नई सरकार को आए 60 दिन पूरे हो गए हैं और अब नई सरकार के काम की समीक्षाएं भी शुरू हो गई हैं। जो लोग कहा करते थे कि देश में हालात बदलना आसान नहीं है, उन्हें अब फिर से सोचने की जरूरत पड़ रही है। 60 साल की रफ्तार से चलती गाड़ी को एकदम से तो ब्रेक लगाकर यू-टर्न नहीं लिया जा सकता। पर भारत सरकार की नौकरशाही के बदले रवैए से आने वाले समय का आगाज होना शुरू हो गया है। पिछले हफ्ते का एक रोचक वाकया इस बदली स्थिति को समझने के लिए उचित रहेगा।
दिल्ली-आगरा राजमार्ग-2 पर मथुरा रिफाइनरी के पास ‘बाद’ गांव में एक कृष्णकालीन सरोवर है। जिसका जीर्णोद्धार 500 वर्ष पहले अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने करवाया था। इस आशय का एक शिलालेख मथुरा संग्रहालय में संग्रहित है। पिछले वर्षों में इस कुण्ड की वृह्द खुदाई का काम ब्रज फाउण्डेशन नाम की संस्था ने किया। जिसके बाद इसके नवनिर्माण व सौंदर्यीकरण की व्यापक योजना बनाकर उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से अनुदान के लिए भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय को 2 वर्ष पहले भेज दी गई। इसी बीच सीमा सुरक्षा बल ने इस कुण्ड के पीछे लगभग 60 एकड़ भूमि खरीदकर उस पर अपने कैंप कार्यालयों और आवास का निर्माण शुरू कर दिया। जबकि इस क्षेत्र तक पहुंचने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग से कोई रास्ता नहीं था। सीमा सुरक्षा बल ने कृष्ण सरोवर के जल संग्रहण क्षेत्र में से 80 फुट सड़क काटकर रास्ता बना लिया, जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के विरूद्ध है। इस निर्देश के अनुसार किसी भी पुराने जलाशय की भूमि पर इस तरह का निर्माण नहीं किया जा सकता। जब बीएसएफ को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने इस कुण्ड के निर्माण और रखरखाव करने का प्रस्ताव किया। उनके इस व्यवहारिक प्रस्ताव पर ब्रज फाउण्डेशन ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय की सहमति से भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय को यह आवेदन किया कि वे इस कुण्ड के लिए स्वीकृत धनराशि बीएसएफ को आवंटित कर दें, ताकि बीएसएफ का इंजीनियरिंग विंग इस कार्य को पूरा कर सके।
जब इस प्रस्ताव को लेकर फाउण्डेशन के लोग भारत सरकार के पर्यटन सचिव परवेज दीवान से मिले तो उन्हें बहुत सुखद अनुभव हुआ। उनकी मीटिंग के तय समय पर इस योजना से संबंधित सभी अधिकारी फाउण्डेशन के प्रस्ताव की फाइलें लेकर सचिव महोदय के कक्ष में पहले से मौजूद थे। श्री दीवान ने उनकी बात सुनी और उनके पारदर्शी व जनोपयोगी प्रस्ताव पर 5 मिनट के भीतर स्वीकृति की मोहर लगा दी। रोचक बात यह है कि बीएसएफ, गृह मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय इस पूरी प्रक्रिया को चलाने में उन्हें मात्र 2 महीने का समय लगा। यह बात दूसरी है कि यह धनराशि केंद्र सरकार के ही एक विभाग से दूसरे विभाग को जा रही है और इसमें ब्रज फाउण्डेशन का कोई दखल नहीं। फाउण्डेशन के लोगों का कहना है कि उनका अब तक का अनुभव यही रहा कि उनके ऐसे सही, सार्थक व जनोपयोगी प्रस्तावों पर भी महीनों और वर्षों तक कोई निगाह नहीं डालता। ऐसे तमाम प्रस्ताव देशभर के सरकारी दफ्तरों में वर्षों धूल खाते रहते थे। यह मोदी युग की शुरूआत है। यही है वह गुजरात मॉडल, जिसका इतना शोर देश में मचा था। केंद्र सरकार को छोड़ दे तो बाकी राज्य सरकारों में इसकी झलक अभी नहीं दिखाई देगी, क्योंकि वहां अन्य दलों की सरकारें हैं, इसलिए ‘मोदी प्रभाव’ नहीं पड़ा है।
सुबह से रात तक लगातार काम में जुटे प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रियों और सचिवों को पिछले 60 दिन से इसी तरह काम में जोत रखा है। उन्हें निर्देश दिए हैं कि 15 दिन से ज्यादा किसी भी फाइल के ‘‘मूवमेन्ट’’ में समय नहीं लगना चाहिए। इसका असर अब केंद्र सरकार में खूब दिखने लगा है। अगर यह इसी तरह चलता रहा, तो जाहिर है कि प्रांतीय सरकारें भी अपना रवैया बदलने पर मजबूर होंगी।
आज तो ज्यादातर प्रांत सरकारों की हालत यह है कि आप कितना भी अच्छा प्रस्ताव ले जाएं, कितना ही केंद्र से अनुदान आ जाएं, पर काम अपने ही तरीके से होता है। काम नहीं होता, काम करने का नाटक होता है। पैसा जिले तक पहुंचते पहुंचते कपूर की तरह काफूर हो जाता है। इससे जनता में भारी हताशा और आक्रोश फैलता है। जो सरकारें इस अव्यवस्था को दूर करने में सफल रही हैं, उन्हें जनता बार-बार चुनकर भेजती है। पर मोदी की कार्यशैली इस सबसे बहुत आगे है। वे हर व्यक्ति से समयबद्ध कार्यक्रम के तहत लक्ष्यपूर्ति की अपेक्षा करते हैं। ऐसा न करने वालों को दरवाजा दिखाने में उन्हें संकोच नहीं होता। क्या हमारी प्रांतीय सरकारें इससे कुछ सबक लेंगी ?
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