Monday, August 4, 2014

नौकरशाही ने किसी राष्ट्र का निर्माण नहीं किया



देश के मतदाताओं ने अच्छे दिन आने के लिए और नए भारत के निर्माण के लिए वोट दिया | नरेंद्र मोदी भी नए भारत के निर्माण का लक्ष्य साध कर सत्ता में आये हैं | पर इस पूरे आशावादी माहौल में जिस बात की चिंता समझदार लोगों को है उसकी चर्चा करना ज़रूरी है | हम भौतिक विकास के मॉडल के लिए विकसित देशों की तरफ देखते हैं | पर ये भूल जाते हैं कि उन देशों के विकास में नौकरशाही की भूमिका न तो पहले महत्वपूर्ण रही और नाही आज है | वहां का विकास खोजियों, उद्यमियों और जोखिम उठाने वालों के नेतृत्व में हुआ है | नौकरशाही ने तो केवल प्रशासन चलने का काम किया है | इसीलिए इन देशों में आपको पार्कों, हवाई अड्डों, स्टेशनों और सडकों के नाम ऐसे ही लोगों के नाम के ऊपर रखे मिलेंगे |

दूसरी तरफ भारत में जो 60 बरस से व्यवस्था चली आ रही थी वही व्यवस्था आज भी कायम है | जिसे अंग्रेजों ने भारत का शोषण करने के लिए स्थापित किया था | इस व्यवस्था में निर्णय लेने की सारी शक्ति नौकरशाही के हाथों में केन्द्रित होती है | चाहे उस नौकरशाह को उस विषय की समझ हो या नहीं | इसी का परिणाम है कि आज़ादी के बाद भी नौकरशाही ने अंग्रेजी मानसिकता छोड़ी नहीं है | एक जिलाधिकारी स्वयं को जिले का राजा समझता है और उस जिले के नागरिकों को अपनी प्रजा | इसी खाई के चलते टीम भावना से कोई काम नहीं होता| संसाधनों की भारी बर्बादी होती है | परिणाम कुछ नहीं मिलते | योजनाएं अधूरे मन से, कागज़ी खानापूर्ती करने के लिए, केवल पैसा खाने के लिए बनाई जाती है | अरबों रुपया एक-एक जिले के विकास पर खर्च हो चुका है पर हमारे नगर नारकीय स्थिति में आज भी पड़े हैं |

देश के प्रति सच्ची श्रद्धा रखने वालों और कुछ करके दिखने वालों को इस बात की चिंता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक जैसी सरकार चलायी है, उसमें वही नौकरशाही तंत्र हावी है | हावी ही नहीं बल्कि नई बोतल में पुरानी शराब परोस रही है | इन लोगों को डर है कि आज तक हर प्रधानमंत्री को बातों के लच्छेदार जाल में फसा कर यह नौकरशाही अपना उल्लू सीधा करती आयी है और आज भी वह शब्दों का ऐसा ही ताना-बाना बुनकर प्रधानमंत्री को अपने माया जाल में फंसा रही रही है | इससे तो किसी भी बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती|

ज़रुरत इस बात की है कि नौकरशाही को प्रशासन चलाने तक सीमित रखा जाये | बदलाव के लिए लक्ष्य तय करने का, विकास के मॉडल बनाने का और कार्यक्रमों को लागू करने का काम योग्य, अनुभवी और स्वयंसिद्ध लोगों को ताकत और अधिकार देकर किया जाये | जैसा कि श्रीधरन ने मेट्रो के निर्माण में किया या कुरियन ने अमूल डेरी के निर्माण में किया | दोनों ही भारत की पहचान बने | ऐसा नहीं है की देश में दो ही कुरियन और श्रीधरन हुए हैं | हर क्षेत्र में ढूंढने पर अनेक प्रतिभाएं सामने आ जाएँगी | जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी बिना सरकारी मदद के, जनहित के कामों में सफलता की ऊचाइयों को छुआ है | वह भी तब जब नौकरशाही ने उनके काम में उदारता से सहयोग देना तो दूर अक्सर रोड़े ही अटकाए हैं | उन्हें निराश किया है और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वन में लूट-खसोट करने वालों को वरीयता दी है | इसीलिए देश का इतना बुरा हाल है |

मोदी जी के शुभचिंतकों की उन्हें सलाह है कि वे इस माहौल को बदलें और नौकरशाही को देश के विकास की प्रक्रिया में हावी न होने दें | देश में बिखरे पड़े श्रीधार्नों को ढूंढवाएं और उन्हें ज़िम्मेदारी सौंपे | उनके साथ ऐसे अफसर लगाये जिन्हें देश बनाने की धुन हो अपनी अहंतृष्टि की नहीं | इसके दो लाभ होंगे, एक तो देशवासियों में सक्रिय योगदान करने का उत्साह बढेगा | दूसरा देश में अच्छे दिन लाने के लिए वे केवल सरकार से ही अपेकशाएं नहीं करेंगे बल्कि सरकार का बोझ हल्का करेंगे | अगर मोदी जी ऐसा कर पाए तो 1857 के बाद 2014 में यह भारत की दूसरी क्रांति होगी |  हर क्रांति कुछ बलि चाहती है | भारत की नौकरशाही ने सरकार का दामाद बनकर इस देश की आम जनता के हिस्से का काफी माल हजम कर लिया है | अब उसे समझना होगा कि तेजी से जागरूक होती जनता उसे बर्दाश्त नहीं करेगी | जिस तरह राजनेताओं ने अपने आचरण के कारण सम्मान खो दिया है वैसे ही नौकरशाही भी जनता की घृणा का शिकार बनेगी, अगर सुधरी नहीं तो | मोदी किसी भी स्वार्थी तत्व को अपने पास फटकने नहीं देते | नौकरशाही भी जब उनकी अपेक्षा के अनुरूप परिणाम नहीं दे पाएगी और जनता में असंतोष फैलेगा तो नौकरशाही से पल्ला झाड़ने में प्रधानमंत्रीजी संकोच नहीं करेंगे | पर तब जागने से क्या फायदा जब चिड़िया चुग गयी खेत |




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