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Monday, September 12, 2016

केजरीवाल: बिछड़े सभी बारी-बारी



            सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल की यह मांग मानने से इंकार कर दिया कि दिल्ली में मुख्यमंत्री उपराज्यपाल से ऊपर है। दिल्ली उच्च न्यायालय ऐसी याचिका पहले ही खारिज कर चुका है। अब इसका मतलब साफ है कि पिछले 3 वर्षों से अरविंद केजरीवाल दिल्ली के उपराज्यलपाल पर केंद्र का एजेंट होने का जो आरोप बार-बार लगा रहे थे, उसकी कोई कानूनी वैधता नहीं थी। क्योंकि न्यायपालिका ने मौजूदा प्रावधानों को देखते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि दिल्ली के मामले में उपराज्यपाल का निर्णय ही सर्वोपरि माना जाएगा।
            यह पहली बार नहीं है, जब अरविंद केजरीवाल को मुंह की खानी पड़ी है। जिस दिन से आम आदमी पार्टी वजूद में आयी है, उस दिन से उसके तानाशाह संयोजक अरविंद केजरीवाल नित्य नई नौटंकी करते रहते हैं। जिसका मकसद केवल अखबार और टेलीविजन की सुर्खिया बटोरना है। ठोस काम करने में अरविंद का दिल कभी नहीं लगा। टाटा समूह की अपनी पहली नौकरी से लेकर आज तक अरविंद केजरीवाल ने नाहक विवाद खड़ा करना सीखा है। काम करने वाले शोर नहीं किया करते। विपरीत परिस्थितियों में भी काम कर ले जाते हैं। अरविंद को अगर दिल्लीवासियों की चिंता होती, तो उनकी समस्याओं को हल करते। पर आज दिल्ली देश की राजधानी होने के बावजूद निरंतर नारकीय स्थिति की ओर बढ़ती जा रही है। हर दिन दिल्लीवासी शीला दीक्षित के शासन को याद करते हैं। अरविंद केजरीवाल को तो राष्ट्रीय नेता बनने की हड़बड़ी है| इसलिए कभी पंजाब, कभी बंगाल, कभी बिहार, कभी गुजरात, कभी गोवा जाकर नए-नए शगूफे छोड़ते रहते हैं। जाहिर है कि जिन राज्यों में जनता पारंपरिक राजनैतिक दलों से नाखुश है, उन राज्यों में सपने दिखाना केजरीवाल के लिए बहुत आसान होता है। वे आसमान से तारे तोड़ लाने के वायदे करते हैं, पर भूल जाते हैं कि दिल्लीवासियों से चुनाव के पहले उन्होंने क्या-क्या वादे किए थे और आज उनमें से कितने पूरे हुए? वैसे दावा करने को केजरीवाल सरकार सैकड़ों करोड़ रूपए के विज्ञापन छपवा चुकी है।
            नवजोत सिंह सिद्धू ने भी केजरीवाल के मुंह पर करारा तमाचा जड़ा है। जिस सिद्धू को अपनी पार्टी में लेने के लिए केजरीवाल पलक-पांवड़े बिछाए बैठे थे, उसने एक ही बयान में यह साफ कर दिया कि केजरीवाल की न तो कोई विचारधारा है, न उनमें जनसेवा की कोई भावना। कुल मिलाकर केजरीवाल का फलसफा ‘मैं और मेरे लिए’ के आगे नहीं जाता। सिद्धू को चाहिए कि अगर वे भाजपा और कांग्रेस से नाखुश हैं, तो पूरे पंजाब में अपने प्रत्याशी खड़े करें और केजरीवाल की तानाशाही से त्रस्त, परिवर्तन के हामी, सभी लोगों को अपने साथ जोड़ लें। इससे कम से कम केजरीवाल पंजाब की जनता को गुमराह तो नहीं कर पाएंगे।
            ऐसा नहीं है कि केजरीवाल की तरह स्वार्थी, दोहरे चरित्र वाला और झूठ बोलने वाला का कोई दूसरा नेता नहीं है। राजनीति में तो अब यह आम बात हो गई है। फर्क इस बात का है कि केजरीवाल ने पिछले 5 वर्षों में ताल ठोककर ये घोषणा की थी कि उनसे अच्छा कोई नेता नहीं, कोई दल नहीं और कोई कार्यकर्ता नहीं। कार्यकर्ताओं की तो छोड़ो केजरीवाल मंत्रीमंडल के एक-एक मंत्री धीरे-धीरे किसी न किसी घोटाले या चारित्रिक पतन के मामले में कानून की गिरफ्त में आते जा रहे हैं। कहां गया केजरीवाल का वो दावा कि जब ये कहा गया था कि उनके दल में केवल ईमानदार और चरित्रवान लोगों को ही टिकट मिलेगा। हम तो केजरीवाल से हर टीवी बहस में ये लगातार कहते आए कि जिन आदर्शों की बात तुम कर रहे हो, वैसे इंसान खोजने बैकुंठ धाम जाना पड़ेगा। पृथ्वी पर तो ऐसा कोई मिलेगा नहीं। फिर भी केजरीवाल का दावा था कि लोकपाल का चयन उनके जैसे मेगासेसे अवार्ड जीते हुए लोग ही करें। तभी देश भ्रष्टाचार से मुक्त हो पाएगा। ये तो गनीमत है कि केजरीवाल के विधायक और मंत्री ही बेनकाब हो रहे हैं।
            अगर कहीं बंदर के हाथ में उस्तरा लग जाता, तो क्या होता? सोचिए वो स्थिति कि केजरीवाल जैसे लोग एक ऐसा लोकपाल बनाते, जो प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक के ऊपर होता और उसकी डिग्री केजरीवाल के कानून मंत्री रहे तोमर जैसी फर्जी पाई जाती। पर केजरीवाल के सुझाए कानून अनुसार वो लोकपाल देश में किसी को भी जेल भेज सकता था। केजरीवाल एंड पार्टी के ऐसे वाहियात और बचकाने आंदोलन का पहले दिन से मैंने पुरजोर विरोध किया। जब ये लोग अन्ना हजारे के साथ राजघाट धरने पर बैठे, तो मेंने इनके खिलाफ पर्चे छपवाकर राजघाट पर बंटवाए। ये बतलाते हुए कि इनकी निगाहें कहीं हैं और निशाना कहीं पर। उस वक्त कोई सुनने को तैयार नहीं था। दाऊद के एजेंट हो या भूमाफियाओं के दलाल, भ्रष्ट राजनेता हों या नंबर 2 की मोटी कमाई करने वाले फिल्मी सितारे। सबके सिर पर 2 तरह की टोपी होती थी, ‘मैं अन्ना हूं’ या ‘मैं आम आदमी हूं’। आज उन सबसे पूछो कि केजरीवाल के बारे में क्या राय है, तो कहने में चूकेंगे नहीं कि हमसे आंकने में बहुत बड़ी गलती हो गई।
            जस्टिस संतोष हेगड़े हों, अन्ना हजारे हों, प्रशांत भूषण हों, योगेंद्र यादव हों, किरण बेदी हों और ऐसे तमाम नामी लोग, जिन्होंने केजरीवाल के साथ कंधे से कंधा लगाकर लोकपाल की लड़ाई लड़ी, आज वे सब केजरीवाल के गलत आचरण के कारण उनके विरोध में खड़े हैं। बिछड़े सभी बारी-बारी। पंजाब की जनता को केजरीवाल का चरित्र अब तक समझ में आ जाना चाहिए, वरना दिल्लीवासियों की तरह वे भी रोते, कलपते नजर आएंगे।

Monday, July 11, 2016

कौन विफल कर रहा है स्वच्छ भारत अभियान को?

पुरानी कहावत है कि जब खीर खा लो तो चावल अच्छे नहीं लगते| यूँ तो हमें अपने चारों तरफ गन्दगी का साम्राज्य देखने की आदत पड़ गयी है| इसलिए हमारा ध्यान भी उधर नहीं जाता | पर हर बार यूरोप या अमरीका से लौट कर जब कोई भारत आता है तो उसे सबसे पहले भारत के शहरों में गन्दगी देख कर झटका लगता है | पिछले हफ्ते अमरीका से लौटते ही मुझे काम से मुरादाबाद, लखनऊ और वाराणसी जाना पड़ा | तीनों शहरों में गन्दगी के अम्बार लगे पड़े हैं | जबकि पीतल की क्लाकृतियों के निर्यात के कारण मुरादाबाद एक धनीमानी शहर है | लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है और वाराणसी प्रधान मंत्री का संसदीय क्षेत्र | पर तीनों ही शहरों में, सरकारी इलाकों को छोड़ कर बाकी सारे ही शहर एक ही बारिश में नारकीय स्थिति को पहुँच गये हैं | प्रधान मंत्री के स्वच्छता अभियान के पोस्टर तो आपको हर सरकारी इमारत में लगे मिल जायेंगे पर इस अभियान को सफल बनाने की ओर किसी का ध्यान नहीं है | न तो सरकारी मुलाज़िमों का और न ही हम और आप जैसे आम नागरिकों का|

हमारी दशा तो उस मछुआरिन जैसी हो गई है जो एक रात बाज़ार से घर लौटते समय तेज़ बारिश के कारण रास्ते में अपनी मालिन सहेली के घर रुक गई | पर फूलों की खुशबु के कारण उसे रात को नींद नहीं आ रही थी, सो उसने अपना मछली का टोकरा अपने मुह पर ओढ़ लिया | टोकरे की बदबू सूंघ कर उसे गहरी नींद आ गयी | हमें घर से निकलते ही कूड़े के अम्बार दिखाई देते हैं पर हम उसको अनदेखा कर के चले जाते हैं | जबकि अगर हम सब इस बात की चिंता करने लगें कि अपने घर के आसपास कूड़ा जमा नहीं होने देंगे | कूड़े को व्यकितगत या सामूहिक प्रयास से उसे उठवाने की कोशिश करेंगे, तो कोई वजह नहीं है कि धीरे-धीरे न सिर्फ हमारे पड़ोसी बल्कि नगर पालिका के कर्मचारी भी अपनी ड्यूटी ज़िम्मेदारी से करने लगेंगे | 

हममें से कितने लोग हैं जो कार, बस या रेल में सफर करते समय अपने खानपान का कूड़ा डालने के लिए अपने साथ एक कूड़े का थैला लेकर चलते हैं ? जबकि नागरिक चेतना वाले समाजों में यह आम रिवाज़ है कि लोग अपना कूड़ा अपने थैले में भरते हैं और गंतव्य आने पर उसे कूड़ेदान में डाल देते हैं| हमें तो यात्रा के समय अपने इर्द गिर्द हर किस्म का कूड़ा फ़ैलाने में कोई संकोच नहीं होता | ज़रा सोचिये जब आप ट्रेन या हवाई जहाज के टायलेट में जाएं और वो गन्दा पड़ा हो तो आपको कितनी तकलीफ होती है ? फिर भी हम लोग यह नहीं करते कि जिस कमरे में रहे या जिस वाहन में यात्रा करें उसे साफ़ छोड़ें | 

1982 की एक घटना याद आती है | अपनी शादी के बाद हम तमिलनाडु में ऊटी नाम के हिल स्टेशन पर गए | होटल के कमरे से जब निकलने लगे तो मेरी पत्नी मीता ने कमरे की सफाई शुरू कर दी | मुझे अचम्भा हुआ कि हम तो अब जा रहे हैं | ये काम तो होटल के स्टाफ का है, तुम क्यों कर रही हो ? उन्होंने अंग्रेजी में जवाब दिया, “लीव द रूम ऐज़ यू वुड लाईक टू हैव इट” यानी कमरे को ऐसा छोड़ो जैसा कि आप उसे पाना चाहते हो | तब से आज तक मेरी ये आदत है कि होटल का कमरा हो, सरकारी अतिथिग्रह का हो या किसी मेज़बान का, मैं उसे यथासंभव पूरी तरह साफ़ करके ही निकलता हूँ | 

स्वच्छता अभियान के प्रारम्भ में बहुत सारे लोगों, मशहूर हस्तियों, सरकारी अधिकारीयों, मंत्रियों और नेताओं ने झाड़ू उठा कर सफाई करने की रस्म अदायगी की थी | झाड़ू ले कर फोटो छपवाने की होड़ सी लग गयी थी | यह देख कर बड़ा अच्छा लगा था कि मोदी जी ने महात्मा गाँधी के बाद पहली बार सफाई जैसे काम को इतना सम्मान जनक बना दिया कि झाड़ू उठाना भी प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया| पर चार दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात | इन महानुभावों की छोड़ हर रैली में मोदी-मोदी चिल्लाने वाले प्रधान मंत्री की भाजपा के कार्यकर्ता तक आपको कहीं भी स्वच्छ भारत अभियान चलते नहीं दिख रहे हैं | 

आपको याद होगा कि लाल बहादुर शास्त्री जी ने अन्न संकट के दौरान हर सोमवार की शाम न सिर्फ भोजन करना छोड़ा बल्कि प्रधान मंत्री निवास में हल बैल लेकर खेती करना भी शुरू कर दिया था| मुझे लगता है कि इस देश में हम सब को लगातार धक्के की आदत पड़ गई है| इसलिए प्रधान मंत्री को हफ्ते में एक निर्धारित दिन राजधानी के सबसे गंदे इलाके में, बिना किसी पूर्व घोषणा के, अचानक जाकर झाड़ू लगानी चाहिए | इसके दो लाभ होंगे, एक तो पूरे देश में हर हफ्ते एक सकारात्मक खबर बनेगी, जिसका काफी असर आम जनता पर पड़ेगा | दूसरा झाड़ू पार्टी के नौटंकीबाज़ मुख्य मंत्री केजरीवाल की उर्जा फ़ालतू ब्यानबाजी से हटकर सकारात्मक कार्यों में लगेगी | क्योंकि शायद मुकाबले में वो सातों दिन झाड़ू लेकर निकल पड़ें| अगर उस निर्धारित दिन मोदी जी भारत के किसी अन्य नगर में हों तो वे वहां भी अपना नियम जारी रखें | जिससे हर जगह हड़कंप रहेगा | 

जिन लोगों ने स्वच्छता अभियान के प्रारम्भ में मोदी जी की यह कह कर आलोचना की थी कि प्रधान मंत्री के पास इतने बड़े काम हैं, ये झाड़ू लगाने की फुर्सत कहाँ से मिल गयी | उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि सफाई कि वृत्ति केवल अपने चारों ओर के कूड़ा उठाने तक सीमित नहीं रहेगी | इससे हमारे दिमागों और विचारों की भी सफाई होगी | जिसकी आज हमें बहुत ज़रुरत है |

Monday, May 9, 2016

सबको पछाड़ देंगे केजरीवाल

राजनीति में यह जरूरी नहीं कि आप जो कहें, वो करें। होशियार राजनीतिज्ञ वह होता है, जो लोगों की नब्ज पर हाथ रखता है। नरेन्द्र मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान हर उस मुद्दे को छुआ, जिससे आम जनता का सरोकार था। इसलिए जनता ने उन्हें हाथों-हाथ लिया और अप्रत्याशित विजय दिलाकर प्रधानमंत्री बना दिया। पर पिछले दो वर्षों में मोदी सरकार ने जो कुछ किया, उसका असर अभी तक आम आदमी ने महसूस नहीं किया है। इसलिए समाज में हताशा है। मोदी सरकार यह कह सकती है कि 60 वर्ष की गन्दगी साफ करने में कुछ तो समय लगेगा। पर जनता बहुत अधीर होती है। उसे दूरगामी परिणाम नहीं दिखाई देते बल्कि तुरन्त फल प्राप्ति की इच्छा होती है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में जैसी विजय भाजपा को मिली, वैसी विजय अब तक हुए किसी भी विधानसभा चुनावों में नहंीं मिली और आगे भी स्थिति बहुत उत्साहजनक दिखाई नहीं देती।

    उधर अरविन्द केजरीवाल एक मंजे हुए राजनेता की तरह शुरू से हर वो तीर चला रहे है जो निशाने पर लग रहा है। इसका मतलब ये नहीं कि अरविन्द जो वायदा करते हैं वो पूरा कर देंगे। पर आज वो मौके का फायदा उठाने का कोई अवसर नहीं छोड़ रहे हैं। पिछले हफ्ते आम आदमी पार्टी ने अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर के घोटाले में केन्द्र सरकार को बुरी तरह घसीटा। अरविन्द का आरोप है कि भ्रष्टाचार के विरूद्ध लड़ने का वायदा कर मोदी सरकार बनी थी। पर क्या वजह हैं कि दो वर्षों में भी यह सरकार अगस्ता वेस्टलैंड के आरोपियों को नहीं पकड़ पायी। जबकि इटली की अदालतों ने आरोपियों को सजा भी सुना दी। इससे भी एक कदम आगे जाकर अरविन्द केजरीवाल ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया है कि उसने सोनिया गांधी से डील कर ली है, ’न तुम मेरे घोटाले उछालो, न मैं तुम्हारे घोटाले उछालूं’। इसलिए मोदी सरकार पिछली सरकार के भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने में नाकाम रही है।

    इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिग्री का विवाद खड़ा करके अरविन्द केजरीवाल ने प्रधानमंत्री के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। साफ जाहिर है कि केजरीवाल अपनी छवि बनाने का और दूसरों की छवि बिगाड़ने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहते। इसलिए चाहे लातूर में पानी की रेल भेजना हो या पंजाब के किसानों से हमदर्दी दिखानी हो, एक मजे हुए नेता की तरह अरविन्द केजरीवाल हर जगह खड़े नजर आते हैं। अब चूंकि दिल्ली में उनकी सरकार के अधिकार सीमित है, इसलिए अरविन्द की ईमानदारी या कार्यक्षमता की अभी परख करना संभव नहीं है। क्योंकि अरविन्द का तर्क होता है कि न तो मुझे पुलिस को नियंत्रित करने का अधिकार दिया गया है और न ही भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को पास करने दिया गया है। मुझे पूरी ताकत दो, तो मैं बताऊं कि भ्रष्टाचार कैसे कम होगा और जनता को कैसे राहत मिलेगी।

    जब तक ऊंट पहाड़ के नीचे नहीं आ जाता, तब तक उसे अपने छोटा होने का एहसास नहीं होता है। इसलिए अरविन्द केजरीवाल आज कुछ भी दावा कर सकते है। वे कह सकते है कि आप मुझे प्रधानमंत्री बना दो तो मैं आसमान के तारे तोड़ लाऊंगा और जनता उनकी लच्छेदार बातों में एक बार तो फंस ही जाएगी। असलीयत तो तब पता चलेगी जब प्रधानमंत्री बनकर भी अरविन्द बहुत सारी घोषणाओं को पूरा नहीं कर पायेंगे। पर तब की तब देखी जायेगी। अभी तो अपनी इस रणनीति के सहारे वे लगातार आगे बढ़ रहे है। अपनी ब्रान्डिंग इस तरह कर रहे है मानो सारे राजनेता धोखेबाज हैं और आपस में सबकी मिलीभगत है। केवल अरविन्द केजरीवाल ही दूध के धुले हैं। चूंकि जनता की अपेक्षाएं सरकार से बहुत ज्यादा होती है, इसलिए उसे कभी संतुष्टि नहीं होती। उस पर भी अगर सरकार की सफलता उसे दिखाई न दें, तो उसकी हताशा तेजी से बढ़ जाती हैं। इसलिए चतुर राजनेता हमेशा जनता की इस कमजोरी का फायदा उठाते हैं और खुद आगे बढ़ जाते हैं। यही काम आज केजरीवाल बड़ी सफलता से कर रहे हैं और इसलिए लगता है कि आने वाले दिनों में केजरीवाल अपने सभी राजनैतिक प्रतिद्वंदियों को पछाड़ देंगे। 

दरअसल देश की जनता को अब मंदिर, गौहत्या, राष्ट्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता जैसे भावनात्मक मुद्दों से बहकाया नहीं जा सकता। अब जनता काफी जागरूक हो गई है। समाज का बहुत बड़ा वर्ग अब अखबार और टीवी पर अपनी राय नहीं बनाता। सोशल मीडिया में हर बात खुलकर आ जाती है। इसलिए जनता को बरगलाना सम्भव नहीं है। जहां तक विकास की बात है, तो उसका ज्यादा श्रेय तो निजी क्षेत्र और उद्यमियों को जाता है। सरकार और उसके अधिकारियों के रवैये में ऐसा कोई बदलाव नहीं आया है, जिससे जनता को राहत मिले। उसकी समस्याओं का समाधान हो और उसे आगे बढ़ने का मौका मिले। अनुभव तो यही बताता है कि पूरी प्रशासनिक व्यवस्था आम आदमी को परेशान करने के लिए और उसकी कार्यक्षमता को खत्म करने के लिए बनी है।

जब तक कोई नेता चाहे वो कजरीवाल हो या नरेन्द्र मोदी प्रशासन के इस मकड़जाल को तोड़कर साफ नहीं कर देते, तब तक जनता का भला होने वाला नहीं है। इसलिए जनता परेशान रहती है और फिर कभी वीपी सिंह, कभी नरेन्द्र मोदी और कभी अरविन्द केजरीवाल जैसे नेता सपने दिखाकर उसकी उम्मीदें जगा देते है। हर बार उसे लगता है कि शायद अबकी बार उसे अपनी समस्याओं से निजात मिल जाएगी। यह सोचकर वह हर नए मसीहा के पीछे चल देती है। अब चुनौती नरेन्द्र मोदी के सामने है कि वे ऐसा कुछ करें कि जो केजरीवाल को उंगली उठाने का मौका न मिले। ये बात दूसरी है कि अगर केजरीवाल प्रधानमंत्री के पद पर बैठ गए तो वे भी कोई काला जादू चलाकर समस्याऐं हल नहीं कर पाएंगे। पर सपने दिखाकर कुर्सी तो हथिया ही लेंगे।

Monday, November 10, 2014

ऐसे नाटक ज्यादा घातक



दिल्ली भाजपा के अधयक्ष सतीश उपाध्याय और उनके साथ शाजिया इल्मी के स्वच्छता अभियान वाले नाटक से नरेन्द्र मोदी के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम को बड़ी चोट पहुंची है | यह मामला वैसे तो कोई बड़े महत्त्व का नहीं है लेकिन नई सरकार के आने के बाद जिन कार्यक्रमों की जोर-शोर से शुरुवात करने की कोशिश हुई है उसकी कमज़ोर कड़ियाँ दिखने लगी हैं |
दिल्ली के चमचमाते इलाके में ऐसे आयोजन की आखिर ज़रूरत क्या आन पड़ी थी ? इस सिलसिले में कोई अगर यह कहे कि उपाध्याय को यह इलाका किसी ने अपने हिसाब सुझा दिया होगा और उपाध्याय ने महत्वाकांक्षी कार्यक्रम के तहत आने वाले किसी भी आयोजन के लिए बिना सोचे समझे हामी भर दी होगी तो यह बात गले नहीं उतरती | टीवी चैनलों पर जिस तरह से व्यंग और उपहास करते हुए पहले सूखे पत्ते और फूल बिखेरते हुए दिखाया गया और बाद में उपाध्याय के साथ इल्मी को झाड़ू लगाने के समारोह में भाग लेते हुए दिखाया गया उससे तो पूरे अभियान पर सवाल उठाना स्वाभाविक है | इतने महत्वपूर्ण और सार्थक अभियान के मकसद पर उठ रहे सवाल सभी को सोचने को मजबूर कर रहे हैं |
कोई ऐसा भी कह सकता है कि नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता वाले इस अभियान का यह प्राथमिक चरण है | यानी यह सिर्फ योजना बनाने वाला चरण है | लिहाज़ा योजना बनाने में ऐसे अंदेशों का भी निराकरण कर लिया जायेगा | लेकिन यहाँ इस बात पर गौर ज़रूरी है कि दिल्ली अब विधान सभा चुनाव की तैयारियों के दौर में पहुँच चुकी है | ऐसे में दिल्ली भाजपा अधयक्ष की छीछालेदर होना छोटी बात नहीं है | अनुमान कर सकते हैं कि भाजपा के केन्द्रीय स्तर पर इसे ज़रूर ही लेखे में ले लिया गया होगा |
इस प्रकरण के बहाने हमारे पास स्वच्छता अभियान के कुछ और महत्वपूर्ण पहलुओं पर कहने का मौका है | वैसे महीने भर पहले 6 अक्टूबर को इसी कॉलम में इसी मुद्दे पर लिखा गया था | वह 2 अक्टूबर के 4 दिन बाद का समय था | यानी तब स्वच्छता के प्रति नई सरकार की गंभीरता के रुझान बताने की शुरुआत थी | तब इस कॉलम में लिखा गया था कि सडकों और गलियों में फैले कूड़े कचरे को समेट कर एक जगह ढेर बना देने से काम पूरा नहीं हो सकता | समस्या इलाके से निकले कूड़े को शहर या गाव से बाहर फेंकने की है और उससे भी बड़ी समस्या यह कि गाव या शहर के बाहर कहाँ फेंके ? पिछले तीस साल में हर तरह से सोच के देख लिया गया और पाया गया कि कूड़े के अंतिम निस्तारण के लिए कोई भी विश्वसनीय उपाय उपलब्ध नहीं हो पाया है | जितने भी निरापद उपाय सोचे गए वे इतने खर्चीले हैं कि बेरोज़गारी और महंगाई सी जूझता देश वह खर्चा उठा नहीं सकता | अब यदि स्वच्छता को नई सरकार की प्राथमिकता में रखा ही गया है तो सबसे पहले योजनाकारों को यह हिसाब लगाना होगा कि इतने महत्वपूर्ण अभियान के लिए हम कितने धन का प्रबंध कर सकते हैं ? हो सकता है कि पांच महीने पुरानी हो गयी नई सरकार के बड़े अफसरों ने बड़ी तेज़ी से काम करके यह हिसाब लगा लिया हो | लेकिन नई सरकार की पहल या उसके क़दमों का पल-प्रतिपल हिसाब रखने वाले मीडिया में इस बारे में कोई सूचना दिखाए नहीं दी |
लोगों के बीच होने वाली बातों को देखें तो नरेंद्र मोदी के इरादों पर लोग अभी भी यकीन कर रहे हैं | बहुमत के साथ बनी सरकार का अर्थ ही ये है कि ज्यादातर लोग मन से चाहते हैं कि नई सरकार की योजनाएं परीयोजनाएं सफल हों | और अगर वे ऐसा चाहते हैं तो अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी निभाने में लोग पीछे क्यों रहेंगे ? और इस बात से उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि अभिनेता या बड़े नेता या दूसरे सेलिब्रिटी सड़कों पर झाड़ू लगाते दिख रहे हैं या नहीं दिख रहे | वैसे ये मनोविज्ञान का मामला है | प्रचार में अभिनेताओं – नेताओं के इस्तेमाल की बात ठीक भी हो सकती है | फिर भी यह सवाल अपनी जगह है कि जागरूकता का लक्ष्य हासिल करने के बाद हमें कूड़े कचरे के जो बड़े बड़े ढेर उपलब्ध होंगे उनका निस्तारण हम कैसे करेंगे ?
अभियान का औपचारिक एलान हुए महीना भर हुआ है | अगर अभियान वाकई जोर पकड़ गया तो हमें फ़ौरन ही ठोस कचरा प्रबंधन का कोई नवोनवेशी उपाय ढूंढना पड़ेगा | बेहतर हो कि कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में शोध परियोजनाएं अभी से शुरू कर ली जाएँ और कचरा प्रबंधन के लिए संसाधनों के इंतज़ाम पर सोचना शुरू कर दिया जाए | अभी से हिसाब लगा लिया जाए कि स्वच्छता अभियान को प्राथमिकता सूची में कहाँ रखा जाए | इन सुझावों को अभियान के पूर्व की सतर्कता की श्रेणी में रखा जा सकता है वरना उपाध्याय और इल्मी जैसे और भी प्रकरण सामने आते रह सकते हैं | कूड़े कचरे के बड़े बड़े ढेरों के पास कोई भी नहीं फटकना चाहेगा |

Monday, May 19, 2014

मोदी को न समझने की भूल महेंगी पड़ी

    पिछले 10 वर्षों में पद्मश्री, राज्य सभा की सदस्यता या अपने अखबार या चैनल के लिए आर्थिक मदद की एवज में मीडिया का एक बहुत बड़ा वर्ग नरेन्द्र मोदी के ऊपर लगातार हमले करता रहा। 2007 में एक स्टिंग ऑपरेशन भी किया गया। पर यह सब वार खाली गए क्योंकि इस तरह की पत्रकारिता करने वाले इस गलतफहमी में रहे कि जनता मूर्ख है और उनका खेल नहीं समझेगी। पर जनता ने बता दिया कि वह अपनी राय मीडिया से प्रभावित होकर नहीं बल्कि खुद की समझ से बनाती है। पिछले 10 वर्षों में जब-जब किसी मुद्दे पर मीडिया का एक बड़े वर्ग ने मोदी पर हमला बोला तो मैने 22 राज्यों में छपने वाले अपने साप्ताहिक लेखों में इन हमलावरों के खिलाफ कुछ प्रश्न खड़े किए। जिनका मकसद बार-बार यह बताना था कि उनके हर हमले से जनता के बीच मोदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। क्योंकि मोदी वो काम कर रहे थे जिनकी जनता को नेता से अपेक्षा होती है। नतीजा सबके सामने हैं। यह बात दूसरी है कि गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले अब मोदी का गुणगान करने में नहीं हिचकेंगे। पर मोदी ने भी ऐसे लोगों की लगातार उपेक्षा कर यह बता दिया कि उन्हें अपने लक्ष्य हासिल करने का जुनून है और वो उसे पा कर ही रहेंगे।
    मोदी को लेकर साम्प्रदायिकता का जो आरोप लगाया गया उसे मुसलमानों की युवा पीढ़ी तक ने नकार दिया। 2010 में गुजरात के दौरे पर जब हर जगह मुसलमानों ने मोदी के काम के तरीके की तारीफ की तो मैंने लेख लिखा, ‘मुसलमानों ने मोदी को वोट क्यों दिया?’ हाल ही में वाराणसी की यात्रा में जब मैंने मुसलमानों से बात की तो पता चला कि पुराने विचारों के मुसलमान मोदी के खिलाफ थे वहीं युवा पीढ़ी ने मोदी के विकास के वायदों पर भरोसा जताया और उसका परिणाम सामने है। मोदी को कट्टर हिन्दूवादी बताने का अभियान चला रहे उन सभी लोगों को मैं यह बताना चाहता हूं कि उन्होंने आज तक हिन्दू धर्म की उदारता को समझने का प्रयास ही नहीं किया है। विविधता में एकता और हर जल को गंगा में मिलाकर गंगाजल बनाने वाली भारतीय संस्कृति न सिर्फ देश के लिए आवश्यक है बल्कि पूरी मानव जाती के लिए सार्थक है। जिसमें धर्माधता की मोई जगह नहीं। मुझे विश्वास है कि नरेन्द्र मोदी अपने कड़े इरादे और कार्यशैली से भारत के मुसलमानों को भी तरक्की की राह पर ले जाएंगे। तब इन लोगों को पता चलेगा कि बिना मुस्लिम तुष्टिकरण के भी सबका भला किया जा सकता है।
    जब चुनाव परिणाम आ रहे थे तो मैं एक टीवी चैनल पर टिप्पणियां देने के लिए बुलाया गया था। उस वक्त कई साथी विशेषज्ञों ने प्रश्न किए कि मोदी ने जो बड़े-बड़े वायदे किए हैं, उन्हें कैसे पूरा करेंगे? मेरा जवाब था कि जिस तरह उन्होंने तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद चुनाव में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है वह एक सोची-समझी लंबी रणनीति के कारण हो सका है। ठीक इसी तरह देश की हर बड़ी समस्या के समाधान के लिए मोदी ने चुनाव लड़ने से भी बहुत पहले से अपनी नीतियों के ब्लूप्रिंट तैयार कर रखे हैं। वे हर उस व्यक्ति पर निगाह रखे हुए है जो इन नीतियों के क्रियान्वयन में अच्छे परिणाम ला सकता है। मोदी किसी आईएएस या दल के नेताओं को भी अनावश्यक तरजीह नहीं देते। जिस कार्य के लिए जो व्यक्ति उन्हें योग्य लगता है उसे बुला कर काम और साधन सौप देते हैं। हाल ही में एक टीवी साक्षात्कार में मोदी ने कहा भी कि मैं कुछ नहीं करता केवल अनुभवी और योग्य लोगों को काम सौप देता हूं और वे ही सब काम कर देते हैं।
    अपनी सरकार के मंत्रिमण्डल और प्रमुख सचिवों की सूची वे पहले ही तैयार करे बैठे हैं। मंत्रिमण्डल का गठन होते ही उनकी रफ्तार दिखाई देने लगेगी। पर यहां एक प्रश्न हमें खुद से भी करना चाहिए। एक अकेला मोदी क्या कश्मीर से क्न्या कुमारी और कच्छ से आसाम तक की हर समस्या का हल फौरन दे सकते हैं। शायद देवता भी यह नहीं कर सकते। इसी लिए गंगा मैया की आरती करने के बाद मोदी ने पूरे देश के हर नागरिक का आह्वान किया कि वे अगर एक कदम आगे बढ़ाएंगे तो देश सवा सौ करोड़ कदम आगे बढ़ेगा। पिछले कुछ वर्षों में कुछ निहित स्वार्थों ने, जीवन में दोहरे मापदण्ड अपनाते हुए देश के लोकतंत्र को पटरी से उतारने की भरपूर कोशिश की। उन्हें देश विदेश से भारी आर्थिक सहायता मिली और उन्हें गलतफहमी हो गई कि मोदी के रथ को रोक देंगे। पर खुद उनका ही पत्ता साफ हो गया। उनका ही नहीं 10 साल से सत्ता में रही कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया। दरअसल इस देश की जनता को एक मजबूत इरादे वाले नेतृत्व का इंतजार था। श्रीमती इंदिरा गांधी के बाद आज तक देश को ऐसा नेतृत्व नहीं मिला। इसलिए देश मोदी के पीछे खड़ा हो गया। सांसद तो राजीव गांधी के मोदी से ज्यादा जीत कर आए थे। पर एक भले इन्सान होने के बावजूद राजीव गांधी राजनैतिक नासमझी, अनुभवहीनता, कोई राजनैतिक लक्ष्य का न होने के कारण अधूरे मन से राजनीति में आए थे। उन्हें स्वार्थी मित्र मण्डली ने घेर लिया था। इसलिए जल्दी विफल हो गए। जबकि नरेन्द्र मोदी के पास अनुभव, समझ, विश्वसनीयता, कार्यक्षमता और पूर्व निधारित स्पष्ट लक्ष्य है। इसलिए उनकी सफलता को लेकर किसी के मन में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। हां यह तभी होगा जब हर नागरिक राष्ट्रनिर्माण के काम में, बिना किसी पारितोषिक की अपेक्षा के, उत्साह से जुट़ेगा। ‘साथी हाथ बढ़ाना साथी रे, एक अकेला थक जाएगा मिलकर बोझ उठाना।’ वन्दे मातरम्।