Monday, July 1, 2019

आतंकवाद और गृहमंत्री अमित शाह

संसद में राष्ट्रपति अभिभाषण पर धन्यवाद  देते हुए, भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने जितना दमदार भाषण दिया, उससे आतंकवादियों के हौसले जरूर पस्त हुए होंगे। श्री शाह ने बिना लागलपेट के दो टूक शब्दों में आतंकवादियों, विघटनकारियों और देशद्रोहियों को चेतावनी दी कि वे सुधर जाऐं, वरना उनसे सख्ती से निपटा जाऐगा।


अब
तक देश ने अमित शाह को भाजपा के अध्यक्ष रूप में देश ने देखा है इस पद रहते हुए उन्होंने एक सेनापति के रूप में अनेक चुनावी महाभारत जिस कुशलता से लड़े और जीते, उससे देश की राजीनीति में उनकी कड़ी धमक बनी है। उनके विरोधी भी यह मानते हैं कि इरादे के पक्के, जुझारू और रातदिन जुटकर काम करने वाले अमित शाह जो चाहते हैं, उसे हासिल कर लेते हैं। इसलिए दिल्ली की सत्ता के गलियारों और मीडिया के बीच यह चर्चा होने लगी है कि अमित शाह शायद कश्मीर समस्या का हल निकालने में सफल हो जाऐं। हालांकि इस रास्तें में चुनौतियाँ बहुत हैं।

गृहमंत्री श्री शाह ने अपने भाषण में यह साफ कहा कि आतंकवादियों को मदद पहुँचाने वालों या शरण देने वालों को भी बख्शा नहीं जाएगा। उल्लेखनीय है कि कश्मीर के खतरनाक आतंकवादी संगठनहिजबुल मुजाईदीनको दुबई और लंदन से रही अवैध आर्थिक मदद का खुलासा 1993 में मैंने ही अपनी विडियो समाचार पत्रिकाकालचक्रके 10वें अंक में किया था। इस घोटाले की खास बात यह थी कि आतंकवादियों को मदद देने वाले स्रोत देश के लगभग सभी प्रमुख दलों के बड़े नेताओं और बड़े अफसरों को भी यह अवैध धन मुहैया करा रहे थे। इसलिए सीबीआई ने इस कांड को दबा रखा था। घोटाला उजागर करने के बाद मैंने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आतंकवादियों को रही आर्थिक मदद के इस कांड की जांच करवाने को कहा।

सर्वोच्च अदालत ने मेरी मांग का सम्मान किया और भारत के इतिहास में पहली बार अपनी निगरानी में इस कांड की जांच करवाई। बाद में यही कांडजैन हवाला कांडके नाम से मशहूर हुआ। जिसने भारत की राजनीति में भूचाल ला दिया। पर मेरी चिंता का विषय यह है कि इतना सब होने पर भी इस कांड की ईमानदारी से जांच आज तक नहीं हुई और यही कारण है कि आतंकवादियों को हवाला के जरिये, पैसा आना जारी रहा और आतंकवाद पनपता रहा।

उन दिनों हॉंगकॉंग सेफार ईस्र्टन इकोनोमिक रिव्यूके संवाददाता नेहवाला कांडपर मेरा इंटरव्यू लेकर कश्मीर में तहकीकात की और  फिर जो रिर्पोट छपी, उसका निचोड़ यह था कि आतंकवाद को पनपाए रखने में बहुत से प्रभावशाली लोगों के हित जुड़े हैं। उस पत्रकार ने तो यहां तक लिखा कि कश्मीर में आतंकवाद एक उद्योग की तरह है। जिसमें बहुतों को मुनाफा हो रहा है।

उसके दो वर्ष बाद जम्मू के राजभवन में मेरी वहाँ के तत्कालीन राज्यपाल गिरीश सक्सैना से चाय पर वार्ता हो रही थी। मैंने उनसे आतंकवाद के बारे में पूछा, तो उन्होंने अंग्रेजी में एक व्यग्यात्मक टिप्पणी की जिसका अर्थ था किमुझे ‘‘घाटी के आतंकवादियों’’ की चिंता नहीं है, मुझे ‘‘दिल्ली के आतंकवादियों’’ से परेशानी है अब इसके क्या मायने लगाए जाए?

कल ही मैंने इस सारे मुद्दे पर चर टिप्पणियाँ ट्वीटर पर की है। जिसमें मैंने गृहमंत्री को आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध में सफलता की शुभकामनाओं के साथ इस बात का भी स्मरण दिलाया है किजैन हवाला कांडकी आज तक जांच नहीं हुई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि गृहमंत्री हवाला कारोबार को पूरी तरह से नियंत्रित करने का काम करेंगे। जिससे आतंकवाद की कमर टूट जाए। उल्लेखनीय है कि 9/11 की घटना के बाद अमरीका की खुफिया एजेंसियों और आयकर विभाग ने ऐसा सख्त जाल बिछाया कि वहाँ किसी भी आतंकवादी को हवाला के जरिये पैसा पहुँचाना नामुमकिन हो गया। नतीजतन अमरीका में 9/11 के बाद कोई उल्लेखनीय आतंकवादी घटना नहीं हुई।

अमित शाह जैसे कुशल सेनापति को किसी की सलाह की जरूरत नहीं होती। वे अपने निर्णय लेने  में स्वयं सक्षम हैं, पर फिर भी उन्हें ये सावधानी बरतनी होगी कि आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर कोई निर्णंय लेने से पहले वे उन सभी लोगों से राय जरूर लें, जिनका इस समस्या से लड़ने में गत 30 वर्षों में कुछ कुछ महत्वपूर्णं योगदान रहा है। केंद्रीय खुफिया ब्यूरो के पुराने निदेशक ही नहीं, जम्मू कश्मीर में नौकरी कर चुके स्वच्छ छबि वाले पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी अमित शाह जी को बात करनी चाहिए। ताकि एक ऐसी रणनीति बने, जो कारगर भी हो और उसमें जानमाल की कम से कम हानि हो।

अगर अमित शाह 72 साल से लटकी हुई कश्मीर की समस्या को हल करवाने में सफल हो जाते हैं, तो वे एक बड़ा इतिहास रचेंगे।

Monday, June 24, 2019

मोदी इफैक्ट के फायदे?

जब से  नरेन्द्र मोदी ब्रांड को हर मतदाता के मन में बसाकर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा को अप्रत्याशित विजय दिलाई है, तब से मोदी जी के आलोचकों और विपक्षी दलों को एक भय सता रहा है कि अब मोदी यथाशीघ्र भारत को राष्ट्रपति प्रणाली की तरफ ले जाऐंगे। उन्हें दूसरा डर इस बात का है कि अब मोदी जी खुल्ल्मखुल्ला अधिनायकवाद की स्थापना करेंगे। उनका ये भी कहना है कि भाजपा के जीते हुए सांसद ये मानते है कि उनकी विजय उनके अपने कृतित्व के कारण नहीं बल्कि मोदी जी के नाम के कारण हुई है। इसलिए उनका तीसरा भय इस बात का है कि ये सभी सांसद संसद में केवल हाथ उठाऐंगे या नारे लगायेंगे। इनसे संसद की बहसों को कोई, गरिमा प्रदान नहीं होगी। इस तरह संसद का स्तर लगातार गिरता जायेगा। हम इन तीनों मुद्दों का विवेचन करेंगे।

जहाँ तक देश को राष्ट्रपति प्रणाली की ओर ले जाने की बात है, तो यह कोई गलत विचार नहीं है। दुनिया के तमाम लोकतांत्रिक देशों में राष्ट्रपति प्रणाली है और कुछ अपवादों को छोड़कर ठीक-ठाक काम कर रही है। आयाराम-गयाराम की संस्कृति में सांसदों की खरीद-फरोख्त से बनी सरकारें ब्लैकमेल का शिकार होती है। छोटे-छोटे दल अल्पमत की सरकार को समर्थन देने की एवज में कमाऊ मंत्री पद हड़पना चाहते हैं। कैबिनेट की  सामूहिक जिम्मेदारी की बजाय हर सहयोगी दल अपने क्षेत्रीय दल, नेता व क्षेत्र के लिए ही सक्रिय रहता है, बाकी देश के प्रति गंभीर नहीं रहता। ‘हवाला कांड’ के बाद राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण को लेकर पूरी रात संसद का अधिवेशन चला, पर आज तक कुछ भी नहीं बदला। जिन दलों और लोगों को आज मोदी जी की मंशा पर संदेह है, उन्होंने पिछले 23 वर्षों में राजनीति की दशा सुधारने के लिए कितने गंभीर प्रयास किये? जब वो ढर्रा देश 72 साल तक ढोता रहा, तो अब एकबार अगर मोदी जी राष्ट्रपति प्रणाली लाकर नया प्रयोग करना चाहें, तो इससे इतनी घबराहट क्यों होनी चाहिए?

राष्ट्रपति प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि पूरे देश की जनता अपनी पंसद के नेता को 5 साल के लिए देश की बागडोर सौंप देती है। ऐसे चुना गया राष्ट्रपति, बिना किसी दबाव के, अपने मंत्रीमंडल का गठन कर सकता है। जाहिरन तब वह अपनी पसंद के और अनुभवी लोगों को किसी भी क्षेत्र से उठाकर मंत्री बना सकता है। जैसा- इस बार मोदी जी ने विदेश मंत्री के संदर्भ में प्रयोग किया। फिर वो व्यक्ति चाहे प्रोफेसर हो, वैज्ञानिक हो, उद्योगपति हो, पत्रकार हो, समाजसेवी हो या रणनीति विशेषज्ञ हो। अमरीका में आज ऐसा ही होता है। इससे कैबिनेट की योग्यता, कार्यक्षमता और निर्णंय लेने की स्वतंत्रता बढ़ जाती है। हां एक नुकसान हो सकता है, अगर राष्ट्रपति अहंकारी हो, अनैतिक आचरण वाला हो या लालची हो, तो वह देश को मटियामैट भी कर सकता है। पर जिसे पूरा देश अपने विवेक से चुनेगा, उससे ऐसे आचरण की उम्मीद कम ही की जा सकती है।

मोदी जी के आलोचकों को डर है कि वे हिटलर या मुसौलनी की तरह धीरे-धीरे अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहे हैं। चुनाव के दौरान व्हाट्सएप्प समूहों में हिटलर की आदतों को लेकर ऐसे कई संदेश प्रचारित किये गये, जिनमें मोदी जी की तुलना हिटलर से की गई। यहां एक बुनियादी फर्क है। हिटलर प्रजाति के अहंकार से ग्रस्त एक गैर आध्यात्मिक व्यक्ति था। जिसकी मंशा विश्व विजेता बनने की थी। जबकि मोदी जी ने योग को विश्वस्तर पर मान दिलाकर, राष्ट्राध्यक्षों को श्रीमद्भगवत्गीता भेंटकर और देश के सभी प्रमुख देवालयों में पूजा अर्चन कर अपने-अपने सनातनी होने का प्रमाण दिया है। निश्चित तौर पर उन्होंने श्रीमद्भागवत् के राजा रहुगण व जड़ भरत संवाद को पढ़ा होगा। जो कल राजा था, वो आज पालकी उठाने वाला बन गया और जो आज सड़क के पत्थर तोड़ता है, वो कल भारत का राष्ट्रपति बन सकता है। जिसने वैदिक दर्शन के इस मूल सिद्धांत को समझ लिया, वह राजा अधिनायकवादी नहीं, राजऋषि बनेगा। अब यह तो समय ही बतायेगा कि मोदी जी स्वान्तः सुखाय अधिनायकवादी बनेंगे या बहुजन हिताय?

मोदी जी की एक शिकायत आम है, जो उनके आलोचक नहीं, बल्कि चाहने वालों के बीच है। उनका नौकरशाही पर ज्यादा से ज्यादा निर्भर होना। जबकि इस देश के तमाम ईमानदार और चरित्रवान व उच्च पदासीन रहे नौकरशाहों ने अपने स्मरणों में बार-बार इस बात पर दुखः प्रगट किया है कि नौकरशाही के तंत्र में उलझ कर वे कुछ भी ठोस और सार्थक नहीं कर पाये। एक घिसीपिटी मशीन का पुर्जा बनकर रह गऐ। यह पीड़ा मेरी भी है। गत 5 वर्षों से बार-बार स्मरण दिलाने के बावजूद प्रधानमंत्री कार्यालय में ब्रज को लेकर मेरी अनुभवजन्य व स्वयंसिद्ध उपलब्धियों पर आधारित चिंताओं पर ध्यान नहीं दिया और आज भी ब्रज का विकास नये पुराने नौकरशाहों पर छोड़ दिया है, जो 5 वर्ष में भी एक भी काम उल्लेखनीय या प्रशंसनीय नहीं कर पाये। अमरीका की प्रगति के पीछे सबसे बड़ा कारण वहां मिलने वाला वो सम्मान है, जो अमरीकी सरकार और समाज हर उस व्यक्ति को देता है, जो अपनी योग्यता सिद्ध कर देता है।

रही बात संसद की। यह सही है कि भाजपा के अधिकतर सांसद अपने काम और नाम की बजाय मोदी जी के नाम पर जीतकर आये हैं। पर इसका अर्थ ये नहीं कि वो किसी गड़रिये की भेडे़ हैं। लाखों लोगों ने उन्हें अपना प्रतिनिधि चुना है। उनकी बहुत अपेक्षाऐं हैं। जनता से जुड़ाव के बिना कोई नेता बहुत लंबी दूरी तक नहीं चल सकता। न सिर्फ स्थानीय मुद्दों पर पकड़ जरूरी है, बल्कि राष्ट्रीय और अंर्तराष्ट्रीय मुद्दों पर भी हस्तक्षेप करने की अपेक्षा देशवासी हर सांसद से करते हैं। ‘निंदक नियरे राखिये’ वाले सिद्धांत में आस्था रखते हुए मोदी जी को चाहिए कि वे अपने सांसदों को यह निर्देश और शिक्षा दें कि वे संसद की बहसों में सक्रिय रहकर अपना योगदान करें और जहाँ आवश्यक हो, अपनी ही सरकार की कमियों की ओर इशारा करने से न चूकें। इससे सरकार की विश्वसनीयता व लोकप्रियता दोनों बढ़ती है। आशा की जानी चाहिए कि मोदी जी अपने आलोचकों की शंकाओं के विरूद्ध एक मजबूत राष्ट्र के निर्माण की तरफ कदम बढ़ाऐंगे।

Monday, June 17, 2019

मोदी जी हम टैक्स चोर नहीं हैं!


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हमारी सहपाठी रहीं भारत की वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश की जनता से आगामी बजट के लिए रचनात्मक सुझाव मांगे है। इसकी प्रतिक्रिया में एक डॉक्टर ने भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी को एक रोचक पत्र लिखा है। जिसमें डॉक्टर का कहना कि मोदी जी हम टैक्स चोर नहीं हैं। फिर हम क्यों टैक्स चोरी करते हैं? ये पत्र उन्होंने हर उस व्यापारी या प्रोफेश्नल की तरफ से लिखा है, जिसकी क्षमता आयकर देने की है।

वे लिखते हैं कि हमें अपने घर, दफ्तर और कारखानों में जेनरेटर चलाकर बिजली पैदा करनी पड़ती है, क्योंकि सरकार 24 घंटे बिजली नहीं दे पाती। हमें सबमर्सिबल पंप लगाकर अपनी जलापूर्ति करनी पड़ती है, क्योंकि जल विभाग हमें आवश्यकतानुसार पानी नहीं दे पाता। हमें अपनी सुरक्षा के लिए सिक्योरिटी गार्ड भी रखने पड़ते हैं, क्योंकि पुलिस हमारी रक्षा नहीं करती। हमें अपने बच्चों को मंहगे प्राइवेट स्कूलों में पढाना पड़ता है, क्योंकि सरकारी स्कूलों की हालत बहुत खराब है। हमें अपना इलाज भी मंहगे प्राइवेट अस्पतालों में करवाना पड़ता है, क्योंकि सरकारी अस्पताल खुद ही आई.सी.यू. में पड़े हैं। हमें आवागमन के लिए अपनी कारें खरीदनी पड़ती हैं, क्योंकि सरकारी ट्रांस्पोर्ट व्यवस्था की हालत खस्ता है।

सेवानिवृत्त होने के बाद एक आयकरदाता को इज्जत से जिंदा रहने के लिए सरकार से मिलता ही क्या है? कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती। बल्कि उसकी जिंदगीभर की मेहनत की कमाई से सरकार जो कर उघाती है, वह राजनेता वोटों के लालच में बड़ी-बड़ी खैरात बांटकर लुटा देते हैं। प्रश्न ये है कि हमारे कर की आय से सरकार क्या-क्या करती है? अदालत चलाती है? जहां वर्षों न्याय नहीं मिलता। थाने बनाये गए हैं? जहां केवल राजनेताओं और आला-अफसरों की सुनी जाती है। आम आदमी की तो शिकायत भी रिश्वत लेने के बाद दर्ज होती है। स्कूल और अस्पतालों के भवनों को बनाने पर सरकार खूब खर्च करती है, जो कुछ सालों में खंडहर हो जाते हैं। सरकार सड़के बनवाती है, जिसमें 40 फीसदी तक कमीशन खाया जाता है। यह सूची बहुत लंबी है।

पश्चिमी देशों में जिस तरह की सामाजिक सुरक्षा सरकार देती है, उसके बाद वहां के नागरिक टैक्स चोरी क्यों करें ? जब हर सुविधा उन्हें सरकार से ही मिल जाती है, तो उन्हें चिंता किस बात की? जबकि हमारे यहां अरबों-खरबों रूपया केवल नेताओं और अफसरों के ठाट-बाट, सैर-सपाटों और ताम-झाम पर खर्च होता है। जनता पर खर्च होने के लिए बचता ही क्या है?

एक कारखानेदार 2 से 10 फीसदी मुनाफे पर उत्पादन करता है। जबकि सरकार को अपनी आय का 30 फीसदी अपनी व्यवस्था चलाने पर ही खर्च करना होता है। ये कहां तक न्याय संगत है?

यही कारण है कि भारत में कोई सरकार को कर अदा नहीं करना चाहता। हम टैक्स बचाते हैं, अपने परिवार की परवरिश के लिए और बुढ़ापे में अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए। जबकि ये सब जिम्मेदारी अगर सरकार लेती, तो हमें इसकी चिंता नहीं करनी पड़ती।

दूसरी तरफ अगर सरकार ये घोषणा करे कि उसे सेना के लिए या बाढ़ व तूफान में राहत पहुंचाने के लिए 1000 करोड़ रूपये चाहिए, तो हम सब देशवासी इतना धन 2 दिन में जमा करवा सकते हैं और करवाते भी हैं। सरकार की ऐसी किसी भी मांग पर हम सभी करदाता खुले दिल से सहयोग करने में आगे बढ़ेंगे। इससे स्पष्ट है कि हम सरकार का सहयोग करना चाहते हैं। हम सरकार की उन रणनीतियों और कार्यक्रमों के लिए धन देने को भी तैयार हैं, जिनसे देश की सुरक्षा हो, गरीबों को न्याय मिले और हम सबका जीवन आराम से गुजरे। पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए आम करदाता कर देने से बचता है।

जरूरत इस बात की है कि इन सरकारी सेवाओं को सुधारा जाऐ और हमें चोर बताने से पहले जिले से लेकर ऊपर तक भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और नेताओं की कड़ाई से नकेल कसी जाए। जो अभी तक नहीं हो पाया है। चाहे वह राज्य किसी भी दल द्वारा शासित क्यों न हो, आम आदमी को तो हर जा-बेजा बात के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इससे जनता में सरकार की छवि खराब होती है।

जब भ्रष्टचारी अधिकारियों, नेताओं और मंत्रियों पर लगाम कसी जायेगी, तो इसके तीन लाभ होंगे। एक तो भ्रष्टाचार और कालेधन पर प्रभावी रोक लग सकेगी। दूसरा आम जनता के बीच मोदी जी इतने लोकप्रिय हो जाऐंगे कि अगली बार दुगने मतों से जीतेंगे। तीसरा इस देश का आम व्यक्ति ईमानदारी से इतना कर देगा कि सरकार का खजाना कभी खाली न हो। बशर्ते जनता के इस धन का पारदर्शिता से सार्थक उपयोग हो, उसको एय्याशी में बर्बाद न किया जाए।

पिछले 5 वर्षों में मोदी जी ने भारत सरकार में भ्रष्टाचार को रोकने में भारी सफलता हासिल की है। अब दिल्ली के 5 सितारा होटलों में आपको हाई प्रोइफल दलाल कहीं दिखाई नहीं देते। क्योंकि अब कोई ये दावा नहीं कर सकता कि तुम मुझे इतना रूपया दो, तो मैं तुम्हारा काम करवा दूंगा। अब इससे एक कदम और आगे जाने की जरूरत है। प्रांतों और जिलों में भी इसी संस्कृति का अविलंब परिचय मिलना चाहिए। तभी जनता को लगेगा कि ‘मोदी है, तो मुमकिन है’।