बैठे। उन्होंने किसानी के अपने अनुभव और दूरदृष्टि से सीईओ की तरह दिन-रात एक करके, हर मोर्चे पर ऐसी अद्भुत कामयाबी हासिल की है कि इतने कम समय में तेलंगाना भारत का सबसे तेज़ी से विकसित होने वाला प्रदेश बन गया है। मैंने खुद तेलंगाना के विभिन्न अंचलों में जा कर तेलंगाना के कृषि, सिंचाई, कुटीर व बड़े उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ्य और समाज कल्याण के क्षेत्र में जो प्रगति देखी वो आश्चर्यचकित करने वाली है। मुझे आश्चर्य इस बात का हुआ कि दिल्ली में चार दशक से राजनैतिक पत्रकारिता करने के बावजूद न तो मुझे केसीआर की इन उपलब्धियों का कोई अंदाज़ा था और न ही केसीआर के बारे में सामान्य से ज़्यादा कुछ भी पता था।



बीते सप्ताह केसीआर ने अपनी पार्टी की रजत जयंती के उपलक्ष्य में वारंगल जिले के एलकथुर्थी गांव में एक विशाल रैली का आयोजन किया। इस रैली में अपार जनसमूह के आने से यह बात सामने आई कि जिन वोटरों ने दो बरस पहले केसीआर को विधान सभा और लोक सभा चुनावों में नकार दिया था वे अब फिर लौट कर केसीआर के झंडे तले खड़े हो गए हैं। हैदराबाद और शेष तेलंगाना में अपने संपर्कों से तहक़ीक़ात करने पर पता चला कि तेलंगाना की मौजूदा कांग्रेस सरकार दो वर्षों में ही अपनी लोकप्रियता खो चुकी है। इसका मुख्य कारण ये बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने जो दर्जनों वादे तेलंगाना की जनता से किए थे उनमें से ज़्यादातर को वो पूरा नहीं कर पाई। जबकि पड़ोसी राज्य कर्नाटक में कांग्रेस ने अपने काफ़ी वादे पूरे किए हैं। इस रैली में केसीआर कांग्रेस पर जमकर बरसे। केसीआर ने रैली में जनता से पूछा कि क्या अपने वादों के मुताबिक़ कांग्रेस सरकार ने आपको डबल पेंशन दी? क्या छात्रों को मुफ्त स्कूटी दिए? किसानों के कर्ज माफ किए? इस पर जनता का ज़ोर-शोर से जवाब था ‘नहीं’। वहीं केसीआर ने अपने कार्यकाल में शुरू की गई रायथु बंधु जैसी कल्याणकारी पहलों और सिंचाई की बड़ी परियोजनाओं पर प्रकाश डाला। उल्लेखनीय है कि तेलंगाना का कृषि उत्पादन केसीआर के शासन काल में दुगना हो गया। इस विशाल रैली ने न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं को उत्साहित किया, बल्कि यह भी संदेश दिया कि केसीआर और उनकी पार्टी अब दोबारा से तेलंगाना की जनता के बीच अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। 



इस जनसभा में केसीआर ने कांग्रेस को ‘तेलंगाना का नंबर एक खलनायक’ करार दिया। हालांकि वे स्वयं दशकों तक कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे पर इस रैली में उन्होंने आरोप लगाया कि 1956 में कांग्रेस ने तेलंगाना को आंध्र प्रदेश के साथ जबरन मिला दिया था, जिसके खिलाफ तेलंगाना की जनता ने लंबा संघर्ष किया। उन्होंने न केवल कांग्रेस की नीतियों की आलोचना की, बल्कि वर्तमान मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने 420 से अधिक वादे किए, लेकिन राज्य की वित्तीय स्थिति का आकलन किए बिना किए गए ये वादे खोखले साबित हुए। इसके अलावा, उन्होंने बीजेपी के हिंदुत्व एजेंडे का जवाब देते हुए भगवान राम का उल्लेख किया और कहा कि उनकी प्रेरणा ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ थी, जिसने उन्हें तेलंगाना आंदोलन शुरू करने के लिए प्रेरित किया। यह उनके हिंदू वोट बैंक को जोड़ने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। रैली में केसीआर ने नक्सलियों और आदिवासी युवाओं का भी जिक्र किया, जो तेलंगाना के उत्तरी जिलों में महत्वपूर्ण मतदाता वर्ग हैं। उन्होंने बीजेपी पर आदिवासियों के प्रति ‘लोकतांत्रिक’ रवैया न अपनाने का आरोप लगाया। यह रणनीति बीआरएस के ग्रामीण क्षेत्रों में खिसकते जनाधार को फिर से मजबूत करने की कोशिश थी।

सोशल मीडिया पर भी इस रैली की व्यापक चर्चा हुई। एक यूजर ने लिखा, केसीआर तेलंगाना के आइकन हैं, उनकी लोकप्रियता अभी भी बरकरार है। 2023 की हार के बाद उनकी यह वापसी बीआरएस को फिर से संगठित करने और आगामी चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी को चुनौती देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगी। 

Monday, April 28, 2025

डिजिटल युग में बच्चे गुस्सैल और आक्रामक क्यों?

आज के डिजिटल युग में, बच्चों का व्यवहार और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। माता-पिता और शिक्षक अक्सर यह शिकायत करते हैं कि बच्चे पहले की तुलना में अधिक गुस्सैल, चिड़चिड़े और आक्रामक हो गए हैं। इसका एक प्रमुख कारण बच्चों का कम उम्र में मोबाइल फोन और इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग है। प्रारंभिक स्क्रीन टाइम और डिजिटल दुनिया बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप उनमें गुस्सा और आक्रामकता बढ़ रही है। 


आज के बच्चे ‘डिजिटल नेटिव्स’ हैं, यानी वे उस दुनिया में पैदा हुए हैं जहां स्मार्टफोन, टैबलेट और इंटरनेट रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। पहले जहां बच्चे खेल के मैदान में दोस्तों के साथ समय बिताते थे, वहीं अब वे मोबाइल स्क्रीन पर गेम खेलने, वीडियो देखने और सोशल मीडिया पर समय बिताने में व्यस्त रहते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 6-12 वर्ष की आयु के बच्चे औसतन प्रतिदिन 2-4 घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं। ये आंकड़ा किशोरों में और भी अधिक है। 


हालांकि तकनीक ने शिक्षा और मनोरंजन के नए द्वार खोले हैं, लेकिन इसका अत्यधिक और अनियंत्रित उपयोग बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि कम उम्र में मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग बच्चों के मस्तिष्क के विकास, भावनात्मक नियंत्रण और सामाजिक कौशलों को प्रभावित करता है।


गुस्सा और आक्रामकता के कारण बच्चों का मस्तिष्क विकास के महत्वपूर्ण चरण में होता है और इस दौरान स्क्रीन टाइम का अत्यधिक उपयोग उनके मस्तिष्क के ‘प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स’ को प्रभावित करता है, जो भावनाओं को नियंत्रित करने और निर्णय लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मोबाइल गेम्स और सोशल मीडिया में तेजी से बदलते दृश्य और तत्काल पुरस्कार (जैसे गेम में जीत या लाइक्स का मिलना) बच्चों के मस्तिष्क में ‘डोपामाइन’ का स्तर बढ़ाते हैं। इससे वे तुरंत संतुष्टि की उम्मीद करने लगते हैं और जब वास्तविक जीवन में ऐसा नहीं होता, तो वे निराश, चिड़चिड़े और गुस्सैल हो जाते हैं। 



इंटरनेट पर उपलब्ध कई गेम्स और वीडियो में हिंसा, आक्रामकता और अनुचित व्यवहार को दर्शाया जाता है। बच्चे, जिनका दिमाग अभी परिपक्व नहीं हुआ है, इन सामग्रियों को देखकर हिंसक व्यवहार को सामान्य मानने लगते हैं। उदाहरण के लिए कई लोकप्रिय मोबाइल गेम्स में युद्ध, लड़ाई और विनाश को बढ़ावा दिया जाता है, जो बच्चों में आक्रामक प्रवृत्तियों को बढ़ा सकता है। 


मोबाइल और इंटरनेट के अत्यधिक उपयोग से बच्चे वास्तविक दुनिया में अपने दोस्तों और परिवार से कट जाते हैं। वे सोशल मीडिया पर तो सक्रिय रहते हैं, लेकिन वास्तविक सामाजिक संपर्क की कमी उन्हें अकेला और उदास बनाती है। यह अकेलापन और भावनात्मक खालीपन अक्सर गुस्से और आक्रामकता के रूप में व्यक्त होता है।



देर रात तक मोबाइल फोन का उपयोग, विशेष रूप से नीली रोशनी का संपर्क, बच्चों की नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करता है। अपर्याप्त नींद बच्चों में चिड़चिड़ापन, तनाव और गुस्से को बढ़ाती है। एक शोध के अनुसार, जो बच्चे रात में अधिक समय स्क्रीन पर बिताते हैं, उनमें भावनात्मक अस्थिरता और आक्रामक व्यवहार की संभावना अधिक होती है।



सोशल मीडिया बच्चों में प्रतिस्पर्धा की भावना को बढ़ाता है। वे दूसरों की ‘परफेक्ट’ जिंदगी, लुक्स या उपलब्धियों को देखकर खुद को कमतर महसूस करते हैं। यह आत्मसम्मान में कमी और असंतोष का कारण बनता है, जो गुस्से और आक्रामकता के रूप में सामने आता है।


प्रारंभिक उम्र में मोबाइल और इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग केवल गुस्सा और आक्रामकता तक सीमित नहीं है। इसके दीर्घकालिक प्रभाव भी चिंताजनक हैं। बच्चों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम हो रही है, उनकी रचनात्मकता प्रभावित हो रही है और वे भावनात्मक रूप से कमजोर हो रहे हैं। इसके अलावा, लगातार स्क्रीन टाइम के कारण शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ रहा है, जैसे कि मोटापा, आंखों की समस्याएं और खराब मुद्रा।


इस समस्या से निपटने के लिए माता-पिता, शिक्षकों और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है। निम्नलिखित कुछ सुझाव हैं जो बच्चों में गुस्सा और आक्रामकता को कम करने में मदद कर सकते हैं। माता-पिता को बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नजर रखनी चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 2-5 वर्ष की आयु के बच्चों को प्रतिदिन 1 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए। बड़े बच्चों के लिए भी उम्र के अनुसार समय सीमा निर्धारित करें। बच्चों को खेल, कला, संगीत और पढ़ने जैसी गतिविधियों में शामिल करें। ये न केवल उनकी रचनात्मकता को बढ़ाते हैं, बल्कि उन्हें भावनात्मक रूप से स्थिर भी बनाते हैं। 


माता-पिता को बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना चाहिए। साथ में भोजन करना, कहानियां सुनाना या बाहर घूमने जाना बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। बच्चों को ऐसी सामग्री देखने के लिए प्रोत्साहित करें जो शिक्षाप्रद और सकारात्मक हो। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चे हिंसक गेम्स या वीडियो से दूर रहें। बच्चों को इंटरनेट के सुरक्षित और जिम्मेदार उपयोग के बारे में शिक्षित करें। उन्हें सोशल मीडिया के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताएं। यदि बच्चा लगातार गुस्सा या आक्रामक व्यवहार दिखा रहा है, तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लें। प्रारंभिक हस्तक्षेप से समस्या को बढ़ने से रोका जा सकता है।


बच्चों के लिए ही नहीं हम सबके लिए भी ये चेतावनी है कि लगातार डिजिटल उपकरणों का उपयोग मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है। इसके लिए ‘डिजिटल डिटॉक्स’ करने के जरूरत होती है। जो  तनाव कम करने, नींद सुधारने और वास्तविक रिश्तों को मजबूत करने में मदद करता है। यह एकाग्रता बढ़ाता है और बच्चों को स्क्रीन से दूर प्रकृति व खेलों से जोड़ता है। समय-समय पर ‘डिजिटल डिटॉक्स’ अपनाकर हम और हमारे बच्चे संतुलित और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।

मोबाइल और इंटरनेट का उपयोग आधुनिक जीवन का एक अभिन्न अंग है, लेकिन इसका बच्चों पर होने वाला प्रभाव गंभीर है। यह माता-पिता और समाज की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को डिजिटल दुनिया के नकारात्मक प्रभावों से बचाएं और उनके समग्र विकास को प्रोत्साहित करें। संतुलित जीवनशैली, सकारात्मक वातावरण और प्रेमपूर्ण देखभाल के साथ, हम बच्चों को न केवल गुस्से और आक्रामकता से मुक्त कर सकते हैं, बल्कि उन्हें एक स्वस्थ और खुशहाल भविष्य भी दे सकते हैं। 

Monday, April 21, 2025

अमेरिकी टैरिफ नीतियों का भारत और विश्व पर प्रभाव

वैश्विक व्यापार में संरक्षणवाद का दौर एक बार फिर से उभर रहा है। अप्रैल 2025 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा घोषित पारस्परिक टैरिफ (रेसीप्रोकल टैरिफ) नीति ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला दिया है। इस नीति के तहत, भारत पर 27% का टैरिफ लगाया गया है, जबकि अन्य देशों जैसे चीन (34%), वियतनाम (46%), और यूरोपीय संघ (20%) पर भी भारी टैरिफ थोपे गए हैं। यह नीति अमेरिका के व्यापार घाटे को कम करने और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लागू की गई है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम भारत और विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ रहे हैं। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री  प्रो. अरुण कुमार इस इस नीति के प्रभावों का विश्लेषण करते हुए बताते है कि अमेरिका ने अपनी टैरिफ नीति को पारस्परिक करार देते हुए कहा है कि यह अन्य देशों द्वारा अमेरिकी वस्तुओं पर लगाए गए टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं (जैसे मुद्रा हेरफेर और नियामक अंतर) के जवाब में उठाया गया कड़ा कदम है। 



ट्रम्प प्रशासन का दावा है कि भारत अमेरिकी वस्तुओं पर 52% का प्रभावी टैरिफ लगाता है, जिसके जवाब में भारत से आयात पर 27% का टैरिफ लगाया गया है। हालांकि, इस गणना की सटीकता पर सवाल उठाए गए हैं। मिंट की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका ने व्यापार घाटे और आयात मूल्य के आधार पर टैरिफ दरें तय कीं, जो कि विश्व व्यापार संगठन के डेटा से मेल नहीं खाती। भारत का अमेरिकी वस्तुओं पर औसत टैरिफ दर 2023 में केवल 9.6% था, जो अमेरिकी दावों से काफी कम है।


इस नीति में दो स्तर के टैरिफ शामिल हैं: 5 अप्रैल से सभी देशों पर 10% का आधारभूत टैरिफ और 9 अप्रैल से देश-विशिष्ट टैरिफ। कुछ वस्तुओं जैसे फार्मास्यूटिकल्स, अर्धचालक और ऊर्जा उत्पादों को टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे भारत के कुछ क्षेत्रों को राहत मिली है। भारत, जो अमेरिका का एक प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, 2024 में $80.7 बिलियन का माल अमेरिका को निर्यात करता था। 27% टैरिफ से भारत के कई क्षेत्र प्रभावित होंगे, लेकिन कुछ क्षेत्रों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ भी मिल सकता है। प्रो. अरुण कुमार के अनुसार, इस नीति का प्रभाव अल्पकालिक और दीर्घकालिक दोनों रूपों में देखा जाएगा।



उल्लेखनीय है कि भारत के 14 बिलियन डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात और 9 बिलियन डॉलर के रत्न-आभूषण निर्यात पर टैरिफ का भारी असर पड़ेगा। ये क्षेत्र अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं और लागत में वृद्धि से उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो सकती है। इसके साथ ही मछली, झींगा और प्रसंस्कृत समुद्री खाद्य उद्योग जो कि 2.58 बिलियन डॉलर का है इन पर 27.83% का टैरिफ अंतर भारत की प्रतिस्पर्धा को कम करेगा, खासकर जब पहले से ही अमेरिका में एंटी-डंपिंग शुल्क लागू हैं। 


उधर भारतीय वस्त्र उद्योग को मिश्रित प्रभाव का सामना करना पड़ेगा। हालांकि भारत पर टैरिफ वियतनाम (46%) और बांग्लादेश (37%) की तुलना में कम है, फिर भी बाजार और मुनाफे में कमी का जोखिम बना रहेगा। वहीं भारत के 9 बिलियन डॉलर के फार्मास्यूटिकल निर्यात को टैरिफ से छूट दी गई है, जिससे इस क्षेत्र को राहत मिली है। भारतीय फार्मा कंपनियों के शेयरों में 5% की वृद्धि देखी गई। हालांकि सॉफ्टवेयर सेवाएं प्रत्यक्ष रूप से टैरिफ से प्रभावित नहीं हैं, लेकिन वीजा प्रतिबंध और व्यापार तनाव भारतीय आईटी कंपनियों जैसे टीसीएस और इन्फोसिस के लिए चुनौतियां पैदा कर सकते हैं। प्रो. कुमार का मानना है कि भारत को कुछ क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ मिल सकता है, क्योंकि चीन और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्धी देशों पर अधिक टैरिफ लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए परिधान और जूते जैसे क्षेत्रों में भारत अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।



टैरिफ के कारण भारत के निर्यात में 30-33 बिलियन डॉलर की कमी आ सकती है। अर्थशास्त्रियों ने भारत की 2025-26 की विकास दर को 20-40 आधार पर कम करके 6.1% कर दिया है। हालांकि, भारत सरकार का दावा है कि यदि तेल की कीमतें 70 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रहती हैं, तो 6.3-6.8% की विकास दर हासिल की जा सकती है।


अमेरिकी टैरिफ नीति का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। प्रो. कुमार के अनुसार, यह नीति वैश्विक व्यापार प्रणाली में 1930 के स्मूट-हॉले टैरिफ एक्ट के समान व्यवधान पैदा कर सकती है। टैरिफ से वैश्विक व्यापार की गति धीमी होगी, जिससे आर्थिक विकास प्रभावित होगा। जेपी मॉर्गन ने चेतावनी दी है कि यदि यही टैरिफ नीति लागू रहती है, तो अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी में आ सकती है। इससे आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ेंगी, जिससे अमेरिका में मुद्रास्फीति बढ़ सकती है। बोस्टन फेडरल रिजर्व बैंक का अनुमान है कि टैरिफ से कोर पीसीई मुद्रास्फीति में 0.5-2.2% की वृद्धि हो सकती है। वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट और मुद्रा अस्थिरता पहले ही देखी जा चुकी है।


चीन, यूरोपीय संघ और अन्य देशों ने अमेरिकी वस्तुओं पर जवाबी टैरिफ की घोषणा की है, जिससे वैश्विक व्यापार युद्ध की आशंका बढ़ गई है। इससे आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित होंगी और व्यवसायों को लागत बढ़ने का सामना करना पड़ेगा। कम प्रति व्यक्ति आय वाले देश जैसे कंबोडिया (50% टैरिफ) सबसे अधिक प्रभावित होंगे। इससे अमेरिका की विकासशील देशों में साख को नुकसान हो सकता है।


प्रो. कुमार का सुझाव है कि भारत को इस संकट को अवसर में बदलने के लिए रणनीतिक कदम उठाने चाहिए।भारत को अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर तेजी से काम करना चाहिए। 23 बिलियन डॉलर के अमेरिकी आयात पर टैरिफ कम करना एक शुरुआत हो सकती है। यूरोपीय संघ, आसियान और मध्य पूर्व जैसे वैकल्पिक बाजारों पर ध्यान देना चाहिए। भारत-ईयू मुक्त व्यापार समझौते को तेज करना महत्वपूर्ण होगा। आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसी पहलों को मजबूत करके घरेलू उत्पादन और खपत को बढ़ावा देना चाहिए। छोटे और मध्यम उद्यमों के लिए सब्सिडी, कर राहत और निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं को लागू करना चाहिए।


अमेरिकी टैरिफ नीति ने वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता का माहौल पैदा किया है। भारत के लिए यह एक चुनौती होने के साथ-साथ अवसर भी है। प्रो. कुमार का मानना है कि यदि भारत रणनीतिक रूप से कार्य करे, तो वह न केवल इन टैरिफों के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकता है, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को भी मजबूत कर सकता है। दीर्घकालिक दृष्टिकोण और सुधारों के साथ, भारत इस संकट को एक नए आर्थिक युग की शुरुआत में बदल सकता है। 

Monday, April 14, 2025

अचानक मौतें क्या 'कोविशील्ड' के कारण हो रही हैं?


बिना किसी बीमारी या चेतावनी के लगातार अचानक युवाओं की मृत्यु क्यों हो रही है? क्या ये कोविशील्ड के वैक्सीनेशन का दुष्परिणाम है? क्योंकि कोविशील्ड बनाने वाली कंपनी ने सर्वोच्च अदालत में अब यह स्वीकार कर लिया है कि उनके इस वैक्सीन से ख़ून के थक्के जमने की संभावना होती है। पिछले हफ़्ते क्रिकेट खेलते एक युवा की अचानक मौत हो गई। अपने विदाई समारोह में कॉलेज में भाषण देते-देते एक 20 वर्ष की महिला अचानक मर गई। रामलीला में मंच पर हनुमान जी का किरदार निभाने वाले कलाकार की अचानक मंच पर ही मृत्यु हो गई। अपने विवाह में पति के गले में जयमाल डालते-डालते नववधू मर कर गिर गई। 





कोविड के बाद से पूरे देश में ऐसी मौतों की बाढ़ सी आ गई है। जिन जागरूक डॉक्टर, वकील और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कोविशील्ड वैक्सीन की क्षमता पर संदेह किया था और ये आरोप लगाया था कि बिना सही परीक्षण किए, जल्दबाजी में, प्रशासनिक दबाव बना कर जिस तरह पूरे देश में कोविशील्ड का टीकाकरण किया गया इससे लोगों की जान को भारी खतरा पैदा हो गया। मुंबई उच्च न्यायालय के वकील निलेश ओझा ने कोविशील्ड कंपनी और भारत सरकार के विरुद्ध मुंबई उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में जनहित के मुकदमे करके वैक्सीन बनाने वाली कंपनी पर दबाव बनाया जिसके चलते इस कंपनी ने अपने वैक्सीन के दुष्परिणामों की संभावनाओं को अदालत में स्वीकार किया। 



इससे यह सिद्ध हो गया कि ये वैक्सीन बिना परीक्षण पूरा किए ही जल्दबाज़ी में पूरे देश पर थोप दिया गया। इन लोगों को और देश के तमाम जागरूक लोगों को इस बात से भारी नाराज़गी है कि भारत की मौजूदा सरकार, ऐसी अचानक हो रही मौतों की न तो संख्या जारी कर रही है और न ही उसके कारणों की जांच करवा रही है। यह बहुत चिंता की बात है। इसी समूह से जुड़ी डॉ सुसन राज जो मध्य प्रदेश के राजनन्दगांव ज़िले में रहती हैं, उनका दावा है कि सारी मौतें कोविशील्ड वैक्सीन के कारण ही हो रही हैं। डॉ सुसन राज हर उस व्यक्ति को, जिसने ये टीका लगवाया था, चेतावनी दे रही हैं कि वे यथा शीघ्र अपने शरीर को ‘डिटॉक्स’ (विषमुक्त) कर लें जिससे कोविशील्ड वैक्सीन के संभावित दुष्परिणामों से बचा जा सके। ‘डिटॉक्स’ करने की ट्रेनिंग वो ज़ूम कॉल पर दुनिया भर के हज़ारो लोगों को दे चुकी हैं। उनकी यह प्रक्रिया इतनी सरल है कि कोई भी व्यक्ति देश-दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न बैठा हो वो डॉ सुसन राज से ज़ूम कॉल पर ख़ुद को विषमुक्त करने का तरीका सीख सकता है। ये तकनीक बहुत सरल है और घर बैठे अपना ट्रीटमेंट किया जा सकता है। 



एक रोचक तथ्य यह है कि हमारे आपके सामाजिक दायरे में जिन लोगों ने कोविशील्ड वैक्सीन नहीं लगवाई थी वे आज भले चंगे हैं। जिन्होंने लगवाई थी उनमें से बहुत सारे लोगों को अजीबो-गरीब बीमारियां शुरू हो गई हैं। मेरे ही परिवार में मुझ समेत कई लोगों को ऐसी बीमारियां हो गई हैं जिनका कोई कारण समझ में नहीं आता। क्योंकि हम सब एक संतुलित शाकाहारी सात्विक जीवन जीते हैं। हालांकि एक पक्ष ऐसा भी है जो मानता है कि इन मौतों और बीमारियों का वैक्सीन से कोई लेना-देना नहीं है। पर ये पक्ष इन मौतों और अचानक पनप रही इन बीमारियों का कारण बताने में असमर्थ हैं। इसलिए डॉ सुसन सबको सलाह देती हैं कि वे अपने शरीर को वैक्सीन के विष से मुक्त कर लें और स्वस्थ जीवन जियें। 



डॉ सुसन के अनुसार हमारी कोशिकाएँ सात तरीकों से खुद को डिटॉक्स करती हैं। पाँच रासायनिक डिटॉक्स हैं, एक यांत्रिक डिटॉक्स है और एक विद्युत डिटॉक्स है। ऑक्सीकरण और जलयोजन पाँच रासायनिक डिटॉक्स में से दो हैं, जिनका उपयोग कोशिकाएँ करती हैं। आमतौर पर यह साँस लेने, जूस और पानी के द्वारा किया जाता है। इन दो कार्यों का समर्थन करने के लिए, हम क्या कर सकते हैं, एक घोल तैयार करें जिसमें ऑक्सीजन के 2 अणु नमक से क्लोराइड के एक अणु के साथ बंधते हैं, और इसे पानी में घोलते हैं। यह ऑक्सीजन युक्त पानी बन जाता है, जो ऑक्सीकरण द्वारा बहुत कुशल डिटॉक्स करता है।


एंटीऑक्सीडेंट भोजन, जड़ी-बूटियाँ और तेल हैं जिनमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज, कार्ब्स और वसा होते हैं। ये वस्तुएँ कोशिका संरचना का निर्माण करके डिटॉक्स करती हैं। एंडोक्राइन स्राव को मन की शक्ति द्वारा प्रबंधित किया जाता है जो विचारों में परिवर्तित होने वाली सूचनाओं और फिर सकारात्मक भावनाओं से जुड़कर अच्छा महसूस कराने वाले न्यूरोट्रांसमीटर का उत्पादन करके बनाया जाता है, जो 90% बीमारियों को ठीक कर सकता है। ऑटोफैगी स्वयं खाने का उपयोग करके डिटॉक्स करता है। यह उपवास में होता है। यहाँ वह डिटॉक्स है जिसे एकीकृत सेलुलर डिटॉक्स थेरेपी में जोड़ा जाता है। 


गौरतलब है कि आज कल के आधुनिक जीवन की भागदौड़ में हमारा मन और शरीर अक्सर तनाव, नकारात्मकता और अनावश्यक बोझ से भर जाता है। ‘सेल्फ डिटॉक्स’ एक ऐसी प्रक्रिया है, जो हमें शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से शुद्ध करने में मदद करती है। यह न केवल हमें तरोताजा करती है, बल्कि जीवन में स्पष्टता और संतुलन भी लाती है। सेल्फ डिटॉक्स की शुरुआत शरीर से होनी चाहिए। इसके लिए संतुलित आहार, पर्याप्त पानी का सेवन और नियमित व्यायाम जरूरी है। जंक फूड, शराब और कैफीन से दूरी बनाकर शरीर को हल्का और ऊर्जावान बनाया जा सकता है। प्राकृतिक खाद्य पदार्थ जैसे फल, सब्जियां और साबुत अनाज शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं। योग और प्राणायाम भी शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं। 


हमारा दिमाग सोशल मीडिया, नकारात्मक खबरों और अनावश्यक विचारों से भरा रहता है। मानसिक डिटॉक्स के लिए ध्यान और माइंडफुलनेस का अभ्यास प्रभावी है। रोजाना कुछ समय शांत बैठकर अपने विचारों को व्यवस्थित करें। अनावश्यक जानकारी से दूरी बनाएं और सकारात्मक किताबें पढ़ें। डिजिटल डिटॉक्स, यानी फोन और इंटरनेट से ब्रेक लेना, भी मानसिक शांति देता है। नकारात्मक भावनाएं जैसे गुस्सा, ईर्ष्या या दुख हमें कमजोर बनाती हैं। इनसे मुक्ति के लिए आत्म-चिंतन उपयोगी हैं। अपनी भावनाओं को स्वीकार करें और उन्हें व्यक्त करने का स्वस्थ तरीका ढूंढें। अपनों के साथ समय बिताएं और कृतज्ञता का अभ्यास करें। इन तमाम तरीकों से हम अपने शरीर से  कोविशील्ड वैक्सीन के कारण उत्पन्न विष को निकाल सकते हैं और इसके संभावित दुष्परिणामों से बच सकते हैं। डॉ सुसन राज हों या समाज के अन्य जागरूक लोग, हमें ऐसा करने की सलाह दे रहे हैं। हम माने या न मानें ये हम ओर निर्भर है।