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Monday, June 10, 2019

विश्व में तेल और गैस के अकूत भंडार उपलब्ध हैं

एक महीना पहले पेट्रोल मंत्रालय ने नोटिफिकेशन निकालकर भारत में तेल और गैस निकालने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर छूट और सुविधाओं की घोषणा करते हुए देशी और विदेशी कंपनियों को आमंत्रित किया। उसके फलस्वरूप एक सप्ताह पहले देश के 85 प्रतिशत तेल और गैस के बचे-खुचे भंडारों का ठेका अनेक कंपनियो को दे दिया गया और अभी हाल ही  में पश्चिमी उ0प्र0 के बागपत क्षेत्र से तेल की खुदाई के लिए काम भी शुरू हो गया। स्मरण रहे कि सेटेलाइट द्वारा ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक के माध्यम से पूरे धरती की 35 किमी. तक गहरी ^crustal layers* की ‘सिग्नेचर फाइल्स’ कई साल पहले विश्व के कई देशों ने पहले से ही तैयार कर रखीं है। इन फाइल्स के अंदर धरती माता के गर्भ में कहाँ-कहाँ तेल और गैस के कितने भंडार हैं, सोने-चाँदी के कितने भंडार हैं, हीरे-रत्नों के कितने भंडार हैं, तांबे-लोहे के कितने भंडार है, आदि को चिन्ह्ति किये जा चुका है। दुर्भाग्यवश कुछ देश अभी तक इस सूचना से वंचित हैं।
अगर इन फाइलों को विश्व कल्याण हेतु सार्वजनिक कर दिया जाए, तो विश्व के 771 करोड़ लोगों की गरीबी, भुखमरी, बदहाली 3 महीने के अंदर दूर हो सकती है। ये बहुत महत्वपूर्णं ‘कम्युनिकेशन गैप’ है, जिसके कारण पूरे विश्व में एक अनिश्चितता और घबराहट का वातावरण छाया हुआ है। चूंकि ये युग परिवर्तन की शुभ और पवित्र बेला है, इसलिए पिछले दिनों ‘ईलौन मस्क’ जैसे उदारशील महापुरूष ने अपनी ‘टेस्ला कार’ का पेटेंट ‘पब्लिक इंट्रस्ट’ में मुफ्त में देने की घोषणा कर दी। उधर बिल गेट्स और स्टीव जॉब जैसे ‘इंटरप्रन्यार्स’ ने जनहित में अपनी फाउंडेशंस के माध्यम से धन के भंडार दान में दे दिये। हम आशा करते हैं अगर अमेरिका भारत को तेल और गैस बेचने के लिए ऑफर कर सकता है, तो वो विश्व कल्याण हेतु जो ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की जो सिग्नेचर फाइल्स हैं, उनको भी मुफ्त में सार्वजनिक कर दे। ऐसा करने से विश्व के जितने विकासशील देश हैं, उनके प्राकृतिक संसाधन ‘पब्लिक डोमेन’ में आ जाने से डिमांड और सप्लाई की रस्साकशी खत्म हो जाएगी। धरती माता जिसको वेदों में कामधेनु और वसुंधरा के नाम से अलंकृत किया गया है, उसके 771 करोड़ बच्चे खुशहाल और संपन्न हो जाऐंगे।
पैट्रोलियम मंत्रालय ने पिछले महीने तेल और गैस की नीति सुधारने के लिए जब अधिसूचना जारी की, तो उसमें ‘सिस्मिक सर्वे’ को तो 20 प्रतिशत ‘वेटेज’ दिया गया। मगर ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की ‘सिग्नेचर फाईल्स’ की चर्चा नहीं की गई। अगर भारत को ‘सुपर पॉवर’ बनना है, तो ईसरो के सेटेलाईट के माध्यम से अपनी ‘पर्सनल सिग्नेचर फाईल्स’ तुरंत तैयार करके अपने देश के प्राकृतिक संसाधानों का नियोजित दोहन करना शुरू करना होगा। इस देव भूमि भारत में प्राकृतिक संसाधनों के अकूत भंडार विद्यमान हैं। मगर ‘कम्युनिकेशन गैप’ होने की बजह से हम अपने देश का 10 लाख करोड़ रूपया हर साल तेल और गैस के आयात में फिजूल में बर्बाद कर देते हैं। अगर ये पैसा बच जाऐ, तो देश विकसित देशों की श्रेणी में आ जाऐगा।
सर्वविदित है कि छत्तीसगढ़ में हीरों की विश्व की सबसे कीमती और महत्वपूर्णं खान का ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक के द्वारा ही पता लगा है। हमें अब ‘सिस्मिक सर्वे’ जैसी कमजोर और अधूरी तकनीक के भरोसे नहीं रहना चाहिए। याद रहे कि सर्जिकल स्ट्राइक और ओसामा के ऊपर हमले में भी इसी ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ की तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। अर्थर्वेद के भूमि सूक्त के बारहवें मंत्र (यत्ते मध्यं पृथिवि यच्च नभ्यं यास्त ऊर्जस्तन्वः संबभूवुः। तासु नो धेह्यभि नः पवस्व माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्याः।।)  की दूसरी लाईन में अथर्वाऋषि ने धरती की नाभि से निकलने वाली ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ के उद्गम स्थल के महत्व को सारगर्भित कहकर प्रशंसा की है। यही ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ धरती की नाभि से चलते हुए धरती की सतह को क्रॉस करके सेटेलाइट के कैमरे में पहुंचकर ‘हाईपर स्पैक्ट्रल इमिजिंग’ को अमलीय जामा पहनाती हैं। इसलिए अर्थवा ऋषि ने धरती की नाभि के ऊपर सभी विद्वानों को अपना ध्यान केंद्रित करने के लिए वाहरवें मंत्र में उपदेश दिया है। याद रहे इसी धरती की नाभि से ^magnetosphere’ का उद्गम होता है। जोकि धरती की सतह से 70000 किमी की ऊँचाईं पर जाकर एक महत्वपूर्णं छाता तैयार करता है। इस छाते की मदद से सूर्य से आने वाली घातक सोलर विंड’ के ‘इलैक्ट्रिकली चार्ज पार्टिकल्र्स’ धरती के उत्तरी और दक्षिणी धु्रवों की तरफ डाईवर्ट हो जाते हैं। अगर ये ‘मैग्नेटो सफियर’ छाता न हो, तो धरती के ऊपर बसने वाले 771 करोड़ आदमी एक दिन में चनों की तरह भुन जाऐंगे और धरती पर बसी हुई सारी सृष्टि जलकर राख हो जाऐगी। इसलिए अथर्वा ऋषि ने भूमि सूक्त के वारहवें मंत्र में धरती की नाभि से निकलने वाली ऊर्जा को धरती के अस्तित्व के लिए और धरती पर बसने वाले धरतीवासियों के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्णं बताया है।
अब आगे पाठकों को हम हम बता दें कि इन्हीं ‘इंफ्रा रैड रेडिएशंस’ से धरती की सतह जो है, वो पवित्र (स्टेरेलाईज) होती है। नहीं तो धरती के ऊपर बहुत सारी काई जम जाती और धरतीवासी महामारियों से मर जाते। तो कुल मिलाकर भूमि का सबसे महत्वूपूर्णं अंग उसकी नाभि और उससे निकलने वाली अनेक प्रकार की ऊर्जा ही है और साथ ही साथ यह जो धरती फुटबॉल की तरह फूली हुई है, उसको फुलाऐ रखने में इसी ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्णं योगदान है। नहीं तो यह धरती जो फुटबॉल की तरह फूली हुई है, ये सिकुड़कर टेबिल टेनिस का बॉल बन जाती और पूरे के पूरे विश्व के देश 6500 किमी. नीचे धंस जाते। इसी तथ्य को भगवान श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन को उपदेश देते हुए श्रीमद्भगवतगीता के 15वें अध्याय के 13 वें श्लोक की प्रथम पंक्ति में कहा है ‘गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा’। इसी पंक्ति का सरलार्थ करते हुए आदि शंकराचार्य ने लिखा है कि ये ऊर्जा की मात्रा संतुलित है। अगर ये ऊर्जा की मात्रा कम हो जाऐ, तो यह धरती नीचे धंस जाएगी और यदि ऊर्जा की मात्रा अधिक हो जाऐ, तो धरती जरूरत से ज्यादा फूलकर गुब्बारे की तरह फट जाऐगी। ये संतुलन सातवें आसमान में स्थित अमृत पुंज द्वारा किया जाता है। जिसकी चर्चा अथर्वा ऋषि ने भूमि सूक्त के आंठवें मंत्र की दूसरी पंक्ति ‘यस्या हृदयं परमे व्योमन्त्सत्येनावृतममृतं पृथिव्याः’ में की है। इन सूचनाओं के स्रोत वैदिक वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर इस गुप्त रहस्य या पृथ्वी के अमृत पुंज से, जिसको श्रीमद्भगवत्गीता में घन परमेश्वर कहा गया है, प्रार्थना करते हैं कि वो विश्व के कल्याण हेतु विकसित देशों को ‘सिग्नेचर फाइल्स’ को सार्वजनिक करने की सद्बुद्धि प्रदान करें।

Monday, October 8, 2018

लद्दाख और श्रीनगर घाटी में अंतर

भारत का मुकुटमणि राज्य तीन हिस्सों में बंटा है- लेह लद्दाख, श्रीनगर की घाटी व आसापास का क्षेत्र और जम्मू। तीनों की संस्कृति और लोक-व्यवहार में भारी अंतर है। जबकि तीनों क्षेत्रों में एकसा ही नागरिक प्रशासन और सेना की मौजूदगी है। तीनों ही क्षेत्रों में आधारभूत ढांचे का विकास, आपातकालीन स्थितियों से निपटना और दुर्गम पहाड़ों के बीच क्षेत्र की सुरक्षा और नागरिक व्यवस्थाऐं सुनिश्चित करना, इन सब चुनौती भरे कार्यों में सेना की भूमिका रहती है।



जहां एक ओर कश्मीर की घाटी के लोग भारतीय सेना के साथ बहुत रूखा और आक्रामक रवैया अपनाते हैं, वहीं दूसरी ओर जम्मू में सेना और नागरिक आपसी सद्भभाव के साथ रहते हैं। लेकिन सबसे बढ़िया सेना की स्थिति लेह लद्दाख क्षेत्र में ही है। जहां के लोग सेना का आभार मानते हैं कि उसके आने से सड़कों व पुलों का जाल बिछ गया और अनेक सुविधाओं का विस्तार हुआ।



लेह लद्दाख की 80 फीसदी आबादी बौद्ध लोगों की है, शेष मुसलमान, थोड़े से ईसाई और हिंदू हैं। मूलतः लेख लद्दाख का इलाका शांति प्रिय रहा है। किंतु समय-समय पर पश्चिम से मुसलमान आक्रातांओं ने यहां की शांति भंग की है और अपने अधिकार जमाऐं हैं।



लेख लद्दाख के लोग भारतीय सेना से बेहद प्रेम करते हैं और उनका सम्मान करते हैं। उसका कारण यह है कि दुनिया के सबसे ऊँचे पठार और रेगिस्तान से भरा ये क्षेत्र इतना दुर्गम है कि यहां कुछ भी विकास करना ‘लोहे के चने चबाने’ जैसा है। ऊँचे-ऊँचे पर्वत जिन पर हरियाली के  नाम पर पेड़ तो क्या घास भी नहीं उगती, सूखे और खतरनाक हैं। इन पर जाड़ों में जमने वाली बर्फ कभी भी कहर बरपा सकती है। जोकि बड़े हिम खंडों के सरकने से और पहाड़ टूटकर गिरने से यातायात के लिए खतरा बन जाते हैं। तेज हवाओं के चलने के कारण यहां हैलीकाप्टर भी हमेशा बहुत सफल नहीं रहता।



ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों की श्रृंखला एक तरफ प्रकृति प्रेमियों को आकर्षित करती है, वहीं दूसरी तरफ आम पर्यटक को रोमांचित भी करती हैं। लद्दाख के लोग बहुत सरल स्वभाव के हैं, संतोषी हैं और कर्मठ भी। फिर भी यहां ज्यादा आर्थिक विकास नहीं हो पाया है। कारण यह है कि उन दुर्गम परिस्थतियों में उद्योग-व्यापार करना बहुत खर्चीला और जोखिम भरा होता है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर राज्य में बाहरी प्रांत के लोगों को जमीन-जायदाद खरीदने की अनुमति नहीं है। लोग सामान्यतः अपने काम से काम रखते हैं। पर उन्हें एक शिकायत हम मैदान वालों से है।



आजकल भारी मात्रा में पर्यटक उत्तर-भारत से लेह लद्दाख जा रहे हैं। इनमें काफी बड़ी तादात ऐसे उत्साही लोगों की है, जो ये पूरी यात्रा मोटरसाईकिल पर ही करते हैं। हम मैदान के लोग उस साफ-सुथरे राज्य में अपना कूड़ा-करकट फैंककर चले आते हैं और इस तरह उस इलाके के पर्यावरण को नष्ट करने का काम करते हैं। अगर यही हाल रहा, तो आने वाले वर्षों में लेह लद्दाख के सुंदर पर्यटक स्थल कचड़े के ढेर में बदल जाऐंगे। इसके लिए केंद्र सरकार को अधिक सक्रिय होकर कुछ कदम उठाने चाहिए। जिससे इस सुंदर क्षेत्र का नैसर्गिक सौंदर्य नष्ट न हो।



लेह जाकर पता चला कि इस इलाके के पर्वतों में दुनियाभर की खनिज सम्पदा भरी पड़ी है। जिसका अभी तक कोई दोहन नहीं किया गया है। यहां मिलने वाले खनिज में ग्रेनाइट जैसे उपयोगी पत्थरों के अलावा भारी मात्रा में सोना, पन्ना, हीरा और यूरेनियम भरा पड़ा है। इसीलिए चीन हमेशा लेह लद्दाख पर अपनी गिद्ध दृष्टि बनाये रखता है। बताया गया कि जापान सरकार ने भारत सरकार को प्रस्ताव दिया था कि अगर उसे लेह लद्दाख में खनिज खोजने की अनुमति मिल जाऐ, तो वे पूरे लेह लद्दाख का आधारभूत ढांचा अपने खर्र्चे पर विकसित करने को तैयार है। पर भारत सरकार ने ऐसी अनुमति नहीं दी। भारत सरकार को चिंता है कि लेह लद्दाख के खनिज पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले चीन से इस क्षेत्र की सीमाओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाऐ? क्योंकि आऐ दिन चीन की तरफ से घुसपैठिऐ इस क्षेत्र में घुसने की कोशिश करते रहते हैं। जिससे दोनों पक्षों के बीच झड़पैं भी होती रहती है।



जम्मू-कश्मीर की सरकार तमाम तरह के कर तो पर्यटकों से ले लेती है, पर उसकी तरफ से पूरे लेह लद्दाख में पर्यटकों की सुविधा के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया जाता है। जबसे आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट’ की शूटिंग यहां हुई है, तबसे पर्यटकों के यहां आने की तादात बहुत बढ़ गई है। पर उस हिसाब से आधारभूत ढांचे का विस्तार नहीं हुआ। एक चीज जो चैंकाने वाली है, वो ये कि पूरे लेह लद्दाख में पर्यटन की दृष्टि से हजारों गाड़ियों और सामान ढोने वाले ट्रक रात-दिन दौड़ते हैं। इसके साथ ही होटल व्यवसाय द्वारा भारी मात्रा में जेनरेटरों का प्रयोग किया जाता है। पर पूरे इलाके में दूर-दूर तक कहीं भी कोई पैट्रोल-डीजल का स्टेशन दिखाई नहीं देता। स्थानीय लोगों ने बताया कि फौज की डिपो से करोड़ों रूपये का पैट्रोल और डीजल चोरी होकर खुलेआम कालाबाजार में बिकता है। क्या रक्षामंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन इस पर ध्यान देंगी?



लेह लद्दाख का युवा अब ये जागने लगा है और अपने हक की मांग कर रहा है। पर अभी हमारा ध्यान उधर नहीं है। अगर भारत सरकार ने उस पर ध्यान नहीं दिया, तो कश्मीर का आतंकवाद लेह लेद्दाख को भी अपनी चपेट में ले सकता है।

Monday, April 17, 2017

वैदिक मार्गदर्शन से बचेंगे जल प्रलय से

सूर्य नारायण अपने पूरे तेवर दिखा रहे हैं। ये तो आगाज है 10 साल पहले ही जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञों द्वारा चेतावनी दे दी गई थी कि 2035 तक पूरी धरती के जलमग्न हो जायेगी। ये चेतावनी देने वाले दो वैज्ञानिकों को, राजेन्द्र पचैरी व भूतपूर्व अमेरिकन उप. राष्ट्रपति अलगौर को ग्लोबल पुरस्कार से नवाजा गया था। इस विषय पर एक डाक्यूमेंट्री ‘द इन्कवीनियेंट टू्रथ’ को भी जनता के लिए जारी किया गया था। विश्व के 3000 भूगर्भशास्त्रियों ने एक स्वर में ये कहा कि अगर जीवाष्म ईंधन यानि कोयला, डीजल, पेट्रोल का उपभोग कम नहीं किया गया, तो वायुमंडल में कार्बनडाई आक्साइड व ग्रीन हाऊस गैस की वायुमंडल में इतनी मोटी धुंध हो जायेगी कि सूर्य की किरणें उसमें में से प्रवेश करके धरती की सतह पर जमा हो जायेंगी और बाहर नहीं निकल पायेंगी। जिससे धरती का तापमान 2 डिग्री से बढ़कर 15-17 डिग्री तक जा पहुंचेगा। जिसके फलस्वरूप उत्तरी, दक्षिणी ध्रुव और हिमालय की ग्लेशियर की बर्फ पिघलकर समुद्र में जाकर जल स्तर बढ़ा देगी। जिससे विश्व के सारे द्वीप- इंडोनेशिया, जापान, फिलीपींस, फिजी आईलैंड, कैरिबियन आईलैंड आदि जलमग्न हो जायेंगे और समुद्र का पानी ठांठे मारता समुद्र के किनारे बसे हुए शहरों को जलमग्न करके, धरती के भू-भाग तक विनाशलीला करता हुआ आ पहुंचेगा। उदाहरण के तौर पर भारतीय संदर्भ में देखा जाए, तो बंगाल की खाड़ी का पानी विशाखापट्टनम, चेन्नई, कोलकाता जैसे शहरों को डुबोता हुआ दिल्ली तक आ पहुंचेगा।


ठससे घबराकर पूरे विश्व ने ‘सस्टेनेबल ग्रोथ’ नारा देना शुरू किया। मतलब कि हमें ऐसा विकास नहीं चाहिए, जिससे कि लेने के देने पड़ जाए। पर अब हालात ऐसे हो गये हैं कि चूहों की मीटिंग में बिल्ली के गलें में घंटी बांधने की युक्ति तो सब चूहों ने सुझा दी। लेकिन बिल्ली के गले में घंटी बांधने के लिए कोई चूहा साहस करके आगे नहीं बढ़ा। अमेरिका जैसा विकसित ‘देश कोयले, पैट्रोल और डीजल का उपभोग कम करने के लिए तैयार नहीं हो सका। उसने सरेआम  ‘क्योटो प्रोटोकोल’ की धज्जियां उड़ा दी। दुनिया की हालत ये हो गई है कि ‘एक तरफ कुंआ, दूसरी तरफ खाई, दोनों ओर मुसीबत आई’। ऐसे मुसीबत के वक्त भारतीय वैदिक वैज्ञानिक सूर्य प्रकाश कपूर ने भूगर्भ वैज्ञानिकों से प्रश्न पूछा कि धरती का तापमान 15 डिग्री सें किस स्रोत से है? तो वैज्ञानिकों ने जबाव दिया कि 15 डिग्री से तापमान का अकेला स्रोत सूर्य की धूप है। तो अथर्ववेद के ब्रह्मचारी सूक्त के मंत्र संख्या 10 और 11 में ब्रह्मा जी ने स्पष्ट लिखा है कि धरती के तापमान के दो स्रोत है- एक ’जीओेथर्मल एनर्जी’ भूतापीय उर्जा और दूसरा सूर्य की धूप। याद रहे कि विश्व में 550 सक्रिय ज्वालामुखियों के मुंह से निकलने वाला 1200 डिग्री सें0 तापमान का लावा और धरती पर फैले हुए 1 लाख से ज्यादा गर्म पानी के चश्मों के मुंह से निकलता हुआ गर्म पानी, भाप और पूरी सूखी धरती से निकलने वाली ‘ग्लोबल हीट फ्लो’ ही धरती के 15 डिग्री सें तापमान में अपना महत्वपूर्णं योगदान देती हैं। कुल मिलाकर सूर्य की धूप के योगदान से थोड़ा सा ज्यादा योगदान, इस भूतापीय उर्जा का भी है। यूं माना जाए कि 8 डिग्री तापमान भूतापीय उर्जा और 7 डिग्री सें तापमान का योगदान सूर्य की धूप का है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली के किसी मैदान में एक वर्ग मि. जगह के अंदर से 85 मिलीवाट ग्लोबल हीट फ्लो निकलकर आकाश में जाती है, जो कि धरती के वायुमंडल को गर्म करने में सहयोग देती है। इस तरह विश्व की एक महत्वपूर्णं बुनियादी मान्यता को वेद के मार्ग दर्शन से गलत सिद्ध किया जा सका।

इस सबका एक समाधान है कि सभी सक्रिय ज्वालामुखियों के मुख के ऊपर ‘जीओथर्मल पावर प्लांट’ लगाकर 1200 डिग्री तापमान की गर्मी को बिजली में परिवर्तित कर दिया जाए और उसका योगदान वायुमंडल को गर्म करने से रोकने में किया जाए। इसी प्रकार गर्म पानी के चश्मों के मुंह पर भी ‘जीओथर्मल पावर प्लांट’ लगाकर भूतापीय उर्जा को बिजली में परिवर्तित कर दिया जाए। इसके अलावा सभी समुद्री तटों पर और द्वीपों पर पवन चक्कियां लगाकर वायुमंडल की गर्मी को बिजली में परिवर्तित कर दिया जाए, तो इससे ग्लोबल कूलिंग हो जायेगी और धरती जलप्रलय से बच जायेगी।
भारत के हुक्मरानों के लिए यह प्रश्न विचारणीय होना चाहिए कि जब हमारे वेदों में प्रकृति के गहनतम रहस्यों के समाधान निहित हैं, तो हम टैक्नोलोजी के चक्कर में सारी दुनिया में कटोरा लेकर क्यों घूमते रहते हैं? पर्यावरण हो, कृषि हो, जल संसाधन हो, स्वास्थ हो, शिक्षा हो या रोजगार का सवाल हो, जब तक हम अपने गरिमामय अतीत को महत्व नहीं देंगे, तब तक किसी भी समस्या का हल निकलने वाला नहीं है।

Monday, April 10, 2017

केवल कर्ज माफी से नहीं होगा किसानो का उद्धार

Punjab Kesari 10 April 2017
यूपीए-2 से शुरू हुआ किसानों की कर्ज माफी का सिलसिला आज तक जारी है। उ.प्र. के मुख्यमंत्री योगी ने चुनावी वायदों को पूरा करते हुए लघु व सीमांत किसानों की कर्ज माफी का एलान कर दिया है। निश्चित रूप से इस कदम से इन किसानों को फौरी राहत मिलेगी। पर  इस बात की कोई गारंटी नहीं कि उनके दिन बदल जायेंगे। केंद्रीय सरकार ने किसानों की दशा सुधारने के लिए ‘बीज से बाजार तक’ छः सूत्रिय कार्यक्रम की घोषणा की है। जिसका पहला बिंदू है किसानों को दस लाख करोड़ रूपये तक ऋण मुहैया कराना। किसानों को सीधे आनलाईन माध्यम से क्रेता से जोड़ना, जिससे बिचैलियों को खत्म किया जा सके। कम कीमत पर किसानों की फसल का बीमा किया जाना। उन्हें उन्नत कोटि के बीज प्रदान करने। 5.6 करोड़ ‘साईल हैल्थ कार्ड’ जारी कर भूमि की गुणवत्तानुसार फसल का निर्णय करना। किसानों को रासायनिक उर्वरकों के लिए लाईन में न खड़ा होना पड़े, इसकी व्यवस्था सुनिश्चित करना। इसके अलावा उनके लिए सिंचाई की माकूल व्यवस्था करना। विचारणीय विषय यह है कि क्या इन कदमों से भारत के किसानों की विशेषकर सीमांत किसानों की दशा सुधर पाएगी?

सोचने वाली बात यह है कि कृषि को लेकर भारतीय सोच और पश्चिमी सोच में बुनियादी अंतर है। जहां एक ओर भारत की पांरपरिक कृषि किसान को विशेषकर सीमांत किसान को उसके जीवन की संपूर्ण आवश्यक्ताओं को पूरा करते हुए, आत्मनिर्भर बनाने पर जोर देती है, वहीं पश्चिमी मानसिकता में कृषि को भी उद्योग मानकर बाजारवाद से जोड़ा जाता है। जिसके भारत के संदर्भ में लाभ कम और नुकसान ज्यादा हैं। पश्चिमी सोच के अनुसार दूध उत्पादन एक उद्योग है। दुधारू पशुओं को एक कारखानों की तरह इकट्ठा रखकर उन्हें दूध बढ़ाने की दवाऐं पिलाकर और उस दूध को बाजार में बड़े उद्योगों के लिए बेचकर पैसा कमाना ही लक्ष्य होता है। जबकि भारत का सीमांत कृषक, जो गाय पालता है, उसे अपने परिवार का सदस्य मानकर उसकी सेवा करता है। उसके दूध से परिवार का पोषण करता है। उसके गोबर से अपने खेत के लिए खाद् और रसोई के लिए ईंधन तैयार करता है। बाजार की व्यवस्था में यह कैसे संभव है? इसी तरह उसकी खेती भी समग्रता लिए होती है। जिसमें जल, जंगल, जमीन, जन और जानवर का समावेश और पारस्परिक निर्भरता निहित है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का एकात्म मानवतावाद इसी भावना को पोषित करता है। बाजारीकरण पूर्णतः इसके विपरीत है।

देश  की जमीनी सोच से जुड़े और वैदिक संस्कृति में आस्था रखने वाले विचारकों की चिंता का विषय यह है कि विकास की दौड़ में कहीं हम व्यक्ति केन्द्रित विकास की जगह बाजार केंद्रित विकास तो नहीं कर रहे। पंजाब जैसे राज्य में भूमि उर्वरकता लगातार कम होते जाना, भू-जल स्तर खतरनाक गति से नीचा होते जाना, देश में जगह-जगह लगातार सूखा पड़ना और किसानों को आत्महत्या करना एक चिंताजनक स्थिति को रेखांकित करता है। ऐसे में कृषि को लेकर जो पांरपरिक ज्ञान और बुनियादी सोच रही है, उसे परखने और प्रयोग करने की आवश्यकता है। गुजरात का ‘पुनरोत्थान ट्रस्ट’ कई दशकों से देशज ज्ञान पर गहरा शोध कर रहा है। इस शोध पर आधारित अनेक ग्रंथ भी प्रकाशित किये गये हैं। जिनको पढ़ने से पता चलता है कि न सिर्फ कृषि बल्कि अपने भोजन, स्वास्थ, शिक्षा व पर्यावरण को लेकर हम कितने अवैज्ञानिक और अदूरदर्शी हो गये हैं। हम देख रहे हैं कि आधुनिक जीवन पद्धति लगातार हमें बीमार और कमजोर बनाती जा रही है। फिर भी हम अपने देशज ज्ञान को अपनाने को तैयार नहीं हैं। वो ज्ञान, जो हमें सदियों से स्वस्थ, सुखी और संपन्न बनाता रहा और भारत सोने की चिड़िया कहलाता रहा। जबसे अंग्रेजी हुकुमत ने आकर हमारे इस ज्ञान को नष्ट किया और हमारे अंदर अपने ही अतीत के प्रति हेय दृष्टि पैदा कर दी, तब से ही हम दरिद्र होते चले गये। कृषि को लेकर जो भी कदम आज उठाये जा रहें हैं, उनकी चकाचैंध में देशी समझ पूरी तरह विलुप्त हो गयी है। यह चिंता का विषय है। कहीं ऐसा न हो कि ‘चैबे जी गये छब्बे बनने और दूबे बनकर लौटे’।

यह सोचना इसलिए भी महत्वपूर्णं है क्योंकि बाजारवाद व भोगवाद पर आधारित पश्चिमी अर्थव्यवस्था का ढ़ाचा भी अब चरमरा गया है। दुनिया का सबसे विकसित देश माना जाने वाला देश अमरिका दुनिया का सबसे कर्जदार है और अब वो अपने पांव समेट रहा है क्योंकि भोगवाद की इस व्यवस्था ने उसकी आर्थिक नींव को हिला दिया है। समूचे यूरोप का आर्थिक संकट भी इसी तथ्य को पुष्ट करता है कि बाजारवाद और भोगवाद की अर्थव्यवस्था समाज को खोखला कर देती है। हमारी चिंता का विषय यह है कि हम इन सारे उदाहरणों के सामने होेते हुए भी पश्चिम की उन अर्थव्यवस्थाओं की विफलता की ओर न देखकर उनके आडंबर से प्रभावित हो रहे हैं।

आज के दौर में जब भारत को एक ऐसा सशक्त नेतृत्व मिला है, जो न सिर्फ भारत की वैदिक संस्कृति को गर्व के साथ विश्व में स्थापित करने सामथ्र्य रखता है और अपने भावनाओं को सार्वजनिक रूप से प्रकट करने में संकोच नहीं करता, फिर क्यों हम भारत के देशज ज्ञान की ओर ध्यान नहीं दे रहे? अगर अब नहीं दिया तो भविष्य में न जाने ऐसा समय फिर कब आये? इसलिए बात केवल किसानों की नहीं, पूरे भारतीय समाज की है, जिसे सोचना है कि हमें किस ओर जाना है?

Tuesday, November 1, 2016

ग्लोबल टेंडर से निकल सकता है अंडेमान और निकोबार का क्रूड आयल और नेचुरल गैस

अंडमान और निकोबार क्षेत्र में 7,43,419 वर्ग किलोमीटर में तेल और गैस के 16 डीप वाटर ब्लॉक्स हैं। जिनमे 22 से ज्यादा कुँए खोदने पर गैस मिल चुकी है।  ओ.एन.जी.सी ने 11 डीप वाटर ब्लॉक्स को कम तेल मिलने की आशंका के मद्देनजर वहां से तेल निकलने का इरादा छोड़ दिया। इसके विपरीत शैव्रोन, ऐक्सोन मोबिल, इन्पेक्स, बीपी, स्टैटआयल, टोटल ई-पी, कोनोको फिलिप्स आदि कम्पनियां इंडोनेशिया में प्रतिदिन 10 लाख बैरल क्रूड आयल और अत्याधिक मात्रा में प्राकृतिक गैस निकालकर इंडोनेशिया को मालामाल कर रही हैं। प्रधानमंत्री जी से आग्रह है कि वह इन सक्षम कम्पनियों को आमंत्रित कर के अंडमान और निकोबार के 16 डीप वाटर ब्लॉक्स से तेल और गैस निकालने का मौका प्रदान करें। क्योकि हमें प्रतिवर्ष तेल और गैस की आयात में खर्च होने वाली 10 लाख करोड़ रूपए की बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचानी है।

याद रहे कि अंडेमान और निकोबार के उत्तर में स्थित म्यांमार (बर्मा) भी 26 डीप वाटर ब्लॉक्स में से, तेल और गैस निकालने में अपनी राष्ट्रीय कम्पनियों के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियां जैसे कि टोटल एस ऐ, साइनो पेक, पेट्रोनास आदि का सहयोग ले रहा है। हमें यह काम युद्ध स्तर पर करने की आवश्यकता है, क्योंकि देश का आधा जीडीपी जो तेल और गैस के आयात में प्रतिवर्ष खर्च होता है, उसको हर हाल में बचाना है। भारत सरकार काला धन निकालने में जितना हो हल्ला मचा रही है, अगर उससे आधा प्रयास भी इस भारी भरकम विदेशी मुद्रा को बचाने में करें तो देश के वारे न्यारे हो सकते हैं। देश की जनता को अत्याधिक करों के बोझ और महंगाई की मार से मुक्ति मिल सकती है। अन्तराष्ट्रीय विनमय दर भारत के पक्ष में आ सकता है। भारतीय रूपए की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। भारत की प्रगति को पंख लग सकते हैं। पेट्रोल पानी के भाव और गैस हवा के भाव बिकने लग सकती है।

भारत के 26 सैडीमैंनेटरी बेसिन में से सिर्फ 13 बेसिनों में से तेल और गैस प्राप्त हुई है। इसका यह कारण था कि आधुनिक विज्ञान की एक मूलभूत भूल में वैदिक विज्ञान की सहायता से सुधार आया है। याद रहे कि अथर्व वेद के गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मुनि वेद व्यास जी ने स्पष्ट शब्दों में लिखा है कि भूलोक का स्वामी अग्नि है। वेदों में सक्रिय ज्वालामुखी के मुख से निकलने वाले लावा (मैग्मा) को अग्नि कहते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे जियोथर्मल एनर्जी कहते हैं।

वैज्ञानिक सूर्यप्रकाश कपूर का कहना है कि जिस बेसिन में हीटफ्लोवैल्यू 67.4 मिलीवाट प्रतिवर्गमीटर प्रति सेकण्ड से ज्यादा होती है, सिर्फ उसी बेसिन में ऑरगैनिक सैडिमेंट्स पककर तेल या गैस में परिवर्तित होते हैं। चूंकि भारत के सिर्फ 13 बेसिनों में हीट फ्लो वैल्यू 67.4 मिलीवाट प्रति वर्गमीटर प्रति सेकण्ड से ज्यादा थी, इसलिए सिर्फ उन्हीं 13 बेसिनों में से तेल और प्राकृतिक गैस प्राप्त हुई है। इस प्राकृतिक गैस को वेदों में ‘पुरीष्य अग्नि‘ कहा गया है। आदरणीय अथर्वन ऋषि ने सर्वप्रथम इस गैस को खानों से खोदकर वैदिक काल में जनता के उपयोग के लिए निकाला था। यजुर्ववेद और ऋग्वेद में पुरीष्य अग्नि के ऊपर बहुत सारे मंत्र उपलब्ध हैं। पुरीष्य शब्द का अर्थ होता है मल-मूत्र। समुद्रों के अंदर तैरने वाली मछलियों और दूसरे प्राणियों के मल-मूत्र और अस्थिपंजर जब समुद्र के तल पर गिरते हैं, तो परतदार चट्टान बन जाती है। जिसके अंदर भूतापीय ऊर्जा की किरणों के प्रवेश से क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त धरती माता की गहरी सतह से आने वाली हाइड्रो कार्बन से विश्व का आधे से ज्यादा तेल और गैस बनता है।

विश्व में भूतापीय ऊर्जा का सघन रूप संबडक्शन जोन्स, सी-संप्रेडिंग सेंटरर्स, हाट्-स्पाट्स, रिफट्स में देखने को मिलता है। इसलिए विश्व के सबसे बड़े क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस के भंडार इन्हीं क्षेत्रों में प्राप्त हुए हैं। इसके विपरीत जो आॅन लैंड ब्लाक्स हैं, उनमें क्रूड आयल और प्राकृतिक गैस के भंडारों में हाइड्रो कार्बन सीमित मात्रा में ही बन पाता है और तेल और गैस के कुंए जल्दी खाली हो जाते हैं। जबकि तेल और गैस के कुंए, जो संबडक्शन जोन्स, सी-संप्रेडिंग सेंटरर्स, हाट्-स्पाट्स और रिफट्स के पास खोदे जाते हैं, उनमें तेल और गैस अनंतकाल तक उपलब्ध होता रहता है। भारत के विध्यांचल पर्वत में भी एक रिफट् है, इसलिए सोन नर्मदा तापी भूतापीय क्षेत्र में तेल, गैस, कोयला की खानें प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। सोनाटा भूतापीय क्षेत्र गुजरात से शुरू होकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और पश्चिमी बंगाल तक फैला हुआ है। दूसरी तरफ संबडक्शन जोन जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, नेपाल, नार्थ ईस्ट के सातों राज्यों को पार करता हुआ म्यांमार, अंडमान निकोबार से गुजरता हुआ इंडोनेशिया तक जाता है। जो आन लैंड ब्लाक्स हैं, उनमें क्रूड आयल और गैस के साथ-साथ ठोस अवस्था में शैल के रूप में भी हाइड्रो कार्बन खानों में उपलब्ध है। जबकि समुद्र में पानी और भूतापीय ऊर्जा ज्यादा होने की वजह से ठोस अवस्था से यह तरल अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।

भारत के साथ अभी तक तेल निकालने वाली विदेशी कंपनियों के भेदभावपूर्ण और सौतेले रवैए की वजह से भारत के 7 भूतापीय क्षेत्रों से पूर्णरूपेण क्रूड आयल और गैस नहीं निकल पाई है। अभी तक जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, नार्थ ईस्ट के कुछ राज्य, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, पश्चिमी बंगाल, पूरे के पूरे दक्षिण भारत कर्नाटका, केरला, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु से भी क्रूड आयल और गैस का पूर्णरूपेण खनन नहीं हो पाया है। अंडमान निकोबार तो भारत का सुपरमिडिल ईस्ट सिद्ध हो सकता है। इसके लिए प्रधानमंत्री को गंभीर प्रयास करने होंगे।

Monday, August 18, 2014

आयुर्वेद से ही होगी स्वास्थ्य की क्रांति

आज मेडीकल साइंस ने चिकित्सा और स्वास्थ्य की दुनिया में बेशक पैर पसार लिए हों, लेकिन मेडीकल साइंस के विस्तार के बाद से लोग और अधिक बीमार पड़ने लगे हैं। इस बात को हमें नहीं भूलना चाहिए। भारत की अपनी पारंपरिक आयुर्वेद शास्त्र की पद्धति खत्म सी ही हो गई। ऐसे में मोदी सरकार ने एक बार फिर हमें आयुर्वेद पद्धति की ओर बढ़ने को प्रेरित किया है। वैसे निजीस्तर पर गांव से लेकर देश के स्तर तक अनेक वैद्यों ने बिना सरकारी संरक्षण के आयुर्वेद को आजतक जीवित रखा। इसी श्रृंखला में एक युवा वैद्य आचार्य बालकृष्ण ने तो अपनी मेधा शक्ति से आयुर्वेद का एक अंतराष्ट्रीय तंत्र खड़ा कर दिया है। भारत के तो हर गांव, कस्बे व शहर में आपको पतंजलि योग पीठ के आयुर्वेद केंद्र मिल जाएंगे। कुछ लोग इसकी निंदा भी करते हैं। उन्हें लगता है कि इस तरह पारंपरिक ज्ञान का व्यवसायिककरण करना ठीक नहीं है। पर यथार्थ यह है कि राजाश्रय के अभाव में हमारी वैदिक परंपराएं लुप्त न हों, इसलिए ऐसे आधुनिक प्रयोग करना बाध्यता हो जाती है। आज आचार्य बालकृष्ण न सिर्फ आयुर्वेद का औषधियों के रूप में विस्तार कर रहे हैं, बल्कि ऋषियों की इस ज्ञान परंपरा को सरल शब्दों में पुस्तकों में आबद्ध कर उन्होंने समाज की बड़ी सेवा की है।

हाल ही में उनकी एक पुस्तक ‘आयुर्वेद सिद्धांत रहस्य’ नाम से प्रकाशित हुई है। पुस्तक के प्राक्कथन में उन्होंने लिखा है कि ‘‘भारतीय संस्कृति में मनुष्य जीवन का सर्वोपरि उद्देश्य चार पुरुषार्थ-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कर आत्मोन्नति करना और जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होकर प्रभु से मिलना है। इन चारों पुरुषार्थों की सिद्धि व उपलब्धि का वास्तविक साधन और आधार है - पूर्ण रूप से स्वस्थ शरीर,  क्योंकि ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’ के अनुसार धर्म का पालन करने का साधन स्वस्थ शरीर ही है। शरीर स्वस्थ और निरोग हो तभी व्यक्ति दिनचर्या का पालन विधिवत् कर सकता है, दैनिक कार्य और श्रम कर सकता है, किसी सुख-साधन का उपभोग कर सकता है, कोई उद्यम या उद्योग करके धनोपार्जन कर सकता है, अपने परिवार, समाज और राष्ट्र की सेवा कर सकता है, आत्मकल्याण के लिए साधना और ईश्वर की आराधना कर सकता है। इसीलिए जो सात सुख बतलाए गए हैं, उनमें पहला सुख निरोगी काया-यानी स्वस्थ शरीर होना कहा गया है।’’

अगर हम इस बात से सहमत हैं, तो  हमारे लिए यह पुस्तक एक ‘हेल्थ इनसाइक्लोपीडिया’ की तरह उपयोगी हो सकती है। इसमें आचार्यजी ने आयुर्वेद का परिचय, आयुर्वेद के सिद्धांत, मानव शरीर की संरचना और उसमें स्थित शक्तियों का वर्णन बड़े सरल शब्दों में किया है। जिसे एक आम पाठक  भी पढ़कर समझ सकता है। आयुर्वेद के अनुसार द्रव्य कौन से हैं और उनका हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? ऋतुचक्र क्या है और ऋतुओं के अनुसार हमारी दिनचर्या कैसी होनी चाहिए, इसका भी बहुत रोचक वर्णन है। आज हम 12 महीने एक सा भोजन खाकर अपने शरीर का  नाश कर रहे हैं। जबकि भारत षड ऋतुओं का देश है और यहां हर ऋतु के अनुकूल भोजन की एक वैज्ञानिक व्यवस्था पूर्व निर्धारित है।

भोजन कैसा लें, कितना लें और क्यों लें ? इसकी समझ देश के आधुनिक डॉक्टरों को भी प्रायः नहीं होती। आपको कुशल डॉक्टर रोगी मिलेंगे। ‘आयुर्वेद सिद्धांत रहस्य’ पुस्तक में भोजन संबंधी जानकारी बड़े विस्तार से दी गई है। इसके साथ ही जल, दूध, घी, मक्खन, तेल, शहद आदि का भी प्रयोग विवेकपूर्ण तरीके  से कैसे किया जाए, इस पर विवेचना की  गई है। भारत के लोगों में पाए जाने वाले मुख्य सभी रोगों का वर्गीकरण कर उनके कारणों पर इस पुस्तक में बड़ा सुंदर प्रकाश डाला गया है। इस सबके बावजूद भी अगर हम बीमार पड़ते हैं, तो चिकित्सा कैसी हो, इसका वर्णन अंतिम अध्यायों में किया गया है। आयुर्वेद को लेकर  यूं तो देश में एक से एक सारगर्भित ग्रंथ प्रकाशित होते रहे हैं और आगे भी होंगे। पर बाबा रामदेव के स्नेही एक युवा वैद्य ने जड़ी-बूटियों को हिमालय और देश में खोजने और आयुर्वेद को घर-घर पहुंचाने का छोटी-सी उम्र में जो एतिहासिक प्रयास किया है, उसे भविष्य में भी सराहा जाएगा।