26 नवम्बर, 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले की रात ए.टी.एस चीफ हेमंत करकरे की बुलेटप्रूफ जैकेट गायब हो गयी थी। यह समाचार सभी टीवी चैनलों पर बार-बार आता रहा। फिर अचानक चार दिन बाद यह बुलेटप्रूफ जैकेट मिल गयी। इतने संवेदनशील मामले में इससे बड़ा मजाक कोई हो नहीं सकता। जानकारों का कहना है कि जब श्री करकरे पर आतंकी गोली चली तो उनकी बुलेटप्रूफ जैकेट उसे झेल नहीं पायी। क्योंकि वह नकली थी और देश ने एक कर्तव्यनिष्ठ जाबांज अधिकारी को खो दिया। जानकारों का कहना है कि चार दिन बाद मिली बुलेटप्रूफ जैकेट वह नहीं थी जिसे करकरे ने हमले के समय पहना हुआ था। बल्कि यह बाद में उसी कोण से गोली चलाकर तैयार की गयी दूसरी जैकेट थी। चाहे इंदिरा गांधी के हत्यारों को पकड़े जाने के बाद भी मारने का हादसा हो या राजीव हत्याकांड के महत्वपूर्ण गवाह की पुलिस हिरासत में आत्महत्या का मामला हो या फिर करकरे की बुलेटप्रूफ जैकेट का, कभी सच सामने आ ही नही ंपाता। वर्षों जांच का नाटक चलता रहता है।
गृहमंत्रालय के ताजा हादसे के संदर्भ मंें यह बात महत्वपूर्ण है कि जिस आर. के. गुप्ता और उसकी पत्नी लवीना को गिरफ्तार किया गया है वे दोनों काफी अर्से से बुलेटप्रूफ जैकेटों का यह आर्डर लेने के लिए लगे हुए थे। उनका दावा था कि उनका माल सर्वश्रेष्ठ होने के बावजूद इसलिए परीक्षण में फेल कर दिया गया क्योंकि खरीदार मंडली किसी और को ठेका देना चाहती थी। इसलिए आर. के. गुप्ता ने गृहमंत्रालय के कुछ महत्पूर्ण अधिकारियों के खिलाफ उनके अनैतिक आचरण के कई प्रमाण और रिकार्डिंग इकठा कर ली थी। वे इसे लेकर दिल्ली के मीडिया सर्किल में घूम रहे थे। इसी बीच गृहमंत्रालय के अधिकारियों को भनक लग गयी और वे डर गये। पर उन्होंने होशियारी से आर. के. गुप्ता से डील करने का प्रस्ताव रखा। व्यापारी बुद्धि का व्यक्ति कोई योद्धा तो होता नहंीं जो एक बार जंग छेड़कर मैदान मेें टिका रहे। उसे तो पैसा कमाना होता है। लगता है इसी लालच में आर. के. गुप्ता फिसल गया और इन अधिकारियों के जाल में फंस गया। जहां तक उसके रिश्वत देने का मामला है तो यह अपराध करते हुए वह रंगे हाथ पकड़ा गया है। अगर अभियोग पक्ष अपना आरोप अदालत में सिद्ध कर पाता है तो उसे कानूनन सजा मिलेगी। पर साथ ही क्या यह भी जरूरी नहीं कि गृहमंत्रालय के अधिकारियों के विरूद्ध जो सबूत आर. के. गुप्ता लेकर घूम रहा था उसकी भी पूरी ईमानदारी से जांच की जाए। यह भी जांच की जाए कि बुलेटप्रूफ जैकेटों की खरीद के परीक्षण में जो प्रक्रिया अपनाई गयी वह पूरी तरह पारदर्शी थी या नहीं। अगर यह पता चलता है कि बेईमानी से, कम गुणवत्ता वाले निर्माता को यह ठेका दिया जा रहा था तो सांसदों, मीडिया और जागरूक नागरिकों को सवाल खड़े करने चाहिए। एक तरफ तो हम आतंकवाद और नक्सलवाद से निपटने के लंबे चौड़े दावे रोज टीवी पर सुनते हैं और दूसरी तरफ अपनी जान खतरे में डालने वाले गरीब माताओं के नौनिहाल सिपाहियों की जिंदगी के साथ घटिया माल लेकर इस तरह खिलवाड़ किया जाता है।
वैसे सरकारी ठेकों में बिना कमीशन तय किये केवल गुणवत्ता के आधार पर ठेका मिल जाता हो ऐसा अनुभव शायद ही किसी प्रांत या केन्द्र सरकार से व्यापारिक संबंध रखने वाले किसी व्यापारी का होगा। कमीशन के बिना सरकार में पत्ता भी नहंी हिलता। अभी पिछले ही दिनों हमने भारतीय पर्यटन विकास निगम लि0 की टैंडर प्रक्रिया में ऐसा ही एक घोटाला पकड़ा और उसे केंन्द्रीय सतर्कता आयोग को थमा दिया। आयोग के अधिकारियों ने जांच के बाद हमारे आरोप सही पाये और अब इस घोटाले में शामिल उच्च अधिकारियों के खिलाफ मेजर पैनल्टी यानी बड़ी सजा दिये जाने का प्रस्ताव किया गया है। सांप छछूदर वाली स्थिति है। आप कमीशन न दो तो ठेका नहीं मिलेगा। कमीशन दो तो भी गारंटी नहीं कि आपको ही मिलेगा। क्यांेकि कमीशन के अलावा भी अन्य कई बातें होती हैं जिनका ध्यान खरीदार मंडली के जहन में रहता है। इसलिए आपका उत्पादन सर्वश्रेष्ठ हो, कीमत भी मुनासिब हो तो भी गारंटी नहीं कि ठेका आपको मिलेगा।
आर. के. गुप्ता जैसे निर्माता तो अपनी बेवकूफी से कभी-कभी पकड़े जाते हैं पर सच्चाई यह है कि अगर सरकार से व्यापार करना है तो आप पारदर्शिता और गुणवत्ता की अपेक्षा नहीं कर सकते। ऐसे में जो पकड़ा जाए वो चोर और बच जाए वह शाह। सोचने वाली बात है कि भ्रष्टाचार के विरुद्ध तमाम संस्थायें और भाषणबाजी होने के बावजूद भ्रष्टाचार और तेजी से बढ़ रहा है। फिर जिसे व्यापार करना है वो क्या करे। महाराजा हरीशचन्द्र बनकर बनारस के मंणिकर्णिका घाट पर शवदाह का कर वसूले या हाकिमों को मोटे कमीशन देकर ठेके हासिल करे। जब तक इस मकड़जाल को खत्म नहीं किया जायेगा ऐसे हादसे होते रहेंगे। देशवासी तो रोजमर्रा की मंहगाई को लेकर ही रोते रहेंगे और घोटाले करने वाले करोड़ों-अरबों डकारते रहेंगे।
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