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Monday, June 8, 2020

क्या बाबा रामदेव ये हिम्मत करेंगे ?

20 बरस पहले बाबा रामदेव को देश में कोई नहीं जानता था। न तो योग के क्षेत्र में और न आयुर्वेद के क्षेत्र में। पर पिछले 15 सालों में बाबा ने भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी सफलता के झंडे गाड़ दिए। जहां एक तरफ़ उनके योग शिविर हर प्रांत में हज़ारों लोगों को आकर्षित करने लगे, दुनिया भर में रहने वाले हिंदुस्तानियों ने टेलिविज़न पर बाबा के बताए प्राणायाम और अन्य नुस्ख़े तेज़ी से अपनाना शुरू कर दिए। बाबा के अनुयाइयों की संख्या करोड़ों में पहुँच गई और उन सब के दान से बाबा रामदेव ने 2006 में हरिद्वार में पातंजलि योगपीठ का एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर लिया। 

अपनी इस अभूतपूर्व कामयाबी को बाबा ने दो क्षेत्रों में भुनाया। एक तो आयुर्वेद के साथ-साथ उन्होंने अनेक उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन शुरू किया और दूसरा अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए देश भर में राजनैतिक जन-जागरण का एक बड़ा अभियान छेड़ दिया। उन्होंने काले धन और भ्रष्टाचार के मुद्दे को इस कुशलता से उठाया कि तत्कालीन यूपीए सरकार लगातार रक्षात्मक होती चली गई। बाबा के इस अभियान की सफलता के पीछे भाजपा और आरएसएस की भी बहुत सक्रिय भागीदारी रही। ‘बिल्ली के भाग से छींका’ तब फूटा जब लोकपाल के मुद्दे को लेकर अरविंद केजरीवाल ने ‘इंडिया अगेन्स्ट करपशन’ का आंदोलन शुरू किया। जिसमें मशहूर वकील प्रशांत भूषण, शांति भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे, सेवानिवृत पुलिस अधिकारी किरण बेदी, हिंदी कवि डा. कुमार विश्वास, पूर्व न्यायधीश संतोष हेगड़े और तमाम अन्य सेलिब्रिटी भी जुड़ गए। इन सबका हमला यूपीए सरकार पर था, इसलिए बाबा राम देव के अभियान को और ऊर्जा मिल गई। इन सब ने मिल कर साझा हमला बोल दिया और अंततः यूपीए सरकार का पतन हो गया। 

केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार बनी तो दिल्ली में केजरीवाल की। जिसके बाद से इन सभी ने न तो भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है, न काले धन का और न ही प्रभावी लोकपाल का। जिस आंदोलन ने दुनियाँ की नज़र में एक बड़ी राजनैतिक क्रांति का आगाज़ किया था, वो रातों रात हवा हो गई। 

उधर बाबा ने मोदी सरकार में अपनी राजनैतिक दख़लंदाज़ी सफल होते न देख पूरा ध्यान पातंजलि के कारोबार पर केंद्रित कर दिया। जिसके पीछे आचार्य बालकृष्ण पहले से खड़े थे। उनके इस साम्राज्य की इतनी तेज़ी से वृद्धि हुई कि प्रसाधनों के क्षेत्र में हिंदुस्तान लिवर जैसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी और आयुर्वेद के क्षेत्र में डाबर जैसी कम्पनियाँ भी कहीं पीछे छूट गईं। आज बाबा रामदेव का कारोबार हज़ारों करोड़ का है।

आर्थिक वृद्धि की इस तेज रफ़्तार के बीच बाबा के कुछ उत्पादनों की गुणवत्ता को लेकर कभी-कभी विवाद भी होते रहे और बाबा से ईर्ष्या रखने वाले कुछ लोग उन्हें ‘लाला रामदेव’ भी कहने लगे। पर इस सबसे बेपरवाह बाबा अपनी गति से आगे बढ़ते रहे हैं। क्योंकि उन्हें अपनी सोच और क्षमता पर आत्मविश्वास है। उनके इस जज़्बे का परोक्ष लाभ समाज और देश को भी मिला है। क्योंकि बाबा की प्रेरणा से बहुत बड़ी संख्या में भारतवासियों ने विदेशी उत्पादों को छोड़ कर स्वदेशी को अपना लिया है। दूसरा; इतने व्यापक स्तर पर योगाभ्यास करने से निश्चित रूप से करोड़ों लोगों को स्वास्थ्यलाभ भी हुआ है। तीसरा; पातंजलि के व्यावसायिक साम्राज्य ने लाखों लोगों को रोज़गार भी प्रदान किया है। जिसके लिए बाबा रामदेव की लोकप्रियता देश में आज भी कम नहीं हुई है। 

बाबा रामदेव का व्यवहार बड़ा आत्मीय और सरल होने के कारण, हर क्षेत्र में उनके मित्रों की संख्या भी बहुत है। पिछले दस वर्षों से मेरे सम्बंध भी बाबा से बहुत आत्मीय रहे हैं। अपने टेलिविज़न चैनल के माध्यम से उन्होंने ब्रज सजाने के हमारे विनम्र अभियान में मीडिया सहयोग भी किया है। पर खोजी पत्रकार की अपनी साफ़गोई की छवि के कारण जहां देश के बहुत से महत्वपूर्ण लोग मेरी बेबाक़ी  से विचिलित हो जाते हैं वहीं बाबा जैसे लोग, मेरी आलोचना को भी एक खिलाड़ी की भावना की तरह सहजता से हंसते हुए स्वीकार करते हैं। 

अपनी इसी साफ़गोई को माध्यम बना कर आज जो मैं बाबा से कहने जा रहा हूँ, वह देश की वर्तमान आर्थिक दुर्दशा को, व सामाजिक विषमता को दूर करने की दिशा में एक मील का पत्थर हो सकता है - अगर बाबा मेरे इस सुझाव को गम्भीरता से लें। 

निस्संदेह व्यक्तिगत तौर पर बाबा रामदेव और उनके मेधावी व कर्मठ सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने कल्पनातीत भौतिक सफलता प्राप्त कर ली है। पर भौतिक सफलता या चाहत की कभी कोई सीमा नहीं होती। अपनी पत्नी को 600 करोड़ रुपये का हवाई जहाज़ भेंट करने वाला उद्योगपति भी कभी भी अपनी आर्थिक उपलब्धियों से संतुष्ट नहीं होता। पर केसरिया वेश धारी सन्यासी तो वही होता है, जो अपनी भौतिक इच्छाओं को अग्नि में भस्म करके समाज के उत्थान के लिए स्वयं को होम कर देता है। इसलिए बाबा रामदेव को अब एक नया इतिहास रचना चाहिए। 

अपनी आर्थिक शक्ति व प्रबंधकीय योग्यता का उपयोग हर गाँव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए करना चाहिए। यह तो बाबा और आचार्य जी भी जानते हैं कि आयुर्वेदिक या खाद्यान के उत्पादनों की गुणवत्ता  बड़े स्तर के कारख़ानों में नहीं बल्कि कुटीर उद्योग के मानव श्रम आधारित उत्पादन के तरीक़ों से बेहतर होती है। बैलों की मंथर गति से, सामान्य ताप पर, कोल्हू में पेरी गई सरसों का तेल, जिसे कच्ची घानी का तेल कहते हैं, कारख़ानों में निकाले गए तेल से कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ होता है। इसी तरह दुग्ध उत्पादन हो, खाद्यान हो, मसाले हों, प्रसाधन हों या अन्य वस्तुएँ हों, अगर इनका उत्पादन विकेंद्रियकृत प्रणाली से व गाँव की आवश्यकता के अनुरूप हर गाँव में होना शुरू हो जाए तो करोड़ों ग़रीबों को रोज़गार भी मिलेगा और गाँव में आत्मनिर्भरता भी आएगी। जिसे अंग्रेज़ी हुकूमत ने 190 सालों में अपने व्यावसायिक लाभ के लिए बुरी तरह से ध्वस्त कर दिया था। विकेंद्रीकृत व्यवस्था  से गाँव की लक्ष्मी फिर गाँव को लौटेगी। स्पष्ट है कि तब लक्ष्मी जी की कृपावृष्टि पातंजलि के साम्राज्य  पर नहीं होगी, बल्कि उन ग़रीबों के घर पर होगी, जो भारी यातनाएँ सहते हुए, महानगरों से लुट-पिट कर और सेकडों किलोमीटर पैदल चल कर रोते-कलपते फिर से रोज़गार की तलाश में अपने गाँव लौट कर गए हैं। क्या सन्यास वेशधारी बाबा रामदेव लक्ष्मी देवी को अपने द्वार से लौटा कर इन गाँवों की ओर भेजने का पारमार्थिक कदम उठाने का साहस दिखा पाएँगे ?