अरूणाचल से लेकर कश्मीर तक की सीमाओं पर भारत को पाकिस्तान और चीन के मार्फत घेरने की अमरीका की कूटनीति का परिणाम है, पाकिस्तान के सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी का ताजा बयान। देखने में यह बड़ा मनभावन लगता है। भारत के रक्षा राज्य मंत्री ने भी कूटनीतिक भाषा में इसका समर्थन किया है। 7 अप्रेल को सियाचीन में आए बर्फीले तूफान में पाकिस्तानी सेना ने अनेक सिपाही मारे गए। वहीं राहत कार्य देखने गए जनरल कयानी ने कहा कि पाकिस्तान और भारत दोनों को सियाचिन ग्लेशियर से फौजी जमावाड़ा हटा देना चाहिए। जिससे दुनिया के इस सबसे ऊँचे और जोखिम भरे रणक्षेत्र पर हो रहा खर्चा विकास कार्यों पर लग सके। दिल्ली ने भी इस बयान का स्वागत किया है। जबकि पाकिस्तान के अखबारों ने इस पर मिश्रित प्रतिक्रिया व्यक्त की है। सवाल है कि भारत और पाक के सम्बन्धों में मधुरता लाने के जो भी प्रयास अब तक दोनों देशों के चुने हुए नेताओं ने किए हैं, उनमें पलीता लगाने का काम पाकिस्तान का सैन्य नेतृत्व करता आया है। पाठकों को याद होगा कि जब भारत के गृहमंत्री पी0 चिदांबरम पाकिस्तान गए थे, तो हमने इसी कॉलम में लिखा था, ‘कयानी बिना वार्ता बेमानी’। कारण राजनैतिक निर्णयों को पाकिस्तान में तब तक लागू नहीं किया जा सकता जब तक उन्हें वहाँ की फौज और आई0एस0आई0 की स्वीकृति न मिले। फिर आज अचानक ऐसा क्या हो गया कि पाकिस्तान के जनरल की भाषा बदल गयी और वे मधुर सम्बन्धों और विकास की बात करने लगे?
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भारत की पश्चिमी, उत्तरी और पूर्वी सीमाऐं पाकिस्तान, चीन, नेपाल, वर्मा व बांग्लादेश से जुड़ी हुई हैं। सामरिक दृष्टि से यह सीमाऐं काफी महत्व की हैं। खासकर अमरीका के लिए। क्योंकि यहाँ उसकी दखल से उसे दोहरा लाभ है। एक तरफ तो वह चीन की सीमाओं पर अपना दबाव बनाये रख सकता है और दूसरी तरफ यहीं से रूस के खिलाफ अपनी पकड़ बनाए रख सकता है। इसलिए अमरीकी कूटनीतिज्ञ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन सीमा विवादों में भारी रूचि रखते हैं और इन विवादों का फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। अगर यह कहा जाए कि इन विवादों के पीछे अमरीका के अन्तर्राष्ट्रीय निहित स्वार्थ हैं, तो अतिश्योक्ति न होगी। इसलिए कयानी के ताजा बयान को बहुत महत्व देने की आवश्यकता नहीं है। अगर वास्तव में पाकिस्तान के सेना प्रमुख का हृदय परिवर्तन हो गया है, तो उन्हें भारत की पश्चिमी सीमाओं पर चले आ रहे अनावश्यक तनाव को कम करने की भी पहल करनी चाहिए। जिससे दोनों देशों के बीच नागरिक और व्यापारिक आदान-प्रदान सुगम हो सके। इसके साथ ही आई0एस0आई0 को नियन्त्रित करते हुए पाकिस्तान की भूमि पर पनप रहे आतंकवाद के अड्डों का सफाया करने की भी जोरदार पहल करनी चाहिए। पर ऐसा कुछ भी होने नहीं जा रहा। इसलिए कयानी के बयान का कोई गहरा मतलब निकालने की जरूरत नहीं है।
भारतीय उपमहाद्वीप के नागरिकों के लिए यह भारी दुख का विषय रहा है कि ब्रिटानी हुकूमत यहाँ से जाते-जाते मुल्क के दो टुकड़े करा गई। आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने वाले हिन्दू और मुसलमानों के बीच हमेशा के लिए नफरत का जहर बो गई। जिसका खामियाजा दोनों देशों के आवाम और अर्थव्यवस्था को आज तक भुगतना पड़ा रहा है। दोनों देशों के बीच तनाव और सैनिक प्रतिस्पर्धा को बनाये रखना और बढ़ाते रहना विकसित देशों के हथियारों के सौदागरों के लिए भारी मुनाफे का सौदा है। सब जानते हैं कि अमरीका जैसे लोकतांत्रिक देश की भी विदेश नीति ऐसे ही निहित स्वार्थ नियन्त्रित करते हैं। इसीलिए लोकतंत्र की आड़ में अमरीकी सरकार और उसकी सी0आई0ए0 जैसी एजेंसी पूरे वैश्विक पटल पर शतरंज के खेल खेला करती है और दुनिया के देशों को मोहरों की तरह भिड़ाया करती है। कयानी के बयान को इसी परिपेक्ष्य में देखने की जरूरत है।
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