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Monday, November 25, 2024

उड़ता भारत


कुछ वर्ष पहले एक फ़िल्म आई थी ‘उड़ता पंजाब’, जिसमें दिखाया गया था कि प्रदेश सरकार की लापरवाही से पंजाब के घर-घर में मादक दवाओं का प्रयोग फैल गया है। जिसके चलते पंजाब कि पूरी युवा पीढ़ी तबाह हो रही है। जिनमें हर वर्ग के युवा शामिल हैं। ग़रीब-अमीर का कोई भेद नहीं। उस वक्त पंजाब में अकाली दल की सरकार थी, तो आम आदमी पार्टी ने सरकार को इस तबाही के लिए ज़िम्मेदार ठहराकर अपना चुनाव अभियान चलाया। इधर पिछले दस वर्षों से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, पर क्या ये सरकार दावे से कह सकती है कि दिल्ली में मादक पदार्थों की बिक्री सारे आम नहीं हो रही? कुछ महीने पहले हरियाणा के सोनीपत में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी स्थानीय डिग्री कॉलेज के छात्रों को नशीली दवाओं के सेवन के विरुद्ध भाषण दे रहे थे। तभी एक छात्र ने उनसे पूछा कि हमारे कॉलेज के बाहर पान की दुकान पर नशीली दवाएँ रात-दिन बिकती हैं तो आपकी पुलिस क्या कर रही है? जब हर युवा को पता है कि उनके शहर में कहाँ-कहाँ नशीली दवाएँ बिकती हैं तो आपका पुलिस विभाग इतना नकारा कैसे है कि वो इन बेचनेवालों को पकड़ नहीं पाता। पुलिस अधिकारी निरुत्तर हो गये।



मेरे एक पत्रकार मित्र ने 1996 में मुझे बताया था कि देश के एक प्रतिष्ठित औद्योगिक घराने के मुखिया के विरुद्ध मादक दवाएँ अवैध रूप से उत्पादन करने और अफ़ग़ानिस्तान भेजने के आरोप पर उनकी जनहित याचिका सारे सबूतों के बावजूद दो दशकों से ठंडे बस्ते में पड़ी है। क्योंकि उस घराने के गहरे संबंध हर प्रमुख दल के बड़े नेताओं से हैं। सबको इस कांड का पता भी है। पर कोई कुछ नहीं करता।


उधर पिछले कुछ वर्षों से गुजरात के एक पोर्ट से बार-बार भारी मात्रा में नशीली दवाएँ पकड़ी जा रही हैं। पर इसके पीछे कौन है वो सामने नहीं आ रहा।आए दिन देश में ऐसी अनेकों खबरें आती रहती हैं कि करोड़ों के मूल्य के नशीले पदार्थ पकड़े जाते हैं। इन पकड़ी गई ड्रग्स की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये ड्रग्स देश भर में वितरण के लिये ही आई हैं। पर ये कारोबार बिना रोक टोक जारी है। जबकि सिंगापुर में ड्रग्स के विरुद्ध इतना सख़्त क़ानून है कि वहाँ ड्रग्स को छूने से भी ये लोग डरते हैं। क्योंकि पकड़े जाने पर सज़ा-ए-मौत मिलती है, बचने का कोई रास्ता नहीं। 



गृह मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, भोपाल, अमृतसर और चेन्नई, यूपी के हापुड़ और गुजरात के अंकलेश्वर तक ड्रग्स तस्करों का नेटवर्क का भांडाफोड़ हुआ है. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 13 दिनों में 13,000 करोड़ रुपये कीमत की कोकीन और 40 किलो हाइड्रोपोनिक थाईलैंड मारिजुआना जब्त की। इतना ही नहीं 2004 से 2014 के बीच जब्त की गई ड्रग्स का मूल्य 5,900 करोड़ रुपए था, जबकि 2014 से 2024 के बीच जब्त की गई ड्रग्स का मूल्य 22,000 करोड़ रुपये है।



दूसरी तरफ़ दुनियाँ भर में दादागिरी दिखाने वाला अमरीका जो ख़ुद को बहुत ताकतवर मानता है वहाँ ड्रग्स का खूब प्रचलन है। ज़ाहिर है ड्रग माफिया की पकड़ बहुत ऊँची है। यही हाल दुनियाँ के तमाम दूसरे देशों का है जहां इस कार्टल के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों को दबा दिया जाता है या ख़त्म कर दिया जाता है। चाहे वो व्यक्ति न्यायपालिका या सरकार के बड़े पद पर ही क्यों न हो।


सब जानते हैं कि इन नशीली दवाओं के सेवन से लाखों घर तबाह हो जाते है। औरतें विधवा और बच्चे अनाथ हो जाते हैं। बड़े-बड़े घर के चिराग़ बुझ जाते हैं। पर कोई सरकार चाहें केंद्र की हो या प्रांतों की इसके ख़िलाफ़ कोई  ठोस और प्रभावी कदम नहीं उठाती। 


सनातन धर्म का बड़े तीर्थ श्री जगन्नाथ पुरी हो या पश्चिमी सैलानियों के आकर्षण का केंद्र गोवा, हिमाचल प्रदेश के पर्यटक स्थल कुल्लू, मनाली हो या धर्मशाला, भोलेनाथ की नगरी काशी हो या केरल का प्रसिद्ध समुद्र तटीय नगर त्रिवेंद्रम, राजधानी दिल्ली का पहाड़गंज इलाक़ा हो या मुंबई के फार्म हाउसों में होने वाली रेव पार्टियाँ, हर ओर मादक दवाओं का प्रचलन खुले आम हो रहा है। आज से नहीं दशकों से। हर आम और ख़ास को पता है कि ये दवाएँ कहाँ बिकती हैं, तो क्या स्थानीय पुलिस और नेताओं को नहीं पता होगा। फिर ये सब कारोबार कैसे चल रहा है? जिसमें करोड़ों रुपये के वारे न्यारे होते हैं। 


नशीली दवाओं में प्रमुख हैं: अफ़ीम, पोस्त और इनसे बनने वाली मॉर्फिन, कोडीन, हेरोइन या सिंथेटिक विकल्प मेपरिडीन, मेथाडोन। इनकी भारी लोकप्रियता का कारण है कि इनके सेवन से भय, तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है। सदा असुरक्षा की भावना से ग्रस्त रहने वाले कलाकार और फ़िल्मी सितारों में ये इसीलिए जल्दी पैठ बना लेती हैं। इनमें से कुछ उत्पाद मेडिकल साइंस में भी चिकित्सा के लिये उपयोग किए जाते हैं। जैसे दर्द निवारक दवा बनाने के लिए। पर इस छूट का ग़लत फ़ायदा उठाकर प्रायः दवा कंपनियाँ नशीली दवाओं के नेटवर्क का हिस्सा बन जाती हैं और अरबों रुपया कमाती हैं। ऐसे में यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इस व्यापार को करने वाले न सिर्फ़ क़ानून का उल्लंघन कर रहे हैं बल्कि एक सामाजिक और नैतिक संकट को भी जन्म दे रहे हैं। ऐसे में यदि सरकार और संबंधित एजेंसियाँ सख़्ती नहीं दिखाएँगी तो ऐसे अपराध और अपराधी बढ़ते ही जाएँगे। 


ये सब बंद हो सकता है अगर केंद्रीय और प्रांतीय सरकारें अपने क़ानून कड़े बनायें और उन्हें सख्ती से लागू करें। अगर हर ज़िले के पुलिस अधीक्षक को ये आदेश मिले कि उसके ज़िले में ड्रग्स की बिक्री होती पायी गयी तो उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया जाएगा।फिर देखिए कैसे नशीली दवाओं का व्यापार बंद होता है। पर देश के जनता के हित में  ऐसा सोचने वाले नेता हैं ही कहाँ? अगर होते तो तपोभूमि भारत उड़ता भारत कैसे बनती ?  

Monday, October 11, 2021

शाहरुख़ खान तुमने ठीक नहीं किया


आज कल सोशल मीडिया पर एक विडीओ वायरल हो रहा है। इसमें शाहरुख़ खान सिमि गरेवाल को गर्व से कह रहे हैं कि उनका बेटा दो बरस की आयु से ही अगर ड्रग्स ले या सेक्स करे तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। अगर यह विडीओ सही है, तो मज़ाक़ में भी एक पिता का अपने बेटे के विषय में ऐसा सोचना बहुत चिंताजनक है। हाल में शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान को क्रूज़ की ‘रेव पार्टी’ से एनसीबी ने गिरफ़्तार किया है। जिस पर टीवी ऐंकर कई दिनों से भरतनाट्यम कर रहे हैं। जबकि देश की अन्य कई महत्वपूर्ण दुर्घटनाओं की तरफ़ उनका ध्यान भी नहीं है। यह कोई अजूबा नहीं है। पिछले सात वर्षों में ज़्यादातर मीडिया ने अपनी हालत चारण और भाटों जैसी कर ली है। देशवासी तो उन्हें देख सुनकर ऐसा कह ही रहे हैं, पर मेरी चिंता का विषय इससे ज़्यादा गम्भीर है। उस पर मैं बाद में आऊँगा। पहले ड्रग कार्टल को लेकर एक पुरानी बात बता दूँ।
 


34 वर्ष पहले की बात है ‘न्यू यॉर्क टाइम्ज़’ की एक अमरीकी महिला संवाददाता मुझे दिल्ली में किसी मित्र के घर लंच पर मिली। उन दिनों न्यू यॉर्क में ड्रग्स के भारी चलन की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही थी। मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा कि तुम्हारे यहाँ भी क्या पुलिस महकमें में इतना भ्रष्टाचार है कि न्यू यॉर्क जैसे बड़े शहरों में ड्रग्स का प्रचलन सरेआम हो रहा है? उसने बहुत चौंकाने वाला जवाब दिया। वो बोलीं, न्यू यॉर्क में साल भर में ड्रग्स के मामले में जितने लोगों को न्यू यॉर्क की पुलिस पकड़ती है अगर वो सब जेल में बंद रहें तो साल भर में आधा न्यू यॉर्क ख़ाली हो जाए। उसके इस वक्तव्य में अतिशयोक्ति हो सकती है, पर उसका भाव यह था कि पुलिस में फैले भारी भ्रष्टाचार के कारण ही वहाँ ड्रग्स का कारोबार इतना फल फूल रहा है। 

यह कोई अपवाद नहीं है। जिस देश में भी ड्रग्स का धंधा फल-फूल रहा है उसे निश्चित तौर पर वहाँ की पुलिस और सरकार का परोक्ष संरक्षण प्राप्त होता है। वरना हर देश की सीमाओं पर कड़ी सुरक्षा और देश में आने वाले हवाई जहाज़ों, पानी के जहाज़ों और सड़क वाहनों की कस्टम तलाशी के बावजूद ड्रग्स कैसे अंदर आ पाते हैं? ये उन देशों के नागरिकों के लिए बहुत ही चिंता का विषय है क्योंकि इस तरह पूरे देश की धमनियों में फैलने वाली ड्रग्स का प्रभाव न सिर्फ़ युवा पीढ़ी को बर्बाद करता है, बल्कि लाखों औरतों को विधवा और करोड़ों बच्चों को अनाथ बना देता है। 

आर्यन खान के मामले में या उससे पहले रिया चक्रवर्ती के मामले में हमारे मीडिया ने जितनी आँधी काटी उसका एक अंश ऊर्जा भी इस बात को जानने में खर्च नहीं की कि गरीब से अमीर तक के हाथ में, पूरे देश में ड्रग्स पहुँचती कैसे है? अभी हाल ही में एनसीबी ने गुजरात में अडानी के प्रबंधन में चल रहे बंदरगाह से 3000 किलो ड्रग्स पकड़ी, जो अफगानिस्तान से ‘टेल्कम पाउडर’ बता कर आयात की गई थी। इस पकड़ के बाद एनसीबी ने जाँच को किस तरह आगे बढ़ाया ये हर पत्रकार की रुचि का विषय होना चाहिए था। पर इस पूरे मामले पर चारण और भाट मीडिया ने चुप्पी साध ली। ये बहुत ख़ौफ़नाक है। ये हमारे मीडिया के पतन की पराकाष्ठा का प्रमाण है। 

इससे भी बड़ी घटना एक और हुई जिसे मीडिया ने बहुत बेशर्मी से नज़रअन्दाज़ कर दिया। जबकि ड्रग्स के मामले में वो खबर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के इतिहास की शायद सबसे बड़ी खबर होनी चाहिए थी। अभी दो हफ़्ते पहले 20 सितम्बर को हैदराबाद से छ्पने वाले अंग्रेज़ी अख़बार ‘डेक्कन क्रानिकल’ ने एक खोजी खबर छापी कि अडानी के ही बंदरगाह के रास्ते जून 2021 में देश में 25 टन ड्रग्स जिसे भी सेमी कट टेल्क्म पाउडर ब्लॉक बताया जा रहा है, भारत में आई। जिसकी क़ीमत खुले बाज़ार में 72 हज़ार करोड़ रुपए है। पहला प्रश्न तो यह है कि टीवी चैनलों पर उछल-कूद मचाने वाले मशहूर ऐंकरों ने इस खबर का संज्ञान क्यों नहीं लिया? दूसरी बात, भारत जैसे औद्योगिक रूप से काफ़ी विकसित देश में अफगानिस्तान से ‘टेल्कम पाउडर’ आयात करने की क्या ज़रूरत आन पड़ी? दुनिया जानती है अफगानिस्तान पूरी दुनिया में ड्रग्स बेचने का एक बड़ा केंद्र है और ड्रग्स और ‘टेल्क्म पाउडर’ दिखने में एक से होते हैं। इसलिए अफगानिस्तान से अगर कोई ‘टेल्क्म पाउडर’ का आयात कर रहा है तो उसकी जाँच पड़ताल में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। 

संदेह की सुई इसलिए भी हैरान करने वाली है कि अडानी पोर्ट से राजस्थान की ट्रांसपोर्ट कम्पनी के जिस ट्रक नम्बर RJ 01 GB 8328 में ये 25 टन माल रवाना किया गया, उसने एक भी टोल बैरियर पार नहीं किया। मतलब दस्तावेज़ों में ट्रक का नाम, नम्बर फ़र्ज़ी तरीक़े से लिखा गया। इस 25 टन के खेप का आयात करने वाला व्यक्ति माछेवरापु सुधाकर चेन्नई का रहने वाला है। इसने अपनी पत्नी वैशाली के नाम ‘आशि ट्रेडिंग कम्पनी’ के बैनर तले ये माल आयात किया। इस कम्पनी को जीएसटी, विजयवाड़ा के एक रिहायशी पते के आधार पर दिया गया है, जिसे दस्तावेज़ों में कम्पनी का मुख्यालय बताया गया है। जब ‘डेक्कन क्रानिकल’ के संवाददाता, एन वंशी श्रीनिवास ने विजयवाड़ा के सत्यनारायणा पुरम जाकर तहक़ीक़ात की तो पता चला कि वह पता वैशाली की माँ के घर का है, जहां किसी भी कम्पनी का कोई कार्यालय नहीं है। आगे तहक़ीक़ात करने पर पता चला कि पिछले वर्ष ही पंजीकृत हुई इस कम्पनी का घोषित उद्देश्य काकीनाडा बंदरगाह से चावल का निर्यात करना था। पर पिछले पूरे एक वर्ष में अडानी के बंदरगाह से जून 2021 में आयात किए गए इस 25 टन तथाकथित ‘टेल्क्म पाउडर’ के सिवाय इस कम्पनी ने कोई और कारोबार नहीं किया। 

इतने स्पष्ट प्रमाणों और इतनी संदेहास्पद गतिविधियों पर देश का मीडिया कैसे ख़ामोश बैठा है? आर्यन खान ने जो किया उसकी सज़ा उसे क़ानून देगा। पर आर्यन जैसे देश के करोड़ों युवाओं के हाथों में ड्रग पहुँचने का काम कौन कर रहा है, इसकी भी खोज खबर लेना क्या देश के नामी मीडिया वालों की नैतिक ज़िम्मेदारी नहीं है?