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Monday, May 8, 2023

विवादों में न घिरें सरकारी जाँच एजेंसियाँ !


बीते शुक्रवार को किसी समय देश की सबसे बड़ी रही निजी एयरलाइन के यहाँ सीबीआई के छापे पड़े। जेट एयरवेज़ पर 538 करोड़ रुपये के बैंक घोटाले के आरोप के चलते ये छापे पड़े। पिछले कई महीनों से जेट एयरवेज़ के नए स्वामी जालान कार्लॉक समूह को लेकर काफ़ी विवाद भी चल रहा है। अब इन छापों से जेट एयरवेज़ के गड़े मुर्दे फिर से बाहर आने लग गए हैं। इसके साथ ही लंबित पड़ी शिकायतों पर बहुत देरी से कार्यवाही करने वाली जाँच करने वाली एजेंसियाँ भी सवालों के घेरे में आएँगी।


ऐसा नहीं है कि निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी एयरलाइन जेट एयरवेज़ ने केवल बैंक घोटाला ही किया है। इस समूह ने देश के नागर विमानन क्षेत्र में अपनी दबंगई के चलते कई नियमों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाई और नागर विमानन मंत्रालय व अन्य मंत्रालयों ने आँखें बंद रखीं। 2014 से हमने जेट एयरवेज़ की तमाम गड़बड़ियों की सप्रमाण लिखित शिकायतें नागर विमानन मंत्रालय, डीजीसीए, गृह मंत्रालय, प्रधान मंत्री कार्यालय, सीवीसी और सीबीआई को दी। परंतु जेट एयरवेज़ के मालिक नरेश गोयल की ताक़त के चलते इन शिकायतों पर कछुए की चाल पर ही कार्यवाही हुई। आख़िरकार जब ये कंपनी दिवालिया हुई तो सभी शिकायतें भी ठंडे बस्ते में चली गयीं। परंतु आज जब सीबीआई ने बैंक घोटाले की शिकायत पर कार्यवाही शुरू की तो सवाल उठा कि केवल बैंक घोटाले पर ही जाँच क्यों? जेट एयरवेज़ पर नागर विमानन क़ानून की धज्जियाँ उड़ाना। सोने व विदेशी मुद्रा की तस्करी करना। अपनी कंपनी के खातों में गड़बड़ी करना। कंपनी की सुरक्षा जाँच को लेकर गड़बड़ी करना। ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से विदेशी नागरिक को अपनी कंपनी में उच्च पद पर रखना। बिना ज़रूरी इजाज़त के ग़ैर क़ानूनी ढंग से विमान को विदेश में उतारना। ग़ैर क़ानूनी तरीक़े से विदेशों में बेनामी सम्पत्ति अर्जित करना। अप्रवासन क़ानून तोड़ कर ‘कबूतर बाज़ी’ करना। पायलटों को तय समय सीमा से अधिक उड़ान भरवा कर यात्रियों की जान से खेलना। इन मामलों पर जाँच कब होगी?          



प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री श्री अमित शाह व भाजपा के अन्य नेता गत 9 वर्षों से हर मंच पर पिछली सरकारों को भ्रष्ट और अपनी सरकारों को ईमानदार बताते आए हैं। मोदी जी दमख़म के साथ कहते हैं न खाऊँगा न खाने दूँगा। उनके इस दावे का प्रमाण यही होगा कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध जाँच करने वाली ये एजेंसियाँ सरकार के दख़ल से मुक्त रहें। अगर वे ऐसा नहीं करते तो विपक्ष द्वारा मौजूदा सरकार की नीयत पर शक होना निराधार नहीं होगा।       


जहां तक जाँच एजेंसियों की बात है दिसम्बर 1997 के सर्वोच्च न्यायालय के ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार’ के फ़ैसले के तहत सरकार की श्रेष्ठ जाँच एजेंसियों को निष्पक्ष व स्वायत्त बनाने की मंशा से काफ़ी बदलाव लाने वाले निर्देश दिये गये थे। इसी फ़ैसले की तहत इन पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी विस्तृत निर्देश दिए गए थे। उद्देश्य था इन संवेदनशील जाँच एजेंसियों की अधिकतम स्वायत्ता को सुनिश्चित करना। इसकी ज़रूरत इसलिए पड़ी क्योंकि हमने 1993 में एक जनहित याचिका के माध्यम से सीबीआई की अकर्मण्यता पर सवाल खड़ा किया था। तमाम प्रमाणों के बावजूद सीबीआई हिज़बुल मुजाहिद्दीन की हवाला के ज़रिए हो रही दुबई और लंदन से फ़ंडिंग की जाँच को दो बरस से दबा कर बैठी थी। उसपर भारी राजनैतिक दबाव था। इस याचिका पर ही फ़ैसला देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त आदेश जारी किए थे, जो बाद में क़ानून बने।


परंतु पिछले कुछ समय से ऐसा देखा गया है कि ये जाँच एजेंसियाँ सर्वोच्च न्यायालय के उस फ़ैसले की भावना की उपेक्षा कर कुछ चुनिंदा लोगों के ख़िलाफ़ ही कार्यवाही कर रही है। इतना ही नहीं इन एजेंसियों के निदेशकों की सेवा विस्तार देने के ताज़ा क़ानून ने तो सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले की अनदेखी कर डाली। इस नए क़ानून से यह आशंका प्रबल होती है कि जो भी सरकार केंद्र में होगी वो इन अधिकारियों को तब तक सेवा विस्तार देगी जब तक वे उसके इशारे पर नाचेंगे। क्या शायद इसीलिए यह महत्वपूर्ण जाँच एजेंसियाँ सरकार की ब्लैकमेलिंग का शिकार बन रही हैं? 



केंद्र में जो भी सरकार रही हो उस पर इन जाँच एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगता रहा है। पर मौजूदा सरकार पर विपक्ष द्वारा यह आरोप बार-बार लगातार लग रहा है कि वो अपने राजनैतिक प्रतीद्वंदियों या अपने विरुद्ध खबर छापने वाले मीडिया प्रथिष्ठानों के ख़िलाफ़ इन एजेंसियों का लगातार दुरुपयोग कर रही है। 


पर यहाँ सवाल सरकार की नीयत और ईमानदारी का है। सर्वोच्च न्यायालय का वो ऐतिहासिक फ़ैसला इन जाँच एजेंसियों को सरकार के शिकंजे से मुक्त करना था। जिससे वे बिना किसी दबाव या दख़ल के अपना काम कर सके। क्योंकि सीबीआई को सर्वोच्च अदालत ने भी ‘पिंजरे में बंद तोता’ कहा था। इसी फ़ैसले के तहत इन एजेंसियों के ऊपर निगरानी रखने का काम केंद्रीय सतर्कता आयोग को सौंपा गया था। यदि ये एजेंसियाँ अपना काम सही से नहीं कर रहीं तो सीवीसी के पास ऐसा अधिकार है कि वो अपनी मासिक रिपोर्ट में जाँच एजेंसियों की ख़ामियों का उल्लेख करे। 


हमारा व्यक्तिगत अनुभव भी यही रहा है कि पिछले इन 9 वर्षों में हमने सरकारी या सार्वजनिक उपक्रमों के बड़े स्तर के भ्रष्टाचार के विरुद्ध सप्रमाण कई शिकायतें सीबीआई व सीवीसी में दर्ज कराई हैं। पर उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई। जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। इन एजेंसियों को स्वायत्ता दिलाने में हमारी भूमिका का सम्मान करके, हमारी शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही होती थी। हमने जो भी मामले उठाए उनमें कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं रहा है। जो भी जनहित में उचित लगा उसे उठाया। ये बात हर बड़ा राजनेता जनता है और इसलिए जिनके विरुद्ध हमने अदालतों में लम्बी लड़ाई लड़ी वे भी हमारी निष्पक्षता व पारदर्शिता का सम्मान करते हैं। यही लोकतंत्र है। मौजूदा सरकार को भी इतनी उदारता दिखानी चाहिए कि अगर उसके किसी मंत्रालय या विभाग के विरुद्ध सप्रमाण भ्रष्टाचार की शिकायत आती है तो उसकी निष्पक्ष जाँच होने दी जाए। शिकायतकर्ता को अपना शत्रु नहीं बल्कि शुभचिंतक माना जाए। क्योंकि संत कह गए हैं कि, ‘निंदक नियरे  राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’  

 

मामला कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर लगे आरोपों का हो, केजरीवाल सरकार के शराब घोटाले का हो, नीरव मोदी विजय माल्या जैसे भगोड़ों का हो या किसी भी अन्य घोटाले का हो, जाँच एजेंसियों का निष्पक्ष होना बहुत महत्वपूर्ण है। जानता के बीच ऐसा संदेश जाना चाहिए कि जाँच एजेंसियाँ अपना काम स्वायत्त और निष्पक्ष रूप से कर रहीं हैं। किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा चाहे वो किसी भी विचारधारा या राजनैतिक दल का समर्थक क्यों न हो। क़ानून अपना काम क़ानून के दायरे में ही करेगा।

Monday, December 19, 2022

माधवराव सिंधिया की ‘डायरी’ याद आई !


दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का टर्मिनल 3 भीड़ और अव्यवस्था को लेकर सुर्ख़ियों में है। वहाँ पर सवारियों की लंबी कतारें और बदहाली के चित्र व वीडियो सोशल मीडिया में कई दिनों से छाए हुए हैं। जैसे ही इस मामले ने तूल पकड़ा तो आनन-फ़ानन में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हरकत में आए। वे स्थिति का जायज़ा लेने अचानक टी 3 पर पहुँच गए। वहाँ उन्होंने सभी विभागों के अधिकारियों को कई निर्देश दे डाले। यात्रियों को भी भरोसा दिलाया कि स्थिति बहुत जल्द नियंत्रण में आ जाएगी। उनकी इस पहल को देख उनके स्वर्गवासी पिता और केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया की ‘डायरी’ याद आ गई। 


दरअसल, जब माधवराव सिंधिया 1986-89 तक भारत के रेल मंत्री थे तो मैं रेल मंत्रालय कवर करता था। वहाँ के वरिष्ठ अधिकारी रेल मंत्री माधवराव सिंधिया की ‘डायरी’ से बहुत घबराते थे। जब भी कभी सिंधिया जी अधिकारियों की बैठक लेते थे तो अपनी एक छोटी सी तारीख़ वाली ‘डायरी’ को सामने रखते थे। रेल मंत्रालय की तमाम योजनाओं पर जब विस्तार से चर्चा होती थी तो वे अधिकारियों से उस कार्य योजना के एक चरण का कार्य पूर्ण होने की अनुमानित तारीख़ तय करते थे। उस तारीख़ को वे अपनी छोटी ‘डायरी’ में लिख लेते थे और फिर वो महीना और तारीख़ आने पर, उस दिन उन अधिकारियों से उस कार्य की ‘अपडेट’ लेते थे। जैसे ही माधवराव सिंधिया अपनी ‘डायरी’ में किसी तारीख़ के आगे किसी कार्य से संबंधित कुछ लिखते थे, वैसे ही उस कार्य से संबंधित अधिकारियों के पसीने छूट जाते थे। रात-दिन मेहनत करके संबंधित अधिकारी ये सुनिश्चित कर लेते थे कि वह कार्य निर्धारित तारीख़ से पहले पूरा हो जाए। वरना मंत्री जी को मुँह दिखाना भारी पड़ जाएगा। 


पर लगता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने पिता का वह गुण उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं किया। इसके हमारे पास अनेक प्रमाण हैं। मेरे सहयोगी पत्रकार रजनीश कपूर ने ‘नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए)’ व ‘नागरिक उड्डयन मंत्रालय’ में व्याप्त भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की दर्जनों शिकायतें सप्रमाण ज्योतिरादित्य सिंधिया को भेजी हैं। जिन पर आज तक कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं हुई। यह मंत्री महोदय की कार्यक्षमता का परिचायक है। इसी तरह दिल्ली के हवाई अड्डे पर अव्यवस्था फैलने से पहले यदि संबंधित अधिकारी नागरिक उड्डयन मंत्री को सही रिपोर्ट देते तो शायद ऐसा न होता। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास दो-दो मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी है। इसके साथ ही उन पर भाजपा के सदस्य होने के नाते भी कई ज़िम्मेदारियों हैं। ऐसे में यदि वे कुछ ‘चुनिंदा अधिकारियों’ के कहने में आ कर अपने मंत्रालयों के कामों को पार्टी के कामों से कम महत्व दें तो ये सही नहीं। दोनों ज़िम्मेदारियों में संतुलन बना कर ही उनको सभी काम कुशलता से करने होंगे। दिल्ली के टी 3 जैसे औचक निरीक्षण उन्हें कई जगह करने होंगे। अपने स्वर्गवासी पिता की तरह उन्हें भी एक ‘डायरी’ रखनी चाहिए, जिससे अधिकारियों की जवाबदेही तय हो सके। पार्टी से संबंधित कार्यों को लेकर केवल फ़ीता काटने और फ़ोटो खिंचवाने से कुछ नहीं होगा।


मिसाल के तौर पर दिल्ली हवाई अड्डे की अव्यवस्था को लेकर नागरिक उड्डयन मंत्रालय के नये कार्यक्रम ‘डिजि यात्रा’ को ही लें। कहा जा रहा है कि इस नई व्यवस्था से यात्रियों को सहूलियत मिलेगी। लम्बी-लम्बी क़तारों से मुक्ति मिलेगी। एक ही बार अपनी शक्ल दिखा कर उनकी हवाई यात्रा संबंधित सभी तरह की जानकारी सिस्टम पर दर्ज हो जाएगी। हवाई अड्डे के ई-गेट पर अपना बार कोड वाला बोर्डिंग पास स्कैन करना होगा, जिसके बाद वहां लगे फेशियल रिकग्निशन की मदद से आपकी पहचान की जाएगी। आपके फेस और आपके डॉक्यूमेंट को वैरिफाई किया जाएगा। इसके बाद आप आसानी से ईगेट के जरिए एयरपोर्ट और सिक्योरिटी चेक से गुजर सकेंगे। डिजी यात्रा का इस्तेमाल करने के लिए आपको ‘डिजी यात्रा’ ऐप डाउनलोड करना होगा। इसके बाद आपको अपनी डीटेल भरनी होगी। आपको अपनी जानकारी आधार बेस वैलिडेशन और सेल्फ इमेज के साथ डालनी होगी। आपके द्वारा दी गई जानकारी को सबसे पहले सत्यापित किया जाएगा। उड़ान से पहले वेब चेक इन करते वक्त आपको अपना टिकट इस ऐप पर अपलोड करना होगा। इस नई व्यवस्था की 1 दिसंबर से देश के कुछ एयरपोर्ट पर शुरूआत की गई है। ये व्यवस्था पूरी तरह से पेपरलेस है।

फिलहाल ये सेवा दिल्ली, बेंगलूरु और वाराणसी एयरपोर्ट पर शुरू की गई है, जिसका विस्तार दूसरे चरण में मार्च 2023 तक हैदराबाद, पुणे, विजयवाड़ा और कोलकाता के एयरपोर्ट पर किया जाएगा। दिल्ली के मुक़ाबले बेंगलुरु और वाराणसी के हवाई अड्डे छोटे हैं। इसलिए अभी तक वहाँ से कोई भीड़ और अव्यवस्था की खबर नहीं आई। दिल्ली के टी 3 पर ही ऐसी अव्यवस्था दिखाई दी। 

जानकारों के अनुसार, यदि इस नई सेवा को लागू करना ही था तो दिल्ली जैसे भीड़भाड़ वाले व्यस्त हवाई अड्डे से शुरुआत नहीं करनी चाहिए थी। यदि किन्ही कारणों से दिल्ली में ऐसा करना ज़रूरी था तो दिल्ली के ही छोटे व कम व्यस्त टर्मिनल को चुना जाना बेहतर होता। वहाँ भी केवल एक या दो गेटों पर ही इसे अनिवार्य करते। यात्रियों की सहायता के लिये एयरपोर्ट पर सहायकों को नियुक्त किया जाना चाहिए था। वो सब किया जाना चाहिए था जो मामले के तूल पकड़ने पर मंत्री जी के औचक निरीक्षण के बाद तय हुआ। जानकर इस अव्यवस्था को भी नोटबंदी के बाद एटीएम और बैंकों पर लगी लंबी कतारों की तरह मान रहे हैं। डिजी यात्रा के जल्दबाज़ी के इस निर्णय ने देश का नाम ख़राब किया है। इसका प्रयोग पहले देश के छोटे व कम व्यस्त एयरपोर्ट से होता तो बेहतर होता। जिससे इसकी ख़ामियों को भी दुरुस्त किया जा सकता था। ‘डिजी यात्रा’ के सफल होने का भरपूर प्रचार किया जाता और देश की जनता को इसके फ़ायदे बताए जाते। चरणबद्ध तरीक़े से इसे देश भर में लागू किया जाता।   

ऐसा लगता है कि शायद ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने पिता की तरह अफ़सरशाही को अपने काबू में नहीं कर पा रहे हैं। वरना ऐसी नौबत नहीं आती। अधिकारी केवल इसी बात की दुहाई दे रहे हैं कि कोविड के बाद यात्रियों की संख्या में अचानक बढ़ौतरी हुई है। ऐसे में छुट्टियों की भीड़ भी आग में घी डालने का काम कर रही है। ऐसे में ‘डिजी यात्रा’ को इस समय लागू करना क्या सही था?

Monday, December 13, 2021

क्या हेलिकॉप्टर हादसे रोके जा सकते हैं?

देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत व अन्य सैनिकों की शहादत से पूरा देश सदमे में है। कुन्नुर में हुआ यह दर्दनाक हादसा पहला नहीं है। भारत के इतिहास में ऐसे दर्जनों हादसे हुए हैं जिनमें देश के सैनिक, नेता व अन्य अति विशिष्ट व्यक्तियों ने अपनी जान गवाई है। सवाल यह है कि क्या हम इन हादसों से कुछ सबक़ ले पाए हैं? जिस एमआई सीरिज़ के रूसी हेलिकॉप्टर में जनरल रावत सवार थे वो एक बेहद भरोसेमंद हेलिकॉप्टर माना जाता है। दुर्घटना का कारण क्या था यह तो जाँच के बाद ही सामने आएगा। परंतु जिस तरह हम अन्य विषयों में तकनीक की मदद से तरक़्क़ी कर रहे हैं उसी तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर यात्रा में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल क्यों नहीं कर रहे ?


इस हादसे के कारण पर तमाम तरह के क़यास लगाए जा रहे हैं। पिछले कुछ हादसों की सूची को देखें तो ऐसा भी माना जा रहा है कि वीआईपी उड़ानों में, ख़राब मौसम के चलते, पाइलट के मना करने पर भी वीआईपी द्वारा उड़ान भरने का दबाव डाला जाता रहा है। फिर वो चाहे 2001 का कानपुर का हादसा हो, जिसमें माधवराव सिंधिया ने अपनी जान गवाईं थी या फिर 2011 में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ हादसा जिसमें मुख्य मंत्री खंडू की मौत हुई थी। जानकारों की मानें तो रूस में बने इस अत्याधुनिक हेलिकॉप्टर को यदि ख़तरा हो सकता था तो वो केवल ख़राब मौसम का ही। ग़ौरतलब है कि वीआईपी उड़ानों में इस हेलिकॉप्टर को केवल अनुभवी पाइलट ही उड़ाते हैं और ऐसा ही इस उड़ान के लिए भी किया गया। 


वीआईपी यात्राओं के लिए विभिन्न हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल वायुसेना व नागरिक उड्डयन दोनों में होता है। परंतु भारत में अभी तक इन उड़ानों के लिए ‘विज़ूअल फ़्लाइट रूल्ज़’ (वीएफ़आर) ही लागू किए जाते हैं। वीएफ़आर नियम और क़ानून के तहत विमान उड़ाने वाले पाइलट को कॉक्पिट से बाहर के मौसम की स्थिति साफ़-साफ़ दिखाई देनी चाहिए जिससे कि वह विमान के बीच आने वाले अवरोध, विमान की ऊँचाई आदि का पता चलता है। इन नियम को लागू करने वाले नियंत्रक नियम लागू करते समय इन बातों को सुनिश्चित करते हैं कि विमान की उड़ान के लिए मौसम की स्थिति, विज़िबिलिटी, विमान की बादलों से दूरी आदि उड़ान के लिए अनुरूप हैं। मौसम के मुताबिक़ इन सभी परिस्थितियों के अनुसार विमान की उड़ान जिस इलाक़े में होनी है वह उस इलाक़े के अधिकार क्षेत्र के मुताबिक़ बदलती रहती है। कुछ देशों में तो वीएफ़आर की अनुमति रात के समय में भी दी जाती है। परंतु ऐसा केवल प्रतिबंधात्मक शर्तों के साथ ही होता है। 


वीएफ़आर पाइलट को इस बात का विशेष ध्यान देना होता है कि उसका विमान न तो किसी अन्य विमान के रास्ते में आ रहा है और न ही उसके विमान के सामने कोई अवरोध हैं। यदि उसे ऐसा कुछ दिखाई देता है तो अपने विमान को इन सबसे बचा कर उड़ाना केवल पाइलट की ज़िम्मेदारी होती है। ज़्यादातर वीएफ़आर पाइलट ‘एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल’ या एटीसी से निर्धारित रूट पर नहीं उड़ते। लेकिन एटीसी को वीएफ़आर विमान को अन्य विमानों के मार्ग से अलग करने के लिए वायुसीमा अनुसार, विमान में एक ट्रान्सपोंडर का होना अनिवार्य होता है। ट्रान्सपोंडर की मदद से रेडार पर इस विमान को एटीसी द्वारा देखा जा सकता है। यदि वीएफ़आर विमान की लिए मौसम व अन्य परिस्थितियाँ अनुकूल नहीं होती हैं तो वह विमान 'इंस्ट्रुमेंट फ़्लाइट रूल्ज़' (आईएफ़आर) के तहत उड़ान भरेगा। आईएफ़आर की उड़ान ज़्यादा सुरक्षित मानी जाती है।


जिन इलाक़ों में मौसम अचानक बिगड़ जाता है वहाँ पर उड़ान भरने के लिए पाइलट को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। अन्य देशों में जिन पाइलट्स के पास केवल वीएफ़आर की उड़ानों की योग्यता होती है उन्हें बदलते मौसम वाले क्षेत्र में उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी जाती। 


जनरल रावत के हेलिकॉप्टर को वायुसेना के विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान उड़ा रहे थे। वे सुलुर में 109 हेलिकॉप्टर यूनिट के कमांडिंग ऑफ़िसर भी थे। उन्हें इस तरह की उड़ानों का अच्छा-ख़ासा  अनुभव था। विषम परिस्थितियों में उन्होंने इस तरह के हेलिकॉप्टर को कई बार सुरक्षित उड़ाया। हेलिकॉप्टर को ख़राब मौसम का सामना करना पड़ा या उसमें कुछ तकनीकी ख़राबी हुई इसका पता तो जाँच के बाद ही लगेगा। लेकिन आमतौर पर ऐसे में जाँच आयोग पाइलट की गलती बता देते हैं। लेकिन जानकारों की माने तो इस हादसे में पाइलट की गलती नहीं लगती। 


ऐसे हादसों में जाँच को कई पहलुओं से गुजरना पड़ता है। इनमें तकनीकी ख़राबी, पाइलट की गलती, मौसम और हादसे की जगह की स्थिति महत्वपूर्ण होती हैं। इन सभी विषयों की गहराई से जाँच होती है तभी किसी निर्णय पर पहुँचा जा सकता है। जाँच का केवल एक ही मक़सद होता है, आगे से ऐसे हादसे फिर न हों। 


जब भी कोई हादसा होता है तो तमाम टीवी चैनलों पर स्वघोषित विशेषज्ञों की भरमार हो जाती है जो इस पर अपनी राय व्यक्त करते हैं। परंतु कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं देता कि भारत में अन्य देशों की तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर उड़ानों के लिए वीएफ़आर को लागू क्यों किया जा रहा? भारत के नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) और वायुसेना को इस बात पर भी गौर करना चाहिए। कब तक हम ऐसे और हादसों के साक्षी बनेंगे?


यह हादसा पिछले हादसों से अलग नहीं है। बल्कि उन्हीं हादसों की सूची में एक बड़ता हुआ अंक है। बरसों से वीएफ़आर के नियम, जिन्हें केवल हवाई अड्डों के नियंत्रण वाली सीमा में ही प्रयोग में लाया जाता है, के द्वारा ही हवाई अड्डों के बाहर व अन्य स्थानों में प्रयोग में लाया जा रहा है। जबकी होना यह चाहिए कि डीजीसीए और वायुसेना के साझे प्रयास से वीएफ़आर की समीक्षा होनी चाहिए और ऐसे हादसों को रोकने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए।  

Monday, October 18, 2021

टाटा के हुए ‘महाराजा’


डूबते हुए एयर इंडिया के ‘महाराजा’ का हाथ टाटा समूह ने 68 सालों बाद फिर से थाम लिया है। एवीएशन विशेषज्ञों की मानें तो टाटा के मालिक बनते ही ‘महाराजा’ को बचाने और दोबारा ऊँची उड़ान भरने के काबिल बनाने के लिए कई ऐसे फ़ैसले लेने होंगे जिससे एयर इंडिया एक बार फिर से भारत की एवीएशन का महाराजा बन जाए। टाटा ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कई डूबती हुई कम्पनियों को ख़रीदा है। इनमें से कई कम्पनियों को फ़ायदे का सौदा भी बना दिया है। अब देखना यह है कि अफ़सरशाही में क़ैद एयर इंडिया को उसकी खोई हुई गरिमा कैसे वापिस मिलती है।
 


मीडिया रिपोर्ट की मानें तो अब तक एअर इंडिया के विमानों पर किराए या लीज़ के तौर पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च कर रहा था। इसके साथ ही इन पुराने हवाई जहाज़ों का कई वर्षों से सही रख रखाव भी नहीं हुआ है। यात्रियों के हित में टाटा को केबिन अपग्रेडेशन, इंजन अपग्रेडेशन समेत कई महत्वपूर्ण बदलाव लाने होंगे। विशेषज्ञों के अनुसार टाटा समूह को एअर इंडिया मौजूदा विमानों को अपग्रेड करने के लिए कम से कम 2 से 5 मिलियन डॉलर की मोटी रक़म खर्च करनी पड़ सकती है। गौरतलब है कि जब नरेश गोयल की जेट एयरवेज को ख़रीदने के लिए टाटा के बोर्ड में चर्चा हुई तो कहा गया था कि डूबती हुई एयरलाइन को ख़रीदने से अच्छा होता है कि ऐसी एयरलाइन के बंद होने पर रिक्त स्थानों पर नए विमानों से भरा जाए।

जिस तरह अफ़सरशाही ने सरकारी एयरलाइन में अनुभवहीन लोगों को अहम पदों पर तैनात किया था उससे भी एयर इंडिया को नुक़सान हुआ। किसी भी एयरलाइन को सुचारु रूप से चलाने के लिए प्रोफेशनल टीम की ज़रूरत होती है। भाई-भतीजेवाद या सिफ़ारिशी भर्तियों की एयरलाइन जैसे  संवेदनशील सेक्टर में कोई जगह नहीं होती। टाटा जैसे समूह से आप केवल प्रोफेशनल कार्य की ही कल्पना कर सकते हैं। मिसाल के तौर पर टाटा समूह द्वारा भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट जारी करने में जो योगदान दिखाई दे रहा है वो एक अतुलनीय योगदान है। जिन दिनों पासपोर्ट सेवा लाल फ़ीताशाही में क़ैद थी तब लोगों को पासपोर्ट बनवाने के लिए महीनों का इंतेज़ार करना पड़ता था। वही काम अब कुछ ही दिनों में हो जाता है। आजकल के सोशल मीडिया और आईटी युग में हर ग्राहक जागरूक हो चुका है। यदि वो निराश होता है तो कम्पनी की साख को कुछ ही मिनटों में अर्श से फ़र्श पर पहुँचा सकता है। इसलिए ग्राहक संतुष्टि की प्रतिस्पर्धा के दबाव के चलते हर कम्पनी को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना पड़ता है। 

विश्वभर में पिछले दो सालों में कोरोना की सबसे ज़्यादा मार पर्यटन क्षेत्र को पड़ी है। एवीएशन सेक्टर इसका एक अहम हिस्सा है। एक अनुमान के तहत इन दो सालों में इस महामारी के चलते एवीएशन सेक्टर को 200 बिलियन डॉलर से अधिक का नुक़सान हुआ है। माना जा रहा है कि अगर सब कुछ सही रहता है और कोविड की तीसरी लहर नहीं आती है तो 2023 से एवीएशन सेक्टर की गाड़ी फिर से पटरी पर आ जाएगी। 


एयर इंडिया का निजीकरण कर टाटा को दिए जाने के फ़ैसले को ज़्यादातर लोगों द्वारा एक अच्छा कदम ही माना गया है। टाटा को इसे एक सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन बनाने के लिए कुछ बुनियादी बदलाव लाने होंगे। जैसा कि सभी जानते हैं टाटा समूह के पास पहले से ही दो एयरलाइन हैं ‘विस्तारा’ और ‘एयर एशिया’ और अब एयर इंडिया और ‘एयर इंडिया एक्सप्रेस’। टाटा को इन चारों एयरलाइन के पाइलट और स्टाफ़ की ट्रेनिंग के लिए अपनी ही एक अकैडमी बना देनी चाहिए। जिसमें ट्रेनिंग अंतरराष्ट्रीय मानक के आधार पर हो। इससे पैसा भी बचेगा और ट्रेनिंग के मानक भी उच्च कोटि के होंगे। 

चार-चार एयरलाइन के स्वामी बनने के बाद टाटा समूह की सीधी टक्कर मध्यपूर्व की ‘क़तर एयरलाइन’ से होना तय है। मध्यपूर्व जैसे महत्वपूर्ण स्थान पर होने के चलते, इस समय क़तर एयर के पास एवीएशन सेक्टर के व्यापार का सबसे अधिक हिस्सा है। कोविड काल में सिंगापुर एयर के 60 प्रतिशत विमान ग्राउंड हो चुके हैं। सिंगापुर एयरलाइन में टाटा समूह की साझेदारी होने के कारण, टाटा को सिंगापुर एयर के विमानों को अपने साथ जोड़ कर एयर इंडिया को दुनिया के हर कोने में पहुँचाने का प्रयास करना चाहिए। इससे क़र्ज़ में डूबी एयर इंडिया के आय के नए स्रोत भी खुलेंगे। 

टाटा को अपनी चारों विमानन कम्पनियों को अलग ही रखना चाहिए। जिस तरह टाटा समूह के अलग-अलग प्रकार के होटल हैं जैसे ‘ताज’ ‘विवांता’ व ‘जिंजर’ आदि उसी तरह बजट एयरलाइन और मुख्यधारा की हवाई सेवा को भी अलग-अलग रखना बेहतर होगा। अलग कम्पनी होने से टाटा समूह की ही दोनों कम्पनियों को बेहतर परफ़ॉर्म करना होगा और आपस की प्रतिस्पर्धा से ग्राहक का फ़ायदा होना निश्चित है। इनमें दो कम्पनी ‘एयर एशिया’ और ‘एयर इंडिया एक्सप्रेस’ सस्ती यानी ‘बजट एयरलाइन’ रहें जो मौजूदा बजट एयरलाइन व आने वाले समय में राकेश झुनझुनवाला की ‘आकासा’ को सीधी टक्कर देंगी। मौजूदा ‘विस्तारा’ को भी मध्यवर्गीय एयरलाइन के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते हुए पड़ोसी देशों में अपने पंख फैलाने होंगे। एयर इंडिया में नए विमान जोड़ कर इसे एवीएशन की दुनिया का महाराजा बनने की ओर कदम तेज़ी से दौड़ाने होंगे। 

बीते कई वर्षों से नुकसान उठा रही एयर इंडिया की देरी और खराब सेवा को लेकर नकारात्मक छवि बनी है। इस चुनौती को भी टाटा को गम्भीरता से लेना होगा और सेवाओं की बेहतरी की दिशा में कुछ सक्रिय कदम उठाने होंगे। यह इतना आसान नहीं होगा, परंतु टाटा समूह में विषम परिस्थितियों में टिके रहने और लम्बी अवधि तक खेलने की क्षमता किसी से छुपी नहीं है। टाटा को इस चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए एवीएशन सेक्टर के अनुभवी लोगों की टीम बनानी होगी और यह सिद्ध करना होगा कि एयर इंडिया को वापस लेकर टाटा ने कोई गलती नहीं की।    

Monday, May 17, 2021

आपदा में अवसर: एयर एम्बुलेंस


हाल ही में दिल्ली का एक नामी व्यापारी काफ़ी सुर्ख़ियों में रहा। इस व्यापारी नवनीत कालरा के दिल्ली में कई कारोबार हैं। इसके कारोबारों में दिल्ली के खान मार्केट में कबाब का एक मशहूर रेस्टोरेंट, चश्मों की एक चर्चित दुकान और अंतर्राष्ट्रीय व्यंजन के कई और रेस्टोरेंट शामिल हैं। इन सबके अलावा कालरा की एक अंतर्राष्ट्रीय मोबाइल सिम सेवा भी शामिल है। लेकिन कालरा इन सभी व्यवसायों के कारण सुर्ख़ियों में नहीं था। वो तो कोविड आपदा में अवसर ढूँढने के चक्कर में विवादों में आया।
 


कोविड की दूसरी लहर के चलते मरीज़ों में ऑक्सीजन की कमी की पूर्ति के लिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर की माँग अचानक बहुत बढ़ गई थी। इसी यंत्र को विदेशों से मंगा कर दिल्ली और आस पास के मरीज़ों को मुह माँगे दामों पर बेचने के कारण नवनीत कालरा सुर्ख़ियों में आया। चूँकि ये मामला अभी अदालत के विचाराधीन है इसलिए इस पर अभी कुछ नहीं कहें तो बेहतर होगा। हाँ अगर अदालत मानती है कि उसने कोई अपराध किया है तो नवनीत कालरा सज़ा पाएगा। 


इसी बीच पिछले हफ़्ते दो ऐसे हादसे हुए जिन्हें गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है। पहला हादसा नागपुर से मुंबई आ रही एक एयर एम्बुलेंस का था। जिसमें नागपुर से उड़ान भरते समय विमान का एक पहिया हवाई पट्टी के पास गिर गया था। ग़नीमत है कि हवाई अड्डों की सुरक्षा में तैनात सीआईएसएफ के एक सतर्क सिपाही ने इसकी सूचना तुरंत नागपुर एटीसी को दी, जिन्होंने विमान चालक से सम्पर्क किया। यह एयर एम्बुलेंस एक निजी कम्पनी द्वारा संचालित की जा रही थी। हैरानी वाली बात यह है कि इस एयर एम्बुलेंस के कप्तान को विमान द्वारा ऐसा कुछ भी संकेत नहीं मिला कि उसका पहिया नागपुर में ही गिर चुका है। उस सिपाही की सतर्कता के कारण ही विमान को मुंबई में आपातकाल लैंडिंग से उतारा गया, बिना किसी जान माल के नुक़सान के। उस विमान में सवार मरीज़ को भी समय पर कोविड की चिकित्सा के लिए अस्पताल ले जाया गया। 


अगर एयर एम्बुलेंस की बात करें तो नवनीत कालरा की तरह इन्हें चलाने वाली निजी कम्पनियाँ भी आजकल आपदा के दौर में खूब अवसर खोज रही हैं। पर इस हादसे से यह साबित होता है कि अंधा  पैसा कमाने के चक्कर में वे विमान के रख रखाव पर भी ध्यान नहीं दे रही हैं। इसीलिए ऐसे हादसे होते हैं। इतना ही नहीं एयर एम्बुलेंस चलाने वाली इन निजी कम्पनियों की कई बड़े अस्पतालों के साथ साँठगाँठ है जिसके कारण वे सवारियों से मुह माँगे दाम वसूल रही हैं। 


मिसाल के तौर पर अगर किसी मरीज़ को पटना से किसी बड़े अस्पताल में ले जाना है तो बजाय कोलकाता या किसी नज़दीक शहर में ले जाने के ये कम्पनियाँ उस मरीज़ को हैदराबाद जैसे दूर दराज के शहर ले जाती हैं और उसके बदले में मरीज़ के घरवालों से 25-30 लाख रुपय ऐंठती हैं। जबकि आम तौर पर ऐसी चार्टेड यात्रा का खर्च 2 से 3 लाख रुपय आता है। ऐसे समय में मरीज़ों से मुह माँगे दाम ऐंठना कालाबाज़ारी से कम अपराध नहीं है। 


इतना ही नहीं इन विमानों में मरीज़ों को ले जाए जाने के लिए तय मापदंडों की भी धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। ये लापरवाही जान बचाने की बजाय जानलेवा भी हो सकती हैं। नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) को इस दिशा में कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए और निजी कम्पनियों द्वारा चलाई जा रही एयर एम्बुलेंस की निगरानी सख़्ती से होनी चाहिए। पर आश्चर्य है कि ऐसा नहीं हो रहा।    


इसी क्रम में दूसरा हादसा मध्य प्रदेश में हुआ जिसमें करोड़ों रुपये का सरकारी जहाज़ बर्बाद हो गया है। मध्य प्रदेश सरकार के विमान में ले जाए जा रहे कोविड के जीवन रक्षक इंजेक्शन ‘रेमडेसिविर’ की एक बड़ी खेप इस जहाज़ में थी। करोड़ों रुपय की लागत से ख़रीदे गए इस राज्य सरकार के सवारी विमान, जोकि राज्य सरकार के अति विशिष्ट व्यक्तियों के इस्तेमाल के लिए होता है, इस हादसे के बाद, बुरी तरह से क्षतिग्रस्त होने के कारण अब किसी काम का नहीं रहा। ग़नीमत है इसमें लाए जा रहे जीवन रक्षक ‘रेमडेसिविर’ इंजेक्शन और पाइलट सुरक्षित हैं। सूत्रों की मानें तो प्राथमिक जाँच से यह पता चला है कि इस हादसे के लिए इसका पाइलट कैप्टन माज़िद अख़्तर ही ज़िम्मेदार है। 


दरअसल ऐसे सवारी वाले छोटे विमानों में कार्गो या सामान की ढ़ुलाई करने के लिए यदि विमान की सीटों को निकाला जाता है तो विमान निर्माता व डीजीसीए से विशेष अनुमति लेना अनिवार्य होता है। आपात स्थिति बताकर इस विमान में ऐसा नहीं किया गया था। यह सब भी कैप्टन माजिद अख़्तर के रसूख़ के चलते उसकी ही देख रेख में हुआ।


ग़ौरतलब है कि इस विमान के पाइलट कैप्टन माजिद अख़्तर के ख़िलाफ़ दिल्ली के ‘कालचक्र समाचार ब्यूरो’ के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने डीजीसीए को कई महीने पहले पत्र लिख कर शिकायत की थी। जिसमें कैप्टन माजिद की क़ाबिलियत एवं अनुशासनहीनतापूर्ण कार्यप्रणाली को लेकर सप्रमाण कई सवाल उठाए थे। लेकिन कैप्टन माजिद के रसूख़ के चलते उन शिकायतों की अनदेखी कर न तो उसे विमान उड़ाने से रोका गया और न ही शिकायत पर कोई कार्यवाही हुई। ऐसी लापरवाही क्यों की गई? 


उल्लेखनीय है कि कैप्टन माजिद अख़्तर मध्य प्रदेश शासन के पाइलट होने के साथ साथ डीजीसीए द्वारा ‘बी 200’ विमान के परीक्षक के पद पर भी नियुक्त था। इस कार्यवाही को अंजाम देते हुए इसने कई पाइलटों के प्रशिक्षण एवं जाँच में धांधली की और ग़ैर ज़िम्मेदाराना हरकतों को अंजाम दिया। जिसकी शिकायत कालचक्र द्वारा समय-समय पर डीजीसीए से लिखकर की गई। यदि समय रहते डीजीसीए इन शिकायतों का संज्ञान लेता और जाँच करता तो इस तरह की लापरवाही भरे आचरण पर लगाम लगती और जान-माल के नुक़सानों से बचा जा सकता था।  


कैप्टन माज़िद द्वारा एक और संगीन अपराध किया गया। डीजीसीए द्वारा दिए गए दिशा निर्देश के तहत किसी भी पाइलट या क्रू, जिसने कोविड का वैक्सीन लगवाया हो, उसे अगले 48 घंटे तक उड़ान भरने की मनाई है। लेकिन कैप्टन माजिद अख़्तर के लिए सभी नियम और क़ानून केवल किताबी हैं। उसने इस नियम की भी धज्जियाँ उड़ाते हुए 17 मार्च 2021 को कोविड वैक्सीन लगवाने के कुछ ही घंटों में मध्य प्रदेश के राज्यपाल के साथ उड़ान भरी। जिसकी शिकायत डीजीसीए से की गयी। लेकिन इस शिकायत के बाद भी डीजीसीए ने माज़िद पर कोई भी कार्यवाही क्यों नहीं की ? 


ठीक उसी तरह, कैप्टन अख़्तर ने बतौर परीक्षक उत्तर प्रदेश सरकार के कई पाइलटों को उड़ान जाँच योग्यता में पास कर दिया जिसमें से अधिकतर पाइलटों का आपदा प्रबंधन का अनिवार्य सर्टिफिकेट अवैध था। बिना इस गम्भीर बात की जाँच किए हुए उन्होंने ये गैर ज़िम्मेदाराना कार्य किया और इस प्रकार के दर्जनों अनुशासनहीन प्रशिक्षण कार्य कराते आए हैं। इस शिकायत को भी डीजीसीए द्वारा अनदेखा किया गया।


डीजीसीए के अधिकारियों को ऐसी गम्भीर लापरवाही करने वाले अपने लोगों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। इसी तरह अनुशासनहीन पाइलटों को भी विमान उड़ाने की इजाज़त न दी जाए। 


उधर निजी चार्टर विमानों में अगर सवारी की जगह मरीज़ और डाक्टर को ले जाने का प्रबंध करना है तो तय मापदंडों के अनुसार ही विमान में फेर बदल किया जाए न कि निजी कम्पनी की इच्छा अनुसार। ऐसा करने से कालाबाज़ारी कर रहे लोगों पर लगाम कसेगी और जान माल की भी रक्षा होगी।

Monday, September 14, 2020

राज्यों के उड्डयन विभागों में हो रही कोताही को क्यों अनदेखा कर रहा है डीजीसीए?


जब से उत्तर प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन के घोटाले सामने आएँ हैं तब से भारत सरकार का  नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) भी सवालों के घेरे में आ गया है। कई राज्यों के नागरिक उड्डयन विभागों में हो रही ख़ामियों को जिस तरह डीजीसीए के अधिकारी अनदेखा कर रहे हैं  उससे वे न सिर्फ़ उस राज्य के अतिविशिष्ट व्यक्तियों की जान जोखिम में डाल रहे हैं। बल्कि राज्य की सम्पत्ति और वहाँ के नागरिकों की जान से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। हाल ही में उत्तराखंड सरकार का नागरिक उड्डयन विकास प्राधिकरण (उकाडा) एक नियुक्ति को लेकर विवाद में आया। वहाँ हो रही पाइलट भर्ती प्रक्रिया में यूँ तो उकाडा ने भारत सरकार के नागर विमानन निदेशालय के सेवा निवृत उपमहानिदेशक को विशेषज्ञ के रूप में बुलाया गया था। लेकिन विशेषज्ञ की सलाह को दर किनार करते हुए चयन समिति ने एक संदिग्ध पाइलट को इस पद पर नियुक्त करना लगभग तय कर ही लिया था। 

ग़नीमत है कि समय रहते दिल्ली के कालचक्र समाचार ब्युरो के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने राज्य सरकार के नागरिक उड्डयन सचिव को इस विषय में एक पत्र लिख कर इस चयन में हुई अनियमित्ताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया। कपूर के अनुसार जिस कैप्टन चंद्रपाल सिंह का चयन इस पद के लिए किया जा रहा था उनके ख़िलाफ़ डीजीसीए में पहले से ही कई अनियमित्ताओं की जाँच चल रही है, जिसे अनदेखा कर उकाडा के चयनकर्ता उसकी भर्ती पर मुहर लगाने पर अड़े हुए थे। कपूर ने अपने पत्र में नागरिक उड्डयन सचिव को इस चयन में हो रहे भ्रष्टाचार की जाँच की माँग भी की थी।  



विगत कुछ महीनों में राज्य सरकारों के उड्डयन विभागों के और विशिष्ट व्यक्तियों की सुरक्षा से जुड़े ऐसे कई मामले कालचक्र ब्यूरो द्वारा डीजीसीए में उठाए गए हैं। इसकी सीधी वजह यह रही कि यदि मामले नियम और सुरक्षा का आदर करने वाले उन राज्यों के पाइलट या कर्मचारी उठाते हैं, तो बौखलाहट में उन पर डीजीसीए झूठे आरोप ठोक कर और अकारण दंडात्मक कार्यवाही कर के उल्टे शिकायतकर्ता के ही पीछे पड़ जाता है। 


ग़ौरतलब है कि वीवीआईपी व्यक्तियों के विमानों को उड़ाने के लिए पाइलट के पास एक निश्चित अनुभव के साथ-साथ साफ़ सुथरी छवि का होना ज़रूरी होता है। उन पर किसी भी तरह की आपराधिक मामले की जाँच से मुक्त होना भी अनिवार्य होता है। पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में मौसम के मिज़ाज और भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यहाँ विशेष अनुभव वाले पाइलट ही उड़ान भर सकते हैं। 


संतोष की बात है कि इस भर्ती में हो रही अनियमित्ताओं की शिकायत को जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया गया, उन्होंने इस गम्भीरता से लेते हुए उस संदिग्ध पाइलट की नियुक्ति पर रोक लगा दी। 


यहाँ सवाल उठता है कि भारत सरकार के नागर विमानन निदेशालय के अधिकारी राज्य सरकारों के नागरिक उड्डयन विभाग में हो रही ख़ामियों की ओर ध्यान क्यों नहीं देते? क्या वो तब जागेंगे जब फिर कोई बड़ा हादसा होगा? या फिर राज्यों के उड्डयन विभाग में हो रहे घोटालों में डीजीसीए के अधिकारी भी शामिल हैं?



उत्तराखंड के बाद अब बात हरियाणा की करें यहाँ के नागरिक उड्डयन विभाग में एक वरिष्ठ पाइलट द्वारा नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए मार्च 2019 में एक नहीं दो बार ऐसी अनियमित्ताएं की जिसकी सज़ा केवल निलम्बन ही है। लेकिन क्योंकि इस पाइलट के बड़े भाई डीजीसीए में एक उच्च पद पर तैनात थे इसलिए उनपर किसी भी तरह की कार्यवाही नहीं की गई। ग़ौरतलब है कि हरियाणा राज्य सरकार के पाइलट कैप्टन डी एस नेहरा ने सरकारी हेलीकॉप्टर पर अवैध ढंग से टेस्ट फ्लाइट भरी। ऐसा उन्होंने सिंगल (अकेले) पायलट के रूप में किया और उड़ान से पहले के दो नियामक ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट (शराब पीए होने का पता लगाने के लिए सांस की जांच) भी खुद ही कर डाली। एक अपने लिए और दूसरी, राज्य सरकार के एक पाइलट कैप्टन दिद्दी के लिए, जो कि उस दिन उनके साथ पिंजौर में मौजूद नहीं थे। आरोप है कि कैप्टन नेहरा ने कैप्टन दिद्दी के फर्जी दस्तखत भी किए। इस घटना के दो दिन बाद ही कैप्टन नेहरा ने एक बार फिर ग्राउंड रन किया और फिर से सिंगल पायलट के रूप में राज्य सरकार के हेलीकॉप्टर की मेनटेनेंस फ्लाइट भी की। इस बार उन्होंने उड़ान से पहले होने वाले नियामक और आवश्यक ब्रेथ एनालाइजर टेस्ट नहीं किया, बल्कि उस टेस्ट को उड़ान के बाद किया। जोकि नागरिक उड्डयन की निर्धारित आवश्यकताओं (सीएआर) का सीधा उल्लंघन है। इस बार भी उन्होंने फर्जीवाड़ा करते हुए, कैप्टन पी के दिद्दी के नाम पर प्री फ्लाइट ब्रेथ एनालाइजर एक्जामिनेशन किया और रजिस्टर पर उनके फर्जी हस्ताक्षर भी किए, क्योंकि उस दिन भी कैप्टन दिद्दी पिंजौर में नहीं थे। वे मोहाली में डीजीसीए के परीक्षा केंद्र में एटीपीएल की परीक्षा दे रहे थे।


इस गम्भीर उल्लंघन के प्रमाण को एक शिकायत के रूप में डीजीसीए को भेजा गया, लेकिन मार्च 2019 से इस मामले को डीजीसीए आज तक दबाए बैठी है। इसके पीछे का कारण केवल भाई भतीजावाद ही है। 



सवाल यह है की चाहे वो उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की सुरक्षा में सेंध लगाने वाले और 203 शेल कम्पनियाँ चलाने वाले कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा हों या हरियाणा सरकार के कैप्टन नेहरा हों, भारत सरकार के नागर विमानन निदेशालय में तैनात उच्च अधिकारी, इनके द्वारा की गई अनियमत्ताओं को गम्भीरता से क्यों नहीं लेते? कहीं तो छोटी-छोटी अनियिमत्ताओं पर डीजीसीए तुरंत कार्यवाही करते हुए बेक़सूर पाइलटों या अन्य कर्मचारियों को कड़ी से कड़ी सज़ा देता है और कहीं कैप्टन नेहरा और कैप्टन मिश्रा जैसे ‘सम्पर्क’ वाले पाइलटों के ख़िलाफ़ कार्यवाही करने में महीनों गुज़ार देता है। ऐसा दोहरा मापदंड अपनाने के पीछे डीजीसीए के अधिकारी भी उतने ही ज़िम्मेदार हैं जितना कि एयरलाइन या राज्य सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग पर नियंत्रण रखने वाले आला अफ़सर। मोदी सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्री हों या राज्यों के मुख्यमंत्री उन्हें इस ओर ध्यान देते हुए इन दोषी अधिकारियों के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। जिससे यह संदेश जा सके कि गलती करने और दोषी पाये जाने पर किसी को भी बख्शा नहीं जाएगा चाहे वो व्यक्ति कितना भी रसूखदार हो। क़ानून सबसे ऊपर है क़ानून से ऊपर कोई नहीं।

Monday, July 20, 2020

योगी महाराज की सुरक्षा से खिलवाड़ क्यों?

मौत तो किसी की भी, कहीं भी और कभी भी आ सकती है। पर इसका मतलब ये नहीं कि शेर के मुह में हाथ दे दिया जाए। भगवान श्रीकृष्ण गीता दसवें अध्याय में अर्जुन से कहते हैं:

‘तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।

ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते।।’ 

अर्जुन मैं ही सबको बुद्धि देता हूँ।

जिसका प्रयोग हमें करना चाहिए, इसलिए जान बूझकर किसी की ज़िंदगी से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। विशेषकर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के युवा एवं सशक्त मुख्यमंत्री की ज़िन्दगी से। 


बहुत पुरानी बात नहीं है जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता माधव राव सिंधिया, लोक सभा के स्पीकर रहे बालयोगी, आंध्र प्रदेश के मुख्य मंत्री रेड्डी और 1980 में संजय गांधी विमान हादसे में अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए। चिंता की बात यह है कि ये दुर्घटनाएँ ख़राब मौसम के कारण नहीं हुई थी। बल्कि ये दुर्घटनाएँ विमान चालकों की ग़लतियों से या विमान में ख़राबी से हुई थीं। 


देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के ताक़तवर मुख्यमंत्री की आयु मात्र 48 वर्ष है। अभी उन्हें राजनीति में और भी बहुत मंज़िलें हासिल करनी हैं। बावजूद इसके उन्हें दी जा रही सरकारी वायु सेवा में इतनी लापरवाही बरती जा रही है कि आश्चर्य है कि अभी तक वे किसी हादसे के शिकार नहीं हुए? शायद ये उनकी साधना और तप का बल है, वरना उत्तर प्रदेश के उड्डयन विभाग व केंद्र सरकार के नागरिक विमानन निदेशालय ने योगी जी ज़िंदगी से खिलवाड़ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी कॉलम में दो हफ़्ते पहले हम उत्तर प्रदेश सरकार की नागरिक उड्डयन सेवाओं के ऑपरेशन मैनेजर के कुछ काले कारनामों का ज़िक्र कर चुके हैं।


दिल्ली के कालचक्र ब्युरो के शोर मचाने के बाद कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा नाम के इस ऑपरेशन मैनेजर का प्रवेश किसी भी हवाई अड्डे पर वर्जित हो गया है। जहाज उड़ाने का उसका लाईसेंस भी फ़िलहाल डीजीसीए से सस्पेंड हो गया है। मुख्यमंत्री कार्यालय और आवास पर उसका प्रवेश भी प्रतिबंधित कर दिया गया है। प्रवर्तन निदेशालय भी उसकी अकूत दौलत और 200 से भी अधिक फ़र्ज़ी कम्पनियों पर निगाह रखे हुए है। 


पर उसके कुकृत्यों को देखते हुए ये सब बहुत सतही कार्यवाही है। उत्तर प्रदेश शासन के जो ताक़तवर मंत्री और अफ़सर उसके साथ अपनी अवैध कमाई को ठिकाने लगाने में आज तक जुटे थे, वो ही उसे आज भी बचाने में लगे हैं। क्योंकि प्रज्ञेश मिश्रा की ईमानदार जाँच का मतलब उत्तर प्रदेश शासन में वर्षों से व्याप्त भारी भ्रष्टाचार के क़िले का ढहना होगा। तो ये लोग क्यों कोई जाँच होने देंगे? जबकि योगी जी हर जनसभा में कहते हैं कि वे भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करते?


जैसे आज तक ये लोग योगी जी को गुमराह करके कैप्टन मिश्रा को पलकों पर बिठाये थे और इसकी कम्पनियों में अपनी काली कमाई लगा रहे थे, वैसे ही आज भी योगी जी को बहका रहे हैं कि ‘हमने मीडिया मेंनेज कर लिया है, अब कोई चिंता की बात नहीं।’ पर शायद उन्हें ये नहीं पता कि आपराधिक गतिविधियों के सबूत कुछ समय के लिए ही दबाये जा सकते हैं, पर हमेशा के लिये नष्ट नहीं किए जा सकते। अगले चुनाव के समय या अन्य किसी ख़ास मौक़े पर ये सब सबूत जनता के सामने आकार बड़ा बवाल खड़ा कर सकते हैं। जिसकी फ़िक्र योगी जी को ही करनी होगी।     


हवाई जहाज़ उड़ाने की एक शर्त ये होती है कि हर पाइलट और क्रू मेम्बर को हर वर्ष अपनी ‘सेफ़्टी एंड इमर्जन्सी प्रोसीजरस ट्रेनिंग एंड चेकिंग’ करवानी होती है। जिससे हवाई जहाज़ चलाने और उड़ान के समय उसकी व्यवस्था करने वाला हर व्यक्ति किसी भी आपात स्थिति के लिए चौकन्ना और प्रशिक्षित रहे। ऐसा ‘नागर विमानन महानिदेशालय’ की नियमावली 9.4, डीजीसीए सीएआर सेक्शन 8 सिरीज़ एफ पार्ट VII में स्पष्ट लिखा है। योगी जी के लिए चिंता की बात यह होनी चाहिए कि कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा बिना इस नियम का पालन किए बी-200 जहाज़ धड़ल्ले से उड़ता रहा है। ऐसा उल्लंघन केवल खुद प्रज्ञेश मिश्रा ही नहीं बल्कि ऑपरेशन मैनेजर होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के दो अन्य पाइलटों से भी करवाता रहा है और इस तरह मुख्यमंत्री व अन्य अतिवशिष्ठ व्यक्तियों की ज़िंदगी को ख़तरे में डालता रहा है। 


आश्चर्य है कि डीजीसीए के अधिकारी भी इतने संगीन उल्लंघन पर चुप बैठे रहे? ज़ाहिर है कि यह चुप्पी बिना क़ीमत दिए तो ख़रीदी नहीं जा सकती। इसका प्रमाण है कि 30 दिसम्बर 2019 को डीजीसीए की जो टीम जाँच करने लखनऊ गई थी उसने मिश्रा व अन्य पाइलटों के इस गम्भीर उल्लंघन को जान बूझकर अनदेखा किया। क्या डीजीसीए के मौजूदा निदेशक अरुण कुमार को अपनी इस टीम से इस लापरवाही या भ्रष्टाचार पर ये जवाब-तलब नहीं करना चाहिए?       


इसी तरह हर पाइलट को अपना मेडिकल लाइसेन्स का भी हर वर्ष नवीनीकरण करवाना होता है। जिससे अगर उसके शरीर, दृष्टि या निर्णय लेने की क्षमता में कोई गिरावट आई हो तो उसे जहाज़ उड़ाने से रोका जा सकता है। पर कैप्टन मिश्रा बिना मेडिकल लाइसेन्स के नवीनीकरण के  बी-200 जहाज़ धड़ल्ले से उड़ता रहा। यह हम पहले ही बता चुके हैं कि कोई पाइलट हेलिकॉप्टर और हवाई जहाज़ दोनो नहीं उड़ा सकता। क्योंकि दोनो की एरोडायनामिक्स अलग अलग हैं। पर प्रज्ञेश मिश्रा इस नियम की भी धज्जियाँ उड़ा कर दोनो क़िस्म के वीआईपी जहाज़ और हेलिकॉप्टर उड़ाता रहा है, जिससे मुख्यमंत्री उसके क़ब्ज़े में ही रहे और वो इसका फ़ायदा उठाकर अपनी अवैध कमाई का मायाजाल लगातार बढ़ाता रहे। 


नई दिल्ली के खोजी पत्रकार रजनीश कपूर ने कैप्टन प्रज्ञेश मिश्रा की 200 से भी अधिक फ़र्ज़ी कम्पनियों में से 28 कम्पनियों और उनके संदेहास्पद निदेशकों के नाम सोशल मीडिया पर उजागर कर दिए हैं और योगी जी से इनकी जाँच कराने की अपील कई बार की है। इस आश्वासन के साथ, कि अगर यह जाँच ईमानदारी से होती है तो कालचक्र ब्यूरो उत्तर प्रदेश शासन को इस महाघोटाले से जुड़े और सैंकड़ों दस्तावेज भी देगा। आश्चर्य है कि योगी महाराज ने अभी तक इस पर कोई सख़्त कार्यवाही क्यों नहीं की ? लगता है कैप्टन मिश्रा के संरक्षक उत्तर प्रदेश शासन के कई वरिष्ठ अधिकारी योगी महाराज को इस मामले में अभी भी गुमराह कर रहे हैं। 1990 में एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कहा था कि नौकरशाही घोड़े के समान होती है सवार अपनी ताक़त से उसे जिधर चाहे मोड़ सकता है।पर यहाँ तो उलटा ही नजारा देखने को मिल रहा है। देखें आगे क्या होता है ?

Monday, June 29, 2020

नागर विमानन महानिदेशालय में इतने घोटाले क्यों ?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीननागर विमानन महानिदेशालय’ (डीजीसीए) की ज़िम्मेदारी है कि निजी या सरकारी क्षेत्र की जो भी हवाई सेवाएँ देश में चल रही हैं उन पर नियंत्रण रखना। हवाई जहाज़ उड़ाने वाले पाइलटों की परीक्षा करना। गलती करने पर उन्हें सज़ा देना और हवाई जहाज़ उड़ाने का लाइसेंस प्रदान करना। बिना इस लाइसेंस के कोई भी पाइलट हवाई जहाज़ या हेलिकॉप्टर नहीं उड़ा सकता। इसके साथ ही हर एयरलाइन की गतिविधियों पर निगरानी रखना, नियंत्रण करना, उन्हें हवाई सेवाओं के रूट आवंटित करना और किसी भी हादसे की जाँच करना भी इसी निदेशालय के अधीन आता है। 


ज़ाहिर है कि अवैध रूप से मोटा लाभ कमाने के लिए एयरलाईनस प्रायः नियमों के विरुद्ध सेवाओं का संचालन भी करती हैं। जिनके पकड़े जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए और अगर अपराध संगीन हो तो उनका लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इन सब अधिकारों के चलते निदेशालय के अधिकारियों की शक्ति असीमित है जिसका दुरुपयोग करके वे अवैध रूप से मोटी कमाई भी कर सकते हैं। 


हर मीडिया हाउस में नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागर विमानन महानिदेशालय को कवर करने के लिए विशेष रिपोर्टर होते हैं। जिनका काम ऐसी अनियमित्ताओं को उजागर कर जनता के सामने लाना होता है। क्योंकि उड़ान के दौरान की गई कोई भी लापरवाही आम जनता की ही नहीं अतिविशिष्ठ यात्रियों की भी जान ले सकती है। इसलिए इन संवाददाताओं को मुस्तैदी से अपना काम करना चाहिये। पर अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि ये लोग अपना काम मुस्तैदी से करने में, कुछ अपवादों को छोड़ कर, नाकाम रहे हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है कि ये एयरलाइनस ऐसे रेपोर्टर्ज़ या उनके सम्पादकों कोप्रोटोकॉलके नाम पर तमाम सुविधाएँ प्रदान करती हैं। जैसे कि मुफ़्त टिकट देना, टिकटअपग्रेडकर देना या गंतव्य पर पाँच सितारा आतिथ्य और वाहन आदि की सुविधाएँ प्रदान करना। इसका स्पष्ट उदाहरण जेट एयरवेज के अनेक घोटाले  हैं। नरेश गोयल की इस एयरलाइन ने अपने जन्म से ही इतने घोटाले किए हैं कि इसे कब का बंद हो जाना चाहिए था। किंतु नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अफ़सरों, राजनेताओं और मीडिया में अपने ऐसे ही सम्बन्धों के कारण ये एयरलाइंस दो दशक से भी ज़्यादा तक निडर होकर घोटाले करती रही।    


इन हालातों में, देश के हित में जेट एयरवेज़ के घोटालों को उजागर करने का काम, दो दशकों से भी ज़्यादा से मेरे सहयोगी और  दिल्ली के कालचक्र समाचार के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने किया। इसी आधार पर सीबीआई और सीवीसी में जेट के विरूद्ध दर्जनों शिकायतें दर्ज की और दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी दायर की। इस तरह चार वर्षों तक लगातार सरकार पर दबाव बनाने के बाद ही जेट एयरवेज़ पर कार्यवाही शुरू हुई। जिसका परिणाम आपके सामने है।  


अगर केवल जेट एयरवेज़ के अपराधों को ही छुपाने की बात होती तो माना जा सकता था कि राजनैतिक दबाव में नागर विमानन महानिदेशालय आँखें मींचे बैठा है। पर यहाँ तो ऐसे घोटालों का अम्बार लगा पड़ा है। ताज़ा उदाहरण देश की एक राज्य सरकार के पाइलट का है, जिसके पिता उसी राज्य के एक बड़े अधिकारी थे, वे तत्कालीन मुख्यमंत्री के कैबिनेट सचिव, जो कि स्वयं एक पाइलट थे, के काफ़ी करीबी थे। इसलिए इन महाशय की नियुक्ति ही नियमों की धज्जियाँ उड़ा कर हुई थी। नियमों के अनुसार अगर अतिविशिष्ट लोगों को उड़ाने के लिए किसी पाइलट की नियुक्ति होती है तो उसका मूल आधार है कि उस पाइलट के पास न्यूनतम 1000 घंटो की उड़ान का अनुभव हो। लेकिन इनके पास केवल अपने पिता के सम्पर्कों के सिवाय कुछ नहीं था। ग़ौरतलब है कि प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग में बिना वरिष्ठतम पाइलट हुए ही इसने स्वयं को इस विभाग का सिर्फ़ ऑपरेशन मैनेजर बनाए रखा बल्कि सभी नियमों को दर-किनार कर दो तरह के विमानों को उड़ाने का काम कई वर्षों तक किया: हेलीकाप्टर वायुयान। जबकि नागर विमानन महानिदेशालय के नियमानुसार एक व्यक्ति द्वारा ऐसे दो तरह के विमान उड़ाना वर्जित है। इससे ऐरोड्यमिक्स की गफ़लत में बड़ा हादसा हो सकता है। फिर भी डीजीसीए ने कुछ नहीं किया? ऐसा उसने केवल मुख्यमंत्री और अतिविशिष्ठ व्यक्तियों से संपर्क साधने और दलाली करने की मंशा से ही किया था। 


इस पाइलट पर यह भी आरोप था कि इसने अपने आपराधिक इतिहास की सही जानकारी छुपा कर अपने लिएएयरपोर्ट एंट्री पासभी हासिल किया था। इसकी शिकायत भीकालचक्रने नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) के महानिदेशक  से की और जाँच के बाद सभी आरोपों को सही पाए जाने पर इसकाएयरपोर्ट एंट्री पासभी हाल ही में रद्द किया गया। 


ग़नीमत है कि डीजीसीए ने इसी पाइलट की एक और गम्भीर गलती पर जाँच करके इसे इसके लाइसेंस को 10 जून 2020 को 6 महीनों के लिए निलम्बित भी कर दिया है। इस पर आरोप था कि एक हवाई यात्रा के दौरान इसने बीच आसमान में को-पाइलट के साथ सीट बदल कर विमान के कंट्रोल को अपने हाथ में ले लिया, जोकि सिर्फ़ ग़ैरक़ानूनी है, ख़तरनाक है, बल्कि एक आपराधिक कदम है। जबकि विमान 10,000 फुट के नीचे उड़ रहा था एवंऑटो पाइलटमोड में नहीं था। ग़ौरतलब है कि यह प्रकरण 2018 की जेट एयरवेज़ की लंदन फ़्लाइट, जिसमें दोनों पाइलट, बीच यात्रा के, कॉकपिट से बाहर निकल आए थे, से अधिक गम्भीर है। उस फ़्लाइट की जाँच के पश्चात पाइलट को पाइलट को 5 वर्ष के लिए निलम्बित किया गया था। लेकिन सूत्रों की मानें तो इस रसूखदार पाइलट ने इस बात को सुनिषचित कर लिया है कि इस निलम्बन को भी वो रद्द करवा लेगा। 


इस पाइलट पर वित्तीय अनियमिताओं के भी आरोप भी है और हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके विषय में लिखित सूचना भी प्रदान की है। इस पाइलट के परिवार के तार 200 से भी अधिक कम्पनियों से जुड़े हैं जिनमें अवैध रूप से सैंकड़ों करोड़ रुपयों का हेर-फेर होने का आरोप है, जिसकी जाँच चल रही है।   


ये तो केवल एक ऐसा मामला था जिसकी जाँच डीजीसीए के अधिकारियों को करनी थी। लेकिन डीजीसीए में तैनात अधिकारी अगर स्वयं ही भ्रष्टाचार और घोटालों में लिप्त हों तो न्याय कैसे मिले। डीजीसीए में ही तैनात कैप्टन अतुल चंद्रा भी  ऐसी ही संदिग्ध छवि वाले अधिकारी हैं। ये 2017 में एयर इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर डीजीसीए में आए और आज चीफ फ्लाइट ऑपरेशंस इंस्पेक्टर (सीएफओआई) के रूप में कार्यरत हैं। सीएफओआई का पद बेहद संवेदनशील होता है क्योंकि यह विमान सेवाओं और पाइलट के उल्लंघनों पर नजर रखता है और इस मामले में सतर्कता बरतना उसका काम है।


ग़ौरतलब है कि 2017 से आश्चर्यजनक रूप से चंद्रा 19 महीनों तक एअर इंडिया और डीजीसीए, दोनों से वेतन प्राप्त करते रहे, जो कि एक आपराधिक कृत्य है। जब 2019 में मामला उजागर हुआ तो 2.80 करोड़ रुपयों में से इन्होंने 80 लख वापिस किए। इतना ही नहीं फ़ेमा और पीएमएलए के भिन्न उल्लंघनों के लिए प्रवर्तन निदेशालय भी उनकी जांच कर रहा है। 


लेकिन आश्चर्य है कि इन सब आरोपों को दर किनार करते हुए कैप्टन चंद्रा के डीजीसीए में कार्यकाल, जो 30 जून 2020 को समाप्त होना है, की अवधि बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है। चंद्रा के ऐसे स्पष्ट अपराध को एअर इंडिया के सीएमडी और डीजीसीए कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? ये लोग नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केभ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगाजैसे दावों पर भरोसा करने वाला आम भारतीय ऐसे मामलों में तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा करेगा।