Punjab Kesari 24 April 2017 |
पहलाः विश्व में यह प्रचार करना कि
भारत गरीबों का देश है और हम ईसाई लोग उनके भले के लिए काम कर रहे है। इस
प्रकार उभरती आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की छवि को खराब करना। दूसराः
हिंदूओं को नाकारा बताकर यह प्रचारित करना कि हिंदू अपने धर्मस्थलों की भी
देखभाल नहीं कर सकते, उन्हें भी हम ईसाई लोग ही संभाल सकते हैं। जैसे कि
भारत को संभालने का दावा करके अंगे्रज हुकुमत ने 190 वर्षों में सोने की
चिड़ियां भारत को जमकर लूटा। उसके बावजूद भारत आज भी वैभव में पूरे यूरोप से
कई गुना आगे है। जबकि उनके पास तो पेट भरने को अन्न भी नहीं है। यूरोप के
कितने ही देश दिवालिया हो चुके है और होते जा रहे हैं। क्योंकि अब उनके पास
लूटने को औपनिवेशिक साम्राज्य नहीं हैं। इसलिए ‘वल्र्ड बैंक’ जैसी
संस्थाओं को सामने खड़ाकर हमारे मंदिरो और धर्मक्षेत्रों को लूटने के
नये-नये हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। तीसराः इस प्रक्रिया में हमारे
धर्मक्षेत्रों में अपने गुप्तचरों का जाल बिछाना जिससे वो सारी सूचनाऐं
एकत्र की जा सकें, जिनका भविष्य में प्रयोग कर हमारे धर्म को नष्ट किया जा
सके।
एक छोटा उदाहरण काफी होगा। इसाई धर्म में
पादरी होता है, पुजारी नहीं। चर्च होता है, मंदिर नहीं। ईसा मसीह प्रभु के
पुत्र माने जाते हैं, ईश्वर नहीं। इनके पादरी सदियों से सफेद वस्त्र पहनते
हैं, केसरिया नहीं। अब इनकी साजिश देखिएः आप बिहार, झारखंड, उड़ीसा जैसे
राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों में ये देखकर हैरान रह जायेंगे कि भोली जनता
को मूर्ख बनाने के लिए ईसाई धर्म प्रचारक अब भगवा वस्त्र पहनते हैं। स्वयं
को पादरी नहीं, पुजारी कहलवाते हैं। गिरजे को प्रभु यीशु का मंदिर कहते
हैं। 2000 वर्षों से जिन ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र बताते आए थे, उन्हें
अब भारत में ईश्वर बताने लगे हैं। क्योंकि हमारे भगवान तो श्रीकृष्ण व
श्रीराम हैं। भगवान श्रीराम के पुत्र तो लव और कुश हैं। हिंदू समाज भगवान
राम की पूजा करता है, लव और कुश का केवल सम्मान करता है। अगर ईसा मसीह को
ईश्वर का पुत्र बतायेंगे तो भारतीय जनता उन्हें लव-कुश के समान समझेगी,
भगवान नहीं मानेगी। चौथाः हमारे धर्मक्षेत्रों की गरीबी दूर करने के नाम पर
जो कर्ज ये देने जा रहे हैं, उसमें से बड़ी मोटी रकम अर्तंराष्ट्रीय
सलाहकारों को फीस के रूप में दिलवा रहे हैं। ऐसे सलाहकार जो ब्रज के विकास
की योजनाऐं बनाते समय प्रस्तुति देते हुए कहते हैं कि स्वामी हरिदास जी,
तानसेन के शिष्य थे।
ऐसी
योजनाऐं बनाने के लिए दी जाने वाली करोड़ों रूपये फीस के पीछे हमारी
प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्ट करने के लिए मोटा कमीशन देना और उन्हें विदेश
घुमाने का खर्चा शामिल होता है। जबकि इस सब खर्चे का भार भी उत्तर प्रदेश
की जनता पर कर्ज के रूप में ही डाला जायेगा। पिछले कई वर्षों से अखबारों
में आ रहा है कि विश्व बैंक ब्रज की गरीबी दूर करने के लिए बडी-बड़ी योजनाऐं
बना रहा है। शुरू में खबर आई कि वृंदावन में 100 करोड़ रूपये खर्च करके एक
बगीचा बनाया जायेगा और एक-एक कुंड के जीर्णोद्धार पर 10-10 करोड़ रूपये खर्च
करके 9 कुंडों का जीर्णोद्धार किया जायेगा। 2002 से ब्रज को सजाने में व
कुंडों के जीर्णोद्धार में जुटी ब्रज फाउंडेशन की टीम को ये बात गले नहीं
उतरी। क्योंकि कूड़े के ढेर पडे़, वृंदावन के ब्रह्मकुंड को ब्रज फाउंडेशन
ने मात्र 88 लाख रूपये में सजा-संवाकर, सभी का हृदय जीत लिया। गोवर्धन
परिक्रमा पर भी इसी तरह दशाब्दियों से मलबे का ढेर बने रूद्र कुंड को मात्र
ढाई करोड़ रूपये में इतना सुंदर बना दिया कि उसका उद्घाटन करने आए उ.प्र.
के मुख्यमंत्री को सार्वजनिक मंच पर कहना पड़ा कि ‘रूपया तो हमारी सरकार भी
बहुत खर्च करती है, पर इतना सुंदर कार्य क्यों नहीं कर पाती, जितना ब्रज फाउंडेशन करती है।’ ब्रज फाउंडेशन ने विरोध किया तो 2015 में विश्व बैंक को
ये योजनाऐं निरस्त करनी पड़ीं। अब जो नई योजनाऐं बनाई हैं वे भी इसी तरह
बे-सिर पैर की हैं। ‘कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना’।
हमारे
मंदिरों, तीर्थस्थलों, लीलास्थलियों और आश्रमों के संरक्षण, संवर्धन या
सौदंर्यीकरण का दायित्व हिंदू धर्मावलम्बियों का है। ईसाई या मुसलमान हमारे
धर्मक्षेत्रों में कैसे दखल दे सकते हैं? क्या वे हमें अपने वैटिकन या
मक्का मदीने में ऐसा हस्तक्षेप करने देंगे? हमारे धर्मक्षेत्रों में क्या
हो, इसका निर्णय, हमारे धर्माचार्य और हम सब भक्तगण करेंगे। ब्रज में इस
विनाशकारी हस्तक्षेप के विरूद्ध आवाज उठ रही है। देखना है योगी सरकार क्या
निर्णय लेगी।