बराक ओबामा गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बनने आ रहे
हैं | इसी से भारत में काफी उत्साह है | भावुक लोग यह मान बैठे हैं कि अमरीका ने
अपनी विदेश नीति में आमूलचूल परिवर्तन करके पाकिस्तान की तरफ से मुंह मोड़ लिया है
| अब वो केवल भारत का हित साधेगा | लेकिन ऐसा सोचना भयंकर भूल है | अमरीका की
विदेश नीति भावना से नहीं ज़मीनी हकीकत से तय होती है | वह अपनी पाकिस्तान और अफगनिस्तान
नीति में जल्दबाजी में कोई परिवर्तन नहीं करने जा रहा |
यही बात जापान पर भी लागू होती है | भारत मान बैठा था कि
जापान चीन के मुकाबले भारत का साथ देकर भारत को मजबूत करेगा | पर अचानक जापान ने
अपना रवैया बदल दिया | जापान ने आजतक भारत के पूर्वोतर राज्यों, जिनमे अरुणाचल
शामिल है, को विवादित क्षेत्र नहीं माना | इसीलिए उसने पूर्वोतर राज्यों में आधारभूत
ढांचा जैसे सीमा के निकट सड़क, रेल, पाईप लाइन डालने जैसे काम करने का वायदा किया
था | भारत खुश था कि इस तरह जापान भारत की मदद करके अपने दुश्मन चीन से परोक्ष रूप
में युद्ध करेगा | पर ऐसा नहीं हुआ | जापान ने अचानक अरुणाचल को विवादित क्षेत्र
मान लिया है और यह कह कर पल्ला झाड लिया कि विवादित क्षेत्र में वह कोई विकास
कार्य नहीं करेगा | दरअसल जापान को समझ में आया कि वह दूसरों की लड़ाई में खुद के
संसाधन क्यों झोंके | जबकि उसके पास टापुओं के स्वामित्व को लेकर पहले ही चीन से
निपटने के कई विवादित मुद्दे हैं | इस तरह हमारी उम्मीदों पर पानी फिर गया |
जबकि होना यह चाहिए था कि हम अपनी सीमाओं पर आधारभूत
ढांचा खुद ही विकसित करते | जिससे हमें दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता | उधर चीन
ने यही किया | 1986-89 की अरुणाचल की घटना के
बाद, जब हमारी फौजों ने 1962 में मैकमोहन लाइन के पास
वाले छोड़ दिए गये क्षेत्रों पर पुनः कब्ज़ा कर लिया तो चीन को एक झटका लगा | यह
कब्ज़ा अधिकतर वायु सेना की भारी मदद से हुआ और आर्थिक दृष्टि से देश को काफी महंगा
पड़ा | जिसका प्रभाव हमारी अर्थवयवस्था पर पड़ा और हमारी विदेशी मुद्रा के कोष कम हो
गए | चीन नहीं चाहता था कि भारत ऐसी क्षमता का पुनः प्रदर्शन करे | इसलिए उसने तिब्बत
में सीमा के किनारे आधारभूत ढाँचा तेज़ी से विकसित किया | पठारी क्षेत्र होने के
कारण उसके लिए यह करना आसान था | जबकि अरुणाचल का पहाड़ कमज़ोर होने के कारण वहां लगातार
भूस्खलन होते रहते हैं जिससे सड़क मार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं और वहां की भौगोलिक
दशा भी हमारे जवानों के लिए बहुत आक्रामक हैं | जहां अरुणाचल की सीमा की दूसरी तरफ
आधारभूत ढांचे के कारण चीनी सेना पूरे साल डटी रहते है वहीं हमारे जवानों को इस
सीमा पर जाकर अपने को मौसम के अनुकूल ढालने की कवायत करनी होती है | जिससे हमारी
प्रतिक्रिया धीमी पड़ जाती है |
दरअसल हमारे राजनेता विदेश नीति को घरेलू राजनीति और
मतदाता की भावनाओं से जोड़कर तय करते हैं, ज़मीनी हकीकत से नहीं | इसलिए हम बार-बार
मात खा जाते हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इस बात का विशेष ध्यान रखना
होगा कि वे जो भी कहें उसमे ज़मीनी सच्चाई और कूटनीति का संतुलित सम्मिश्रण हो |
अब सीमा पर आधारभूत ढांचे के विकास की ही बात को लें तो
हमारे नेताओं के हाल में आये बयान इस बात को और स्पष्ट कर देंगे | जहां चीन ने यही
काम करते समय दुनिया के किसी मंच पर कभी यह नहीं कहा कि वह ऐसा भारत के खिलाफ अपनी
सीमा को सशक्त करने के लिए कर रहा है| उसने तो यही कहा कि वह अपने सीमान्त
क्षेत्रों का आर्थिक विकास कर रहा है | जबकि भारत सरकार के हालिया बयानों में यही
कहा गया कि सीमा पर रेल या सड़कों का जाल चीन से निपटने के लिए किया जा रहा है | यह
भड़काऊ शैली है जिससे लाभ कम घाटा ज्यादा होता है |
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