सब जानते हैं कि केन्द्र से चला एक रूपया गाँव के अंतिम आदमी तक पहुँचते-पहुँचते 14 पैसे रह जाता है। बीच का सारा पैसा केन्द्र से गाँव तक प्रशासनिक और दलाल तंत्र की जेब में चला जाता है। यह समस्या पंचवर्षीय योजनाओं के प्रारम्भ से ही अनुभव की जा रही है। बहुत आलोचना होती रही है। धरपकड़ और सतर्कता के सारे प्रयास विफल रहे हैं। जनता के आक्रोश की धारा मोड़ने के लिए राज्य सरकारें केन्द्र सरकार पर और केन्द्र सरकार राज्य सरकारों पर आरोप मढ़ती है। घाटे में आम आदमी ही रहता है। भ्रष्टाचार से निपटने का कोई कानून भी इस समस्या का हल नहीं खोज सकता, लोकपाल भी नहीं। अगर कानून बनाने से अपराधी डर जाते तो दुनिया में अपराध होते ही नहीं। कानून ढ़ेर सारे हैं, पर अपराधी उससे भी ज्यादा। ऐसे में क्या किया जाए? यह सवाल हमेशा से नियोजकों की चिन्ता का विषय रहा है।
कैश सब्सिडी को लाभार्थियों के खाते में सीधे ट्रांसफर करके इस समस्या का समाधान खोजा जा रहा है। पर इस पर कई सवाल उठ रहे हैं। जहाँ विपक्षी दल इसे सीधे-सीधे वोट के बदले नोट की रिश्वत मान रहे हैं, वहीं कुछ लोगों को संशय है कि इस योजना को लागू करने में बहुत दिक्कतें आऐंगी। जिनमें इसका दुरूपयोग भी शामिल है। जिस अंतिम स्तर के नागरिक के लिए यह सेवा शुरू की जा रही है, उसकी रोजी-रोटी और झोंपडी तक का ठिकाना नहीं होता। रोजगार की तलाश में बिचारों को अपना चूला हर कुछ दिन बाद उठाकर कहीं और ले जाना होता है। ऐसा आदमी कौन से बैंक में खाता खोलेगा और उसका संचालन कैसे करेगा, यह सवाल भी उठ रहा है। इसके जवाब में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा है कि इस काम के लिए सिर्फ बैंक से ही नहीं, बल्कि 25 लाख स्वयं महिला सहायता समूहों, 14 लाख आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं या फिर 8‐60 लाख आशा कार्यकर्ताओं और अन्य समूहों की सेवाएं भी ली लाएंगी।
फिलहाल केन्द्रीय वित्त मंत्री ने देश के 18 राज्यों के 51 जिलों में इस योजना को लागू करने की घोषणा की है। बाद में इसे पूरे देश पर लागू करने की बात कही है। इस कार्यक्रम में सरकार की 42 योजनाओं के पैसे को शामिल किया गया है। पर इस तरह केवल 21 लाख लोगों तक राहत पहुंचेगी जोकि देश की 122 करोड़ आबादी की तुलना में नगण्य है। इनमें भी ऐसी आबादी बहुत है जिसका न तो कोई बैंक खाता है और न ही उसके गांव मे कोई बैक। इस समस्या का हल ढ़ूढने के लिए आधार कार्ड बांट रही संस्था यू.आई.डी.ए.आई. ने उन व्यवसायी बैंकों से ग्रामीण क्षेत्रों में फौरन ए0टी0एम0 खोलने को कहा है जो इसके इच्छुक हों। पर ये बैंक अगले 6 महीने में भी ऐसा कर पायेगें, इसमें संदेह है। हो सकता है कि आने वाले वक्त में डाकखानों को भी इस योजना से जोडा जाये। क्योंकि डाकखानों का देश के ग्रामीण अंचलों में अच्छा जाल है।
खैर हर योजना के क्रियान्वयन से पहले संदेह तो व्यक्त किये ही जाते हैं। इसलिए इस योजना का भी मूल्यांकन भविष्य में ही होगा। पर इतना जरूर है कि अगर यह स्कीम सफल हो गयी तो समाज उत्थान के क्षेत्र में क्रान्तिकारी कदम होगा। पर क्या इसे रिश्वत माना जा सकता है? चूंकि यह योजना कांग्रेस सरकार आगामी लोकसभा चुनाव के 2 वर्ष पूर्व ही लेकर आयी है। इससे उसकी नीयत पर शक व्यक्त किया जा रहा है। पर सवाल उठता है कि चुनाव पूर्व की घोषणा तो उन घोषणाओं को माना जाता है जो चुनाव के ठीक पहले की जाती है। उस दृष्टि से तो इसे चुनावी घोषणा नही माना जा सकता। पर हकीकत यही है कि काँग्रेस ने इसे अपना जनाधार बढ़ाने के लिए ही प्राथमिकता से लिया है। सवाल यह भी है कि अगर सरकार ये न करे तो क्या करे? पहले कार्यक्रम भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गये। उसमें सुधार सम्भव नहीं है। इसलिए नये कार्यक्रम की जरूरत पड़ी। जो मॉडल सामने आया है उसमें बिचैलियों की गुंजाइश ही नहीं है। लेकिन इस बात की भी कोई गारंटी नहीं कि इलेक्ट्रोनिक उपकरणों, इन्टरनेट, डिजिटल सूचना के इस आधुनिक तंत्र का दुरूपयोग न हो। दुनियाभर में ऐसे ‘मेधावी‘ अपराधियों की कमी नहीं जो इन सारी व्यवस्थाओं के शार्टकट बनाने में माहिर हैं। ऐसे लोग हमारे देश में भी कम नहीं। जो किसी भी अच्छी योजना का पलीता लगा सकते हैं।
जहाँ एन0डी0ए0 का घटक भाजपा गुजरात चुनाव का हवाला देकर इस योजना के खिलाफ चुनाव आयोग के दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, वहीं एन0डी0ए0 के दूसरे घटक जे0डी0यू0 के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मानना है कि यह योजना बहुत प्रभावी रहेगी। दरअसल राजनैतिक मतभेदों को एक तरफ रखकर अगर निष्पक्ष मूल्यांकन किया जाए तो यह बात समझ में आती है कि निर्बल वर्ग को मिलने वाली सब्सिडी या रियायत लाभार्थी को सीधी क्यों न दी जाए? इससे बीच का सब घालमेल साफ हो जाऐगा। इसलिए इस योजना का स्वागत किया जाना चाहिए और इसे अपना दायित्व मानते हुए निर्बल वर्ग की सहायतार्थ सबल वर्ग के जागरूक नागरिकों को अपने-अपने क्षेत्र में सक्रिय हो जाना चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके इलाके के जरूरतमंद निर्बल लोगों के आधार कार्ड बनें और उनके बैंक खाते खुलें। इसमें अगर कहीं भी धांधली नजर आए तो उसके खिलाफ जोरदार आवाज उठानी चाहिए। जनता की इस सक्रिय भागीदारी से भ्रष्टाचार भी हटेगा और निर्बल वर्ग को सीधा लाभ भी पहुंचेगा। इसलिए इसे रिश्वत मानकर दरकिनार नहीं किया जा सकता।