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Monday, April 10, 2023

क्या बाइबिल में ईसा मसीह की शिक्षाएँ नहीं हैं?


ये सुन कर दुनिया भर के ईसाई भड़क जाएँगे कि बाइबिल में ईसा मसीह की शिक्षाएँ नहीं हैं। पर गहन शोध के बाद ये दावा किया है इतिहासकार हर्ष महान कैरे ने अपनी पुस्तक, ‘डिस्कवरिंग जीसस’ में। रूपा प्रकाशन से प्रकाशित 387 पेज की ये अंग्रेज़ी पुस्तक ईसाइयों और ग़ैर ईसाइयों के बीच कौतूहल का विषय बन गई है। लेखक का दावा है कि बाइबिल में जो शिक्षाएँ लिखी गई हैं वो पॉल के विचार हैं जो कभी ईसा मसीह से मिला ही नहीं था। पर उसका दावा है कि ईसा मसीह ने यह ज्ञान उसे अवचेतन अवस्था में दिया। जिसे उसने लिपिबद्ध कर दिया। हालाँकि पॉल ईसा मसीह के बारह प्रथम व मूल शिष्यों में से एक नहीं था फिर भी वो स्वयं को अपोस्टेल (प्रचारक) होने का दावा करता है। जबकि ऐतिहासिक प्रमाण इसके विरुद्ध हैं। 

यीशु के बारह प्रधान शिष्य थे जिन्हें अपोस्टेल (प्रचारक) कहा जाता है। इनमें से एक का नाम जूड्स इस्कारियट था जिसने यीशु को धोखा दे कर गिरफ़्तार करवाया और सूली पर चढ़वाया। कहते हैं कि बाद में उसने प्रायश्चित में आत्महत्या कर ली। जिसके बाद शेष ग्यारह प्रचारकों ने आपसी सहमति से एक और प्रचारक को अपने साथ ले लिया पर वो पॉल नहीं था। परंतु आज का ईसाई धर्म पॉल की लिखी शिक्षाओं पर ही आधारित है। 


‘डिस्कवरिंग जीसस’ पुस्तक ईसाई धर्म शास्त्रियों के लेखों पर किए गये शोध पर आधारित है। वे धर्म शास्त्री जिन्होंने यीशु के बाद की शताब्दियों में लेखन कार्य किया इस शोध से ये सिद्ध होता है कि यीशु के असली प्रचारक और पॉल न तो कभी एक साथ रहे और न ही उनके द्वारा दी गई शिक्षाओं में कोई समानता है। इस बात के भी प्रमाण हैं कि पॉल जीवन भर इन प्रचारकों से लड़ता रहा, पर उन्होंने कभी भी उसे स्वीकारा नहीं। 

पॉल द्वारा स्थापित मान्यता है कि संसार का अंत होगा और न्याय की घड़ी होगी। वो लिखता है कि इस दिन मृतक अपनी क़ब्रों से नये शरीरों के साथ उठ खड़े होंगे और जो जीवित होंगे उन्हें भी नये शरीर मिलेंगे। इन सब का फ़ैसला इनके कर्मों के आधार पर होगा। सदकर्म वाले स्वर्ग में सुख भोगेंगे और दुष्कर्म वाले नरक में अनंत काल तक दुख भोगेंगे। पॉल आगे कहते हैं कि ये फ़ैसला यीशु ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में करेंगे। पॉल की सबसे महत्वपूर्ण घोषणा यह थी कि जो मानते हैं यीशु ईश्वर के पुत्र हैं और मर कर ज़िंदा हुए हैं वो सब स्वर्ग जाएँगे। 

जबकि लेखक का शोध इस ग्रंथ में यह सिद्ध करता है कि यीशु और उनके बारह प्रमुख प्रचारकों का यह मत क़तई नहीं था। वे तो पुनर्जन्म के सिद्धांत में विश्वास करते थे जो कि व्यक्ति के पूर्वजन्म के कर्मों पर आधारित होता है। जन्म-मृत्यु के इस निरंतर चक्र से आत्मा तभी मुक्त हो सकती है जब उसे आध्यात्मिक साधना के द्वारा आत्म साक्षात्कार हो जाए। ईसा मसीह की ये शिक्षाएँ आज के प्रचलित ईसाई धर्म (पॉल द्वारा प्रतिपादित) के बिलकुल विपरीत हैं और वैदिक धर्म के समान हैं। ये बात दूसरी है कि इसी लेखक ने अपने दूसरे एक ग्रंथ ‘ऐन आर्यन जर्नी’ में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि आर्य बाहर से भारत आए थे और इसलिए वैदिक ज्ञान भी बाहर से ही भारत आया। 

‘डिस्कवरिंग जीसस’ पुस्तक में लेखक ने बाइबिल से ही प्रमाण लेकर पॉल और मूल प्रमुख प्रचारकों के बीच मतभेद को दर्शाया है। इसी तरह बाइबिल से लिये गये अन्य उदाहरणों की सहायता से ईसाई धर्म की तमाम मौजूदा मान्यताओं को सिरे से ख़ारिज किया है, क्योंकि ये मान्यताएँ पॉल द्वारा प्रतिपादित हैं, यीशु के प्रमुख शिष्यों द्वारा नहीं। इसके अलावा भी ईसाई पादरियों के द्वारा प्रारंभिक सदियों में लिखे गये लेखों के आधार पर इस पुस्तक के लेखक ने यह सिद्ध किया है कि वे पॉल को यीशु का प्रमुख शिष्य नहीं मानते थे और उसकी शिक्षाओं से सहमत नहीं थे। मसलन यीशु के भाई जेम्स जो यीशु की मृत्यु के बाद जेरुसलम के बिशप बने और प्रमुख प्रचारकों के चर्च के मुखिया बने, दुर्भाग्य से उन लोगों के लेख आज उपलब्ध नहीं हैं। केवल वही साहित्य उपलब्ध हैं जो बहुत सावधानी से पैक करके मिस्र मिस्र में गाढ़ दिया गया था जिसे अब ‘नाग हमादी’ पुस्तकालय के नाम से जाना जाता है। जितनी सावधानी से पैक किया गया है वही इस बात का प्रमाण है कि उन्हें इस मूल साहित्य को नष्ट किए जाने का डर था। इसके अलावा पॉल के अनुयायियों ने मूल प्रचारकों पर हमले की भावना से या उनका मज़ाक़ उड़ाने के लिए जो कुछ आगे की सदियों में लिखा उससे भी अपोस्टेल (प्रचारक) के विचारों का पता चलता है। 

पुस्तक में आगे इस बात का वर्णन है कि कैसे पॉल और पौलाइन चर्च ने ‘न्यू टेस्टामेंट’ के साथ छेड़छाड़ की। इससे पता चलता है कि केवल ‘गोस्पेल ऑफ़ मैथ्यू’ के ही लेख ही शुद्ध हैं जिन्हें प्रचारकों के शिष्यों ने स्वीकार किया था  क्योंकि ये हिब्रू भाषा में लिखे गये थे जिनका बाद में ‘गोस्पेल ऑफ़ मार्क’ ने यूनानी भाषा में अनुवाद किया था। हालाँकि इसमें भी एक दो बातें ऐसी हैं जो पॉल के सिद्धांतों का समर्थन करती हैं। उदाहरण के तौर पर यीशु को आध्यात्मिक दर्जा देने के लिए उनके जन्म को कुँवारी माँ के गर्भ से हुआ बताना, उनके चमत्कारों को महिमामंडित करना या उनका मर कर पुनर्जीवित होना। ये अंतिम बात पॉल ने इसीलिए जोड़ी ताकि वह अपने ‘अंतिम न्याय’ के सिद्धान्त को स्थापित कर सके।

इस तरह बाइबिल के ही उदाहरणों से लेखक ने बार-बार पॉल के सिद्धांतों और मान्यताओं को ग़लत सिद्ध करने का प्रयास किया है। लेखक ईसाई धर्म गुरुओं को इस विषय में उससे शास्त्रार्थ करने की खुली चुनौती भी देता है। आश्चर्य की बात है कि 2022 में प्रकाशित इस ग्रंथ में उठाए गए विषयों पर ईसाई जगत से चुनौती देने अभी तक कोई सामने नहीं आया है। अगर ऐसा हो तो बहुत सारी गुत्थियां सुलझ सकती हैं और भ्रांतियाँ भी दूर हो सकती हैं। क्योंकि एक संत, योगी या तत्ववेत्ता किसी भी धर्म का मानने वाला क्यों न हो जब वो साधना की चरम सीमा पर पहुँचता है तो उसे जो आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त होता है वो सार्वभौमिक होता है। तब धर्मों के बीच कोई मतभेद रह ही नहीं जाता। जो मतभेद आज दिखाई देता है वह आध्यात्मिकता या रूहानियत का आवरण मात्र है।  

Monday, April 24, 2017

क्यों घुसना चाहता है वल्र्ड बैंक हमारे धर्मक्षेत्रों में?

Punjab Kesari 24 April 2017
ईसाईयों के विश्व गुरू पोप जब भारत आए थे, तो भारत सरकार ने उनका भव्य स्वागत किया था। परंतु पोप ने इसका उत्तर शिष्टाचार और कृतज्ञता के भाव से नहीं दिया बल्कि भारत के बहुसंख्यकों का अपमान एवं तिरस्कार करते हुए खुलेआम घोषणा की, कि हम 21वीं सदी में समस्त भारत को ईसाई बना डालेंगे। बहुसंख्यकों के धर्म को नष्ट कर डालने की खुलेआम घोषणा करना हमारी धार्मिक भावनाओं पर खुली चोट करना था, जो कानून की नजर में अपराध है। पर सरकार ने कुछ नहीं किया। सरकार की उस कमजोरी का लाभ उठाकर विश्व बैंक व ऐसी अन्य संस्थाओं के ईसाई पदाधिकारी, पोप की उसी घोषणा को क्रियान्वित करने के लिए हर हथकंडे अपना रहे हैं। इसी में से एक है ‘गरीब-परस्त पर्यटन’ (प्रो-पूअर टूरिस्म) के नाम पर हमारे पवित्र तीर्थों जैसे ब्रज या बौद्ध तीर्थ कुशीनगर आदि में पिछले दरवाजे से साजिशन ईसाई हस्तक्षेप। इसी क्रम में ब्रज के कुंडों के जीर्णोंद्धार और श्रीवृंदावन धाम में श्रीबांकेबिहारी मंदिर की गलियों के सौंदर्यींकरण के नाम पर एक कार्य योजना बनवाकर विश्व बैंक चार लक्ष्य साधने जा रहा है।

पहलाः विश्व में यह प्रचार करना कि भारत गरीबों का देश है और हम ईसाई लोग उनके भले के लिए काम कर रहे है। इस प्रकार उभरती आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की छवि को खराब करना। दूसराः हिंदूओं को नाकारा बताकर यह प्रचारित करना कि हिंदू अपने धर्मस्थलों की भी देखभाल नहीं कर सकते, उन्हें भी हम ईसाई लोग ही संभाल सकते हैं। जैसे कि भारत को संभालने का दावा करके अंगे्रज हुकुमत ने 190 वर्षों में सोने की चिड़ियां भारत को जमकर लूटा। उसके बावजूद भारत आज भी वैभव में पूरे यूरोप से कई गुना आगे है। जबकि उनके पास तो पेट भरने को अन्न भी नहीं है। यूरोप के कितने ही देश दिवालिया हो चुके है और होते जा रहे हैं। क्योंकि अब उनके पास लूटने को औपनिवेशिक साम्राज्य नहीं हैं। इसलिए ‘वल्र्ड बैंक’ जैसी संस्थाओं को सामने खड़ाकर हमारे मंदिरो और धर्मक्षेत्रों को लूटने के नये-नये हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। तीसराः इस प्रक्रिया में हमारे धर्मक्षेत्रों में अपने गुप्तचरों का जाल बिछाना जिससे वो सारी सूचनाऐं एकत्र की जा सकें, जिनका भविष्य में प्रयोग कर हमारे धर्म को नष्ट किया जा सके। 

एक छोटा उदाहरण काफी होगा। इसाई धर्म में पादरी होता है, पुजारी नहीं। चर्च होता है, मंदिर नहीं। ईसा मसीह प्रभु के पुत्र माने जाते हैं, ईश्वर नहीं। इनके पादरी सदियों से सफेद वस्त्र पहनते हैं, केसरिया नहीं। अब इनकी साजिश देखिएः आप बिहार, झारखंड, उड़ीसा जैसे राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों में ये देखकर हैरान रह जायेंगे कि भोली जनता को मूर्ख बनाने के लिए ईसाई धर्म प्रचारक अब भगवा वस्त्र पहनते हैं। स्वयं को पादरी नहीं, पुजारी कहलवाते हैं। गिरजे को प्रभु यीशु का मंदिर कहते हैं। 2000 वर्षों से जिन ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र बताते आए थे, उन्हें अब भारत में  ईश्वर बताने लगे हैं। क्योंकि हमारे भगवान तो श्रीकृष्ण व श्रीराम हैं। भगवान श्रीराम के पुत्र तो लव और कुश हैं। हिंदू समाज भगवान राम की पूजा करता है, लव और कुश का केवल सम्मान करता है। अगर ईसा मसीह को ईश्वर का पुत्र बतायेंगे तो भारतीय जनता उन्हें लव-कुश के समान समझेगी, भगवान नहीं मानेगी। चौथाः हमारे धर्मक्षेत्रों की गरीबी दूर करने के नाम पर जो कर्ज ये देने जा रहे हैं, उसमें से बड़ी मोटी रकम अर्तंराष्ट्रीय सलाहकारों को फीस के रूप में दिलवा रहे हैं। ऐसे सलाहकार जो ब्रज के विकास की योजनाऐं बनाते समय प्रस्तुति देते हुए कहते हैं कि स्वामी हरिदास जी, तानसेन के शिष्य थे।

ऐसी योजनाऐं बनाने के लिए दी जाने वाली करोड़ों रूपये फीस के पीछे हमारी प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्ट करने के लिए मोटा कमीशन देना और उन्हें विदेश घुमाने का खर्चा शामिल होता है। जबकि इस सब खर्चे का भार भी उत्तर प्रदेश की जनता पर कर्ज के रूप में ही डाला जायेगा। पिछले कई वर्षों से अखबारों में आ रहा है कि विश्व बैंक ब्रज की गरीबी दूर करने के लिए बडी-बड़ी योजनाऐं बना रहा है। शुरू में खबर आई कि वृंदावन में 100 करोड़ रूपये खर्च करके एक बगीचा बनाया जायेगा और एक-एक कुंड के जीर्णोद्धार पर 10-10 करोड़ रूपये खर्च करके 9 कुंडों का जीर्णोद्धार किया जायेगा। 2002 से ब्रज को सजाने में व कुंडों के जीर्णोद्धार में जुटी ब्रज फाउंडेशन की टीम को ये बात गले नहीं उतरी। क्योंकि कूड़े के ढेर पडे़, वृंदावन के ब्रह्मकुंड को ब्रज फाउंडेशन ने मात्र 88 लाख रूपये में सजा-संवाकर, सभी का हृदय जीत लिया। गोवर्धन परिक्रमा पर भी इसी तरह दशाब्दियों से मलबे का ढेर बने रूद्र कुंड को मात्र ढाई करोड़ रूपये में इतना सुंदर बना दिया कि उसका उद्घाटन करने आए उ.प्र. के मुख्यमंत्री को सार्वजनिक मंच पर कहना पड़ा कि ‘रूपया तो हमारी सरकार भी बहुत खर्च करती है, पर इतना सुंदर कार्य क्यों नहीं कर पाती, जितना ब्रज फाउंडेशन करती है।’ ब्रज फाउंडेशन ने विरोध किया तो 2015 में विश्व बैंक को ये योजनाऐं निरस्त करनी पड़ीं। अब जो नई योजनाऐं बनाई हैं वे भी इसी तरह बे-सिर पैर की हैं। ‘कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना’।
हमारे मंदिरों, तीर्थस्थलों, लीलास्थलियों और आश्रमों के संरक्षण, संवर्धन या सौदंर्यीकरण का दायित्व हिंदू धर्मावलम्बियों का है। ईसाई या मुसलमान हमारे धर्मक्षेत्रों में कैसे दखल दे सकते हैं? क्या वे हमें अपने वैटिकन या मक्का मदीने में ऐसा हस्तक्षेप करने देंगे? हमारे धर्मक्षेत्रों में क्या हो, इसका निर्णय, हमारे धर्माचार्य और हम सब भक्तगण करेंगे। ब्रज में इस विनाशकारी हस्तक्षेप के विरूद्ध आवाज उठ रही है। देखना है योगी सरकार क्या निर्णय लेगी।