जवाहरलाल नेहरू
विश्वविद्यालय में हमारी सहपाठी रहीं भारत की वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला
सीतारमण ने देश की जनता से आगामी बजट के लिए रचनात्मक सुझाव मांगे है। इसकी
प्रतिक्रिया में एक डॉक्टर ने भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी को एक रोचक
पत्र लिखा है। जिसमें डॉक्टर का कहना कि मोदी जी हम टैक्स चोर नहीं हैं। फिर हम
क्यों टैक्स चोरी करते हैं? ये पत्र उन्होंने हर उस
व्यापारी या प्रोफेश्नल की तरफ से लिखा है, जिसकी क्षमता
आयकर देने की है।
वे लिखते हैं कि हमें
अपने घर,
दफ्तर और कारखानों में जेनरेटर चलाकर बिजली पैदा करनी पड़ती है,
क्योंकि सरकार 24 घंटे बिजली नहीं दे पाती।
हमें सबमर्सिबल पंप लगाकर अपनी जलापूर्ति करनी पड़ती है, क्योंकि
जल विभाग हमें आवश्यकतानुसार पानी नहीं दे पाता। हमें अपनी सुरक्षा के लिए
सिक्योरिटी गार्ड भी रखने पड़ते हैं, क्योंकि पुलिस हमारी
रक्षा नहीं करती। हमें अपने बच्चों को मंहगे प्राइवेट स्कूलों में पढाना पड़ता है,
क्योंकि सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। हमें अपना इलाज भी
मंहगे प्राइवेट अस्पतालों में करवाना पड़ता है, क्योंकि
सरकारी अस्पताल खुद ही आई.सी.यू. में पड़े हैं। हमें आवागमन के लिए अपनी कारें
खरीदनी पड़ती हैं, क्योंकि सरकारी ट्रांस्पोर्ट व्यवस्था की
हालत खस्ता है।
सेवानिवृत्त होने के
बाद एक आयकरदाता को इज्जत से जिंदा रहने के लिए सरकार से मिलता ही क्या है? कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती। बल्कि उसकी जिंदगीभर की मेहनत की कमाई से
सरकार जो कर उघाती है, वह राजनेता वोटों के लालच में बड़ी-बड़ी
खैरात बांटकर लुटा देते हैं। प्रश्न ये है कि हमारे कर की आय से सरकार क्या-क्या
करती है? अदालत चलाती है? जहां वर्षों
न्याय नहीं मिलता। थाने बनाये गए हैं? जहां केवल राजनेताओं
और आला-अफसरों की सुनी जाती है। आम आदमी की तो शिकायत भी रिश्वत लेने के बाद दर्ज
होती है। स्कूल और अस्पतालों के भवनों को बनाने पर सरकार खूब खर्च करती है,
जो कुछ सालों में खंडहर हो जाते हैं। सरकार सड़के बनवाती है, जिसमें 40 फीसदी तक कमीशन खाया जाता है। यह सूची बहुत
लंबी है।
पश्चिमी देशों में जिस
तरह की सामाजिक सुरक्षा सरकार देती है, उसके बाद वहां
के नागरिक टैक्स चोरी क्यों करें ? जब हर सुविधा उन्हें
सरकार से ही मिल जाती है, तो उन्हें चिंता किस बात की?
जबकि हमारे यहां अरबों-खरबों रूपया केवल नेताओं और अफसरों के ठाट-बाट,
सैर-सपाटों और ताम-झाम पर खर्च होता है। जनता पर खर्च होने के लिए
बचता ही क्या है?
एक कारखानेदार 2 से 10 फीसदी मुनाफे पर उत्पादन करता है। जबकि सरकार
को अपनी आय का 30 फीसदी अपनी व्यवस्था चलाने पर ही खर्च करना
होता है। ये कहां तक न्याय संगत है?
यही कारण है कि भारत
में कोई सरकार को कर अदा नहीं करना चाहता। हम टैक्स बचाते हैं, अपने परिवार की परवरिश के लिए और बुढ़ापे में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने
के लिए। जबकि ये सब जिम्मेदारी अगर सरकार लेती, तो हमें इसकी
चिंता नहीं करनी पड़ती।
दूसरी तरफ अगर सरकार ये
घोषणा करे कि उसे सेना के लिए या बाढ़ व तूफान में राहत पहुंचाने के लिए 1000 करोड़ रूपये चाहिए, तो हम सब देशवासी इतना धन 2 दिन में जमा करवा सकते हैं और करवाते भी हैं। सरकार की ऐसी किसी भी मांग
पर हम सभी करदाता खुले दिल से सहयोग करने में आगे बढ़ेंगे। इससे स्पष्ट है कि हम
सरकार का सहयोग करना चाहते हैं। हम सरकार की उन रणनीतियों और कार्यक्रमों के लिए
धन देने को भी तैयार हैं, जिनसे देश की सुरक्षा हो, गरीबों को न्याय मिले और हम सबका जीवन आराम से गुजरे। पर दुर्भाग्य से ऐसा
नहीं हो रहा है। इसलिए आम करदाता कर देने से बचता है।
जरूरत इस बात की है कि
इन सरकारी सेवाओं को सुधारा जाऐ और हमें चोर बताने से पहले जिले से लेकर ऊपर तक
भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और नेताओं की कड़ाई से नकेल कसी जाए। जो अभी तक
नहीं हो पाया है। चाहे वह राज्य किसी भी दल द्वारा शासित क्यों न हो, आम आदमी को तो हर जा-बेजा बात के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इससे जनता में
सरकार की छवि खराब होती है।
जब भ्रष्टचारी
अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों पर लगाम कसी जायेगी,
तो इसके तीन लाभ होंगे। एक तो भ्रष्टाचार और कालेधन पर प्रभावी रोक
लग सकेगी। दूसरा आम जनता के बीच मोदी जी इतने लोकप्रिय हो जाऐंगे कि अगली बार
दुगने मतों से जीतेंगे। तीसरा इस देश का आम व्यक्ति ईमानदारी से इतना कर देगा कि
सरकार का खजाना कभी खाली न हो। बशर्ते जनता के इस धन का पारदर्शिता से सार्थक
उपयोग हो, उसको एय्याशी में बर्बाद न किया जाए।
पिछले 5 वर्षों में मोदी जी ने भारत सरकार में भ्रष्टाचार को रोकने में भारी सफलता
हासिल की है। अब दिल्ली के 5 सितारा होटलों में आपको हाई
प्रोइफल दलाल कहीं दिखाई नहीं देते। क्योंकि अब कोई ये दावा नहीं कर सकता कि तुम
मुझे इतना रूपया दो, तो मैं तुम्हारा काम करवा दूंगा। अब
इससे एक कदम और आगे जाने की जरूरत है। प्रांतों और जिलों में भी इसी संस्कृति का
अविलंब परिचय मिलना चाहिए। तभी जनता को लगेगा कि ‘मोदी है, तो
मुमकिन है’।