नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन ‘नागर विमानन महानिदेशालय’ (डीजीसीए) की ज़िम्मेदारी है कि निजी या सरकारी क्षेत्र की जो भी हवाई सेवाएँ देश में चल रही हैं उन पर नियंत्रण रखना। हवाई जहाज़ उड़ाने वाले पाइलटों की परीक्षा करना। गलती करने पर उन्हें सज़ा देना और हवाई जहाज़ उड़ाने का लाइसेंस प्रदान करना। बिना इस लाइसेंस के कोई भी पाइलट हवाई जहाज़ या हेलिकॉप्टर नहीं उड़ा सकता। इसके साथ ही हर एयरलाइन की गतिविधियों पर निगरानी रखना, नियंत्रण करना, उन्हें हवाई सेवाओं के रूट आवंटित करना और किसी भी हादसे की जाँच करना भी इसी निदेशालय के अधीन आता है।
ज़ाहिर है कि अवैध रूप से मोटा लाभ कमाने के लिए एयरलाईनस प्रायः नियमों के विरुद्ध सेवाओं का संचालन भी करती हैं। जिनके पकड़े जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए और अगर अपराध संगीन हो तो उनका लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि इन सब अधिकारों के चलते निदेशालय के अधिकारियों की शक्ति असीमित है जिसका दुरुपयोग करके वे अवैध रूप से मोटी कमाई भी कर सकते हैं।
हर मीडिया हाउस में नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागर विमानन महानिदेशालय को कवर करने के लिए विशेष रिपोर्टर होते हैं। जिनका काम ऐसी अनियमित्ताओं को उजागर कर जनता के सामने लाना होता है। क्योंकि उड़ान के दौरान की गई कोई भी लापरवाही आम जनता की ही नहीं अतिविशिष्ठ यात्रियों की भी जान ले सकती है। इसलिए इन संवाददाताओं को मुस्तैदी से अपना काम करना चाहिये। पर अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि ये लोग अपना काम मुस्तैदी से करने में, कुछ अपवादों को छोड़ कर, नाकाम रहे हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है कि ये एयरलाइनस ऐसे रेपोर्टर्ज़ या उनके सम्पादकों को ‘प्रोटोकॉल’ के नाम पर तमाम सुविधाएँ प्रदान करती हैं। जैसे कि मुफ़्त टिकट देना, टिकट ‘अपग्रेड’ कर देना या गंतव्य पर पाँच सितारा आतिथ्य और वाहन आदि की सुविधाएँ प्रदान करना। इसका स्पष्ट उदाहरण जेट एयरवेज के अनेक घोटाले हैं। नरेश गोयल की इस एयरलाइन ने अपने जन्म से ही इतने घोटाले किए हैं कि इसे कब का बंद हो जाना चाहिए था। किंतु नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अफ़सरों, राजनेताओं और मीडिया में अपने ऐसे ही सम्बन्धों के कारण ये एयरलाइंस दो दशक से भी ज़्यादा तक निडर होकर घोटाले करती रही।
इन हालातों में, देश के हित में जेट एयरवेज़ के घोटालों को उजागर करने का काम, दो दशकों से भी ज़्यादा से मेरे सहयोगी और दिल्ली के कालचक्र समाचार के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने किया। इसी आधार पर सीबीआई और सीवीसी में जेट के विरूद्ध दर्जनों शिकायतें दर्ज की और दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी दायर की। इस तरह चार वर्षों तक लगातार सरकार पर दबाव बनाने के बाद ही जेट एयरवेज़ पर कार्यवाही शुरू हुई। जिसका परिणाम आपके सामने है।
अगर केवल जेट एयरवेज़ के अपराधों को ही छुपाने की बात होती तो माना जा सकता था कि राजनैतिक दबाव में नागर विमानन महानिदेशालय आँखें मींचे बैठा है। पर यहाँ तो ऐसे घोटालों का अम्बार लगा पड़ा है। ताज़ा उदाहरण देश की एक राज्य सरकार के पाइलट का है, जिसके पिता उसी राज्य के एक बड़े अधिकारी थे, वे तत्कालीन मुख्यमंत्री के कैबिनेट सचिव, जो कि स्वयं एक पाइलट थे, के काफ़ी करीबी थे। इसलिए इन महाशय की नियुक्ति ही नियमों की धज्जियाँ उड़ा कर हुई थी। नियमों के अनुसार अगर अतिविशिष्ट लोगों को उड़ाने के लिए किसी पाइलट की नियुक्ति होती है तो उसका मूल आधार है कि उस पाइलट के पास न्यूनतम 1000 घंटो की उड़ान का अनुभव हो। लेकिन इनके पास केवल अपने पिता के सम्पर्कों के सिवाय कुछ नहीं था। ग़ौरतलब है कि प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग में बिना वरिष्ठतम पाइलट हुए ही इसने स्वयं को इस विभाग का न सिर्फ़ ऑपरेशन मैनेजर बनाए रखा बल्कि सभी नियमों को दर-किनार कर दो तरह के विमानों को उड़ाने का काम कई वर्षों तक किया: हेलीकाप्टर व वायुयान। जबकि नागर विमानन महानिदेशालय के नियमानुसार एक व्यक्ति द्वारा ऐसे दो तरह के विमान उड़ाना वर्जित है। इससे ऐरोड्यमिक्स की गफ़लत में बड़ा हादसा हो सकता है। फिर भी डीजीसीए ने कुछ नहीं किया? ऐसा उसने केवल मुख्यमंत्री और अतिविशिष्ठ व्यक्तियों से संपर्क साधने और दलाली करने की मंशा से ही किया था।
इस पाइलट पर यह भी आरोप था कि इसने अपने आपराधिक इतिहास की सही जानकारी छुपा कर अपने लिए ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी हासिल किया था। इसकी शिकायत भी ‘कालचक्र’ ने नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) के महानिदेशक से की और जाँच के बाद सभी आरोपों को सही पाए जाने पर इसका ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी हाल ही में रद्द किया गया।
ग़नीमत है कि डीजीसीए ने इसी पाइलट की एक और गम्भीर गलती पर जाँच करके इसे व इसके लाइसेंस को 10 जून 2020 को 6 महीनों के लिए निलम्बित भी कर दिया है। इस पर आरोप था कि एक हवाई यात्रा के दौरान इसने बीच आसमान में को-पाइलट के साथ सीट बदल कर विमान के कंट्रोल को अपने हाथ में ले लिया, जोकि न सिर्फ़ ग़ैरक़ानूनी है, ख़तरनाक है, बल्कि एक आपराधिक कदम है। जबकि विमान 10,000 फुट के नीचे उड़ रहा था एवं ‘ऑटो पाइलट’ मोड में नहीं था। ग़ौरतलब है कि यह प्रकरण 2018 की जेट एयरवेज़ की लंदन फ़्लाइट, जिसमें दोनों पाइलट, बीच यात्रा के, कॉकपिट से बाहर निकल आए थे, से अधिक गम्भीर है। उस फ़्लाइट की जाँच के पश्चात पाइलट व को पाइलट को 5 वर्ष के लिए निलम्बित किया गया था। लेकिन सूत्रों की मानें तो इस रसूखदार पाइलट ने इस बात को सुनिषचित कर लिया है कि इस निलम्बन को भी वो रद्द करवा लेगा।
इस पाइलट पर वित्तीय अनियमिताओं के भी आरोप भी है और हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके विषय में लिखित सूचना भी प्रदान की है। इस पाइलट के परिवार के तार 200 से भी अधिक कम्पनियों से जुड़े हैं जिनमें अवैध रूप से सैंकड़ों करोड़ रुपयों का हेर-फेर होने का आरोप है, जिसकी जाँच चल रही है।
ये तो केवल एक ऐसा मामला था जिसकी जाँच डीजीसीए के अधिकारियों को करनी थी। लेकिन डीजीसीए में तैनात अधिकारी अगर स्वयं ही भ्रष्टाचार और घोटालों में लिप्त हों तो न्याय कैसे मिले। डीजीसीए में ही तैनात कैप्टन अतुल चंद्रा भी ऐसी ही संदिग्ध छवि वाले अधिकारी हैं। ये 2017 में एयर इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर डीजीसीए में आए और आज चीफ फ्लाइट ऑपरेशंस इंस्पेक्टर (सीएफओआई) के रूप में कार्यरत हैं। सीएफओआई का पद बेहद संवेदनशील होता है क्योंकि यह विमान सेवाओं और पाइलट के उल्लंघनों पर नजर रखता है और इस मामले में सतर्कता बरतना उसका काम है।
ग़ौरतलब है कि 2017 से आश्चर्यजनक रूप से चंद्रा 19 महीनों तक एअर इंडिया और डीजीसीए, दोनों से वेतन प्राप्त करते रहे, जो कि एक आपराधिक कृत्य है। जब 2019 में मामला उजागर हुआ तो 2.80 करोड़ रुपयों में से इन्होंने 80 लख वापिस किए। इतना ही नहीं फ़ेमा और पीएमएलए के भिन्न उल्लंघनों के लिए प्रवर्तन निदेशालय भी उनकी जांच कर रहा है।
लेकिन आश्चर्य है कि इन सब आरोपों को दर किनार करते हुए कैप्टन चंद्रा के डीजीसीए में कार्यकाल, जो 30 जून 2020 को समाप्त होना है, की अवधि बढ़ाने की पुरज़ोर कोशिश की जा रही है। चंद्रा के ऐसे स्पष्ट अपराध को एअर इंडिया के सीएमडी और डीजीसीए कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं? ये लोग नियमों का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के “भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं होगा” जैसे दावों पर भरोसा करने वाला आम भारतीय ऐसे मामलों में तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा करेगा।
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