Punjab Kesari 14March11 |
न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर, कानूनविद् रामजेठमलानी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरूण जेटली, राज्यसभा सांसद सीताराम येचुरी और पूर्व कानूनमंत्री शांतिभूषण, सब मिलकर भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन के पीछे पड़े हैं। इनका आरोप है कि बालाकृष्णन ने अपने पद का दुरूपयोग कर, अपने लिये और अपने नातेदारों के लिए काफी अवैध धन इकठ्ठा किया। इसलिए उसकी जाँच होनी चाहिए और उन्हें भारत के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से हटा देना चाहिए। इसमें गलत कुछ भी नहीं है।
अगर बालाकृष्णन ने न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर रहते हुए अपने पद की गरिमा का ख्याल नहीं रखा और भ्रष्ट अथवा अनैतिक आचरण करके अवैध धन कमाया है तो उसकी जाँच होनी ही चाहिए और उन्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में दाखिल जनहित याचिका का संज्ञान लिया है। आने वाले समय में देखना होगा कि ये मामला कहाँ तक पहुँचता है, जाँच होती भी है या नहीं? सबूत मिलते हैं या नहीं और अगर बालाकृष्णन अपराधी पाये जाते हैं तो उन्हें सजा मिलती है या नहीं?
पर यहाँ एक बात बड़ी चिंतनीय है। वह यह है कि बालाकृष्णन के पीछे पड़ी ये चैकड़ी अपने आचरण में दोहरे मानदण्ड अपना रही है। मेरा इनमें से किसी से कोई द्वेष नहीं। सबसे पिछले 20 बरसों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध हैं। पर मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि नैतिकता के सवाल उठाने वाले ये लोग कितने आसानी से दोहरे चेहरे अपना लेते हैं।
बहुत पुरानी बात नहीं है। सन् 2000 में भारत के मुख्य न्यायाधीश डाॅ. ए.एस. आनन्द थे। उनके पद पर बैठते ही मैंने उनका मध्य प्रदेश का एक जमीन घोटाला अपने अंग्रेजी अखबार कालचक्र में छापा। इस घोटाले में डाॅ. आनन्द ने अपनी पत्नी की मार्फत झूठे शपथपत्र दाखिल करके, मध्य प्रदेश सरकार से एक करोड़ रूपये से ज्यादा का अवैध मुआवजा वसूल किया। जिन वकीलों ने और जजों ने उनकी इस घोटाले में मदद की, उन्हें पदोन्नती दिलवायी। यह घोटाला छापने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय की बार, संसद और देश का मीडिया सकते में आ गया। क्योंकि भारत के इतिहास में यह पहली बार था जब किसी ने पदासीन मुख्य न्यायधीश के भ्रष्टाचार पर इस तरह दिलेरी से लेख छापने की हिम्मत की थी। आशा के विपरीत मुझे अदालत की अवमानना में जेल भेजने की हिम्मत डाॅ. आनन्द नहीं कर सके। क्योंकि उन्हें पता था कि उनसे पहले मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश जे.एस. वर्मा के अनैतिक आचरण पर देश में काफी तूफान मचा चुका था।
इस दौरान इन सब लोगों से और देश के तमाम बड़े राजनेताओं से मैंने जाकर अपील की कि वे इस मुद्दे को संसद में उठाकर डाॅ. आनन्द के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लायें। पर सब डर गये। कोई न्यायापालिका से भिड़ने को तैयार नहीं था। मज़बूरन मैंने भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन को अपील भेजी। सवाल किया कि मेरे जैसा पत्रकार और जागरूक नागरिक इस परिस्थिति में क्या करे? राष्ट्रपति ने मेरी याचिका तत्कालीन कानूनमंत्री रामजेठमलानी को भेज दी। जेठमलानी ने उसे टिप्पणी के लिए मुख्य न्यायाधीश डाॅ. आनन्द के पास भेज दिया। इस पर आनन्द हड़बड़ा गये और इस्तीफा देने को तैयार हो गये। पर तब उन्हें अरूण जेटली और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सहारा दिया। नतीज़तन जेठमलानी को कानून मंत्री का पद गंवाना पड़ा और अरूण जेटली को भारत का कानून मंत्री बना दिया गया। मेरे द्वारा उठाये इस विवाद पर उस समय देश और दुनिया के मीडिया में बहुत कुछ छपा। पर डाॅ. आनन्द अपने पद पर बने रहे। क्योंकि उन्हें नये कानून मंत्री अरूण जेटली व प्रधानमंत्री वाजपेयी का वरदहस्त प्राप्त था। उनके इस आचरण से उत्तेजित होकर मैंने जम्मू और श्रीनगर में जाकर डाॅ. आनन्द के कई और जमीन घोटाले खोजे व उन्हें सप्रमाण कालचक्र के अंग्रेजी अखबारों में छापा। मेरी इस जुर्रूत को देखकर डाॅ. आनन्द ने छः घोटाले छपने के बाद मेरे खिलाफ जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में अदालत की अवमानना का मुकदमा कायम करवा दिया। जबकि यह मुकदमा अगर कायम होना था तो सर्वोच्च अदालत में होना चाहिए था। मुझे आतंकित करने के मकसद से आदेश दिये गये कि मुझे श्रीनगर में रहकर अदालत की कार्यवाही का सामना करना होगा। यह जानते हुए कि मैं हिज्बुल मुज़ाहिदीन के अवैध आर्थिक स्रोतों को उजागर कर चुका था तथा मुझे आतंकवादियों से जान का खतरा था। इस तरह के आदेश अदालत से करवाये गये। पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने परम्परा से हटकर सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों को लिखा कि विनीत नारायण का जीवन इस राष्ट्र के लिए कीमती है। इसलिए अगर उन पर मुकदमा चलाना है तो उसे पंजाब या दिल्ली के उच्च न्यायालय में ट्रांसफर कर दिया जाये। पर अदालत ने एक न सुनी। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने मुझे भगौड़ा अपराधी घोषित कर दिया। मेरे घर और दफ्तर पर जम्मू पुलिस के छापे पड़ने लगे। मुझे ढेड़ वर्ष भूमिगत रहना पड़ा। आखिर मैं देश छोड़कर भागने पर मज़बूर हो गया। अदालत की अवमानना के डर से भारत के मीडिया ने पदासीन मुख्य न्यायाधीश के विरूद्ध, इन मामलों को छापने की हिम्मत नहीं दिखायी। लंदन, न्यूयाॅर्क, वाॅशिंगटन में मुझे पूरी दुनिया के मीडिया का समर्थन मिला। सी.एन.एन. और बी.बी.सी. जैसे टी.वी. चैनलों पर मेरे साक्षात्कारों का सीधा प्रसारण हुआ। दुनिया के 300 से अधिक मीडिया संगठनों ने कानूनमंत्री अरूण जेटली और प्रधानमंत्री वाजपेयी को ई-मेल पर अपील भेजी कि विनीत नारायण की सुरक्षा की जाये और मुख्य न्यायाधीश डाॅ. ए.एस. आनन्द के भ्रष्टाचार की जाँच की जाये। पर इनके कानों पर जूं नहीं रेंगी। डाॅ. आनन्द के सारे घोटाले सप्रमाण आज भी कालचक्र के कार्यालय में संजोकर रखे गये हैं। जिनकी जाँच कोई भी, कभी भी कर सकता है। बावजूद इसके सेवानिवृत्त होने के बाद डाॅ. आनन्द को भारत के मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया। यह नियुक्ति एन.डी.ए. द्वारा राष्ट्रपति बनाये गये डाॅ. अब्दुल कलाम आजाद ने सारे तथ्यों को जानने के बाद भी की।
मेरा सवाल न्यायमूर्ति बालाकृष्णन के खिलाफ जाँच की माँग करने वालों से यह है कि क्या भ्रष्टाचार को नापने के दो मापदण्ड होने चाहिए? डाॅ. आनन्द के लिए कुछ और, दलित बालाकृष्णन के लिए कुछ और? अगर ऐसा नहीं है तो ये सारी चैकड़ी देश को इस बात का जबाव दे कि डाॅ. आनन्द के खिलाफ भ्रष्टाचार के इतने सबूत होते हुए भी इन्होंने वैसा अभियान क्यों नहीं चलाया जैसा अब ये चला रहे हैं? और अब अदालत से माँग करें कि डाॅ. आनन्द के भ्रष्टाचार की भी वैसी ही जाँच हो जैसी बालाकृष्णन की हो रही है। दलितों की मसीहा बहिन मायावती को भी इस सवाल को जोर-शोर से उठाना चाहिए।
इस article में आपने सिर्फ अपनी ही तारीफ़ की है. अपने सिर्फ इतना बताया की आप कितने महान journalist है. आपने J&K में आतंकवाद के दौरान जा कर छान बीन की और जस्टिस आनंद के खिलाफ सबूत इकठ्ठा किया और उन्हें कटघरे में खड़ा किया (ये बात अलग है की जब J&K हाईकोर्ट में अवमानना केस चला तो आपको जान का डर सताने लगा, और जैसा की आपने बड़े फ़ख्र से कहा के आप इंडिया से विदेश भाग गए). लोगोंने आपको बताया की आपका जीवन देश के लिए कितना कीमती है और आपने देश से भाग कर कितना त्याग किया है. लंदन, न्यू योर्क, वाशिंगटन में आपको पूरी दुनिया के मीडिया का समर्थन मिला....वाह क्या बात है!!!! (नहीं नहीं, नारायणजी मैं आपकी बात पर विश्वास कर रहा हूँ की आप विदेशी मीडिया के हीरो है).
ReplyDeleteइस लेख को पढ़कर एक बात पूरी तरह से समझ में आया की आप ये नहीं चाहते की आपके अलावा कोई और भ्रष्टाचार का विरोध करे. कोई करता है तो आप उसमे गलतियां ढूँढने लगते है. आप दूसरो के साथ नहीं काम नहीं कर सकते. एक तरफ तो आप ये कहते है की " बालाकृष्णन के पीछे पड़ी ये चैकड़ी अपने आचरण में दोहरे मानदण्ड अपना रही है। मेरा इनमें से किसी से कोई द्वेष नहीं। सबसे पिछले 20 बरसों से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध हैं। पर मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि नैतिकता के सवाल उठाने वाले ये लोग कितने आसानी से दोहरे चेहरे अपना लेते हैं।" इसके बाद पूरे लेख में आपने कही भी ये नहीं साफ़ किया की इन्होने कौन सा दोहरे मानदण्ड अपना लिया. पिछले कुछ दिनों में मैंने आपके कई लेख पढ़े व टीवी पर इंटरव्यूह देखा है. एक चीज़ जो बहुत स्पष्ट तरीके से आपके व्यक्तित्व के बार में समझ में आयी की आप उनमे से है जिन्हें लड्डू न मिले तो रोते है और मिले तो भी रोते है.
लोग आपको समझ चुके है..... खूब रोइए, रोते रहिये.