Monday, March 21, 2011

होली के रंगों से या नाभकीय विकरणों से

Rajasthan Patrika 20 March11
अल्हड़पन और मस्ती का त्यौहार है होली। सादगी और पे्रमभरा। न रंग भेद, न जाति भेद और न ही धर्मभेद। होली ही क्यों, भारत के हर त्यौहार में जीवन को जीने का आनन्द है। चाहें पोंगल हो या बैशाखी, नवरात्रि हो या ईद, प्रेम से मिलना, एक-दूसरे के गले लग जाना, घर के बने स्वादिष्ट व्यंजनों का आदान-प्रदान करना और लोककलाओं व लोकसंस्कृति से भरपूर मेलों का आनन्द लेना। दरअसल यही था हमारा सम्पूर्ण जीवन चक्र। जिसमें खेती आधारित अर्थव्यवस्था, अध्यात्म आधारित मानसिकता और पर्यावरण आधारित जीवनशैली। पर आज यह सब हमसे तेजी से छीना जा रहा है, विकास के नाम पर। इसलिए इस वर्ष हम रंगों की नहीं नाभिकीय विकरणों की होली खेल रहे हैं। भारत में न सही, जापान में ही। पर सन्देशा हम सब के लिए भी है।
क्योंकि हमारे हुक्मरान विकास के मद में चूर हैं। अंधों की तरह हम पश्चिम के विकास माॅडल का अनुसरण कर रहे हैं। जिसका सबसे चमचमाता नमूना है, जापान और अमरीका। पिछले हफ्ते से जापान में प्रकृति के कहर का जो दिल दहला देने वाला टी.वी. कवरेज आ रहा है, उससे ज्यादा खतरनाक है नाभिकीय विस्फोटों से फैल रहे विकरणों का खौफनाक मंजर। जिसके चलते पूरे जापान से 3 लाख लोगों को घर छोड़ने पर मज़बूर कर दिया गया है। पिद्दी से देश जापान के 55 लाख लोग कड़ाके की सर्दी में, बिना बिजली के, एक कम्बल में, एक-दूसरे को आलिंगनबद्ध किये हुए रोते-चीखते एक-एक पल बिता रहे हैं। इनमें से ढेड़ लाख लोगों को तो किसी न किसी तरह के नाभिकीय विकरण ने अपनी चपेट में ले लिया है। टोक्यो की नाभिकीय बिजली कम्पनी ‘टोक्यो इलैक्ट्रिक पाॅवर कम्पनी’ ने भूचाल के भारी झटके झेलने के बाद आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी है। दुनियाभर के नाभिकीय वैज्ञानिक इस सदमें से उबर नहीं पा रहे हैं। सब कबूतर की तरह आॅंख बन्द करके यह बताने में जुटे हैं कि उनके देशों को इस खूनी होली से कोई खतरा नहीं।
भारत के प्रधानमंत्री ने भी संसद में घोषणा की कि हमारे नाभिकीय संयत्रों की सुरक्षा की समीक्षा की जा रही है। भावा परमाणु केन्द्र, मुम्बई देश की आर्थिक राजधानी के बीचों-बीच स्थित है। जिसके रिएक्टर समुद्र तट पर हैं। जापान का मंजर देखकर महाराष्ट् विधानसभा के सदस्य इतने आतंकित हो गये कि उन्होंने भावा परमाणु केन्द्र के अध्यक्ष को विधानसभा में बुलवाकर यह आश्वासन लिया कि मुम्बई ऐसे खतरे के प्रति तैयार है। प्रधानमंत्री हों या परमाणु केन्द्र के अध्यक्ष, इनके ये वक्तव्य ठीक ऐसे ही लगते हैं जैसे देश में किसी बड़ी आतंकवादी घटना के बाद घोषणा की जाती है कि देशभर में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस की नजर है। हर संदिग्ध व्यक्ति को देखा-परखा जा रहा है। पर हम और आप जानते हैं कि बाकी देश की क्या चले, राजधानी दिल्ली तक में रेड अलर्ट का कोई मायना नहीं होता। इसलिए यह भ्रम पालना कि परमाणु रिएक्टरों और बड़े बांधों से हम सुरक्षित हैं, हमारी मूर्खता होगी। भूचाल और सुनामी कभी भी, कहीं भी आ सकती है और इसलिए तबाही का यह मंजर जापान तक सीमित नहीं रहेगा।
जापान ने तो फिर भी भूकम्परोधी तकनीकि को इतना विकसित कर लिया है कि 5.8 के रिएक्टर स्केल के स्तर पर झटके झेलने के बावजूद टोक्यो की गगनचुंबी इमारतें हिलकर रह गयीं, गिरी नहीं। पर घोटालों के विशेषज्ञ भारत में जहाँ लवासा से आदर्श सोसाईटी तक हर जगह निर्माण का मतलब है, नियमों को ताक पर रखना, वहाँ अगर ऐसे भूकम्प आ जायें तो रोज बनती एक से एक इन गगनचुंबी इमारतों की हालत क्या होगी, सोच कर बदन सिहर जाता है। पर हर दिन अखबार में आप विज्ञापन देखते हैं कि आपके अपने नगर की सबसे ऊँची इमारत में फ्लैट बुक कराईये।
महात्मा गाँधी से लेकर देश का हर पर्यावरणविद्, आम किसान और वनवासी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी और गाहे-बगाहे देश का मीडिया हुक्मरानों की पर्यावरण के प्रति बढ़ती संवेदन शून्यता के खिलाफ आवाज उठाता रहता है। पर इनके कानों पर जूं नहीं रेंगती। मीडिया में एक कहावत है कि ‘हर मुद्दा ठण्डा पड़ जाता है’। हो सकता है, कुछ दिन बाद जापान की इस त्रासदी को हम वैसे ही भूल जायें जैसे गुजरात के भूकम्प या दक्षिण पूर्वी एशिया में आयी सुनामी को भूल गये और जिन्दगी यूं ही ढर्रे पर चलती रहे। पर यह न तो हमारे लिए अच्छा होगा और न ही हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए।
आज सूचना के बढ़ते तंत्र ने पूरी दुनिया को जोड़ दिया है। हम सबको इसका लाभ उठाना चाहिए। पूरी दुनिया से एकसाथ इस विनाशकारी विकास के विरूद्ध आवाज उठनी चाहिए। हम सबको अपने-अपने हुक्मरानों की व लाभ पिपासु बहुराष्ट्रिय कम्पनियों की पैशाचिक मानसिकता के विरूद्ध साझी लड़ायी लड़नी चाहिए। फिर हम चाहें हिन्दू हों, ईसाई हों, मुसलमान हों, कम्यूनिस्ट हों। आपसी भेदों को भूलकर जिन्दगी को उस ढर्रे की तरफ वापस लौटाने के लिए माहौल बनाना चाहिए जब ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ का सिद्धांत सर्वमान्य था। तभी हमारी जिन्दगी में खुशियाँ, नाचगान, उत्सव-मेले लौट पायेंगे। तभी हम अबीर गुलाल से होली खेलने का मजा लूट पायेंगे। सम्पन्नता, विकास और मस्ती के नाम पर जो माॅडल हमें दिया जा रहा है, वह रावण की स्वर्णमयी लंका है, जिसका नाश अवश्यम्भावी है। अगर हम कछुए की मानिंद बैठे रहे तो फिर रंगों की नहीं नाभिकीय विकरणों की होली के लिए हमें हर समय तैयार रहना चाहिए।

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