Monday, April 18, 2016

अपना क्या है, हमें तो रायता फैलाना है

चाहे वो केजरीवाल के आईआईटी के मित्र हों, आईआरएस के या टाटा समूह के सहकर्मी हों, सभी केजरीवाल के रायता फैलाने की आदत से परिचित हैं। अब एक बार फिर, बारी दिल्ली वालों की है। पाठकों को यह याद होगा कि जब केजरीवाल ने जनता दरबार लगाया था, उस समय अचानक जनता की समस्या सुने बिना ये भाग गए थे। तमाम सोशल मीडिया व समाचार पत्रों में इन्हें इनके इस रायता फैलाने वाले एक्शन से भगौड़ा करार कर दिया गया था। ‘आॅड-ईवन दोबारा‘ का नारा दे कर एक बार फिर दिल्ली वाले इस रायते का अनुभव करने वाले हैं।
पिछली बार प्रदूषण कम करने के बहाने इसका प्रयोग किया गया। प्रदूषण तो कम नही हुआ मगर गाड़ियों की भीड़ जरूर कम हुई। इसी बात का फायदा उठा कर केजरीवाल ने इसे अब और राज्यों में चुनावी मुद्दा बना कर उन राज्यों की भोली भली जनता को भी टोपी पहनाने की ठान ली है। 
केजरीवाल व उनके सहयोगियों को शायद यह नहीं पता कि सड़क व राजमार्ग मंत्रालय ने 1 अप्रेल 2010 के बाद बनी सभी गाड़ियों को भारत स्टेज 4 की श्रेणी के प्रमाणों का पालन करना अनिवार्य कर दिया है। गौरतलब यह है कि 1 अप्रेल, 2010 के बाद बनी गाड़ियां प्रदूषण मानक में इतनी खरी उतर रही हैं कि इन गाड़ियों को प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र एक साल की वैधता का दिया जाता है, जबकि इससे पहले की बनी गाड़ियों को केवल 3 महीने का प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र ही दिया जाता है। यानि कि जो गाड़ियां 1 अप्रेल, 2010 से पहले बनीं हैं, उनका प्रदूषण फैलाने का खतरा 1 अप्रेल, 2010 के बाद से बनीं गाड़ियों से अधिक है। इतना ही नहीं भारत स्टेज 4 गाड़ियों को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के अनुसार 1 मई, 2012 से हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट का होना अनिवार्य कर दिया गया था और यह कानून बड़ी ही सख्ती से लागू किया जा रहा है।
अब केजरीवाल जी का यह कहना है कि वे दिल्ली के प्रदूषण को लेकर चिंतिंत हैं और ये सम-विषम वाला नियम का प्रयोग केवल प्रदूषण का स्तर कम करने के लिए एक कोशिश है, तो केजरीवालजी यह बात तो बच्चा-बच्चा ही समझ लेगा कि जो गाड़ियां 1 अप्रेल, 2010 के बाद बनी हैं, उनका प्रदूषण का स्तर नाम मात्र ही है, इसलिए उन्हें एक साल की वैधता का प्रदूषण नियंत्रण प्रमाण पत्र दिया जाता है। तो सम-विषम वाला कानून 1 अप्रेल, 2010 के बाद बनी हुई गाड़ियों पर क्यों लागू किया जा रहा है ? क्या आपकी रिसर्च टीम इतना भी रिसर्च नहीं कर पाई ?
अगर केजरीवाल जी का तर्क यह होगा कि 1 अप्रेल, 2010 के बाद की गाड़ी को पहचानना कठिन होगा, तो इससे बड़ा मजाक कोई नहीं हो सकता। आपकी सरकार के परिवहन विभाग में इन गाड़ियों के पंजीकरण की एक सूची होती है जो नम्बर की सीरीज से पकड़ी जाती है। और उस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट वाला नियम भी इन गाड़ियों को पहचानने में मददगार सिद्ध होगा।
हमारे एक मित्र के पास एक 2007 में बनी मारूति है। जब उन्होंने अखबारों में सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पढ़ा कि 1 मई, 2012 के बाद हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट का लगना अनिवार्य है, तो उन्होंने इस नियम का पालन करने की दृष्टि से दिल्ली के कई नंबर प्लेट बनाने वालों से संपर्क किया और अपनी 2007 की बनी गाड़ी पर यह हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट लगवाने का प्रयास किया। पता यह लगा कि ये कानून इतना सख्त है कि हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट की नकल बनाना इतना आसान नहीं है। पूछे जाने पर यह भी पता लगा कि दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के पास कुछ ऐसे लेजर कैमरे हैं, जिनसे हाई सिक्योरिटी नंबर प्लेट के अंदर लगी हुई एक चिप पढ़ी जा सकती है। इस चिप के अंदर गाड़ी का पूरा विवरण एक विशेष तकनीक से फीड कर दिया जाता है, जो केवल इन लेजर कैमरों की मदद से ही देखा जा सकता है। तो केजरीवाल जी सम-विषम का कानून अगर लागू करना ही है, तो क्यों न 1 अप्रेल, 2010 या 1 मई, 2012 से पहले की बनी गाड़ियों पर ही लागू किया जाए, और वो भी स्थाई रूप से। आम जनता को इस नए रायते से बचाकर रखा जाए।
दिल्ली के ट्रैफिक की समस्या ऐसी है कि अगर दिल्ली का कोई भी अधिक भीड़ वाला चैराहा ले लिया जाए, चाहे वो आईटीओ, आल इंडिया मेडीकल, आश्रम या मधुबन चैराहा ही क्यों न हो, अगर आपके द्वारा इस प्रयोग को लागू कर रही ट्रैफिक पुलिस 4 गाड़ियों को भी रोककर चालान करती है, तो उनके पीछे तमाम गाड़ियों का तांता लग जाएगा, जो ट्रैफिक जाम में फंस जाएंगे। ट्रैफिक जाम में फंसे हुए लोगों की गाड़ियां इतना प्रदूषण फैलाएगीं, जो अभी तक की प्रदूषण की मात्रा से काफी अधिक होगा। दूसरी ओर अगर यह कानून केवल 1 अप्रेल, 2010 या मई 2012 से पहले बनी हुई गाड़ियों पर लागू होता है, तो इसमें पुलिस वालों को गाड़ी पहचानना, रोककर उसकी जांच करना और दोषी पाए जाने पर उसे दंडित करना काफी आसान होगा। किसी ने खूब कहा है कि एक पेड़ पर अगर 10 चिड़िया बैठी हैं और शिकारी केवल एक पर निशाना लगाता है, उस स्थिति में बाकी 9 चिड़ियाओं का क्या हाल होगा, यह कहने की जरूरत नहीं है। ठीक इसी तरह अगर आप सम-विषम कानून को सख्ती से 1 अप्रेल, 2010 या 1 मई, 2012 से पहले की गाड़ियों पर लागू करते हैं, तो ऐसी गाड़ियों के स्वामी चैकन्ना हो जाएंगे और अपनी गाड़ी को सड़क पर लाने से पहले कई बार सोंचेगे।
पिछली बार केजरीवाल सरकार ने बड़े बड़े दावे किये कि हजारों स्वयमसेवक दिल्ली के चैराहों पर खड़े रह कर नियम के उल्लंघन करने वालों को इसका एहसास दिलाएँगे और साथ ही उनकी गाड़ियों के नम्बर को ट्रेफिक पुलिस को भी भेजेंगे। ये दावे भी झूठे साबित हुए और ज्यादतर जगहों पर इनके कार्यकर्ता नामौजूद पाए गए। पिछले प्रयोग के हफ्तों बाद तक भी केजरीवाल के पोस्टर इत्यादि चिपके रहे कि यह प्रयोग कामयाब रहा। केजरीवाल के स्ल्ह्कारों ने इसे प्रचार का एक नया माध्यम मान कर इसका भी भरपूर फायदा उठाया। इतना कि इस बार के प्रयोग का इतना प्रचार हो रहा है कि सम विषम कम बल्कि मुख्यमंत्री का चेहरा ज्यादा नजर आ रहा है। जनता के पैसे का दुरुपयोग इससे ज्यादा और कहीं नही दिख सकता।
सोचने वाली बात यह भी है कि आप आए दिन केंद्र की सरकार और दिल्ली के उपराज्यपाल व दिल्ली पुलिस से सहयोग न मिलने की गुहार लगाते रहते हैं। मगर दिल्ली के प्रदूषण को कम करने में जो तमाम गैर कानूनी फैक्ट्रियां, जो कि सीधे आपके नियंत्रण में हैं, उन पर आपकी नजर क्यों नहीं पड़ रही है। असली परीक्षण तो सोमवार की सुबह होगा जब सभी दफ्तर खुल चुके होंगे और तमाम दिल्लीवासी इस रायते का शिकार होंगे। केजरीवाल जी दिल्ली के निवासी आपकी नौटंकियों और रायता फैलाने की आदत से वाकिफ हो चुके हैं, कृपया सोच-समझकर ही अगला कदम उठाएं।

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