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Monday, October 11, 2021

शाहरुख़ खान तुमने ठीक नहीं किया


आज कल सोशल मीडिया पर एक विडीओ वायरल हो रहा है। इसमें शाहरुख़ खान सिमि गरेवाल को गर्व से कह रहे हैं कि उनका बेटा दो बरस की आयु से ही अगर ड्रग्स ले या सेक्स करे तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। अगर यह विडीओ सही है, तो मज़ाक़ में भी एक पिता का अपने बेटे के विषय में ऐसा सोचना बहुत चिंताजनक है। हाल में शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान को क्रूज़ की ‘रेव पार्टी’ से एनसीबी ने गिरफ़्तार किया है। जिस पर टीवी ऐंकर कई दिनों से भरतनाट्यम कर रहे हैं। जबकि देश की अन्य कई महत्वपूर्ण दुर्घटनाओं की तरफ़ उनका ध्यान भी नहीं है। यह कोई अजूबा नहीं है। पिछले सात वर्षों में ज़्यादातर मीडिया ने अपनी हालत चारण और भाटों जैसी कर ली है। देशवासी तो उन्हें देख सुनकर ऐसा कह ही रहे हैं, पर मेरी चिंता का विषय इससे ज़्यादा गम्भीर है। उस पर मैं बाद में आऊँगा। पहले ड्रग कार्टल को लेकर एक पुरानी बात बता दूँ।
 


34 वर्ष पहले की बात है ‘न्यू यॉर्क टाइम्ज़’ की एक अमरीकी महिला संवाददाता मुझे दिल्ली में किसी मित्र के घर लंच पर मिली। उन दिनों न्यू यॉर्क में ड्रग्स के भारी चलन की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही थी। मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा कि तुम्हारे यहाँ भी क्या पुलिस महकमें में इतना भ्रष्टाचार है कि न्यू यॉर्क जैसे बड़े शहरों में ड्रग्स का प्रचलन सरेआम हो रहा है? उसने बहुत चौंकाने वाला जवाब दिया। वो बोलीं, न्यू यॉर्क में साल भर में ड्रग्स के मामले में जितने लोगों को न्यू यॉर्क की पुलिस पकड़ती है अगर वो सब जेल में बंद रहें तो साल भर में आधा न्यू यॉर्क ख़ाली हो जाए। उसके इस वक्तव्य में अतिशयोक्ति हो सकती है, पर उसका भाव यह था कि पुलिस में फैले भारी भ्रष्टाचार के कारण ही वहाँ ड्रग्स का कारोबार इतना फल फूल रहा है। 

यह कोई अपवाद नहीं है। जिस देश में भी ड्रग्स का धंधा फल-फूल रहा है उसे निश्चित तौर पर वहाँ की पुलिस और सरकार का परोक्ष संरक्षण प्राप्त होता है। वरना हर देश की सीमाओं पर कड़ी सुरक्षा और देश में आने वाले हवाई जहाज़ों, पानी के जहाज़ों और सड़क वाहनों की कस्टम तलाशी के बावजूद ड्रग्स कैसे अंदर आ पाते हैं? ये उन देशों के नागरिकों के लिए बहुत ही चिंता का विषय है क्योंकि इस तरह पूरे देश की धमनियों में फैलने वाली ड्रग्स का प्रभाव न सिर्फ़ युवा पीढ़ी को बर्बाद करता है, बल्कि लाखों औरतों को विधवा और करोड़ों बच्चों को अनाथ बना देता है। 

आर्यन खान के मामले में या उससे पहले रिया चक्रवर्ती के मामले में हमारे मीडिया ने जितनी आँधी काटी उसका एक अंश ऊर्जा भी इस बात को जानने में खर्च नहीं की कि गरीब से अमीर तक के हाथ में, पूरे देश में ड्रग्स पहुँचती कैसे है? अभी हाल ही में एनसीबी ने गुजरात में अडानी के प्रबंधन में चल रहे बंदरगाह से 3000 किलो ड्रग्स पकड़ी, जो अफगानिस्तान से ‘टेल्कम पाउडर’ बता कर आयात की गई थी। इस पकड़ के बाद एनसीबी ने जाँच को किस तरह आगे बढ़ाया ये हर पत्रकार की रुचि का विषय होना चाहिए था। पर इस पूरे मामले पर चारण और भाट मीडिया ने चुप्पी साध ली। ये बहुत ख़ौफ़नाक है। ये हमारे मीडिया के पतन की पराकाष्ठा का प्रमाण है। 

इससे भी बड़ी घटना एक और हुई जिसे मीडिया ने बहुत बेशर्मी से नज़रअन्दाज़ कर दिया। जबकि ड्रग्स के मामले में वो खबर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के इतिहास की शायद सबसे बड़ी खबर होनी चाहिए थी। अभी दो हफ़्ते पहले 20 सितम्बर को हैदराबाद से छ्पने वाले अंग्रेज़ी अख़बार ‘डेक्कन क्रानिकल’ ने एक खोजी खबर छापी कि अडानी के ही बंदरगाह के रास्ते जून 2021 में देश में 25 टन ड्रग्स जिसे भी सेमी कट टेल्क्म पाउडर ब्लॉक बताया जा रहा है, भारत में आई। जिसकी क़ीमत खुले बाज़ार में 72 हज़ार करोड़ रुपए है। पहला प्रश्न तो यह है कि टीवी चैनलों पर उछल-कूद मचाने वाले मशहूर ऐंकरों ने इस खबर का संज्ञान क्यों नहीं लिया? दूसरी बात, भारत जैसे औद्योगिक रूप से काफ़ी विकसित देश में अफगानिस्तान से ‘टेल्कम पाउडर’ आयात करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? दुनिया जानती है अफगानिस्तान पूरी दुनिया में ड्रग्स बेचने का एक बड़ा केंद्र है और ड्रग्स और ‘टेल्क्म पाउडर’ दिखने में एक से होते हैं। इसलिए अफगानिस्तान से अगर कोई ‘टेल्क्म पाउडर’ का आयात कर रहा है तो उसकी जाँच पड़ताल में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। 

संदेह की सुई इसलिए भी हैरान करने वाली है कि अडानी पोर्ट से राजस्थान की ट्रांसपोर्ट कम्पनी के जिस ट्रक नम्बर RJ 01 GB 8328 में ये 25 टन माल रवाना किया गया, उसने एक भी टोल बैरियर पार नहीं किया। मतलब दस्तावेज़ों में ट्रक का नाम, नम्बर फ़र्ज़ी तरीक़े से लिखा गया। इस 25 टन के खेप का आयात करने वाला व्यक्ति माछेवरापु सुधाकर चेन्नई का रहने वाला है। इसने अपनी पत्नी वैशाली के नाम ‘आशि ट्रेडिंग कम्पनी’ के बैनर तले ये माल आयात किया। इस कम्पनी को जीएसटी, विजयवाड़ा के एक रिहायशी पते के आधार पर दिया गया है, जिसे दस्तावेज़ों में कम्पनी का मुख्यालय बताया गया है। जब ‘डेक्कन क्रानिकल’ के संवाददाता, एन वंशी श्रीनिवास ने विजयवाड़ा के सत्यनारायणा पुरम जाकर तहक़ीक़ात की तो पता चला कि वह पता वैशाली की माँ के घर का है, जहां किसी भी कम्पनी का कोई कार्यालय नहीं है। आगे तहक़ीक़ात करने पर पता चला कि पिछले वर्ष ही पंजीकृत हुई इस कम्पनी का घोषित उद्देश्य काकीनाडा बंदरगाह से चावल का निर्यात करना था। पर पिछले पूरे एक वर्ष में अडानी के बंदरगाह से जून 2021 में आयात किए गए इस 25 टन तथाकथित ‘टेल्क्म पाउडर’ के सिवाय इस कम्पनी ने कोई और कारोबार नहीं किया। 

इतने स्पष्ट प्रमाणों और इतनी संदेहास्पद गतिविधियों पर देश का मीडिया कैसे ख़ामोश बैठा है? आर्यन खान ने जो किया उसकी सज़ा उसे क़ानून देगा। पर आर्यन जैसे देश के करोड़ों युवाओं के हाथों में ड्रग पहुँचने का काम कौन कर रहा है, इसकी भी खोज खबर लेना क्या देश के नामी मीडिया वालों की नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है? 

Monday, April 5, 2021

पुलिसवालों में इंसानियत अभी ज़िंदा है


आम तौर पर माना जाता है कि पुलिसवालों में इंसानियत नहीं होती। पुलिसवालों का जनता के प्रति कड़ा रुख़ प्रायः निंदा के घेरे में आता रहता है। पिछले दिनों सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत के बाद बॉलीवुड के मशहूर सितारों का नशीले पदार्थों के साथ नारकोटिक विभाग द्वारा पकड़े जाना राजनैतिक घटना बताया जा रहा था। आरोप था कि ये सब बिहार के चुनाव के मद्देनज़र किया जा रहा है जबकि ये सब नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के महानिदेशक राकेश अस्थाना की मुस्तैदी के कारण हो रहा था। अस्थाना के बारे में यह मशहूर है जब कभी उन्हें कोई संगीन मामला सौंपा जाता है तो वे अपनी पूरी क़ाबलियत और शिद्दत से उसे सुलझाने में जुट जाते हैं। सीबीआई में रहते हुए अस्थाना ने कुख्यात भगोड़े विजय माल्या के प्रत्यर्पण में जो भूमिका निभाई है उसकी जानकारी सीबीआई में उन सभी अफ़सरों को है जो इनकी टीम में रहे थे।
 


लेकिन आज हम एक अनोखे केस की बात करेंगे। पुलिस हो या कोई अन्य जाँच एजेंसी, वो हमेशा बेगुनाहों को झूठे केस में फँसा कर प्रताड़ित करने जैसे आरोपों से घिरी रहती है। लेकिन इतिहास में शायद पहली बार ऐसा हुआ है जब विदेश में एक बेगुनाह जोड़े को बेगुनाह साबित कर भारत वापिस लाने में नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो कामयाब रहा है। इससे दोनो देशों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों को और मज़बूती मिली है। मामला 2019 का है जब उसी साल 6 जुलाई को कतर के हवाई अड्डे पर मुंबई के एक जोड़े को 4 किलो चरस के साथ पकड़ा गया था। मामला कतर की अदालत में पहुँचा और मुंबई के ओनिबा और शरीक को वहाँ की अदालत में 10 साल की सज़ा सुना दी गई। ओनिबा और शरीक ने अपनी सज़ा के दौरान अपनी बेटी को जेल में ही जन्म दिया। इन दोनों ने आनेवाले 10 सालों के लिए ख़ुद को जेल में ही बंद मान लिया था। लेकिन कतर से दूर मुम्बई में इन दोनों के रिश्तेदारों को इन दोनों की बेगुनाही का पूरा यक़ीन था। लिहाज़ा उन्होंने मुम्बई पुलिस और नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का दरवाज़ा खटखटाया। वे यहीं तक नहीं रुके उन्होंने प्रधान मंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय की मदद भी माँगी। हालाँकि ओनिबा और शरीक को रंगे हाथों पकड़ा गया था लेकिन उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं थी कि इतनी बड़ी मात्रा में नशीले प्रदार्थ इनके बैग में कैसे आए। 


किसी ने ख़ूब ही कहा है सत्य परेशान हो सकता है लेकिन पराजित नहीं हो सकता। एक ओर जहां ओनिबा और शरीक हिम्मत हार चुके थे वहीं शरीक की फ़ोन रिकॉर्डिंग में से एक ऐसा सुबूत निकला जिसने इस मामले का सच उजागर कर दिया। दरअसल शरीक की फूफी तबस्सुम ने शरीक के मना करने पर भी शरीक और ओनिबा को एक हनीमून पैकेज तोहफ़े में दिया। इस तोहफ़े में कतर की टिकट और वहाँ रहने और घूमने का पूरा पैकेज था। इस पैकेज के साथ ही तबस्सुम ने शरीक को एक पैकेट भी दिया जिसमें तबस्सुम ने अपने रिश्तेदारों के लिए ‘पान मसाला’ भेजा था। असल में वो पान मसाला नहीं बल्कि चरस थी। 


इतने गम्भीर मामले के बावजूद नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के महानिदेशक राकेश अस्थाना को लगा कि यह मामला इतना सपाट नहीं है जितना दिखाई दे रहा है। उन्हें इसमें कुछ पेच नज़र आए इसलिए अस्थाना ने एक विशेष टीम गठित करी। इस टीम का नेतृत्व नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के डिप्टी डायरेक्टर के पी एस मल्होत्रा ने किया। जाँच हुई और पता चला कि शरीक की फूफी तबस्सुम एक कुख्यात गैंग का हिस्सा हैं जो नशीले पदार्थों की तस्करी करता है। इस गैंग का सरग़ना मुंबई का निज़ाम कारा है जिसे मुम्बई में गिरफ़्तार किया गया। मुम्बई के नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की जाँच में ही यह सामने आया कि ओनिबा और शरीक दोनों बेगुनाह हैं। 


चूँकि मामला विदेश का था जहां ये बेगुनाह जोड़ा जेल में बंद था और असली गुनहगार भारत में नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की हिरासत में। तभी नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के महानिदेशक ने ये तय किया कि ओनिबा और शरीक को बाइज़्ज़त वापिस भारत लाया जाए। अस्थाना ने प्रधान मंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय की मदद से कतर में भारतीय दूतावास के ज़रिए कतर के अधिकारियों को इस मामले सभी सुबूत भिजवाए। कतर की कोर्ट में इन सभी सुबूतों पर फिर सुनवाई हुई और इस साल जनवरी में इस मामले में पुनः विचार किया गया। 29 मार्च 2021 को आख़िरकार कतर की अदालत ने ओनिबा और शरीक को बेगुनाह मान लिया और बाइज़्ज़त रिहा कर दिया। अब बस उस दिन का इंतेज़ार है जब सभी क़ानूनी औपचारिकताओं के बाद ओनिबा और शरीक को वापिस भारत भेजा जाएगा। इस खबर को सुन कर ओनिबा और शरीक के रिश्तेदारों में एक ख़ुशी की लहर दौड़ गई। उनका यह कहना है कि इस मामले में प्रधान मंत्री कार्यालय, विदेश मंत्रालय और ख़ासतौर पर नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने उनकी इस बात पर विश्वास किया कि ओनिबा और शरीक बेगुनाह हैं और इसलिए इस केस में आगे बढ़ कर हमारी मदद की। वरना ये जोड़ा दस बरस तक कतर की जेल में सड़ता रहता।  


इस पूरे हादसे से यह साबित होता है कि अगर कोई उच्च अधिकारी निशपक्षता, पारदर्शिता और मानवीय संवेदना से काम करे तो वह जनता के लिए किसी मसीहा से कम नहीं होता। इस मामले में सक्रियता दिखा कर नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने अपनी छवि को काफ़ी सुधार है। यह उदाहरण केंद्र और राज्यों की अन्य जाँच एजेंसीयों के लिए अनुकरणीय है। उन्हें इस बात से सतर्क रहना चाहिए की कोई भी उनका दुरुपयोग निज हित में या अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को परेशान करने के लिए न करे बल्कि सभी जाँच एजेंसियाँ अपने नियमों के अनुसार क़ानूनन कार्यवाही करें और राग द्वेष से मुक्त रहें। इससे उनकी छवि जनता के दिमाग़ में बेहतर बनेगी और ये जाँच एजेंसियाँ गुनहगारों को सज़ा दिलवाने में और बेगुनाहों को बचाने में नए मानदंड स्थापित करेंगी। इसके लिए आवश्यक है कि इन जाँच एजेंसियों की टीम में तैनात अधिकारी अपने वेतन और भत्तों से संतुष्ट रह कर, बिना किसी प्रलोभन में फँसे, अपने कर्तव्य को पूरा करें तो उससे हमारे समाज और देश को लाभ होगा और इन कर्मचारियों को भी आत्मिक संतोष प्राप्त होगा।

Monday, June 13, 2016

कुरान, ग्रंथसाहब व शास्त्रों को मानने वाले शराब क्यों पीते हैं ?

अन्ना हजार ने फौज की वर्दी उतारकर अपने गांव रालेगढ़ सिद्धी को सबसे पहले शराबमुक्त किया। क्योंकि परिवारों में दुख, दारिद्र और कलह का कारण शराब होती है। पर उनके ही स्वनामधन्य शिष्य दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल्ली में महिलाओं के लिए विशेष शराब की दुकानें खोल रहे हैं। जहां केवल महिलाएं शराब खरीदकर पी सकेंगी। जबकि वे खुद पंजाब, राजस्थान, गोवा, बिहार राज्यों में जाकर नीतीश कुमार के साथ और अपनी पार्टी की ओर से शराब के विरोध में जनसभाएं कर रहे हैं। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं। हर राजनेता के दो चेहरे होते हैं। केजरीवाल अब राजनेता बन गए हैं, तो उन्हें अधिकार है कि कहें कुछ और करें कुछ।

पर सवाल उठता है कि हमारी मौजूदा केंद्रीय सरकार, जो सनातन धर्म के मूल्यों का सम्मान करती है। उसकी शराबनीति क्या है ? ये तो मानी हुई बात है कि इस तपोभूमि भारत में विकसित हुए सभी धर्म जैसे सनातन धर्म, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, सिख धर्म आदि हर किस्म के नशे का विरोध करते हैं। हमने आजादी की एक लंबी लड़ाई लड़ी। क्योंकि हम विदेशी भाषा से, विदेशियों की गुलामी से, शराब से और गौवंश की हत्या से आजादी चाहते थे। आजादी की लड़ाई में भारत के हर बड़े नेता और क्रांतिकारी ने भारत को शराबमुक्त बनाने का सपना देखा और वायदा भी किया। पर आज आजादी के 68 साल बाद भी देश का शराबमुक्त होना तो दूर शराब का मुक्त प्रचलन होता जा रहा है। मंदिर हो या गुरूद्वारा, मस्जिद हो या मठ, स्कूल हो या अस्पताल, सबके इर्द-गिर्द शराब की दुकानें धड़ल्ले से खुलती जा रही हैं। सरकार की आबकारी नीति शराब से कमाई करने की है। जबकि सच्चाई यह है कि शराब इस देश के करोड़ों गरीब लोगों को बदहाली के गड्ढे में धकेल देती है। कितनी महिलाएं और बच्चे शराबी मुखिया से प्रताड़ित होते हैं। गरीब मजदूर शराब पीकर असमय काल के गाल में चले जाते हैं। शराब की मांग को देखते हुए नकली शराब का कारोबार खुलकर चलता है और अक्सर सैकड़ों जानें चली जाती हैं।

देश की आधी आबादी महिलाओं की है, जो शराब नहीं पीती। 25 फीसदी आबादी बच्चों की है, जो शराब नहीं पीते। कुल देश की 25 फीसदी आबादी बची, जिसमें हम और आप जैसे भी बहुत बड़ी तादाद में हैं, जो शराब को छूते तक नहीं। कुल मिलाकर बहुत थोड़ा हिस्सा होगा, जो शराब पीता है। पर उस थोड़े से हिस्से के कारण पूरा समाज बर्बाद हो रहा है। महात्मा गांधी ने कहा था कि, ‘अगर मैं तानाशाह बन जाऊं, तो 24 घंटे के अंदर बिना मुआवजा दिए सारी शराब दुकानें बंद कर दूंगा।’, वही महात्मा गांधी, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर यूपीए की अध्यक्षा सोनिया गांधी तक राष्ट्रपिता कहती हैं। हम अपने राष्ट्रपिता की कैसी संतान हैं कि उनकी भावनाओं की कद्र करना भी नहीं सीखे।

आज पंजाब में सबसे ज्यादा शराब का प्रचलन है। पर सिख धर्म को प्रतिपादित करने वाले मध्ययुगीन संत गुरूनानकदेव जी कहते हैं कि, ‘नाम खुमारी नानका, चढ़ी रहे दिन-रात, ऐसा नशा न कीजिए, जो उतर जाए परभात’। तुम शराब पीते हो, तो सुबह को तुम्हारा नशा उतर जाता है। पर एक बार भगवतनाम का नशा करके तो देखो, जिंदगीभर नहीं उतरेगा। हमारा कौन-सा धर्म ग्रंथ या धर्मगुरू ऐसा है, जो हमें शराब पीने की इजाजत देता है। ये रमजान का पाक महीना है और इस्लाम में शराब हराम है।

इस लेख को कश्मीर को कन्याकुमारी और गुजरात से असम तक अलग-अलग अखबारों में पढ़ने वाले मुसलमान भाई अपने सीने पर हाथ रखकर बताएं कि क्या उनमें से सभी ऐसे हैं, जिन्होंने कभी शराब नहीं पी ? अगर पीते हो, तो अपने को मुसलमान क्यों कहते हो ? शराबी न मुसलमान हो सकता है, न सिख हो सकता है, न हिंदू हो सकता है, न बौद्ध हो सकता है और न ही जैन हो सकता है। शराबी तो केवल एक हैवान हो सकता है। विड़बना देखिए कि हमारी सरकारें इंसान को देवता बनाने की बजाए हैवान बनाती हैं। दिनभर कमा। शाम को दारू पी। अपने घर जाकर औरत को पीट। बच्चों को भूखा मार और फिर बीमार पड़कर इलाज के लिए अपना घर भी गिरवी रख दे। जिससे शराब बनाने वालों की तिजोरियां भर जाएं। इतना ही नहीं, जहां शराब बनती है, वहां शराब के कारखानों से निकलने वाला जहर आसपास की नदियांे और पोखरों को जहरीला कर देता है। पर्यावरण को नष्ट कर देता है। पर हमारा पर्यावरण मंत्रालय इतना उदार है कि वो धृतराष्ट्र की तरह आंखों पर पट्टी बांधकर शराब के कारखानों को बेदर्दी से पर्यावरण का विनाश करने की खुली छूट देता है।

पर्यावरण मंत्रालय ही नहीं, खाद्य मंत्रालय भी इस साजिश का हिस्सा है। जान-बूझकर सरकारी गोदामों में खाद्यान्न को सड़ने दिया जाता है। फिर इस सड़े हुए अनाज को मिट्टी के दाम पर शराब निर्माताओं को बेच दिया जाता है। जो इस सड़े अनाज से शराब बनाते हैं और अरबों रूपया कमाते हैं। 

इस दिशा में एक सार्थक पहल ‘इंसानियत धर्म संगठन’ ने की है, जो देश के सभी धर्म के गुरूओं, संतों, सामाजिक रूप से प्रतिष्ठित लोगों और विभिन्न राजनैतिक दलों के नेताओं को एक मंच पर लाकर ‘शराबमुक्त भारत’ का अभियान चला रहा है। इस अभियान के संयोजक दास गौनिंदर सिंह कहते हैं कि, ‘यह चुनौती तो हमारे दबंग प्रधानमंत्री के सामने है, जो खुद आस्थावान हैं और शराब को हाथ नहीं लगाते और डंके की चोट पर जो चाहते हैं, वो कर देते हैं। उन्होंने गुजरात में शराब पहले ही प्रतिबंधित कर रखी थी, उन्हें अब इस नई जिम्मेदारी के साथ शराब की भयावहता को समझकर इसके अमूल-चूल नाश की कार्ययोजना बनानी चाहिए। ऐसा किया तो देश की तीन चैथाई आबादी मोदीजी के पीछे खड़ी होगी।’