राष्ट्रमंडल खेलों के लिए दिल्ली ही नहीं आस-पास के पर्यटन क्षेत्रों की तरफ भी ध्यान दिया जा रहा है। पर अफरा-तफरी में किये गये प्रयासों से कोई ठोस नतीजे नहीं आ सकते। पैसे की बर्बादी होगी और स्थाई सुधार नहीं हो पायेगा। ‘अत्यूल्य भारत’ का नारा सैद्धांतिक रूप से भारत के लिए सटीक है। पर व्यवहारिक रूप से यह भारी विरोधाभास दिखाता है। अत्युल्य भारत का सपना संजोए जब कोई पर्यटक यहां आता है तो अव्यवस्थाओं के मकड़जाल में घबडा जाता है। यह तो भारत की सनातन आध्यात्मिक चेतना और सांस्कृतिक विविधता है जो उसे तमाम दिक्कतों के बावजूद भारत की ओर खींच लाती है। अगर कहीं व्यवस्थित और सुविधाजनकरूप से हम दुनियां के सामने अतुल्य भारत को प्रस्तुत कर सds तो भारत का पर्यटन उद्योग इतनी उंचाई पर चला जायेगा कि बड़े-बड़े कारोबारी पंडित दांतों तले उंगली दबा लेंगे। हा¡र्वड स्कूल आ¡फ मैनेजमेंट में भारत की इस अप्रत्याक्षित सफलता पर अध्ययन शुरू हो जायेंगे। ऐसा लक्ष्य प्राप्त करने के लिए पर्यटन नीति और विकास कार्यक्रमों में समन्वय और अनूठी सोच की जरूरत है। जिसके लिए चाहिए ऊर्जावान नेतृत्व जिसमें नौकरशाही के दकियानूसी तर्कजाल को तोड़ने की कुव्वत्त हो। जैसी कुव्वत राजीव गांधी ने दिखाई थी जब उन्होंने संचार और कम्प्यूटर करांति का सूत्रपात किया था। जिसका फायदा आज वो सब उठा रहे हैं जो तब उनका मजाक उड़ाते थे।
भारत की पर्यटन मंत्री कुमारी शैलजा युवा हैं और उत्साही भी। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि वे पर्यटन के क्षेत्र में एक नया इतिहास रpsगीं। पूरे भारत का एकसा विकास एक साथ अल्पकाल में मौजूदा हालतों में संभव नहीं है। पर पर्यटन की दृष्टि से भारत के महत्वपूर्ण भौगोलिक और सांस्कृति क्षेत्रों को छांटकर सम्पूर्णता के साथ विकसित करना संभव है। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे क्षेत्रों के विकास के लिए भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, पर्यटन व संस्कृति मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के एक-एक अधिकारी को साथ लेकर संबंधित राज्य के ऐसे ही अधिकारियों को साथ लेकर अलग-अलग एक्शन गु्रप बनाये जाएं। यह एक्शन गु्रप उस क्षेत्र में कार्यरत, समर्पित, स्वयंसिद्ध, किसी एक स्वयं सेवी संस्था को साथ लेकर उस क्षेत्र के विकास का मास्टर प्लान तैयार करे। जिसे लागू करने के लिए भारत सरकार के सभी मंत्रालय अपने मौजूदा कार्यक्रमों में से आवश्यक वित्त आवंटित कjs और प्रांतीय सरकार अपने मंत्रीमंडल में प्रस्ताव पास करके इन कार्यक्रमों को लागू करने का काम इसी संस्था को सौंपे जिसने उस क्षेत्र में अनूठे काम से सफलता के झंडे गाढ़े हों। क्योंकि निचली नौकरशाही के भ्रष्टाचार और लालफीताशाही के चलते काम कराना आसान नहीं होता।
इस तरह इस नये माडल से उस क्षेत्र के गांवों, सड़कों, वनों, जलाशयों, ऐतिहासिक भवनों आदि का समेकित जीर्णोद्धार और विकास करना संभव होगा। फिर चाहे कूड़े के निपटारे की समस्या हो या यातायात नियंत्रण की या पर्यटकों की सुरक्षा की, हर पक्ष पर एक सामूहिक सोच से काम किया जाए। तब उस क्षेत्र का जो स्वरूप निखर कर आयेगा वह अकल्पनीय होगा। इस मामले में कुमारी शैलजा को भारत के चार-पांच क्षेत्र चुनकर अगले तीन वर्षों में उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए। जिन राज्यों में उनके दल की सरकार है वहां उन्हें कोई दिक्कत नहीं आयेगी। पर जिन राज्यों में दूसरे दल की सरकारें भी हैं वहां भी उद्देश्य की पवित्रता केा देखते हुए ऐसा सहयोग हासिल कर पाना कुमारी शैलजा के लिए असंभव नहीं होगा।
आज तो यह हो रहा है कि पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र में एक सरकारी योजना सड़क बनाने की आती है और सड़के बन जाती हैं। सीवर लाइन डालने की योजना आती है तो बनी हुई सड़कें तोड़ कर सीवर लाइन डाली जाती है फिर सड़कें बनाई जाती हैं । एक योजना आती है पर्यटन विभाग के बेकार पड़े सरकारी भवनों को निजि हाथों में सौंपने की और दूसरी योजना में उसी क्षेत्र में पर्यटन की दृष्टि से ही कुछ कार्यक्रम चलाने के लिए भवन की आवश्यकता होती है जिसके लिए नया वित्तीय आवंटन हो जाता है। इसी तरह तोड़-फोड़ चलती रहती है। नतीजतन पर्यटन के लिए वह क्षेत्र आकर्षक बनने की बजाय हमेशा निर्माणाधीन भवन की तरह बेतरतीब और अस्त-व्यस्त पड़ा रहता है। उसकी यह दुर्दशा वर्षों तक बनी रहती है। स्वाभाविक है कि ऐसे माहौल में पर्यटक एक बार आ जाए तो दोबारा उधर रूख नहीं करेगा। जबकि भारत की सांस्कृतिक विरासत इतनी आकर्षक है कि वह बार-बार पर्यटक को अपनी ओर खींचने की सामथ्र्य रखती है। विदेशी पर्यटक ही क्यों आज तो देशी पर्यटक भी इतना सामर्थवान हो गया है कि उसे तीन सितारा से कम आतिथ्य तीर्थ स्थानों तक में भी स्वीकार्य नहीं। इसलिए पर्यटन के क्षेत्र में असीम संभावनायें हैं। देखना यह है कि कुमारी शैलजा इन्हें किस हद तक अमलीजामा पहना पाती हैं।
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