Amar Ujala 22March11 |
यमुना शुद्धि की माँग को लेकर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जनभावनाऐं प्रबल होती जा रही हैं। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका मीडिया ने निभायी है। जिसने यमुना शुद्धि का माहौल बनाना शुरू कर दिया है। यह एक शुभ संकेत है। पर क्या मात्र इतने से हम यमुना शुद्ध कर पायेंगे? इस पर गहरायी से सोचने की जरूरत है। अखबार में फोटो छपवाने या टी.वी. पर बयान देने के लिए यमुना शुद्धि का संकल्प लेने वालों की एक लम्बी जमात है। पर इनमें से कितने लोग ऐसे हैं जिनके पास यमुना की गन्दगी के कारणों का सम्पूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन उपलब्ध है? कितने लोग ऐसे हैं जिन्होंने दिल्ली से लेकर इलाहाबाद तक यमुना के किनारे पड़ने वाले शहरों के सीवर और साॅलिड वेस्ट के आकार, प्रकार, सृजन व उत्सृजन का अध्ययन कर यह जानने की कोशिश की है कि इन शहरों की यह गन्दगी कितनी है और अगर इसे यमुना में गिरने से रोकना है तो इन शहरों में उसके लिए क्या आवश्यक आधारभूत ढाँचा, मानवीय व वित्तीय संसाधन उपलब्ध हैं? हम मथुरा के ध्रुव टीले के नाले पर बोरी रखकर उसे रोकने का प्रयास करें और उस नाले में आने वाले गन्दे पानी को ट्रीट करने या डाइवर्ट करने की कोई व्यवस्था न करें तो यह केवल नाटक बनकर रह जायेगा। ठीक उसी तरह जिस तरह कि यमुना के किनारे खड़े होकर संत समाज यमुना शुद्धि का संकल्प तो ले पर उन्हीं के आश्रम में भण्डारों में नित्य प्रयोग होने वाली प्लास्टिक की बोतलें, गिलास, लिफाफे, थर्माकाॅल की प्लेटें या दूसरे कूड़े को रोकने की कोई व्यवस्था ये संत न करें। रोकने के लिए जरूरी होगा मानसिकता में बदलाव। डिटर्जेंट से कपड़े धोकर और डिटर्जेंट से बर्तन धोकर हम यमुना शुद्धि की बात नहीं कर सकते। कितने लोग यमुना के प्रदूषण को ध्यान में रखकर अपनी दिनचर्या में और अपनी जीवनशैली में बुनियादी बदलाव करने को तैयार हैं?
राधारानी ब्रज 84 कोस यात्रा के दौरान हमने अनेक बार यमुना को पैदल पार किया है और यह देखकर कलेजा मुँह को आ गया कि यमुना तल में एक मीटर से भी अधिक मोटी तह पाॅलीथिन, टूथपेस्ट, साबुन के रैपर, टूथब्रश, रबड़ की टूटी चप्पलें, खाद्यान्न के पैकिंग बाॅक्स, खैनी के पाउच जैसे उन सामानों से भरी पड़ी है, जिनका उपयोग यमुना के किनारे रहने वाला हर आदमी कर रहा है। जितना बड़ा आदमी या जितना बड़ा आश्रम या जितना बड़ा गैस्ट हाउस या जितना बड़ा कारखाना, उतना ही यमुना में ज्यादा उत्सर्जन।
नदी प्रदूषण के मामले में प्रधानमंत्री के सलाहकार मण्डल के सदस्यों से बात की और जानना चाहा कि यमुना शुद्धि के लिए उनके पास लागू किये जाने योग्य एक्शन प्लान क्या है? उत्तर मिला कि देश के सात आई.आई.टी.यों को मिलाकर एक संगठन बनाया गया है, जो अब इसकी डी.पी.आर. तैयार करेगा और फिर उस डी.पी.आर. को लेकर हम भारत सरकार के मंत्रालय के पास जायेंगे और दबाब डालकर उसको लागू करवायेंगे। यह पूरी प्रक्रिया ही हास्यास्पद और शेखचिल्ली वाली है। भारत सरकार के मंत्रालय गत् 63 वर्षों से ऐसी समस्याओं के हल के लिए अरबों रूपया वेतन में ले चुके हैं और खरबों रूपया जमीन पर खर्च कर चुके हैं। फिर वो चाहे शहरों का प्रबन्धन हो या नदियों का। नतीजा हमारे सामने है। यमुना सहनशीलता से एक करोड़गुना ज्यादा प्रदूषित होकर एक मृत नदी घोषित हो चुकी है। यह सही है कि आस्थावानों के लिए वह यम की बहन, भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी और हम सबकी माँ सदृश्य है, पर क्या हम नहीं जानते कि समस्याओं का कारण सरकारी लालफीताशाही, भ्रष्टाचार और अविवेकपूर्ण नीति निर्माण ही है। इसलिए यमुना प्रदूषण की समस्या का हल सरकार नहीं कर पायेगी। उसने तो राजीव गांधी के समय में यमुना की शुद्धि पर सैंकड़ों करोड़ रूपया खर्च किया ही था, पर नतीजा रहा वही ढाक के तीन पात।
इसलिए यमुना शुद्धि की पहल तो लोगों को करनी होगी। जिसके लिए चार स्तर पर काम करने की जरूरत है। हर शहर में ब्राह्मण बुद्धि वाले कुछ लोग साथ बैठकर अपने शहर की गन्दगी को मैनेज करने का वैज्ञानिक और लागू किये जाने योग्य माॅडल विकसित करें। उसी शहर के क्षत्रिय बुद्धि वाले लोग युवाशक्ति को जोड़कर इस माॅडल को लागू करने में अपने बाहुबल का प्रयोग करें। वैश्य वृत्ति के लोग इस माॅडल के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक धनराशि संग्रह करने या सरकार से निकलवाने का काम करें और यमुना जी के प्रति श्रद्धा एवं आस्था रखने वाले आम लोग जनान्दोलन के माध्यम से चेतना फैलाने का काम करें।
भगवान ने जो चारों वर्णों की सृष्टि की, वो जन्म आधारित नहीं, कर्म आधारित है। इसलिए यमुना शुद्धि के लिए भी चारों वर्णों का सहयोग अपेक्षित है। कोई किसी से कम नहीं। चाहे वह शूद्र स्तर का कार्य ही क्यों न हो। पर साथ ही हमें यह स्वीकारने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि यमुना को लेकर जो प्रयास अभी किये जा रहे हैं, वह ब्राह्मण स्तर के नहीं। इसलिए इनके सफल होने में संदेह है।
दो वर्ष पहले दिल्ली के एक बहुत बड़े अनाज निर्यातक मुझे पश्चिमी दिल्ली के अपने हजारों एकड़ के खेतों में ले गये। जहाँ बड़े वृक्षों वाले बगीचे भी थे। अचानक मेरे कानों में बहते जल की कल-कल ध्वनि पड़ी। तो मैंने चैंककर पूछा कि क्या यहाँ कोई नदी है? कुछ आगे बढ़ने पर हीरे की तरह चमकते बालू के कणों पर शीशे की तरह साफ जल से बहती नदी दिखाई दी। मैंने उसका नाम पूछा तो उन्होंने खिलखिलाकर कहा- अरे ये तो आपकी यमुना जी हैं। यह स्थान दिल्ली में यमुना में गिरने वाले नजफगढ़ नाले से जरा पहले का था। यानि दिल्ली में प्रवेश करते ही यमुना अपना स्वरूप खो देती है और एक गन्दे नाले में बदल जाती है। यमुना में 70 फीसदी गन्दगी केवल दिल्ली वालों की देन है। इसलिए यमुना मुक्ति का आन्दोलन चलाने वाले लोगों को सबसे ज्यादा दबाव दिल्लीवासियों पर बनाना चाहिए। उन्हें झकझोरना चाहिए और मज़बूर करना चाहिए कि वे अपना जीवन ढर्रा बदलें तथा अपनी गन्दगी को या तो खुद साफ करें या अपने इलाके तक रोककर रखें। उसे यमुना में न जाने दें। रोज़ाना 10 हजार से ज्यादा दिल्लीवासी वृन्दावन आते हैं। यमुना किनारे संकल्प लेने से ज्यादा प्रभावी होगा अगर हम इन दिल्लीवालों के आगे पोस्टर और पर्चे लेकर खड़े रहें और इनसे सवाल पूछें कि तुम बाँकेबिहारी का आशीर्वाद लेने तो आये हो पर लौटकर उनकी प्रसन्नता के लिए यमुना शुद्धि का क्या प्रयास करोगे? इस एक छोटे से कदम से दिल्ली में हर काॅलोनी तक सन्देश जायेगा और एक फिज़ा बनेगी। ठाकुरजी ने चाहा, संत सही दिशा में लोगों को जीवन ढर्रा बदलने के लिए पे्ररित कर सके तो जनभावनाओं का सैलाब यमुना को शुद्ध करा लेगा। वरना यह एक और शिगूफा बनकर रह जायेगा।