कोरोना के संकट के दौर में अब्दुल रहीम खानखाना की इन पंक्तियों को सिद्ध करने वाले छोटे बड़े कई लोगों का ज़िक्र आपने देश के हर इलाक़े में सुना ज़रूर होगा। जिन्होंने इन दो महीनों में ये सिद्ध कर दिया है कि आम जनता का जितना ख़्याल स्वयमसेवी संस्थाएँ, सामाजिक संगठन और निजी स्तर पर व्यक्ति करते हैं, उसका मुक़ाबला कोई केंद्र या राज्य सरकार नहीं कर सकती। इन महीनों में किसी भी दल के नेता, मंत्री, सांसद और विधायक जनता के बीच उत्साह से सेवा करते दिखाई नहीं दिए, क्यों ? कारण स्पष्ट है कि हमारी प्रशासनिक व्यवस्था आज तक भ्रष्टाचार के कैन्सर से मुक्त नहीं हुई है। प्रशासनिक अधिकारी हमेशा से भीषण आपदा में भी मोटी कमाई के रास्ते निकाल ही लेते हैं। फिर चाहे जनता बाढ़, भूकम्प, चक्रवात या महामारी किसी की भी मार झेले, उन्हें तो अपनी कमाई से मतलब होता है, जनसेवा से नहीं। इसके अपवाद भी होते हैं ।पर उनका प्रतिशत बहुत कम होता है। इसीलिए सरकार को दान देने के बजाए लोग स्वयं धर्मार्थ कार्य करना बेहतर समझते हैं।
सेवा को अपना कर्तव्य मान कर करने वाले ये लोग, नेताओं और अफ़सरों की तरह दान देने से ज़्यादा अपनी फ़ोटो प्रकाशित करने में रुचि नहीं लेते। मध्य-युगीन संत रहीम जी दिन भर दान देते थे, पर अपना मुँह और आँखें झुका कर। उनकी यह ख्याति सुनकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने उन्हें पत्र भेज कर पूछा कि आप दान देते वक्त ऐसा क्यों करते हैं ? तब रहीम जी ने उत्तर में लिखा,
‘देनहार कोई और है,
भेजत जो दिन रैन।
लोग भरम हम पर करें,
तास्सो नीचे नयन ।।’
पुणे के ऑटो चालक अक्षय कोठावले की मिसाल लें। प्रवासी मज़दूरों की सहायता के लिए अक्षय कोठावले ने अपनी शादी के लिए जोड़े गए 2 लाख रुपयों को खर्च करने में ज़रा भी संकोच नहीं किया। ग़ौरतलब है कि इसी 25 मई को अक्षय की शादी होनी थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते उसे स्थगित करना पड़ा। जब अक्षय ने सड़कों पर बदहाल और भूखे लोगों को देखा तो उसने अपने मित्रों के साथ मिलकर इन सभी के लिए कुछ करने की ठानी और शादी के लिए बचाई रक़म मज़दूरों को भोजन कराने में खर्च कर दी। आज अक्षय की हर ओर सराहना हो रही है।
बॉलीवुड में सोनू सूद भले ही आजतक खलनायक की भूमिका निभाते रहे हों, लेकिन असल ज़िंदगी में उन्होंने प्रवासी मज़दूरों के लिए जो किया है, उससे पूरे भारत में उनकी जय-जयकार हो रही है। सोनू सूद ने सैंकड़ों बसों का इंतेज़ाम किया और 12 हज़ार से अधिक लोगों को उनके घर पहुँचाया। इतना ही नहीं सोनू ने 177 लोगों को एक विशेष विमान द्वारा भी उनके घर तक पहुँचाया। ये सब तब हुआ जब केंद्र और राज्य सरकारें इसी विवाद में उलझी रहीं कि ट्रेन का कितना किराया केंद्र सरकार देगी और कितना राज्य सरकार। या फिर मज़दूरों को उनके शहर तक पहुँचाने वाली बसें पूरी तरह से फ़िट हैं या नहीं। सोनू सूद से कहीं ज़्यादा धनी और मशहूर फ़िल्मी सितारे मुंबई में रहते हैं । जो न सिर्फ़ फ़िल्मों से कमाते हैं बल्कि हर निजी या सरकारी विज्ञापनों में छाए रहते हैं और करोड़ों रुपया हर महीने इनसे भी कमाते हैं। पर उनका दिल ऐसे नहीं पसीजा।
दूसरी ओर दक्षिण भारतीय फ़िल्मों के खलनायक प्रकाश राज ने न सिर्फ़ मज़दूरों को खाना देने और घर पहुंचाने में मदद की। बल्कि उन्होंने अपने फार्म हाउस पर दर्जनों लोगों के रहने के इंतजाम भी किया। लॉकडाउन के इस मुश्किल वक़्त में प्रकाश राज की ये दरियादिली लोगों को पसंद आई। सोशल मीडिया पर जहां एक समय पर प्रकाश राज के कुछ बयानों को लेकर काफ़ी हमले हो रहे थे और उन्हें रियल लाइफ़ का खलनायक भी कहा जा रहा था, उनकी इस सेवा से अब हर कोई उनकी तारीफ़ कर रहा है। किसी विचारधारा या दल से सहमत होना या न होना आपका निजी फ़ैसला हो सकता है, लेकिन संकट में फँसे लोगों की मदद करना यह बताता है कि आपके अंदर एक अच्छा इंसान बसता है। जिन मज़दूरों को राहत मिल रही है वो राहत देने वाले से यह थोड़े ही पूछ रहे हैं कि आप कौन से दल के समर्थक हैं, उन्हें तो राहत से मतलब है।
सेवा के इस काम में देश भर से अनेक ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जिन्हें सुन कर हर सक्षम व्यक्ति को शर्मिंदा होना चाहिए। कुछ ऐसा ही जज़्बा मुंबई की 99 वर्षीय महिला में भी देखा गया। सोशल मीडिया में ज़ाहिद इब्राहिम ने एक विडियो डाला है, जिसमें ये बुजुर्ग महिला प्रवासी मज़दूरों के लिए खाने का पैकेट तैयार करती नज़र आ रही हैं। मास्क बनाने से लेकर खाना बनाने तक के काम में पूरे देश में आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग की महिलाओं ने भी बढ़ चढ़ कर योगदान किया है।
गुरुद्वारों की तो बात ही क्या की जाए ? देश में जब कभी, जहां कहीं, आपदा आती है, सिख समुदाय बड़ी उदारता से सेवा में जुट जाता है। इस दौरान भी कोरोना की परवाह किए बग़ैर सिख भई बहनों ने बड़े स्तर पर लंगर चलाने का काम किया। वैसे भी गुरुद्वारों में लंगर सबके लिए खुले होते हैं। जहां अमीर गरीब का कभी कोई भेद दिखाई नहीं देता।
इसी तरह देश के कुछ उद्योगपतियों ने भी निजी स्तर पर या अपनी कम्पनियों के माध्यम से कोरोना के क़हर में जनता की बड़ी मदद की है। जैसे रतन टाटा व अन्य होटल मालिकों ने देश भर में अपने होटलों को मेडिकल स्टाफ़ या कवारंटाइन के लिए उपलब्ध कराया। उधर बजाज ऑटो के प्रबंध निदेशक राजीव बजाज ने बड़ी मात्रा में होम्योपैथी की दवा बाँट कर पुणे के पुलिसकर्मियों और लोगों को कोरोना की मार से बचाया। सुना है कि होम्योपैथी में अटूट विश्वास रखने वाले राजीव बजाज का भारत सरकार को प्रस्ताव है कि वे पूरे देश के नागरिकों को कोरोना से बचने के लिए होम्योपैथी की दवा मुफ़्त बाँटने को तैयार हैं, जिसकी लागत क़रीब 700 करोड़ आएगी। अगर यह बात सही है तो सरकार को उनका प्रस्ताव स्वीकारने में देर नहीं करनी चाहिए।
‘हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।’ हर काल और हर समाज में परोपकार करने वालों की कभी कमी नहीं होती। सरकार का कर्तव्य है कि वह सत्ता को अफ़सरशाही के हाथों में केंद्रित करने की बजाय जनता के इन प्रयासों को प्रोत्साहित और सम्मानित करे, ताकि पूरे समाज में पारस्परिक सहयोग और सद्भावना की भावना पनपे, नकि सरकार पर परजीवी होने की प्रवृति।
No comments:
Post a Comment