Monday, October 24, 2016

अंडमान निकोबार से क्रूड आयल और नेचुरल गैस निकालकर देश को क्यों नहीं दी जाती ?

एक तरफ हमारा देश हजारों करोड़ रूपया पश्चिमी एशियाई देशों को देकर क्रूड आयल और नेचुरल गैस खरीद रहा है। दूसरी ओर अंडमान निकोबार द्वीप समूह में हमारे पास क्रूड आॅयल और नेचुरल गैस के अपार भंडार भरे पड़े हैं। जिन्हें हमारी लापरवाही के कारण इंडोनेशिया अप्रत्यक्ष रूप से दोहन करके दुनिया का सबसे बड़ा तेल निर्यातक बना हुआ है। क्या इसके पीछे कोई निहित स्वार्थ हैं।

अमेरिका के दो वैज्ञानिकों ने मध्य-पूर्व एशिया के तेल के कुंओं का पिछले 20 साल में शोध करके एक शोध पत्र प्रकाशित किया है। जिसमें बताया कि इन कुंओं से रोजाना 10 से 20 मिलियन बैरल तेल निकालकर बेचा जाता है और ये काम पिछले 70-80 वर्ष से चल रहा है। इसके बावजूद हर साल जब मिडिल ईस्ट के तेल के कुंओं का स्तर नापा जाता है, तो वह पहले से भी ऊंचा निकलता है। यानि कि मिडिल ईस्ट के तेल के कुंओं में चमत्कार हो रहा है। वहां पर जितना मर्जी तेल निकाले जाओ, उसके बावजूद तेल का स्तर घटने की बजाय लगातार बढ़ रहा है। दरअसल मिडिलईस्ट के तेल के कुंओं में तेल बढ़ने का कारण वहां का ‘सबडक्शन जोन‘ है। सउदी अरब की ‘क्रस्टल प्लेट‘ ईरान की ‘क्रस्टल प्लेट‘ के नीचे 1200 डिग्री ‘सैल्सियस मैग्मा‘ के अंदर जब प्रवेश करती है, तो उस प्लेट के ऊपर जो कैल्शियम कार्बोनेट होता है, वह टूट जाता है और उससे कार्बन निकलता है। फारस की खाड़ी का पानी जब 1200 डिग्री सैन्टीग्रेड मैग्मा में प्रवेश करता है, तो वह भी टूट जाता है और उसमें से हाइड्रोजन गैस निकलती है। हाड्रोजन और कार्बन दोनों मिलकर तत्काल हाइड्रोकार्बन बना देते हैं। जिसको हम रोजमर्रा की भाषा में क्रूड आयल और नेचुरल गैस कहते हैं। 

वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है कि बंगाल की खाड़ी में भी यही हो रहा है। वहां पर ‘इंडो-आॅस्टे’ लियन क्रस्टल प्लेट‘ ‘यूरेशियन क्रस्टल प्लेट‘ के नीचे डाइव कर रही हैं और उसके अंदर भी कैल्शियम कार्बोनेट टूट रहा है। साथ ही बंगाल की खाड़ी का पानी भी टूट रहा है और दोनों मिलकर वहां पर भी क्रूड आॅयल और नेचुरल गैस बना रहे हैं।

बंगाल की खाड़ी का जो ‘सबडक्शन जोन‘ है, उसका दक्षिणी हिस्सा इंडोनेशिया के पास है। इससे इंडोनेशिया प्रतिदिन 1 मिलियन बैरल क्रूड आयल निकालता है। इसके अलावा इंडानेशिया की गैस प्रोडेक्शन एशिया-पैसेफिक में नंबर एक है। अंडमान निकोबार के उत्तर में म्यांमार (वर्मा) देश है। वह भी प्रतिदिन 30 हजार बैरल क्रूड आयल निकाल रहा है। इसके अलावा उसका गैस प्रोडेक्शन भी बहुत ज्यादा है। उसने अंडमान बेसिन के पास ‘आफशोर गैस फील्ड्स‘ और ‘आयल फील्ड्स‘ में तेल निकालने और उसके शुद्धीकरण का काम भी शुरू कर दिया है।

प्रश्न ये पैदा होता है कि भारत अपनी कीमती विदेशी मुद्रा मिडिल ईस्ट को दे करके तेल क्यों खरीदता है ? जबकि हमारे पड़ोसी देश इंडानेशिया और म्यांमार उसी बंगाल की खाड़ी से तेल निकाल रहे हैं और हम हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं। हम अंडमान निकोबार के ‘डीप वाटर ब्लाक्स‘ से तेल और गैस निकालकर देश को क्यों नहीं देते ? हमारी विदेशी मुद्रा नाहक मिडिलईस्ट के शेखों को क्यों लुटाई जा रही है ? 2014 में करीब 10 लाख करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा तेल और गैस की खरीददारी में मिडिलईस्ट के शेखों को दी गई।

2015 में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम गिरने से तेल और गैस की खरीददारी में 8.50 लाख करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा खर्च हुई। ये डेढ़ लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा जो बची, उसी से सरकार चल रही है। अगर कहीं तेल के दाम अंतर्राष्ट्रीय बाजार में न गिरे होते, तो महंगाई ने भारत की खाट खड़ी कर दी होती और हमारा भुगतान संतुलन भी गंभीर संकट के दौर में पहुंच जाता। फिर हमें चंद्रशेखर सरकार की तरह रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया का सोना गिरवी रखना पड़ जाता।

सरकार ने 5 ‘डीप वाटर ब्लाक्स‘ अंडमान बेसिन में प्राइवेट कंपनियों को तेल निकालने के लिए आफर किए। जिसमें से 1296 बिलियन बैरल्स तेल होने का प्रलोभन दिया। प्रश्न ये पैदा होता है कि हमारी राष्ट्रीय कंपनियां, जैसे कि ओएनजीसी, ओआईएल, गेल, जीएसपीसी आदि अंडमान निकोबार के 16 डीप वाटर ब्लाक्स में से तेल और गैस निकालकर देश को क्यों नहीं देतीं?  

उल्लेखनीय है कि इस इलाके में 83419 वर्ग किमी. में तेल और गैस फैली हुई है। इतने बड़े क्षेत्र में सरकार ने 22 तेल के कुएं खोदे और उनमें गैस मिली। इसी के आधार पर उन्होंने 5 डीप वाटर ब्लाक्स में से तेल और गैस निकालने के लिए प्राइवेट कंपनियों को न्यौता दिया। पर प्रश्न ये पैदा होता है कि आज 2 साल गुजर गए, जबसे इन कुंओं से गैस मिल रही है। फिर भी कोई प्राइवेट कंपनी ठेका लेने सामने नहीं आई, तो सरकार किस बात का इंतजार कर रही है ? हमारी तेल कंपनियां किस काम के लिए बनाई हैं?  

कहीं ऐसा तो नहीं कि मिडिलईस्ट के शेख अपनी दुकानदारी चलाए रखने के लिए हमारी नेशनल कंपनियां हैं और इनसे जुड़े अधिकारी और मंत्री हैं, उनको मोटी-मोटी रिश्वत देकर अपना कर्तव्य न निभाने का दबाव डाल रहे हैं ? इस विषय में तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुखेंदु शेखर राय ने मानसून सत्र में राज्यसभा में प्रश्न नंबर 1944 उठाया था। जिसके जवाब में पेट्रोलियर मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 3 अगस्त, 2016 को जो कुछ कहा, वह संतुष्टिपूर्ण बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। उनका जवाब लीपापोती से ज्यादा कुछ नहीं था, इसलिए संदेह होना स्वाभाविक है। इसलिए इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधे दखल देकर पूछना चाहिए कि इस ‘मल्टी बिलियन डालर‘ के खेल में किस स्तर तक धांधलेबाजी हो रही है ? मुट्ठीभर लोग देश का आधा जीडीपी मिडिलईस्ट के शेखों को देकर 130 करोड़ भारतीयों की जेब क्यों काट रहे हैं ? 2 वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीविजन चैनलों पर यह घोषणा की थी कि मैं अंडमान निकोबार से तेल निकालकर देश को दूंगा। पर अभी तक इस दिशा में क्या हुआ, देश को पता नहीं लगा। यह बहुत गंभीर विषय है, जिसका आम भारतवासी के जीवन से संबंध है। इस पर एक श्वेत पत्र जारी होना चाहिए।

Monday, October 17, 2016

हाकिमों की मौज पर पाबंदी


हाल ही में मोदी सरकार ने प्रशासनिक सुधारों की तरफ एक और कड़ा कदम उठाया है जिसके तहत केंद्र सरकार के ऊँचे पदों पर रहे आला अधिकारियों को मिल रही वो सारी सुविधाएं वापिस ले ली हैं जो वे सेवानिवृत होने के बावजूद लिए बैठे थे | मसलन चपरासी, ड्राइवर, गाड़ी आदि | इस तरह एक ही झटके में मोदी सरकार ने जनता का करोड़ों रुपया महीना बर्बाद होने से बचा लिया | इतना ही नहीं भिवष्य के लिए इस प्रवृति पर ही रोक लग गई | वरना होता ये आया था की हिन्दुस्तान की नौकरशाही किसी न किसी बहाने से सेवानिवृत होने के बाद भी अनेक किस्म की सुविधाएँ अपने विभाग से स्वीकृत करा कर भोगते चले आ रहे थे | ज़ाहिर है कि जो रवैया बन गया था वो रुकने वाला नहीं था | बल्कि और भी बढने वाला था | जिस पर मोदी सरकार ने एक झटके से ब्रेक लगा दिया | पर अभी तो ये आगाज़ है अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है |

केंद्र की पूर्वर्ती सरकारों ने पूर्व राष्ट्रपतियों, उपराष्ट्रपतियों, प्रधान मंत्रियों, उप प्रधान मंत्रियों व अन्य ऐसे ही राजनैतिक परिवारों को बड़े बड़े बंगले अलॉट करने की नीति चला रखी है | ये बहुत आश्चर्य की बात है कि जिस देश में आम आदमी को रोटी, कपड़ा, मकान जैसी बुनयादी जरूरतों को हासिल करने के लिए कठिन संघर्ष करना पड़ता हो, उसमे जनता के अरबों रुपयों को क्यूँ इनपे खर्च किया जाता है ? जबकि दुनिया के किसी सम्पन्न देश में भी कार्यकाल पूरा होने के बाद ऐसी कोई भी सुविधा राजनेताओं को नहीं दी जाती | नतीजतन भारत के राजनेता दोहरा फायदा उठाते हैं | एक तरफ तो अपने पद का दुरूपयोग करके मोटी कमाई करते हैं और दूसरी तरफ सरकारी सम्पत्तियों पर ज़िन्दगी भर कब्जा जमे बैठे रहते हैं | जबकी उनके पास पैसे की कोई कमी नहीं होती | डा. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम अकेले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने रष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा होने के बाद सरकारी बंगला लेने से इनकार कर दिया | पर उन्हें भी किसी क़ानून का हवाला देकर उनकी इच्छा के विरुद्ध बंगला आवंटित किया गया |

इसी तरह कई प्रदेशों की राजधानियों में भी यही प्रवृति चल रही है | हर पूर्व मुख्यमंत्री एक न एक सरकारी बंगला दबाए बैठा है | इस पर भी रोक लगनी चाहिए | मोदी जी और अमित भाई शाह कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं की भाजपा शासित राज्यों में इस नीति की प्रवृति को खत्म करें | जैसे सरकार के अन्य विभागों में होता है कि सेवानिवृत होने के बाद ऐसी कोई सुविधा नहीं मिलती | इससे सरकार के खजाने की फ़िज़ूल खर्ची रोकी जा सकेगी और उस पैसे से जन कल्याण का काम होगा | वैसे भी यह वृत्ति लोकतंत्र के मानकों के विपरीत है | इस नीति के चलते समाज में भेद होता है | जबकि कायदे से हर व्यक्ति को प्राकृतिक संसाधन इस्तेमाल करने के लिए समान अधिकार मिलना चहिये | वैसे भी निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोगों को ऐसी कोई रियातें नहीं मिलती |

समाजवादी विकास मॉडल के जुनून में पंडित नेहरु ने अंग्रेजों की स्थापित प्रशासनिक व्यवस्था को बदलने की कोई कोशिश नहीं की | नतीजतन हर आदमी सरकार से नौकरी और सुविधाओं की अपेक्षा करता है | जबकि होना यह चाहिए कि हर व्यक्ति सरकार पर निर्भर होने की कोशिश करे, अपने पैरों पर खड़ा हो और अपनी जरूरत के साधन अपनी मेहनत से जुटाय | तब होगा राष्ट्र का निर्माण | सेवानिवृत होने पर ही क्यों, सेवा काल में ही सरकारी अफसर जन सेवा के लिए मिले संसाधनों का जमकर दुरूपयोग अपने परिवार के लिए करते हैं |

आज़ादी के 70 साल बाद भी देश की नौकरशाही अंग्रेजी हुक्मरानों की मानसिकता से काम कर रही है | जिस जनता का उसे सेवक होना चाहिए उसकी मालिक बन कर बैठी है | इन अफसरों के घर सरकारी नौकरों की फौज अवैध रूप से तैनात रहती है । सरकारी गाडि़यां इनके दुरुपयोग के लिये कतारबद्ध रहती हैं। इनकी पत्नियाँ अपने पति के अधीनस्थ अधिकारियों पर घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिये ऐसे हुक्म चलाती हैंमानो वे उनके खरीदे गुलाम हों। ये अधीनस्थ अधिकारी भी फर्शी सलाम करने में पीछे नहीं रहते। अगर मैडम खुश तो साहब के नाखुश होने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ये लोग निजी यात्रा को भी सरकारी यात्रा बनाकर सरकारी तामझाम के साथ चलना पसंद करते हैं। जन सेवा के नाम पर सरकारी तामझाम का पूरे देश में एक ऐसा विशाल तन्त्र खड़ा कर दिया गया है जिसमे केवल अफसरों और नेताओं के परिवार मौज लेते हैं | किसी विकसित देश में भी ऐसा तामझाम अफसरों के लिए नहीं होता | इस पर भी मोदी सरकार को नजर डालनी चाहिए | ऐसे तमाम बिंदु हैं जिन पर हम जैसे लोग वर्षों से बेबाक लिखते रहे हैं | पर किसी के कान पर जूं नहीं रेंगी | अब लगता है कि ऐसी छोटी लेकिन बुनयादी बातों की ओर भी धीरे धीरे मोदी सरकार का ध्यान जायेगा | भारत को अगर एक मजबूत राष्ट्र बनना है तो उसके हर नागरिक को सम्मान से जीने का हक होना चाहिए | वो उसे तभी मिलेगा जब सरकारी क्षेत्र में सेवा करने वाले अपने को हाकिम नहीं बल्कि सेवक समझें जैसे निजी क्षेत्र में सेवा करने वाला हर आदमी, चाहे कितने बड़े पद पर क्यों न हो अपने को कम्पनी का नौकर ही समझता है |