राजस्थान पत्रिका 20 Feb2011 |
जब से इंग्लैंड के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने भारत को दी जा रही 1 बिलियन पाउण्ड की आर्थिक सहायता को अगले 4 वर्षों तक जारी रखने की घोषणा की है, तबसे इंग्लैंड में तूफान मच गया है। कैमरून की इस नीति पर हमला करते हुए टोरी सांसद इस अनुदान के औचित्य पर अनेक सवाल खड़े कर रहे हैं। उनका मानना है कि दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती हुई भारतीय अर्थव्यवस्था को इंग्लैंड की आर्थिक मदद क्यों चाहिए? खासकर तब जबकि इंग्लैंड की सरकार अपने देश में समाज कल्याण की अनेक योजनाओं को आर्थिक तंगी के चलते बंद करती जा रही है।
इन सांसदों का यह भी कहना है कि भारत में इंग्लैंड के मुकाबले कई गुना ज्यादा खरबपति हैं। इन सांसदों को शिकायत है कि आणविक शक्ति और आतंरिक्ष शोध कार्यक्रम चलाने की कुव्वत रखने वाला भारत इंग्लैंड की मदद का मोहताज क्यों है? इन सांसदों के अलावा इंग्लैंड के करदाताओं के संगठन भी इस ‘विकास राहत अनुदान’ का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि भारत से कहीं ज्यादा गरीब देश हैं जिन्हंे आर्थिक मदद दी जानी चाहिए। क्योंकि भारत जैसे देश में भ्रष्टाचार के चलते यह मदद गरीबों तक नहीं पहुँचती।
दूसरी तरफ सरकार के अन्तर्राष्ट्रीय विकास सचिव एण्ड्रयू मिशेल ने बी-बी-सी- टेलीविजन पर दिये एक साक्षात्कार में बताया कि भारत में दुनिया की सबसे बड़ी गरीब आबादी रहती है] जिसके लिए यह मदद बहुत थोड़ी होते हुए भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत अवश्य आणविक व अन्तरिक्ष कार्यक्रम चला रहा है] पर उसके नागरिक की औसत आमदनी चीन के मुकाबले एक तिहाई है।
Punjab Kesari 21 Feb11 |
वहीं कुछ ऐसे भारतीय मूल के ब्रिटिश नागरिक भी हैं, जो यह मानते हैं कि इंग्लैंड की आज की सम्पन्नता का कारण वह लूट है जो उसने 190 सालों तक भारत में की। उसी लूट के कारण आज इंग्लैंड की नयी पीढ़ी वैभवपूर्ण जीवन जी रही है। इसलिए न सिर्फ इंग्लैंड को यह आर्थिक मदद जारी रखनी चाहिए बल्कि इंग्लैंड के संग्राहलयों में रखी भारत की बेशकीमती धरोहरों को भी भारत को लौटा देना चाहिए।
दूसरी तरफ इंग्लैंड के अखबार जैसे डेली एक्सपै्रस या डेली मेल, इस अनुदान नीति का खुला उपहास कर रहे हैं। जबकि इंग्लैंड की सरकार कहना है कि वह भारत के तीन सबसे पिछड़े राज्यों उड़ीसा, बिहार और मध्य प्रदेश को ही मदद देने जा रही है, क्योंकि उसका भारत के साथ गहरा आर्थिक नाता है। उल्लेखनीय है कि इंग्लैंड ने रूस और चीन को दी जा रही अपनी आर्थिक मदद अब रोक दी है।
इंग्लैंड और भारत के रिश्तों में इतिहास की कड़वाहट बाकी है। हमारी मौखिक परंपरा, इतिहास की पुस्तकें हैं और समय-समय पर आने वाली ‘लगान’, ‘जुनून’ और ‘गाँधी’ जैसी फिल्में हमें बार-बार उन 190 सालों की याद दिला देती हैं, जब अंग्रेज सरकार ने न सिर्फ हमें बुरी तरह लूटा, बल्कि जल़ील भी किया और हमारे साथ गुलामों जैसा बर्ताव किया। इसलिए चाहें आर्थिक मदद का मामला हो, चाहें टीपू सुल्तान की तलवार भारत लाने का या ईस्ट इण्डिया कम्पनी को एक भारतीय द्वारा खरीदे जाने का या राष्ट्रकुल की सदस्यता में बने रहने का या इंग्लैंड में आव्रजन का, हर ऐसे मुद्दे पर इंग्लैंड में और इंग्लैंड के बाहर रहने वाले भारतीय बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि इंग्लैंड ने भारत पर किये अत्याचारों का कभी प्रायश्चित नहीं किया। इसलिए वे हर मौके पर इंग्लैंड को शीशा दिखाने से बाज़ नहीं आते।
दूसरी तरफ यह भी सही है कि ऐसे अनुदानों से कोई मूलभूत विकास नहीं हो सकता और अनुदान भी कैसा जिसमें इतनी शर्तें कि लेने वाला, लेकर भी पछताये और लाभ के बजाय शोषण के विषम चक्र में फंस जाये। सही है कि भारत में साधन, मेधा और समझ की कोई कमी नहीं है। अगर हमारा राजनैतिक नेतृत्व भारत की मूल शक्ति को प्रोत्साहित करे और अपनी कमजोरियों को दूर करे तो बहुत जल्द ही भारत दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा हो सकता है। तब उसे किसी भी देश की तरफ अनुदान के लिए देखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
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