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Monday, May 19, 2025

‘ऑपरेशन सिंदूर’ और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय !


भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास लंबा और जटिल रहा है। दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर दशकों से चला आ रहा विवाद समय-समय पर हिंसक संघर्षों का कारण बनता रहा है। हाल ही में, अप्रैल 2025 में पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर पहुंच गया। इस हमले में 26 पर्यटकों की जान गई थी, जिसके लिए भारत ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। इसके जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले किए गए। इस घटनाक्रम ने दक्षिण एशिया में तनाव को और बढ़ा दिया। इस संदर्भ में, अमरीका के जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की युद्ध मामलों की विशेषज्ञ प्रोफेसर क्रिस्टीन फेयर ने एक टीवी साक्षात्कार में इस संघर्ष के कारणों, परिणामों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की।


प्रोफेसर फेयर ने अपने साक्षात्कार में बताया कि पाकिस्तान की सेना और उसका खुफिया तंत्र लंबे समय से आतंकी संगठनों, जैसे लश्कर-ए-तैयबा आदि को समर्थन देता रहा है। उन्होंने स्पष्ट किया कि ये संगठन न केवल कश्मीर में सक्रिय हैं, बल्कि पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा परिदृश्य में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनके अनुसार, पाकिस्तानी सेना इन संगठनों को रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखती है, जो भारत के खिलाफ छद्म युद्ध छेड़ने में उपयोगी हैं।



पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में नौ आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इस ऑपरेशन को भारत ने अपनी आत्मरक्षा का अधिकार बताया, जबकि पाकिस्तान ने इसे अपनी संप्रभुता पर हमला करार दिया। प्रोफेसर फेयर ने इस ऑपरेशन को भारत की बदलती रणनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि भारत अब पहले की तरह केवल कूटनीतिक जवाब तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह सैन्य कार्रवाई के जरिए आतंकवाद के खिलाफ कड़ा संदेश भी देना जानता है। हालांकि, उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम आतंकवाद को पूरी तरह खत्म नहीं कर सकते, क्योंकि पाकिस्तान की सेना के लिए भारत के खिलाफ संघर्ष अस्तित्वगत है।ये उनके वजूद का सवाल है। भारत का डर दिखा -दिखा कर ही पाकिस्तान अनेक देशों से आर्थिक मदद माँगता रहा है । 


प्रोफेसर फेयर ने पाकिस्तानी सेना की भारत के प्रति कार्यशैली पर एक किताब भी लिखी है। इस साक्षात्कार में उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पाकिस्तान की सेना अपने देश की नीति-निर्माण प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी सेना भारत को अपने अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा खतरा मानती है और इस धारणा को बनाए रखने के लिए वह आतंकी संगठनों का इस्तेमाल करती है। फेयर के अनुसार, उनकी यह नीति न केवल भारत के लिए खतरा है, बल्कि पाकिस्तान के आंतरिक स्थायित्व को भी कमजोर करती है।



उन्होंने यह भी बताया कि पाकिस्तानी सेना के लिए कश्मीर विवाद केवल एक क्षेत्रीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह उनकी वैचारिक और रणनीतिक पहचान का हिस्सा है। फेयर ने कहा कि पाकिस्तान की सेना तब तक आतंकवाद को समर्थन देती रहेगी, जब तक कि उसे भारत के खिलाफ अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिलता रहेगा। भारत की हालिया सैन्य कार्रवाइयों, जैसे ‘ऑपरेशन सिंदूर’, ने पाकिस्तान को यह संदेश दिया है कि भारत अब पहले की तरह निष्क्रिय नहीं रहेगा।



साक्षात्कार में प्रोफेसर फेयर ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की रणनीति की भी चर्चा की। उन्होंने डोवाल को एक ऐसे रणनीतिकार के रूप में वर्णित किया, जो भारत की सुरक्षा नीति को आक्रामक और सक्रिय दिशा में ले जा रहे हैं। फेयर ने कहा कि डोवाल की सक्रिय रक्षा की नीति ने भारत को पाकिस्तान के खिलाफ अधिक प्रभावी बनाया है। ऑपरेशन सिंदूर इस नीति का एक उदाहरण है, जिसमें भारत ने न केवल आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया, बल्कि पाकिस्तान को कूटनीतिक और सैन्य रूप से भी जवाब दिया।


हालांकि, फेयर ने यह भी चेतावनी दी कि इस तरह की आक्रामक नीति के अपने जोखिम भी हैं। उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान, दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं और किसी भी सैन्य टकराव का बढ़ना दक्षिण एशिया में व्यापक विनाश का कारण बन सकता है। उनके अनुसार, भारत को अपनी रणनीति में संतुलन बनाए रखना होगा, ताकि वह आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख अपनाए, लेकिन साथ ही स्थिति को पूर्ण युद्ध की ओर बढ़ने से रोके।


10 मई 2025 को भारत और पाकिस्तान ने एक युद्धविराम की घोषणा की, जिसे अमेरिका की मध्यस्थता से संभव माना गया। हालांकि, भारत ने इसे द्विपक्षीय समझौता बताया और अमेरिकी हस्तक्षेप को कमतर करने की कोशिश की। प्रोफेसर फेयर ने इस युद्धविराम को अस्थायी करार दिया। उन्होंने कहा कि जब तक पाकिस्तानी सेना अपनी नीतियों में बदलाव नहीं करती, तब तक इस तरह के तनाव बार-बार सामने आएंगे। उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की कि पाकिस्तान भविष्य में फिर से भारत के खिलाफ आतंकी हमले कर सकता है, क्योंकि यह उसकी रणनीति का हिस्सा है।


फेयर के अनुसार अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से अमेरिका, इस क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका की मध्यस्थता हमेशा दोनों देशों को स्वीकार्य नहीं होती, खासकर भारत के लिए, जो कश्मीर को अपना आंतरिक मामला मानता है।


प्रोफेसर क्रिस्टीन फेयर का टीवी साक्षात्कार भारत-पाकिस्तान संघर्ष की जटिलताओं को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। उनके विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि यह संघर्ष केवल दो देशों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि इसमें गहरे ऐतिहासिक, वैचारिक और रणनीतिक आयाम हैं। पाकिस्तानी सेना की आतंकवाद समर्थक नीतियां और भारत की आक्रामक जवाबी रणनीति इस क्षेत्र में स्थायी शांति की राह में बड़ी बाधाएं हैं।


हालांकि, फेयर का यह भी मानना है कि दोनों देशों के बीच संवाद और कूटनीति के रास्ते अभी पूरी तरह बंद नहीं हुए हैं। यदि पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव लाता है और भारत संतुलित रुख अपनाता है, तो भविष्य में तनाव को कम करने की संभावना बनी रह सकती है। लेकिन इसके लिए दोनों पक्षों को न केवल अपनी रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग भी करना होगा। 

Monday, December 13, 2021

क्या हेलिकॉप्टर हादसे रोके जा सकते हैं?

देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत व अन्य सैनिकों की शहादत से पूरा देश सदमे में है। कुन्नुर में हुआ यह दर्दनाक हादसा पहला नहीं है। भारत के इतिहास में ऐसे दर्जनों हादसे हुए हैं जिनमें देश के सैनिक, नेता व अन्य अति विशिष्ट व्यक्तियों ने अपनी जान गवाई है। सवाल यह है कि क्या हम इन हादसों से कुछ सबक़ ले पाए हैं? जिस एमआई सीरिज़ के रूसी हेलिकॉप्टर में जनरल रावत सवार थे वो एक बेहद भरोसेमंद हेलिकॉप्टर माना जाता है। दुर्घटना का कारण क्या था यह तो जाँच के बाद ही सामने आएगा। परंतु जिस तरह हम अन्य विषयों में तकनीक की मदद से तरक़्क़ी कर रहे हैं उसी तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर यात्रा में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे ?


इस हादसे के कारण पर तमाम तरह के क़यास लगाए जा रहे हैं। पिछले कुछ हादसों की सूची को देखें तो ऐसा भी माना जा रहा है कि वीआईपी उड़ानों में, ख़राब मौसम के चलते, पाइलट के मना करने पर भी वीआईपी द्वारा उड़ान भरने का दबाव डाला जाता रहा है। फिर वो चाहे 2001 का कानपुर का हादसा हो, जिसमें माधवराव सिंधिया ने अपनी जान गवाईं थी या फिर 2011 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ हादसा जिसमें मुख्य मंत्री खंडू की मौत हुई थी। जानकारों की मानें तो रूस में बने इस अत्याधुनिक हेलिकॉप्टर को यदि ख़तरा हो सकता था तो वो केवल ख़राब मौसम का ही। ग़ौरतलब है कि वीआईपी उड़ानों में इस हेलिकॉप्टर को केवल अनुभवी पाइलट ही उड़ाते हैं और ऐसा ही इस उड़ान के लिए भी किया गया। 


वीआईपी यात्राओं के लिए विभिन्न हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल वायुसेना व नागरिक उड्डयन दोनों में होता है। परंतु भारत में अभी तक इन उड़ानों के लिए ‘विज़ूअल फ़्लाइट रूल्ज़’ (वीएफ़आर) ही लागू किए जाते हैं। वीएफ़आर नियम और क़ानून के तहत विमान उड़ाने वाले पाइलट को कॉक्पिट से बाहर के मौसम की स्थिति साफ़-साफ़ दिखाई देनी चाहिए जिससे कि वह विमान के बीच आने वाले अवरोध, विमान की ऊँचाई आदि का पता चलता है। इन नियम को लागू करने वाले नियंत्रक नियम लागू करते समय इन बातों को सुनिश्चित करते हैं कि विमान की उड़ान के लिए मौसम की स्थिति, विज़िबिलिटी, विमान की बादलों से दूरी आदि उड़ान के लिए अनुरूप हैं। मौसम के मुताबिक़ इन सभी परिस्थितियों के अनुसार विमान की उड़ान जिस इलाक़े में होनी है वह उस इलाक़े के अधिकार क्षेत्र के मुताबिक़ बदलती रहती है। कुछ देशों में तो वीएफ़आर की अनुमति रात के समय में भी दी जाती है। परंतु ऐसा केवल प्रतिबंधात्मक शर्तों के साथ ही होता है। 


वीएफ़आर पाइलट को इस बात का विशेष ध्यान देना होता है कि उसका विमान न तो किसी अन्य विमान के रास्ते में आ रहा है और न ही उसके विमान के सामने कोई अवरोध हैं। यदि उसे ऐसा कुछ दिखाई देता है तो अपने विमान को इन सबसे बचा कर उड़ाना केवल पाइलट की ज़िम्मेदारी होती है। ज़्यादातर वीएफ़आर पाइलट ‘एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल’ या एटीसी से निर्धारित रूट पर नहीं उड़ते। लेकिन एटीसी को वीएफ़आर विमान को अन्य विमानों के मार्ग से अलग करने के लिए वायुसीमा अनुसार, विमान में एक ट्रान्सपोंडर का होना अनिवार्य होता है। ट्रान्सपोंडर की मदद से रेडार पर इस विमान को एटीसी द्वारा देखा जा सकता है। यदि वीएफ़आर विमान की लिए मौसम व अन्य परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होती हैं तो वह विमान 'इंस्ट्रुमेंट फ़्लाइट रूल्ज़' (आईएफ़आर) के तहत उड़ान भरेगा। आईएफ़आर की उड़ान ज़्यादा सुरक्षित मानी जाती है।


जिन इलाक़ों में मौसम अचानक बिगड़ जाता है वहाँ पर उड़ान भरने के लिए पाइलट को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। अन्य देशों में जिन पाइलट्स के पास केवल वीएफ़आर की उड़ानों की योग्यता होती है उन्हें बदलते मौसम वाले क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी जाती। 


जनरल रावत के हेलिकॉप्टर को वायुसेना के विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान उड़ा रहे थे। वे सुलुर में 109 हेलिकॉप्टर यूनिट के कमांडिंग ऑफ़िसर भी थे। उन्हें इस तरह की उड़ानों का अच्छा-ख़ासा  अनुभव था। विषम परिस्थितियों में उन्होंने इस तरह के हेलिकॉप्टर को कई बार सुरक्षित उड़ाया। हेलिकॉप्टर को ख़राब मौसम का सामना करना पड़ा या उसमें कुछ तकनीकी ख़राबी हुई इसका पता तो जाँच के बाद ही लगेगा। लेकिन आमतौर पर ऐसे में जाँच आयोग पाइलट की गलती बता देते हैं। लेकिन जानकारों की माने तो इस हादसे में पाइलट की गलती नहीं लगती। 


ऐसे हादसों में जाँच को कई पहलुओं से गुजरना पड़ता है। इनमें तकनीकी ख़राबी, पाइलट की गलती, मौसम और हादसे की जगह की स्थिति महत्वपूर्ण होती हैं। इन सभी विषयों की गहराई से जाँच होती है तभी किसी निर्णय पर पहुँचा जा सकता है। जाँच का केवल एक ही मक़सद होता है, आगे से ऐसे हादसे फिर न हों। 


जब भी कोई हादसा होता है तो तमाम टीवी चैनलों पर स्वघोषित विशेषज्ञों की भरमार हो जाती है जो इस पर अपनी राय व्यक्त करते हैं। परंतु कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं देता कि भारत में अन्य देशों की तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर उड़ानों के लिए वीएफ़आर को लागू क्यों किया जा रहा? भारत के नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) और वायुसेना को इस बात पर भी गौर करना चाहिए। कब तक हम ऐसे और हादसों के साक्षी बनेंगे?


यह हादसा पिछले हादसों से अलग नहीं है। बल्कि उन्हीं हादसों की सूची में एक बड़ता हुआ अंक है। बरसों से वीएफ़आर के नियम, जिन्हें केवल हवाई अड्डों के नियंत्रण वाली सीमा में ही प्रयोग में लाया जाता है, के द्वारा ही हवाई अड्डों के बाहर व अन्य स्थानों में प्रयोग में लाया जा रहा है। जबकी होना यह चाहिए कि डीजीसीए और वायुसेना के साझे प्रयास से वीएफ़आर की समीक्षा होनी चाहिए और ऐसे हादसों को रोकने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।