जब से बाबा रामदेव के पातंजलि आयुर्वेद का कारोबार दिन
दूना और रात चैगुना बढ़ना शुरू हुआ है तब से उनसे ईष्र्या करने वालों की और उनकी आलोचना
करने वालों की तादात भी काफी बढ़ गयी है। इनमें कुछ दलों के राजनेता भी शामिल है। इनका
आरोप है कि बाबा प्रधानमंत्री मोदी की मदद से अपना आर्थिक साम्राज्य बढ़ा रहे हैं। उनके
उत्पादन गुणवत्ता में खरे नही हैं। उन्होंने विज्ञापन बांटकर मीडिया का मुंह बंद कर
दिया है। वे राज्यों में भारी मात्रा में जमीन हड़प रहे हैं।
नेताओं के अलावा संत समाज के कुछ लोग भी बाबा रामदेव की
आर्थिक प्रगति देखकर दुखी हैं। इनका आरोप है कि कोई योगी व्यापारी कैसे हो सकता है?
कोई व्यापारी योगी कैसे हो सकता है?
इसमें विरोधाभास है। बाबा केसरिया
बाना पहनकर उसका अपमान कर रहे हैं। केसरिया बाना तो वह सन्यासी पहनता है जिसकी सारी
भौतिक इचछाऐं अग्नि की ज्वालाओं में भस्म हो चुकी हों। जबकि बाबा रामदेव तो हर इच्छा
पाले हुए है। उनमें लाभ, लोभ व प्रतिष्ठा तीनों पाने की लालसा कूट-कूट कर भरी है।
ऐसे आरोप लगाने वाले नेताओं से मैं पूछना चाहता हूं कि
सत्तर और अस्सी के दशक में श्रीमती इंदिरा गांधी के योग गुरू स्वामी धीरेन्द्र ब्रह्मचारी
ने जब दिल्ली में, गुड़गाव के पास, जम्मू में और कश्मीर के उधमपुर के पास पटनीटॉप में सैकड़ों
करोड़ का साम्राज्य अवैध कमाई से खड़ा किया था, हवाई जहाजों के बेड़े खरीद लिए थे,
रक्षादृष्टि से वर्जित क्षेत्र में
सड़कें, होटल,
हवई अड्डे बना लिये थे,
तब ये नेता कहां थे?
क्या ये कोई अपना कोई बयान दिखा सकते
हैं जो उन्होंने उस वक्त मीडिया को दिया हो? जबकि रामदेव बाबा का साम्राज्य तो वैध उत्पादन और चिकित्सा
सेवाओं को बेचकर कमाये गये मुनाफे से खड़ा किया गया है। धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का साम्राज्य
तो अंतरराष्ट्रीय रक्षा सौदों में दलाली से बना था। ये बात उस समय की राजनैतिक गतिविधियों
पर नजर रखने वाले बताते थे।
रही बात बाबा रामदेव के उत्पादनों की गुणवत्ता की तो ये
ऐसा मामला है जैसे ‘मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी’। जब ग्राहक संतुष्ट है तो
दूसरों के पेट में दर्द क्यों होता है? मै भी पूरें देश में अक्सर व्याख्यान देने जाता रहता हूं
और होटलों के बजाय आयोजकों के घरों पर ठहरना पसंद करता हूं। क्योंकि उनके घर का वातावरण
मुझे होटल से ज्यादा सात्विक लगता है। इन घरों के बाथरूम में जब मैं स्नान को जाता
हूं,
तो यह देखकर आश्चर्य होता है कि जहां
पहले विदेशी शैम्पू, साबुन, टूथपेस्ट आदि लाईन से सजे रहते थे,
वहां आज ज्यादातर उत्पादन पातंजलि
के ही दिखाई देते है। पूछने पर घर के सदस्य बताते हैं कि वे बाबा रामदेव के उत्पादनों
से कितने संतुष्ट है। क्या ये बात हमारे लिए गर्व करने की नहीं है कि एक व्यक्ति ने
अपने पुरूषार्थ के बल पर विदेशी कंपनियों के सामने इतना बड़ा देशी साम्राज्य खड़ा कर
दिया? जिससे
देश में रोजगार भी बढ़ रहा है और देश का पैसा देश में ही लग रहा है। सबसे बड़ी बात तो
ये कि बाबा के उत्पादन बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादन के मुकाबले कहीं ज्यादा किफायती
दाम पर मिलते हैं। वे भी तब जबकि बाबा हर टीवी चैनल पर हर वक्त विज्ञापन देते हैं।
यहां भी बाबा ने विज्ञापन ऐजेंसियों को मात दे दी। उन्हें
किसी मॉडल की जरूरत नहीं पड़ती। वे खुद ही माँडल बन जाते हैं। इससे सबसे ज्यादा सम्मान
तो महिलाओं का बढ़ा है क्योंकी अब तक् होता यह आया था कि साबुन और शैम्पू का ही नहीं
बल्कि मोटरसाइकिल और मर्दानी बनियान तक का विज्ञापन किसी अर्धनग्न महिला को दिखाकर
ही बनाया जाता था। इस बात के लिए तो भारत की आधी आबादी यानी मातृशक्ति को मिलकर बाबा
का सम्मान करना चाहिए।
रही बात संत बिरादरी में कुछ लोगों के उदरशूल की। तो क्या
जरी के कपड़े पहनकर, आभूषणों से सुसज्जित होकर, मंचों पर विवाह पंडाल जैसी सजावट
करवाकर, भागवत की नौटंकी करने वाले धर्म का व्यापार नहीं कर रहे?
क्या वे शुकदेव जी जैसे वक्ता हैं?
या हम सब परीक्षित महाराज जैसे विरक्त
श्रोता हैं? धर्म
का व्यापार तो सभी धर्म वाले करते हैं। जो नहीं करते वे हिमालय की कंदराओं में भजन
करते हैं। उन्हें होर्डिंग और टीवी पर अपने विज्ञापन नहीं चलाने पड़ते। कोई कथा बेचता
है,
तो कोई दुखःनिवारण का आर्शावाद बेच रहा है। बाबा तो कम से कम स्वस्थ रहने का ज्ञान
और स्वस्थ रहने के उत्पादन बेच रहे हैं। इसमें कहीं कोई छलावा नहीं। अगर किसी उत्पादन
में कोई कमी पाई जाती है तो उसके लिए कानून बने है।
कुल मिलाकर बाबा ने अभूतपूर्व क्षमता का प्रदर्शन किया
है। किसी ने उन्हें उंगली पकड़कर खड़ा नहीं किया। वे अपनी मेहनत से खड़े हुए है। उनके
साथ आचार्य बालकृष्ण जैसे तपस्वियों का तप जुड़ा है और उन करोड़ों लोगों का आर्शीवाद
जिन्हें बाबा से शारीरिक या मानसिक लाभ मिला है। इनमे हर राजनैतिक विचारधारा के लोग
शामिल हैं। ऐसे बाबा रामदेव को तो भारत का रत्न माना जाना चाहिए।