दुनिया का सबसे लोकप्रिय और धनी हिन्दू मन्दिर तिरूपति बालाजी गंभीर विवादों में घिरा है। सारी दुनिया से करोड़ों भक्त आन्ध्र प्रदेश में स्थित तिरूपति बालाजी के दर्शन करने पूरे वर्ष आते हैं। लगभग 6 सौ करोड़ रूपये का यहाँ वर्षभर में चढ़ावा चढ़ता है। मन्दिर की कुल सम्पदा लगभग एक लाख करोड़ रूपये है। दुनिया के इस सबसे धनी मन्दिर का प्रबन्धन आन्ध्र प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित एक न्यास ‘तिरूपति तिरूमला देवस्थानम्’ (टी.टी.डी.) द्वारा किया जाता है। ट्रस्ट द्वारा यात्रियों की सुविधा के लिए और मन्दिर के रख-रखाव के लिए जो व्यवस्थाऐं की गयीं हैं, उनकी प्रशंसा यहाँ आने वाला हर व्यक्ति करता रहा है। खासकर जब वे इन व्यवस्थाओं की तुलना देश के बाकी हिन्दू मन्दिरों से करते हैं, तो निश्चय ही इस मन्दिर की श्रेष्ठता सिद्ध होती है।
आज कल लगभग सवा लाख यात्री औसतन यहाँ प्रतिदिन आते हैं। यानि सालभर में तीन चार करोड़। अगले कुछ वर्षों में यह संख्या तेजी से दोगुनी हो जाऐगी। पर इस बढ़ते जनसैलाब को संभालने की टी.टी.डी. की कोई तैयारी दिखाई नहीं देती। आज भी बाहर से आने वाले आम यात्रियों को सिर मुंडवाने से लेकर दर्शन की टिकट, ठहरने के कमरे की बुकिंग आदि के लिए टी.टी.डी. के कर्मचारियों को दोगुनी रिश्वत देनी पड़ती है। इसके बाद भी गारण्टी इस बात की नहीं कि आधा सैकण्ड का भी दर्शन मिल सके। आश्चर्य की बात यह है कि ऊपर से नीचे तक व्याप्त इस भ्रष्टाचार को रोकने की कोई कोशिश नहीं की जा रही। भ्रष्टाचार में पकड़े गए कर्मचारी और अधिकारी कुछ दिन बाद उसी जगह फिर तैनात हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस मन्दिर के बोर्ड का अध्यक्ष एक शराब माफिया बना दिया गया था। भ्रष्टाचार के इस युग में भगवान का दरबार उससे अछूता नहीं है, यह बात तो मान भी ली जाए, पर पैसा कमाने की हवस में टी.टी.डी. के अधिकारी लगातार इस मन्दिर की परपंराओं, मान्यताओं, व्यवस्थाओं व भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। जिससे भक्त और संत बहुत दुखी हैं। सबसे ताजा उदाहरण यह है कि मन्दिर के सामने बने एक हजार खम्बों के ऐतिहासिक मण्डप को ध्वस्त करके पहाड़ के पीछे नाले में फैंक दिया गया। विजय नगर साम्राज्य के राजा द्वारा सन् 1454 ई0 में बनाए गए इस मण्डप में वैकुण्ठ एकादशी के दस दिन पहले और दस दिन बाद भारी उत्सव मनता था। इस मण्डप के टूट जाने से यह सुन्दर परंपरा नष्ट हो गयी।
यह बात दूसरी है कि इस विध्वंस के लिए जिम्मेदार रहे पी0वी0आर0के0 प्रसाद आज अपना अपराध कबूल करते हैं। पर यह तो एक उदाहरण है। मन्दिर के पास स्थित पौराणिक पुष्कर्णी भी नष्ट कर दी गई। इसी तरह तिरूमला पर्वत पर चढ़कर आने वाले यात्री जिस पौराणिक द्वार से प्रवेश करते थे और जिसका गहरा आध्यात्मिक महत्व था, उस द्वार को भी नष्ट कर दिया गया। तिरूमला पर्वत पर पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार हजारों तीर्थस्थल हैं। पर आधुनिकीकरण की आड़ में टी.टी.डी. के बुद्धिहीन अधिकारी धीरे-धीरे इन सभी धरोहरों को नष्ट करते जा रहे हैं। उनका हर काम भगवान बालाजी को नोट छापने की मशीन मानकर होता है
सब जानते हैं कि सगुण उपासना में मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को पत्थर की साधारण मूर्ति नहीं माना जा सकता। उन्हें साक्षात जीवधारी की तरह जागृत भगवान माना जाता है। इसलिए उनके प्रातः उठने से लेकर रात्रि शयन तक की व्यवस्था एक महाराजाधिराज की तरह की जाती है। जिसमें अभिषेक, श्रृंगार, आरती और अनेक बार अनेक तरह के भोग, दोपहर का विश्राम और रात्रि का शयन तक शामिल होता है। देशभर के मन्दिरों में यही व्यवस्था है। पर संत समाज और भक्त समाज को इस बात की बहुत पीड़ा है कि धनलोलुप टी.टी.डी. ने वैंक्टेश्वर बालाजी के शयन का समय भी समाप्त कर दिया है। उन्हें रात्रि में ढेड़-दो बजे तक जगाए रखा जाता है और सुबह ढाई-तीन बजे से फिर जगा दिया जाता है। जबकि इसकी बेहतर और वैकल्पिक व्यवस्थाऐं की जा सकती हैं।
चूंकि टी.टी.डी. विशिष्ट व्यक्तियों जिनमें राजनेता, नौकरशाह और उद्योगपति ही नहीं, फिल्म, मीडिया और खेल के सितारे भी शामिल हैं, उनको वी.आई.पी. व्यवस्था में दर्शन करवाता है। इसलिए कोई इसके खिलाफ आवाज उठाना नहीं चाहता। पर सच्चे संत अपनी परंपराओं और भक्तों की भावनाओं से हो रहे इस खिलवाड़ से मूक दृष्टा बने नहीं रह सकते। आन्ध्र प्रदेश के ऐसे ही एक उच्च कोटि के विद्वान, समाजसेवी किन्तु क्रंातिकारी युवा संत श्री श्री श्री त्रिदण्डी चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयार स्वामी जी ने टी.टी.डी. की विध्वंसकारी नीतियों के विरूद्ध आवाज बुलन्द करने का संकल्प लिया। सबसे पहले तो उन्होंने अधिकारियों से वार्ता कर उन्हें सद्बुद्धि देने का प्रयास किया। जब उनकी नहीं सुनी गई, तो अपने प्रिय शिष्य डा. रामेश्वर राव जैसे अन्य सहायकों की मदद से स्वामी जी ने नाले में पड़े उन ऐतिहासिक एक हजार खम्बों को बाहर निकलवाया और उन्हें उचित स्थान पर पहुँचाया ताकि भविष्य में इस मण्डप का पुर्ननिर्माण हो सके।
पूरे आन्ध्र प्रदेश के लोगों से भावनात्मक रूप से जुडे जीयार स्वामी जी ने एक लाख आन्दोलनकारी भक्तों के साथ तिरूमला पहाड़ पर चढ़ने की चेतावनी दे दी, तो प्रशासन में हड़कम्प मच गया। उन्हें समझा-बुझाकर रोका गया। पर स्वामी जी चुप बैठने वाले नहीं है। वे आन्ध्र प्रदेश के गांव-गांव मे जाकर अलख जगा रहे हैं ताकि तिरूपति मन्दिर में हो रही लूट को रोका जा सके और विध्वंसक नीतियों को बन्द किया जा सके। इस आन्दोलन को आन्ध्र प्रदेश में भारी समर्थन मिलने लगा है। पर भारत का कोई तीर्थ ऐसा नहीं, जिसके उपासक उसी प्रांत में रहने वाले हों। सारे भारत से भक्त तिरूपति जाते हैं। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि जब इन अव्यवस्थाओं और बेईमानियों का समाचार देश के अन्य हिस्सों में पहुँचेगा तो पूरे देश का भक्त समाज टी.टी.डी. की नीतियों के विरोध में उठ खड़ा होगा।
आज कल लगभग सवा लाख यात्री औसतन यहाँ प्रतिदिन आते हैं। यानि सालभर में तीन चार करोड़। अगले कुछ वर्षों में यह संख्या तेजी से दोगुनी हो जाऐगी। पर इस बढ़ते जनसैलाब को संभालने की टी.टी.डी. की कोई तैयारी दिखाई नहीं देती। आज भी बाहर से आने वाले आम यात्रियों को सिर मुंडवाने से लेकर दर्शन की टिकट, ठहरने के कमरे की बुकिंग आदि के लिए टी.टी.डी. के कर्मचारियों को दोगुनी रिश्वत देनी पड़ती है। इसके बाद भी गारण्टी इस बात की नहीं कि आधा सैकण्ड का भी दर्शन मिल सके। आश्चर्य की बात यह है कि ऊपर से नीचे तक व्याप्त इस भ्रष्टाचार को रोकने की कोई कोशिश नहीं की जा रही। भ्रष्टाचार में पकड़े गए कर्मचारी और अधिकारी कुछ दिन बाद उसी जगह फिर तैनात हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस मन्दिर के बोर्ड का अध्यक्ष एक शराब माफिया बना दिया गया था। भ्रष्टाचार के इस युग में भगवान का दरबार उससे अछूता नहीं है, यह बात तो मान भी ली जाए, पर पैसा कमाने की हवस में टी.टी.डी. के अधिकारी लगातार इस मन्दिर की परपंराओं, मान्यताओं, व्यवस्थाओं व भक्तों की भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। जिससे भक्त और संत बहुत दुखी हैं। सबसे ताजा उदाहरण यह है कि मन्दिर के सामने बने एक हजार खम्बों के ऐतिहासिक मण्डप को ध्वस्त करके पहाड़ के पीछे नाले में फैंक दिया गया। विजय नगर साम्राज्य के राजा द्वारा सन् 1454 ई0 में बनाए गए इस मण्डप में वैकुण्ठ एकादशी के दस दिन पहले और दस दिन बाद भारी उत्सव मनता था। इस मण्डप के टूट जाने से यह सुन्दर परंपरा नष्ट हो गयी।
यह बात दूसरी है कि इस विध्वंस के लिए जिम्मेदार रहे पी0वी0आर0के0 प्रसाद आज अपना अपराध कबूल करते हैं। पर यह तो एक उदाहरण है। मन्दिर के पास स्थित पौराणिक पुष्कर्णी भी नष्ट कर दी गई। इसी तरह तिरूमला पर्वत पर चढ़कर आने वाले यात्री जिस पौराणिक द्वार से प्रवेश करते थे और जिसका गहरा आध्यात्मिक महत्व था, उस द्वार को भी नष्ट कर दिया गया। तिरूमला पर्वत पर पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार हजारों तीर्थस्थल हैं। पर आधुनिकीकरण की आड़ में टी.टी.डी. के बुद्धिहीन अधिकारी धीरे-धीरे इन सभी धरोहरों को नष्ट करते जा रहे हैं। उनका हर काम भगवान बालाजी को नोट छापने की मशीन मानकर होता है
सब जानते हैं कि सगुण उपासना में मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठित विग्रह को पत्थर की साधारण मूर्ति नहीं माना जा सकता। उन्हें साक्षात जीवधारी की तरह जागृत भगवान माना जाता है। इसलिए उनके प्रातः उठने से लेकर रात्रि शयन तक की व्यवस्था एक महाराजाधिराज की तरह की जाती है। जिसमें अभिषेक, श्रृंगार, आरती और अनेक बार अनेक तरह के भोग, दोपहर का विश्राम और रात्रि का शयन तक शामिल होता है। देशभर के मन्दिरों में यही व्यवस्था है। पर संत समाज और भक्त समाज को इस बात की बहुत पीड़ा है कि धनलोलुप टी.टी.डी. ने वैंक्टेश्वर बालाजी के शयन का समय भी समाप्त कर दिया है। उन्हें रात्रि में ढेड़-दो बजे तक जगाए रखा जाता है और सुबह ढाई-तीन बजे से फिर जगा दिया जाता है। जबकि इसकी बेहतर और वैकल्पिक व्यवस्थाऐं की जा सकती हैं।
चूंकि टी.टी.डी. विशिष्ट व्यक्तियों जिनमें राजनेता, नौकरशाह और उद्योगपति ही नहीं, फिल्म, मीडिया और खेल के सितारे भी शामिल हैं, उनको वी.आई.पी. व्यवस्था में दर्शन करवाता है। इसलिए कोई इसके खिलाफ आवाज उठाना नहीं चाहता। पर सच्चे संत अपनी परंपराओं और भक्तों की भावनाओं से हो रहे इस खिलवाड़ से मूक दृष्टा बने नहीं रह सकते। आन्ध्र प्रदेश के ऐसे ही एक उच्च कोटि के विद्वान, समाजसेवी किन्तु क्रंातिकारी युवा संत श्री श्री श्री त्रिदण्डी चिन्ना श्रीमन्नारायण रामानुज जीयार स्वामी जी ने टी.टी.डी. की विध्वंसकारी नीतियों के विरूद्ध आवाज बुलन्द करने का संकल्प लिया। सबसे पहले तो उन्होंने अधिकारियों से वार्ता कर उन्हें सद्बुद्धि देने का प्रयास किया। जब उनकी नहीं सुनी गई, तो अपने प्रिय शिष्य डा. रामेश्वर राव जैसे अन्य सहायकों की मदद से स्वामी जी ने नाले में पड़े उन ऐतिहासिक एक हजार खम्बों को बाहर निकलवाया और उन्हें उचित स्थान पर पहुँचाया ताकि भविष्य में इस मण्डप का पुर्ननिर्माण हो सके।
पूरे आन्ध्र प्रदेश के लोगों से भावनात्मक रूप से जुडे जीयार स्वामी जी ने एक लाख आन्दोलनकारी भक्तों के साथ तिरूमला पहाड़ पर चढ़ने की चेतावनी दे दी, तो प्रशासन में हड़कम्प मच गया। उन्हें समझा-बुझाकर रोका गया। पर स्वामी जी चुप बैठने वाले नहीं है। वे आन्ध्र प्रदेश के गांव-गांव मे जाकर अलख जगा रहे हैं ताकि तिरूपति मन्दिर में हो रही लूट को रोका जा सके और विध्वंसक नीतियों को बन्द किया जा सके। इस आन्दोलन को आन्ध्र प्रदेश में भारी समर्थन मिलने लगा है। पर भारत का कोई तीर्थ ऐसा नहीं, जिसके उपासक उसी प्रांत में रहने वाले हों। सारे भारत से भक्त तिरूपति जाते हैं। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि जब इन अव्यवस्थाओं और बेईमानियों का समाचार देश के अन्य हिस्सों में पहुँचेगा तो पूरे देश का भक्त समाज टी.टी.डी. की नीतियों के विरोध में उठ खड़ा होगा।
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