आजकल देश में बड़े घोटालेबाज़ों द्वारा ‘ब्लैकमेलर’ की एक नई परिभाषा गढ़ी जा रही है। आजतक तो पत्रकारिता जगत में उन्हें ही ‘ब्लैकमेलर’ कहा जाता था, जो किसी महत्वपूर्ण अधिकारी, मंत्री या बड़े पैसे वाले के विरुद्ध खोज करके ऐसे प्रमाण, फ़ोटो या दस्तावेज जुटा लेते थे, जिनसे वह महत्वपूर्ण व्यक्ति या तो घोटाले के केस में फँस सकता था और उसकी नौकरी जा सकती थी या वह बदनाम हो सकता था, या उसके ‘बिज़नेस सीक्रेट’ जग ज़ाहिर हो सकते थे, जिससे उसे भारी व्यापारिक हानि हो सकती थी। ऐसे प्रमाण जुटा लेने के बाद जो पत्रकार उन्हें सार्वजनिक नहीं करते या प्रकाशित नहीं करते, बल्कि सम्बंधित व्यक्ति को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी झलक दिखा कर डराते हैं। फिर अपना मुँह बंद रखने की मोटी क़ीमत वसूलते हैं। ऐसे पत्रकारों को ब्लैकमेलर कहा जाता है और वे आज भी समाज में सक्रिय हैं।
ऐसा बहुत कम होता है कि जिस व्यक्ति को ब्लैकमेल किया जाता है वो इसकी लिखित शिकायत पुलिस को दे और ब्लैकमेलर को पकड़वाए। जब कभी किसी ने ऐसी शिकायत की तो ऐसा ब्लैकमेलर पत्रकार जेल भी गया है। चाहे वो टीवी या अख़बार का कितना ही मशहूर पत्रकार क्यों न हो। पर आमतौर पर यही देखा जाता है कि जिसको ब्लैकमेल किया जा रहा है वह इसकी शिकायत पुलिस से नहीं करता। कारण स्पष्ट है कि उसे अपनी चोरी या अनैतिक आचरण के जग ज़ाहिर होने का डर होता है। ऐसे में वह व्यक्ति चाहे कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो, ले-देकर मामले को सुलटा लेता है।
इससे यह स्पष्ट है कि ब्लैकमेल होने वाला और ब्लैकमेल करने वाला दोनों ही अनैतिक कृत्य में शामिल हैं और क़ानून की दृष्टि में अपराधी हैं। पर उनका यह राज़ बहुत दिनों तक छिपा नहीं रहता। ब्लैकमेल करने वाले पत्रकार की दिन दुगनी और रात चौगुनी बढ़ती आर्थिक स्थिति से पूरे मीडिया जगत को पता चल जाता है कि वह पत्रकारिता के नाम पर ब्लैकमेलिंग का धंधा कर रहा है। इसी तरह जिस व्यक्ति को ब्लैकमेल किया जाता है उसके अधीन काम करने वाले, या उसके सम्पर्क के लोगों को भी, कानाफूसी से ये पता चल जाता है कि इस व्यक्ति ने अपने ख़िलाफ़ उठने वाले ऐसे बड़े मामले को ले-देकर दबवा दिया है।
जबकि दूसरी ओर जो पत्रकार भ्रष्टाचार के किसी मुद्दे को उठा कर उससे सम्बंधित उपलब्ध दस्तावेज़ों को साथ ही प्रकाशित कर देता है। फिर लगातार उस विषय पर लिखता या बोलता रहता है। इस दौरान किसी भी तरह के प्रलोभन, धमकी या दबाव से बेख़ौफ़ हो कर वो अपने पत्रकारिता धर्म को निभाता है तो ही सच्चा और ईमानदार पत्रकार कहलाता है।
कभी-कभी ऐसा पत्रकार मुद्दे की गम्भीरता को देखते हुए राष्ट्रहित में एक कदम और आगे बड़ जाता है और आरोपी व्यक्ति या व्यक्तियों के ख़िलाफ़ निष्पक्ष जाँच की माँग को लेकर अदालत का दरवाज़ा भी खटखटाता है । तो इसे ‘जर्नलिस्टिक ऐक्टिविज़म’ कहते हैं। यहाँ भी दो तरह की स्थितियाँ पैदा होती हैं। एक वो जबकि जनहित याचिका करने वाला लगातार मुक़द्दमा लड़ता है और किसी भी स्थिति में आरोपी से डील करके केस को ठंडा नहीं होने देता। जबकि कुछ लोगों ने, चाहे वो पत्रकार हों, वकील हों या राजनेता हों, ये धंधा बना रखा है कि वे ताकतवर या पैसे वाले लोगों के ख़िलाफ़, जनहित याचिका दायर करते हैं, मीडिया व सार्वजनिक मंचों में खूब शोर मचाते हैं। और फिर प्रतिपक्ष से 100 - 50 करोड़ रुपय की डील करके अपनी ही जनहित याचिका को इतना कमजोर कर लेते हैं कि आरोपी को बचकर भाग निकलने का रास्ता मिल जाए। अक्सर ऐसी डील में भ्रष्ट न्यायाधीशों का भी हिस्सा रहता है तभी बड़े बड़े आर्थिक अपराध करने वाले मिनटों में ज़मानत ले लेते हैं जबकि समाज के हित में जीवन खपा देने वाले सामाजिक कार्यकर्ता बरसों जेलों में सड़ते रहते हैं।
इस सारी प्रक्रिया में यह स्पष्ट है कि जो पत्रकार किसी ऐसे मामले को उजागर करता है, उसके प्रमाण सार्वजनिक करता है और आरोपी व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, सीवीसी, सीबीआई या अदालत में जा कर अपनी ओर से लिखित शिकायत दर्ज कराता है तो वह ब्लैकमेलर क़तई नहीं होता। क्योंकि जब उसने सारे सुबूत ही जग ज़ाहिर कर दिए तो अब उसके पास ब्लैकमेल करने का क्या आधार बचेगा?
ख़ासकर तब जबकि ऐसा पत्रकार या शिकायतकर्ता सम्बंधित जाँच एजेंसी को निष्पक्ष जाँच की माँग करने के लिए लिखित रिमाइंडर लगातार भेज कर जाँच के लिए दबाव बनाए रखता है ।जब कभी उसे लगता है की जिससे शिकायत की जा रही है, वे जानबूझकर उसकी शिकायत को दबा कर बैठे हैं या आरोपी को बचाने का काम कर रहे है, तो वह सम्बंधित मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या न्यायाधीश तक के विरुद्ध आवाज़ उठाने से संकोच नहीं करता। ऐसा करने वाला पत्रकार न सिर्फ़ ईमानदार होता है बल्कि निडर और देशभक्त भी।
ऐसे पत्रकार से सभी भ्रष्ट लोग डरते हैं ।क्योंकि वे जानते हैं कि ऐसे पत्रकार को किसी भी क़ीमत पर ख़रीदा या डराया नहीं जा सकता। ऐसे निष्पक्ष और निष्पाप पत्रकार का सभी हृदय से सम्मान करते हैं। चाहे वे बड़े राजनेता हों, अफ़सर हों, उद्योगपति हों या न्यायाधीश हों। क्योंकि वे जानते हैं कि ये पत्रकार बिना किसी रागद्वेष के, केवल अपने जुनून में , मुद्दे उठता है और अंत तक लड़ता है। वे ये भी जानते हैं कि ऐसा व्यक्ति ना तो अपना कोई बड़ा अख़बार खड़ा कर पाता है और ना ही टीवी चैनल। क्योंकि मीडिया सामराज्य खड़ा करने के लिए जैसे समझौते करने पड़ते हैं वो ऐसे जुझारू पत्रकार को मंज़ूर नहीं होते।
रोचक बात ये है कि इधर कुछ समय से देखने में आ रहा है कि वे नेता या अफ़सर जो बड़े बड़े घोटालों में लिप्त होते हैं, जब उनके घोटालों को ऐसे निष्ठावान पत्रकार उजागर करते हैं तो वे अपने मुख्यमंत्री को दिग्भ्रमित करने के लिए उस पत्रकार को ‘ब्लैकमेलर’ बताकर अपनी खाल बचाने की कोशिश करते हैं। किंतु वैदिक शास्त्र कहते हैं, ‘सत्यमेव जयते’। सूरज को बादल कुछ समय के लिए ही ढक सकते हैं हमेशा के लिए नहीं।
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