राजनीति में यह जरूरी नहीं कि आप जो कहें, वो करें। होशियार राजनीतिज्ञ वह होता है, जो लोगों की नब्ज पर हाथ रखता है। नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान हर उस मुद्दे को छुआ, जिससे आम जनता का सरोकार था। इसलिए जनता ने उन्हें हाथों-हाथ लिया और अप्रत्याशित विजय दिलाकर प्रधानमंत्री बना दिया। पर पिछले दो वर्षों में मोदी सरकार ने जो कुछ किया, उसका असर अभी तक आम आदमी ने महसूस नहीं किया है। इसलिए समाज में हताशा है। मोदी सरकार यह कह सकती है कि 60 वर्ष की गन्दगी साफ करने में कुछ तो समय लगेगा। पर जनता बहुत अधीर होती है। उसे दूरगामी परिणाम नहीं दिखाई देते बल्कि तुरन्त फल प्राप्ति की इच्छा होती है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में जैसी विजय भाजपा को मिली, वैसी विजय अब तक हुए किसी भी विधानसभा चुनावों में नहंीं मिली और आगे भी स्थिति बहुत उत्साहजनक दिखाई नहीं देती।
उधर अरविन्द केजरीवाल एक मंजे हुए राजनेता की तरह शुरू से हर वो तीर चला रहे है जो निशाने पर लग रहा है। इसका मतलब ये नहीं कि अरविन्द जो वायदा करते हैं वो पूरा कर देंगे। पर आज वो मौके का फायदा उठाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं। पिछले हफ्ते आम आदमी पार्टी ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर के घोटाले में केन्द्र सरकार को बुरी तरह घसीटा। अरविन्द का आरोप है कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने का वायदा कर मोदी सरकार बनी थी। पर क्या वजह हैं कि दो वर्षों में भी यह सरकार अगस्ता वेस्टलैंड के आरोपियों को नहीं पकड़ पायी। जबकि इटली की अदालतों ने आरोपियों को सजा भी सुना दी। इससे भी एक कदम आगे जाकर अरविन्द केजरीवाल ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने सोनिया गांधी से डील कर ली है, ’न तुम मेरे घोटाले उछालो, न मैं तुम्हारे घोटाले उछालूं’। इसलिए मोदी सरकार पिछली सरकार के भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने में नाकाम रही है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री का विवाद खड़ा करके अरविन्द केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। साफ जाहिर है कि केजरीवाल अपनी छवि बनाने का और दूसरों की छवि बिगाड़ने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। इसलिए चाहे लातूर में पानी की रेल भेजना हो या पंजाब के किसानों से हमदर्दी दिखानी हो, एक मजे हुए नेता की तरह अरविन्द केजरीवाल हर जगह खड़े नजर आते हैं। अब चूंकि दिल्ली में उनकी सरकार के अधिकार सीमित है, इसलिए अरविन्द की ईमानदारी या कार्यक्षमता की अभी परख करना संभव नहीं है। क्योंकि अरविन्द का तर्क होता है कि न तो मुझे पुलिस को नियंत्रित करने का अधिकार दिया गया है और न ही भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को पास करने दिया गया है। मुझे पूरी ताकत दो, तो मैं बताऊं कि भ्रष्टाचार कैसे कम होगा और जनता को कैसे राहत मिलेगी।
जब तक ऊंट पहाड़ के नीचे नहीं आ जाता, तब तक उसे अपने छोटा होने का एहसास नहीं होता है। इसलिए अरविन्द केजरीवाल आज कुछ भी दावा कर सकते है। वे कह सकते है कि आप मुझे प्रधानमंत्री बना दो तो मैं आसमान के तारे तोड़ लाऊंगा और जनता उनकी लच्छेदार बातों में एक बार तो फंस ही जाएगी। असलीयत तो तब पता चलेगी जब प्रधानमंत्री बनकर भी अरविन्द बहुत सारी घोषणाओं को पूरा नहीं कर पायेंगे। पर तब की तब देखी जायेगी। अभी तो अपनी इस रणनीति के सहारे वे लगातार आगे बढ़ रहे है। अपनी ब्रान्डिंग इस तरह कर रहे है मानो सारे राजनेता धोखेबाज हैं और आपस में सबकी मिलीभगत है। केवल अरविन्द केजरीवाल ही दूध के धुले हैं। चूंकि जनता की अपेक्षाएं सरकार से बहुत ज्यादा होती है, इसलिए उसे कभी संतुष्टि नहीं होती। उस पर भी अगर सरकार की सफलता उसे दिखाई न दें, तो उसकी हताशा तेजी से बढ़ जाती हैं। इसलिए चतुर राजनेता हमेशा जनता की इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं और खुद आगे बढ़ जाते हैं। यही काम आज केजरीवाल बड़ी सफलता से कर रहे हैं और इसलिए लगता है कि आने वाले दिनों में केजरीवाल अपने सभी राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को पछाड़ देंगे।
दरअसल देश की जनता को अब मंदिर, गौहत्या, राष्ट्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता जैसे भावनात्मक मुद्दों से बहकाया नहीं जा सकता। अब जनता काफी जागरूक हो गई है। समाज का बहुत बड़ा वर्ग अब अखबार और टीवी पर अपनी राय नहीं बनाता। सोशल मीडिया में हर बात खुलकर आ जाती है। इसलिए जनता को बरगलाना सम्भव नहीं है। जहां तक विकास की बात है, तो उसका ज्यादा श्रेय तो निजी क्षेत्र और उद्यमियों को जाता है। सरकार और उसके अधिकारियों के रवैये में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया है, जिससे जनता को राहत मिले। उसकी समस्याओं का समाधान हो और उसे आगे बढ़ने का मौका मिले। अनुभव तो यही बताता है कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था आम आदमी को परेशान करने के लिए और उसकी कार्यक्षमता को खत्म करने के लिए बनी है।
जब तक कोई नेता चाहे वो कजरीवाल हो या नरेन्द्र मोदी प्रशासन के इस मकड़जाल को तोड़कर साफ नहीं कर देते, तब तक जनता का भला होने वाला नहीं है। इसलिए जनता परेशान रहती है और फिर कभी वीपी सिंह, कभी नरेन्द्र मोदी और कभी अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता सपने दिखाकर उसकी उम्मीदें जगा देते है। हर बार उसे लगता है कि शायद अबकी बार उसे अपनी समस्याओं से निजात मिल जाएगी। यह सोचकर वह हर नए मसीहा के पीछे चल देती है। अब चुनौती नरेन्द्र मोदी के सामने है कि वे ऐसा कुछ करें कि जो केजरीवाल को उंगली उठाने का मौका न मिले। ये बात दूसरी है कि अगर केजरीवाल प्रधानमंत्री के पद पर बैठ गए तो वे भी कोई काला जादू चलाकर समस्याऐं हल नहीं कर पाएंगे। पर सपने दिखाकर कुर्सी तो हथिया ही लेंगे।
उधर अरविन्द केजरीवाल एक मंजे हुए राजनेता की तरह शुरू से हर वो तीर चला रहे है जो निशाने पर लग रहा है। इसका मतलब ये नहीं कि अरविन्द जो वायदा करते हैं वो पूरा कर देंगे। पर आज वो मौके का फायदा उठाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं। पिछले हफ्ते आम आदमी पार्टी ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर के घोटाले में केन्द्र सरकार को बुरी तरह घसीटा। अरविन्द का आरोप है कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने का वायदा कर मोदी सरकार बनी थी। पर क्या वजह हैं कि दो वर्षों में भी यह सरकार अगस्ता वेस्टलैंड के आरोपियों को नहीं पकड़ पायी। जबकि इटली की अदालतों ने आरोपियों को सजा भी सुना दी। इससे भी एक कदम आगे जाकर अरविन्द केजरीवाल ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने सोनिया गांधी से डील कर ली है, ’न तुम मेरे घोटाले उछालो, न मैं तुम्हारे घोटाले उछालूं’। इसलिए मोदी सरकार पिछली सरकार के भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने में नाकाम रही है।
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री का विवाद खड़ा करके अरविन्द केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। साफ जाहिर है कि केजरीवाल अपनी छवि बनाने का और दूसरों की छवि बिगाड़ने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। इसलिए चाहे लातूर में पानी की रेल भेजना हो या पंजाब के किसानों से हमदर्दी दिखानी हो, एक मजे हुए नेता की तरह अरविन्द केजरीवाल हर जगह खड़े नजर आते हैं। अब चूंकि दिल्ली में उनकी सरकार के अधिकार सीमित है, इसलिए अरविन्द की ईमानदारी या कार्यक्षमता की अभी परख करना संभव नहीं है। क्योंकि अरविन्द का तर्क होता है कि न तो मुझे पुलिस को नियंत्रित करने का अधिकार दिया गया है और न ही भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को पास करने दिया गया है। मुझे पूरी ताकत दो, तो मैं बताऊं कि भ्रष्टाचार कैसे कम होगा और जनता को कैसे राहत मिलेगी।
जब तक ऊंट पहाड़ के नीचे नहीं आ जाता, तब तक उसे अपने छोटा होने का एहसास नहीं होता है। इसलिए अरविन्द केजरीवाल आज कुछ भी दावा कर सकते है। वे कह सकते है कि आप मुझे प्रधानमंत्री बना दो तो मैं आसमान के तारे तोड़ लाऊंगा और जनता उनकी लच्छेदार बातों में एक बार तो फंस ही जाएगी। असलीयत तो तब पता चलेगी जब प्रधानमंत्री बनकर भी अरविन्द बहुत सारी घोषणाओं को पूरा नहीं कर पायेंगे। पर तब की तब देखी जायेगी। अभी तो अपनी इस रणनीति के सहारे वे लगातार आगे बढ़ रहे है। अपनी ब्रान्डिंग इस तरह कर रहे है मानो सारे राजनेता धोखेबाज हैं और आपस में सबकी मिलीभगत है। केवल अरविन्द केजरीवाल ही दूध के धुले हैं। चूंकि जनता की अपेक्षाएं सरकार से बहुत ज्यादा होती है, इसलिए उसे कभी संतुष्टि नहीं होती। उस पर भी अगर सरकार की सफलता उसे दिखाई न दें, तो उसकी हताशा तेजी से बढ़ जाती हैं। इसलिए चतुर राजनेता हमेशा जनता की इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं और खुद आगे बढ़ जाते हैं। यही काम आज केजरीवाल बड़ी सफलता से कर रहे हैं और इसलिए लगता है कि आने वाले दिनों में केजरीवाल अपने सभी राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को पछाड़ देंगे।
दरअसल देश की जनता को अब मंदिर, गौहत्या, राष्ट्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता जैसे भावनात्मक मुद्दों से बहकाया नहीं जा सकता। अब जनता काफी जागरूक हो गई है। समाज का बहुत बड़ा वर्ग अब अखबार और टीवी पर अपनी राय नहीं बनाता। सोशल मीडिया में हर बात खुलकर आ जाती है। इसलिए जनता को बरगलाना सम्भव नहीं है। जहां तक विकास की बात है, तो उसका ज्यादा श्रेय तो निजी क्षेत्र और उद्यमियों को जाता है। सरकार और उसके अधिकारियों के रवैये में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया है, जिससे जनता को राहत मिले। उसकी समस्याओं का समाधान हो और उसे आगे बढ़ने का मौका मिले। अनुभव तो यही बताता है कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था आम आदमी को परेशान करने के लिए और उसकी कार्यक्षमता को खत्म करने के लिए बनी है।
जब तक कोई नेता चाहे वो कजरीवाल हो या नरेन्द्र मोदी प्रशासन के इस मकड़जाल को तोड़कर साफ नहीं कर देते, तब तक जनता का भला होने वाला नहीं है। इसलिए जनता परेशान रहती है और फिर कभी वीपी सिंह, कभी नरेन्द्र मोदी और कभी अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता सपने दिखाकर उसकी उम्मीदें जगा देते है। हर बार उसे लगता है कि शायद अबकी बार उसे अपनी समस्याओं से निजात मिल जाएगी। यह सोचकर वह हर नए मसीहा के पीछे चल देती है। अब चुनौती नरेन्द्र मोदी के सामने है कि वे ऐसा कुछ करें कि जो केजरीवाल को उंगली उठाने का मौका न मिले। ये बात दूसरी है कि अगर केजरीवाल प्रधानमंत्री के पद पर बैठ गए तो वे भी कोई काला जादू चलाकर समस्याऐं हल नहीं कर पाएंगे। पर सपने दिखाकर कुर्सी तो हथिया ही लेंगे।