खाद्य मिलावट कोई नई समस्या नहीं है। प्राचीन काल से ही व्यापारी लाभ के लिए अनाज में पत्थर, दूध में यूरिया और मसालों में कृत्रिम रंग मिलाते आए हैं। लेकिन 2025 में यह महामारी का रूप ले चुकी है। खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अनुसार, त्योहारों के मौसम में मिलावट के मामले 30 प्रतिशत तक बढ़ जाते हैं। दूध, घी, पनीर, मावा, तेल और मसाले – ये रोज़मर्रा के सामान अब ज़हर की तरह बन चुके हैं। हाल ही में गुजरात में 198 दूध और पनीर के नमूने असुरक्षित पाए गए, जिनमें स्टार्च और सिंथेटिक फैट मिले थे। आगरा में 2 क्विंटल मिलावटी खोआ नष्ट किया गया, जबकि सूरत के पास 745 किलो नकली पनीर जब्त हुआ। तिरुपति के प्रसिद्ध लड्डू के घी मिलावट कांड में सीबीआई ने 12 लोगों को गिरफ्तार किया, जहां वनस्पति तेल, बीटा कैरोटीन और एसिड एस्टर जैसे रसायनों से घी बनाया जा रहा था। पतंजलि का घी भी गुणवत्ता परीक्षण में फेल हो गया, जिसमें मिलावट की पुष्टि हुई।
ये मामले सिर्फ़ तो सिर्फ़ संकेत हैं। जम्मू-कश्मीर में 2025 में 13,944 निरीक्षण हुए, जिनमें 21 आपराधिक मामले दर्ज किए गए। लखनऊ में केएफसी, मैकडॉनल्ड्स और हल्दीराम जैसे ब्रांडों के 36 नमूने फेल हुए, जहां बैक्टीरिया और बासी सामग्री मिली। सोशल मीडिया पर हाल के पोस्ट्स में गोरखपुर की फैक्ट्री से 40 क्विंटल नकली पनीर (पोस्टर कलर, डिटर्जेंट और सल्फ्यूरिक एसिड से बना) जब्त होने की बात है, जो सड़क किनारे के ठेलों पर बिकता था। पाली में 4660 किलो मिलावटी मावा, देवली में मूंगफली तेल के नमूने – ये उदाहरण बताते हैं कि मिलावट अब छोटे-बड़े सभी स्तरों पर फैल चुकी है।
अब सवाल है कि हम कितने प्रभावित होंगे? मिलावट का असर तत्काल और दीर्घकालिक दोनों है। तत्काल प्रभाव में उल्टी, दस्त, फूड पॉइज़निंग शामिल हैं, जैसा कि हाल के कफ सिरप कांड में 14 बच्चों की मौत हुई। लेकिन दीर्घकालिक खतरा और भी भयानक है। कैडमियम, पेस्टीसाइड्स और मेटानिल येलो जैसे रसायन कैंसर, लीवर-किडनी डैमेज और हृदय रोग का कारण बनते हैं। यूरोपीय संघ ने 2019-2024 के बीच 400 से ज़्यादा भारतीय उत्पादों को कैंसरकारी पदार्थों से दूषित पाया, जिनमें मसाले, मछली और फल शामिल थे। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के अनुसार, मिलावट से जुड़े गैर-संक्रामक रोगों में 20 प्रतिशत वृद्धि हुई है। दक्षिण भारत में दूध और फलों में मिले रसायन गॉलब्लैडर कैंसर और ड्रॉप्सी के मामलों को बढ़ा रहे हैं। बैकरी आइटम्स में कृत्रिम रंगों से कैंसर का जोखिम दोगुना हो गया है।
वायरल पोस्ट में दावा किया गया कि 15 साल में सबको कैंसर होगा – यह अतिशयोक्ति है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कभी ऐसा नहीं कहा कि 87 प्रतिशत भारतीयों को मिलावटी दूध से कैंसर होगा। लेकिन समस्या गंभीर है। फ्रंटलाइन पत्रिका के अनुसार, मिलावट से क्रॉनिक डिज़ीज़ेज़ में उछाल आया है, खासकर कैंसर और कार्डियोवस्कुलर डिसऑर्डर में। भारत पहले से ही एशिया में कैंसर के मामलों में तीसरा सबसे बड़ा देश है, और मिलावट इसे और बढ़ावा दे रही है। ग्रामीण इलाकों में जहां जैविक खेती कम है, प्रभाव ज़्यादा पड़ता है। शहरीकरण और प्रोसेस्ड फूड के बढ़ते उपयोग से मध्यम वर्ग सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहा है।
चीन वाले वीडियो पर बात करें तो वह एआई-जनरेटेड फेक है। टिकटॉक पर मूल वीडियो को एआई कंटेंट के रूप में चिह्नित किया गया था और फैक्ट-चेकर्स ने असंगतताओं (जैसे अस्वाभाविक रंग परिवर्तन) की पुष्टि की। लेकिन यह वीडियो वास्तविक समस्या को उजागर करता है। चीन में अंगूरों पर 24 बार पेस्टीसाइड स्प्रे और चेरीज़ से आईसीयू के मामले सामने आए हैं। वैश्विक व्यापार में भारतीय निर्यात भी प्रभावित हो रहा है। लेकिन घरेलू स्तर पर समस्या ज़्यादा चिंताजनक है, जहां नियमन कमज़ोर है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिलावट को ‘सामाजिक अपराध’ कहा और तीन नई माइक्रोबायोलॉजी लैब्स शुरू कीं। एफएसएसएआई ने त्योहारों पर विशेष अभियान चलाए, लेकिन सज़ाएं कमज़ोर हैं। रामेश्वरम कैफे मामले में कीड़े मिलने पर एफआईआर दर्ज हुई, लेकिन मालिकों को सज़ा मिलना मुश्किल। हज़ारीबाग में डेयरी सील हुई, लेकिन दोबारा खुलने का डर रहता है। समस्या यह है कि दंड अपर्याप्त हैं – अधिकतम 10 लाख का जुर्माना या 7 साल की सज़ा, लेकिन लागू नहीं होता। लैब्स की कमी से टेस्टिंग देरी से होती है।
ऐसे में सरकार को क्या करना चाहिए? सबसे पहले, सख्त कानून: मिलावट पर न्यूनतम 20 साल की सज़ा और संपत्ति जब्ती। एफएसएसएआई को स्वायत्त बनाएं, न कि स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन। हर जिले में मोबाइल टेस्टिंग वैन और एआई-आधारित निगरानी शुरू करें। जैविक खेती को सब्सिडी दें – गोबर से उर्वरक बनाने पर प्रोत्साहन। जन जागरूकता अभियान चलाएं: स्कूलों में मिलावट की पहचान सिखाएं। आयातित फलों पर सख्त जांच। और सबसे ज़रूरी, भ्रष्टाचार पर प्रहार – निरीक्षक जो रिश्वत लेते हैं, उन्हें बर्खास्त करें।
वायरल पोस्ट्स भय पैदा करते हैं, लेकिन वे सच्चाई की ओर इशारा करते हैं। मिलावट सिर्फ़ व्यापारिक लालच नहीं, बल्कि जन स्वास्थ्य पर हमला है। अगर 15 साल में कैंसर न फैले, तो इसके लिए सरकार, उद्योग और उपभोक्ता सबको जागना होगा। घर पर टेस्ट किट्स इस्तेमाल करें, ब्रांडेड उत्पाद चुनें और शिकायत दर्ज कराएं। अन्यथा, हमारा भोजन ही हमारी कब्र बन जाएगा। समय आ गया है – मिलावट रोकें, जीवन बचाएं!




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