महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने हाल ही में मुसलमानों को ‘औरंगज़ेब की औलाद’ कह कर संबोधित किया। इससे पहले उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में ‘रामज़ादे - हरामज़ादे’ या ‘शमशान - क़ब्रिस्तान’ जैसे भड़काऊ बयान दिये गये थे। दिल्ली चुनावों में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने “गोली मारो सालों को” जैसे भड़काऊ बयान देकर मुसलमानों के प्रति अपनी घृणा अभिव्यक्त की थी। पिछले दिनों बालासोर की ट्रेन दुर्घटना में बिना तथ्यों की जाँच हुए ही ‘ट्रॉल आर्मी’ ने फ़ौरन प्रचारित कर दिया कि दुर्घटना स्थल से थोड़ी दूर एक मस्जिद में इस हादसे की साज़िश रची गई थी। जबकि जिसे मस्जिद बताया जा रहा था वो इस्कॉन संस्था का श्री राधा कृष्ण मंदिर है और जिस स्टेशन मास्टर को मुसलमान होने के नाते इस दुर्घटना का साज़िशकर्ता बताया जा रहा था वो दरअसल हिंदू निकला।
देश में जब कोविड फैला तो दिल्ली के निज़ामुद्दीन स्थित एक इमारत में ठहरे हुए तबलिकी जमात के लोगों को इस बीमारी को फैलाने का ज़िम्मेदार बता कर मीडिया पर खूब शोर मचाया गया। हर वो हिंदू लड़की जो मुसलमान से ब्याह कर लेती है उसे ये कहकर डराया जाता है कि उसका पति भी उसे आफ़ताब की तरह टुकड़े-टुकड़े कर उसे काट देगा या वैश्यालय में बेच देगा। ऐसे ही दर्दनाक हादसे जब हिंदू लड़कियों के हिंदू प्रेमी या पति करते हैं तब ‘ट्रोल आर्मी’ और मीडिया ख़ामोश रहते हैं।
हर चुनाव के पहले भाजपा के नेता ऐसा ही माहौल बनाने लगते हैं पर चुनाव के बाद उनकी भाषा बदल जाती है। ‘द केरल स्टोरी’ जैसी फ़िल्मों के माध्यम से और ‘ट्रॉल आर्मी’ के द्वारा फैलाई गई जानकारी ही अगर मुसलमानों से नफ़रत का आधार है तो संघ प्रमुख मोहन भागवत ये क्यों कहते हैं, “मुस्लिमों के बिना हिंदुत्व नहीं”, “हम कहेंगे कि मुसलमान नहीं चाहिए तो हिंदुत्व भी नहीं बचेगा”, “हिंदुत्व में मुस्लिम पराये नहीं”? गुजरात के मुख्य मंत्री रहते हुए नरेंद्र मोदी ने ‘सीधी बात’ टीवी कार्यक्रम में कहा था कि, “जो हिंदू इस्लाम का विरोध करता है वह हिन्दू नहीं है।” समझ में नहीं आता कि संघ और भाजपा की सोच क्या है? कहीं पर निगाहें - कहीं पर निशाना!
इसी हफ़्ते सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल करवाया गया जिसमें तेलंगाना के मुख्य मंत्री के चंद्रशेखर राव किसी भवन के मुहूर्त में श्रद्धा भाव से खड़े हैं और उनके बग़ल में मौलवी खड़े क़ुरआन ख्वानी (दुआ) पढ़ रहे हैं। भेजने वाले का ये कहना था कि अगर केसीआर फिर से तेलंगाना विधान सभा का चुनाव जीत गये तो इसी तरह मुसलमान हावी हो जाएँगे। जबकि हक़ीक़त इसके बिलकुल विपरीत है। जुलाई 2022 से पहले के वर्षों में मैं जब भी हैदराबाद जाता था तो वहाँ के भाजपा के नेता यही कहते थे कि केसीआर मुसलमान परस्त हैं और इनके शासन में सनातन धर्म की उपेक्षा हो रही है। जुलाई 2022 में एक सनातनी संत के संदर्भ से मेरा केसीआर से परिचय हुआ। तब से अब तक उन्होंने मुझे दर्जनों बार हैदराबाद आमंत्रित किया। जिस तीव्र गति से वे तेलंगाना को विकास के पथ पर ले आए हैं वह देखे बिना कल्पना करना असंभव है। सिंचाई से लेकर कृषि तक, आईटी से लेकर उद्योग तक, शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक और वंचित समाज से लेकर धार्मिक कार्यों तक, हर क्षेत्र में केसीआर का काम देखने वाला है जो किसी अन्य राज्य में आजकल दिखाई नहीं देता। इसलिए हर परियोजना का भव्य उद्घाटन करना केसीआर की प्राथमिकता होती है।
अब तक हमने देश में हर स्तर के चुनावों के पहले बड़ी-बड़ी परियोजनाओं के शिलान्यास होते देखे हैं। पर इनमें से ज़्यादातर परियोजनाएँ शिलान्यास तक ही सीमित रहती हैं आगे नहीं बढ़ती। पर केसीआर की कहानी इसके बिल्कुल उलट है। वे शिलान्यास नहीं परियोजनाओं के पूरा हो जाने पर उद्घाटन के बड़े भव्य आयोजित करते हैं। ऐसे अनेक उद्घाटनों में मैं वहाँ अतिथि के रूप में उपस्थित रहा हूँ। हर उद्घाटन में सर्व-धर्म प्रार्थना होती है और उन धर्मों के मौलवी या पादरी आ कर दुआ करते हैं। पर केसीआर की जो बात निराली है, वो ये कि वे बिना प्रचार के सनातन धर्म के सभी कर्म कांडों को योग्य पुरोहितों व ऋत्विकों द्वारा बड़े विधि विधान से शुभ मुहूर्त में श्रद्धा पूर्वक करवाते हैं।
पिछले महीने जब उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के नाम से नये बनाए भव्य सचिवालय का लोकार्पण किया तो मैं यह देख कर दंग रह गया कि न केवल मुख्य द्वार पर नारियल फोड़ कर वेद मंत्रों के बीच सचिवालय में प्रवेश किया गया, बल्कि छः मंज़िल के इस अति विशाल भवन में मुख्य मंत्री, मंत्री, सचिव व अन्य अधिकारियों के हर कक्ष में पुरोहितों द्वारों विधि-विधान से पूजन किया गया। दो घंटे चले इस वैदिक कार्यक्रम में ट्रॉल आर्मी को दुआ के हाथ उठाते तीन मौलवी ही दिखाई दिये। जिनके बग़ल में केसीआर श्रद्धा भाव से खड़े थे। ये है एक सच्चे सनातन धर्मी व धर्म निरपेक्ष भारतीय नेता का व्यक्तित्व। दूसरी ओर धर्म का झंडा लेकर घूमने वाले अपने आचरण से ये कभी सिद्ध नहीं कर पाते कि उनमें सनातन धर्म के प्रति कोई आस्था है। करें भी क्यों जब धर्म उनके लिए केवल सत्ता प्राप्ति का माध्यम है। फिर भी ‘ट्रॉल आर्मी’ यही प्रचारित करने में जुटी रहती है कि उसके नेता तो बड़े धार्मिक हैं, जबकि विपक्ष के नेता मुस्लिम परस्त हैं। यह सही नहीं है।
चार दशकों के अपने पत्रकारिता जीवन में हर राजनीतिक दल के देश के सभी बड़े नेताओं से मेरे व्यक्तिगत संबंध रहे हैं, चाहे भाजपा हो या कांग्रेस, जनता दल हो या समाजवादी दल, साम्यवादी दल हो या तृणमूल कांग्रेस, मैंने ये पाया है कि भाजपा के अलावा भी जितने भी दल हैं, वामपंथियों को छोड़ कर, उन सब के अधिकतर नेता आस्थावान हैं और अपने-अपने विश्वास के अनुरूप अपने आराध्य की निजी तौर पर उपासना करते हैं। अगर इनमें कुछ नेता नास्तिक हैं तो संघ और भाजपा के भी बहुत से नेता पूरी तरह से नास्तिक हैं। अन्तर इतना है कि स्वयं को धर्म निरपेक्ष बताने वाले नेता अपनी धार्मिक आस्था का प्रदर्शन और प्रचार नहीं करते। इसलिए मुसलमानों के सवाल पर देश में हर जगह एक खुला संवाद होना चाहिए कि आख़िर भाजपा व संघ की इस विषय पर सही राय क्या है? अभी तक इस मामले में उसका दोहरा स्वरूप ही सामने आया है जिससे उनके कार्यकर्ताओं और शेष समाज में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।