Showing posts with label Subhash Chandra Bose. Show all posts
Showing posts with label Subhash Chandra Bose. Show all posts

Monday, September 1, 2025

‘गुमनामी बाबा’ के कमरे से निकले सामान ख़ास क्यों हैं?

पिछले हफ़्ते नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विषय में इस कॉलम में जो मैंने लिखा था उस पर बहुत प्रतिक्रियाएँ आई हैं। पाठकों को और जानने की उत्सुकता है। इस विषय में यूट्यूब पर तमाम इंटरव्यू व रिपोर्ट्स हैं। वहाँ आप ‘गुमनामी बाबा’ या सुभाष चंद्र बोस’ टाइप करके उन्हें देख सकते हैं। विशेषकर अनुज धर, चंद्रचूड़ घोष, शक्ति सिंह, डॉ दिनेश सिंह तोमर, आदि के इंटरव्यू व ज़ी टीवी पर एक ‘गुमनामी बाबा का बॉक्स नंबर 26’ जैसी रिपोर्ट्स देख, सुनकर आप दंग रह जाएँगे। 


पिछले लेख में मैंने उनके कमरे से मिली 2760 वस्तुओं में से कुछ का ज़िक्र किया था। यहाँ उन सामानों में से कुछ और का विस्तार से वर्णन कर रहा हूँ। ये सूची इतनी प्रभावशाली है कि केवल साधना करने वाले संत का सामान नहीं हो सकता। आप सोचने पर मजबूर हो जाएँगे कि ‘गुमनामी बाबा’ अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे तो और कौन थे? ये सूची जब मैंने देश के एक सबसे बड़े पुलिस अधिकारी रहे सज्जन को पढ़वाई तो वे भी दंग रह गए। 



‘गुमनामी बाबा’ के कमरे में अंग्रेज़ी, बंगला व संस्कृत साहित्य की 304 पुस्तकें मिली हैं। वहीं 260 आध्यात्मिक पुस्तकें भी मिली हैं। मेडिकल साइंस पर 118, राजनीति व इतिहास पर 57, रहस्य और तंत्रशास्त्र पर 46, रामायण व महाभारत पर 36, सुभाष चन्द्र बोस पर 34, यात्रा वृतांत ग्रन्थ 33 व ज्योतिष और हस्तरेखा विज्ञान पर 12 पुस्तकें मिली हैं। अब ज़रा अंग्रेज़ी की पुस्तकों के लेखकों नाम और उनके लिखे ग्रंथों की संख्या देखिए, चार्ल्स डिकेंस (51), अलेक्सांद्र सोल्जेनित्सिन (11), विल ड्यूरांट (11), शेक्सपियर का लिखा सम्पूर्ण साहित्य व 9 नाटक, टी. लोबसांग रम्पा (10), वाल्टर स्कॉट (8), अलेक्जेंडर डुमास (8), एरिक वॉन डेनिकेन (4), पीजी वोडहाउस (3), कुलदीप नैयर (3) आदि पुस्तकें उनके बक्सों और अलमारी से निकली हैं। ऐसे उच्च कोटि के विश्वविख्यात साहित्य को पढ़ने वाला कोई भजनानंदी साधु नहीं हो सकता। सभी जानते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक संपन्न व कुलीन परिवार से थे। आईसीएस (वर्तमान में आईएएस) की परीक्षा में, 1920 में उनकी चौथी रैंक आई थी। आज़ादी की लड़ाई लड़ने के लिए 1921 में उन्होंने इतनी बड़ी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था।



उपरोक्त साहित्य के अलावा, उनके कमरे से रीडर्स डाइजेस्ट, अमरीकी पत्रिका टाइम, इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ़ इंडिया, ब्लिट्ज, ऑर्गेनाइजर, जुगवाणी, द पायनियर, आज, अमृत प्रभात, अमृत बाज़ार पत्रिका, आनंद बाज़ार पत्रिका, दैनिक जागरण, द स्टेट्समैन, टेलीग्राफ, टाइम्स ऑफ़ इंडिया व अमर उजाला जैसी तमाम प्रतिष्ठित पत्रिकाएँ और अख़बार भी मिले हैं। 



उनके बक्से में से उनके परिवार व निकट के लोगों के 110 चित्र मिले हैं। जिनमें नेताजी के माता-पिता का फ्रेम करा हुआ चित्र, मखमली कपड़े में लिपटा हुआ उनके बक्से में रखा था। श्री शक्ति सिंह के अयोध्या स्थित घर, ‘राम भवन’ के जिस कमरे में गुमनामी बाबा रहते थे, उसमें दीवार पर माँ काली का चित्र टंगा था। जिनकी वे रोज़ धूप-बत्ती जला कर पूजा करते थे। रोचक बात यह है कि 23 जनवरी को देश भर में जहां भी उनका जन्मदिन मनाया जाता था उसकी ख़बरों में से सुभाष चंद्र बोस की फोटो निकाल कर संग्रह की गई हैं। इसी बक्से से नेताजी की बचपन से मित्र रहीं और क्रांतिकारी संगठन की नेत्री सुश्री लीला रॉय, पंडित नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद और महात्मा गांधी के चित्र भी मिले हैं।  



उनके संगीत संग्रह में महिषासुरमर्दनी स्रोत की रिकॉर्डिंग, रवींद्र संगीत, नज़रुल इस्लाम, श्यामा संगीत, केएल सहगल, ज्योतिका रॉय, उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ान, पं रवि शंकर का सितार वादन, बिस्मिल्लाह ख़ाँ की शहनाई, नेताजी के बचपन से मित्र और मशहूर गायक दिलीप कुमार रॉय के गाए गीत, हेमंत कुमार के गीत, पन्नालाल घोष, लालन फ़क़ीर आदि की गायकी के रिकॉर्ड भी मिले हैं। इसके अलावा बॉलीवुड की फ़िल्म ‘सुभाष चंद्र बोस’ का पूरा साउंडट्रैक भी मिला है। 



इंग्लैंड के टाइपराइटर और जर्मनी की बनी दूरबीन, जापानी क्रॉकरी, दो महंगी घड़ियाँ जिनमें से एक सोने की बनी ओमेगा घड़ी बिल्कुल वैसी है जैसी नेताजी की माँ ने उन्हें जन्मदिन पर भेंट की थी, जिसे वो अक्सर पहना करते थे। दूसरी महंगी घड़ी रोलेक्स की है। गोल फ्रेम के 8 चश्में जिसमें से एक का फ्रेम शायद सफेद सोने का है। इन सब सामानों में सबसे भावुक वस्तु है नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पिता श्री जानकी नाथ बोस की एक पुरानी छतरी जो, उनकी यादगार के प्रतीक रूप में गुमनामी बाबा ने सहेज कर रख रखी थी। इस छतरी को नेता जी के भतीजी ललिता बोस ने पहचाना। 


उनके काग़ज़ों में अयोध्या व काशी के विस्तृत नक्शे, भारत के सड़क मार्गों व फौजी ठिकानों के नक्शे, मध्य एशिया, मध्य पूर्व एशिया व दक्षिण पूर्व एशिया के नक्शे, जिन्हें हाथ से बनाया गया था, भी वहाँ बरामद हुए हैं। उनके सबसे प्रिय साथी पवित्र मोहन रॉय की संपत्तियों के नक्शे व एक अन्य साथी अतुल कृष्ण गुप्तो की ढाका में छूट गई संपत्ति के नक्शे आदि भी मिले हैं। 


उनके रहन-सहन के स्तर दर्शाते हुए उनके कमरे से नहाने के 75 साबुन मिले हैं, जो महंगे ब्रांड के हैं, जैसे यार्डले, क्यूटीक्यूरा, पियर्स, पोंड्स, लेवेंडर व ड्यू आदि। सबको मालूम है कि सुभाष चंद्र बोस ‘चेन स्मोकर’ थे। वे लगातार सिगरेट पीते थे। उनके सामानों में ‘गोल्ड फ्लैक’ व ‘इंडिया किंग्स’, सिगरेट के कई पैकेट, रोल बनाकर सिगरेट बनाने वाले काग़ज़ के 15 पैकेट व इन काग़ज़ों में भरने वाले तंबाकू के पैकेट और इनको लपेट कर सिगरेट बनाने वाली छोटी सी मशीन, जो इंग्लैंड की बनी हुई है। 3 विदेशी पाइप व तम्बाकू के पैकेट, सिगरेट जलाने वाले लाइटर भी मिले हैं। उनके कमरे में अंग्रेज़ी व बंगला में हस्त लिखित 1683 पत्र भी मिले हैं। दो भारतीय और एक अमरीकी हस्तलेखन विशेषज्ञों ने यह प्रमाणित किया है कि इन पत्रों पर पाई जाने वाली लिखाई 1935-36 की नेताजी सुभाष चंद्र बोस की लिखाई से पूरी तरह मेल खाती है।   


पूजा के सामानों में तीन मुखी व छह मुखी रुद्राक्ष की, स्फटिक व तुलसी की 28 मालाएँ मिली हैं। गौमुखी कमण्डल, आचमनी, शिवलिंग, शिवजी व माँ काली के चित्र, मैहर की देवी का चित्र, चंदन की लकड़ियाँ, सिंदूर, आलता, शंख (जिसे कान के पास लाने पर वह गूँजता है) मिला है। गुमनामी बाबा के कमरे से 13 क़मीज़ें, 4 पैंट, 31 बनियान, 31 चड्डी, 58 धोतियाँ, 3 वार्मर, 2 दस्ताने, 2 बरसाती कोट, 30 तौलिये, 1 जैकेट, 2 जोड़ी काले जूते, 1 जोड़ी लाल जूते, चेरी ब्लॉसम की पॉलिश के डिब्बे, जूता चमकाने की क्रीम, खड़ाऊँ, बंदर टोपी, 7 गद्दे, राजस्थानी रज़ाई जिस पर रेशम की कढ़ाई है, चादर व तकिये आदि भी मिले हैं। उनके कमरे से जो तमाम बर्तन व रसोई का सामान मिला है उनमें से कुछ विदेशों में निर्मित हैं जो उनके लाइफस्टाइल को दर्शाता है। चूँकि वे होम्योपैथी के अच्छे जानकर थे इसलिए इसकी व दूसरी तमाम दवाइयां भी मिली हैं। अब आप ख़ुद ही सोच लीजिए कि गुमनामी बाबा अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस नहीं थे तो और कौन थे? 

Monday, August 25, 2025

निसंदेह गुमनामी बाबा ही थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस

बचपन से हमें पढ़ाया गया की हवाई दुर्घटना में 18 अगस्त 1945 को ताइपे (ताइवान) में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हवाई दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। पर उनकी मौत के विवाद को सुलझाने के लिए बने ‘मुखर्जी आयोग’ ने ताइपे (ताइवान) जाकर उनकी सरकार से संपर्क किया तो पता चला कि उस तारीख को ही नहीं बल्कि उस पूरे महीने ही वहाँ कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ था। यानी नेताजी की विमान दुर्घटना में मौत नहीं हुई थी। ये झूठी कहानी गढ़ी गई। तो प्रश्न उठता है कि फिर नेताजी गए कहाँ? इस पर बाद में चर्चा करेंगे।


बाद के कई दशकों तक देश में चर्चा चलती रही कि नेताजी अचानक प्रगट होंगे। बाबा जयगुरुदेव ने देश भर की दीवारों पर बड़ा-बड़ा लिखवाया कि नेता जी सुभाष चंद्र बोस जल्दी ही देश के सामने प्रगट होंगे। पर वे नहीं हुए। मेरी माँ बहुत राष्ट्रभक्त थीं और बड़े राजनैतिक परिवारों के बच्चे उनके साथ पढ़ते थे, सो उनकी शुरू से राजनीति में रुचि थी। उन्होंने मुझे 1967 में कहा था कि ‘नेता जी अभी ज़िंदा हैं और गुमनाम रूप से कहीं संत भेष में पूर्वी उत्तर प्रदेश में रहते है।’



पर्दे वाले बाबा नाम से एक संत पचास के दशक में नेपाल के रास्ते भारत आए और गोपनीय रूप से बस्ती, लखनऊ, नैमिषारण्य, फैजाबाद व अयोध्या के मंदिरों या घरों में रहे। इस दौरान उनसे मिलने बहुत से लोग आते थे। पर सबको हिदायत थी कि उनके सामने कोई सुभाष नाम नहीं लेगा। इनमें 13 लोग जो वहीं के थे, जो उनके अंतरंग थे। उनमें से दो परिवारों ने तो उन्हें परदे के पीछे जाकर भी देखा था। बाक़ी अनेक लोग बंगाल से लगातार उनसे मिलने आते थे। उनमें दो लोग नेता जी की ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ की ‘इंटेलिजेंस विंग’ के सदस्य थे। ये लोग हर 23 जनवरी को आते थे और बड़े हर्षोल्लास से पर्दे वाले बाबा का जन्मदिन मना कर लौट जाते थे। गौरतलब है कि 23 जनवरी ही नेताजी का जन्मदिन होता है।जिसे मोदी जी ने ‘शौर्य दिवस’ घोषित किया है। यही लोग हर वर्ष दोबारा दुर्गा पूजा के समय उनके पास आते थे। इसके अलावा बाबा की जरूरत के हिसाब से बीच-बीच में भी लोग आते जाते रहते थे। देश के कई बड़े नामी राजनेता व बड़े सैन्य अधिकारी भी लगातार उनसे मिलने आते थे। पर सब उनसे पर्दे के सामने से ही बात करते और सलाह लेते थे। 


पत्रकार अनुज धर और पर्यावरणवादी चंद्रचूड़ घोष, इन दो लोगों ने अपनी जवानी के बीस वर्ष इसे सिद्ध करने में लगा दिए कि ‘पर्दे वाले बाबा’ जिन्हें बाद में लोग ‘गुमनामी बाबा’कहने लगे, जिन्हें उनके निकट के लोग ‘भगवन जी’ कहते थे, वही नेताजी सुभाष चंद्र बोस थे। पिछले हफ़्ते ये दोनों मेरे दिल्ली कार्यालय आए और विस्तार से मुझे इस विषय में जानकारी दी। उन्होंने अपनी लिखी हिंदी व अंग्रेज़ी की कई पुस्तकें भी दीं। जिनमे वो सारे तथ्य, दस्तावेज़ और उन सामानों के चित्र थे जो ‘गुमनामी बाबा’ के कमरे से 16 सितंबर 1985 को उनकी मृत्यु के बाद, उनके दो दर्जन से ज़्यादा बक्सों में से निकले थे । ये सब सामान देखकर कोलकाता से बुलाई गयीं नेताजी की भतीजी ललिता बोस रोने लगी और बेहोश हो गई। क्योंकि उसमें नेता जी और ललिता जी के माता-पिता के बीच हुए पत्राचार के हस्त लिखित प्रमाण भी थे। उनके परिवार के तमाम फोटो थे। जिनमें नेताजी के माता पिता का फ्रेम किया फोटो भी है। तब ललिता बोस ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर के इन सामानों को सरकार की ट्रेज़री में जमा करवाने की माँग की। अदालत ने भी ये माना कि ‘गुमनामी बाबा’ के ये सब सामान राष्ट्रीय महत्व के है। तब फैजाबाद के जिलाधिकारी ने उन 2760 सामानों की सूची बनवाकर ट्रेज़री में जमा करवा दिया। बरसों बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने इन सामानों को ‘राम कथा संग्रहालय’ अयोध्या में जन प्रदर्शन के लिए रखवा दिया। पता नहीं क्यों अब ‘श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट’ उन्हें वहाँ से हटाने की प्रक्रिया चला रहा है?



इन सामानों में गुमनामी बाबा (नेताजी) के तीन चश्मे, जापानी क्रॉकरी, बहुत मंहगी जर्मन दूरबीन, ब्रिटिश टाइपराइटर, आईएनए की वर्दी जो नेता जी के साइज़ की हैं। लगभग एक हज़ार पुस्तकें जो राजनीति, साहित्य, इतिहास, युद्ध नीति, होम्योपैथी, धार्मिक विषयों आदि पर हैं व मुख्यतः अंग्रेज़ी में हैं। तीन विदेशी सिगार पाइप, पाँच बोरों में देश विदेश के अख़बारों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में छपी ख़बरों की कतरने, आईएनए के वरिष्ठ अधिकारियों से उनका नियमित पत्राचार व आरएसएस प्रमुख श्री गुरु गोलवलकर का गुमनामी बाबा के नाम लिखा एक पत्र भी मिला है। इसके अलावा एक बड़े गत्ते पर गुमनामी बाबा के रूस से चीन, तिब्बत और नेपाल के रास्ते बस्ती (ऊ प्र) आने के मार्ग का हाथ से बना विस्तृत नक़्शा भी है।



अनुज धर और चंद्रचूड़ घोष के शोध से पता चलता है कि नेता जी विमान दुर्घटना की झूठी कहानी के आवरण में रूस पहुँच गए। जहाँ रूस की सरकार ने उन्हें गुलाग में एक बंगला, दो अंगरक्षक, एक कार और ड्राइवर की सुविधा के साथ महफ़ूज़ रखा। तीन साल गुमनाम रूप से रूस में रहने के बाद वे चीन, तिब्बत और नेपाल के रास्ते एक संत के वेश में भारत आए और 16 सितंबर 1985 को अपनी मृत्यु तक पर्दे के पीछे ही छिप कर रहे। पर्दे के भीतर जा कर उन्हें केवल फैजाबाद का डॉ बनर्जी व मिश्रा जी का परिवार ही देख सकता था। उनकी दबंग आवाज़, बंगाली उच्चारण में हिंदी और फर्राटेदार अंग्रेजी सुन कर पर्दे के सामने बैठा हर व्यक्ति प्रभावित हुए बिना नहीं रहता था। फिर भी सबको यह हिदायत थी कि उनके सामने ‘सुभाष’ नाम नहीं लिया जाएगा। सब उन्हें ‘भगवन जी’ कह कर ही बुलाते थे। जिस व्यक्ति की मृत्यु पर 13 लाख लोग जमा होने चाहिए थे, उनके अंतिम संस्कार में मात्र यही 13 लोग थे। उनका अंतिम संस्कार सरयू नदी के किनारे अयोध्या के ‘गुप्तार घाट’ पर किया गया, जहाँ उनकी समाधि है। गुप्तार घाट वही स्थल है, जहाँ भगवान श्रीराम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने जल समाधि ली थी। हज़ारों साल में उस पवित्र स्थल पर आजतक केवल गुमनामी बाबा का ही अंतिम संस्कार हुआ है। सारा ज़िला प्रशासन और पुलिस दूर खड़े उनका अंतिम संस्कार देखते रहे।



इतना कुछ प्रमाण उपलब्ध है फिर भी आज तक केंद्र की कोई सरकार गुमनामी बाबा की सही पहचान को सार्वजनिक रूप से स्वीकारने को तैयार नहीं है। मोदी सरकार तक भी नहीं। जबकि मोदी जी ने इंडिया गेट के सामने की छतरी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की खड़ी प्रतिमा स्थापित करने का पुण्य कार्य किया है। आरएसएस के दिवंगत सर संघ चालक के एस सुदर्शन जी का एक सार्वजनिक वीडियो वक्तव्य है, जो यूट्यूब पर भी उपलब्ध है, जिसमें उन्होंने साफ़ कहा है कि गुमनामी बाबा ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस थे। अनुज धर और चंद्रचूड़ घोष बताते हैं कि पंडित नेहरू से लेकर मोदी जी तक हर प्रधान मंत्री को इसकी जानकारी है और नेताजी से 1945 तक जुड़े रहे उनके सहयोगी नेता उनसे मिलने जाते रहे। पर साधना में लीन गुमनामी बाबा ये नहीं चाहते थे कि कोई उनकी असलियत जाने।