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Monday, February 3, 2025

सही दिशा में सुधार की ज़रूरत


बीते कई दशकों से ऐसा देखने में आया है कि गणतंत्रता या दिवस पर शहीदों को नमन कर, देश की दुर्दशा पर श्मशान वैराग्य दिखा कर, देश वासियों को लंबे-चौड़े वायदों की सौगात देकर देश का भला करने के संकल्प लिए जाते हैं। परंतु इन सब से क्या देश का भला हो सकता है? सुजलाम्, सुफलाम्, शस्यश्यामलाम्, भारतभूमि  में किसी चीज की कमी नहीं है। षट् ऋतुएं, उपजाऊ भूमि, सूर्य, चन्द्र, वरूण की असीम कृपा, रत्नगर्भा भूमि, सनातन संस्कृति, कड़ी मेहनत कर सादा जीवन जीने वाले भारतवासी, तकनीकी और प्रबंधकीय योग्यताओं से सुसज्जित युवाओं की एक लंबी फौज, उद्यमशीलता और कुछ कर गुजरने की ललक, क्या यह सब किसी देश को ऊंचाईयों तक ले जाने के लिए काफी नहीं है? दुनिया भर के कई देशों में प्रवासी भारतीयों ने कई क्षेत्रों में बुलंदियों को छुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि भारतीयों में योग्यता की कोई कमी नहीं है। यदि सभी को सही मौक़ा और प्रोत्साहन मिले तो कठिन से कठिन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।



अगर यह बात सही है तो फिर क्या वजह है कि खिलाडि़यों पर खर्चा करने की बजाय खेल के खर्चीले आयोजनों पर अरबों रूपया बर्बाद किया जाता है? कुछ हजार रुपये का कर्जा लेने वाले किसान आत्म हत्या करते हैं और लाखों करोड़ रुपये का बैंकों का कर्जा हड़पने वाले उद्योगपति ऐश। आधी जनता भूखे पेट सोती है और एफसीआई के गोदामों में करोड़ों टन अनाज सड़ता है। विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया भी ऐसी अव्यवस्था  का नंगा नाच दिखाने में पीछे नहीं रहते। नतीजतन आतंकवाद और नक्सलवाद चरम सीमा पर पहुंचता जा रहा है। सरकार के पास विकास के लिए धन की कमी नहीं है। पर धन का सदुपयोग कर विकास के कामों को ईमानदारी से करने वाले लोग व संस्थाएँ तो पैसे-पैसे के लिए धक्के खाते हैं और नकली योजनाओं पर अरबों रुपया डकारने वाले सरकार का धन बिना किसी रुकावट के खींच ले जाते हैं। ऐसे में स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्रता दिवस का क्या अर्थ लिया जाए? यही न कि हमने आज़ादी के नाम पर गोरे साहबों को धक्का देकर काले साहबों को बिठा दिया। पर काले साहब तो लूट के मामले में गोरों के भी बाप निकले। स्विटजरलैंड के बैंकों में सबसे ज्यादा काला धन जमा करने वालों में भारत काफी आगे है।



इसलिए जरूरत है हमारी सोच में बुनियादी परिवर्तन की। ‘सब चलता है’ और ‘ऐसे ही चलेगा’ कहने वाले इस लूट में शामिल हैं। जज्बा तो यह होना चाहिए कि ‘देश सुधरेगा क्यों नहीं?’ ‘हम ऐसे ही चलने नहीं देंगे’। अब सूचना क्रांति का जमाना है। हर नागरिक को सरकार के हर कदम को जांचने परखने का हक है। इस हथियार का इस्तेमाल पूरी ताकत से करना चाहिए। सरकार चाहे किसी भी दल की क्यों न हो उसमें में जो लोग बैठे हैं उन्हें भी अपने रवैये को बदलने की जरूरत है। एक मंत्री या मुख्यमंत्री रात के अंधेरे में मोटा पैसा खाकर उद्योगपतियों के गैर कानूनी काम करने में तो एक मिनट की देर नहीं लगाता। पर यह जानते हुए भी कि फलां व्यक्ति या संस्था राज्य के बेकार पड़े संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल कर सकती है, उसके साथ वही तत्परता नहीं दिखाता। आखिर क्यों? जब तक हम सही और अच्छे को बढ़ावा नहीं देंगे, उसका साथ नहीं देंगे, उसके लिए आलोचना भी सहने से नहीं डरेंगे तब तक कुछ नहीं बदलेगा। नारे बहुत दिये जाएँगे पर परिणाम केवल कागजों तक सीमित रह जाएँगे। सरकारों ने अगर अपने अधिकारियों के विरोध की परवाह करते हुए अपने कार्यकालों में कई सक्षम लोगों को यदि खुली छूट न दी होती तो अमूल और मेट्रो जैसे हजारों करोड़ के साम्राज्य कैसे खड़े होते?



आम आदमी के लिए रोजगार का सृजन करना हो या देश की गरीबी दूर करना हो, सरकार की नीतियों में बुनियादी बदलाव लाना होगा। केवल आंकड़े ही नहीं साक्षात परिणाम देखकर भी नीति बननी चाहिए। खोजी पत्रकारिता के चार दशक के मेरे अनुभव यही रहे कि बड़े से बड़ा भ्रष्टाचार बड़ी बेशर्मी से कर दिया जाता है। पर सच्चाई और अच्छाई का डटकर साथ देने की हिम्मत हमारे राजनेताओं में नहीं है। इसीलिए देश का सही विकास नहीं हो रहा। खाई बढ़ रही है। हताशा बढ़ रही है। हिंसा बढ़ रही है। पर नेता चारों ओर लगी आग देखकर भी कबूतर की तरह आंखे बंद किये बैठें हैं। इसलिए फिर से समाज के मध्यम वर्ग को समाज के हित में सक्रिय होना होगा। मशाल लेकर खड़ा होना होगा। टीवी सीरियलों और उपभोक्तावाद के चंगुल से बाहर निकल कर अपने इर्द-गिर्द की बदहाली पर निगाह डालनी होगी। ताकि हमारा खून खौले और हम बेहतर बदलाव के निमित्त बन सके। विनाश के मूक दृष्टा नहीं। तब ही हम सही मायने में आजाद हो पायेंगे। फिलहाल तो उन्हीं अंग्रेजों के गुलाम हैं जिनसे आजादी हासिल करने का मुगालता लिये बैठे हैं। हमारे दिमागों पर उन्हीं का कब्जा है। जो घटने की बजाय बढ़ता जा रहा है।



यह बातें या तो शेखचिल्ली के ख्वाब जैसी लगतीं हैं या किसी संत का उपदेश। पर ऐसा नहीं है। इन्हीं हालातों में बहुत कुछ किया जा सकता है। देश के हजारों लाखों लोग रात दिन निष्काम भाव से समाज के हित में समर्पित जीवन जी रहे हैं। हम इतना त्याग ना भी करें तो भी इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने इर्द-गिर्द की गंदगी को साफ करने की ईमानदार कोशिश करें। चाहे वह गंदगी हमारे दिमागों में हो, हमारे परिवेश में हो या हमारे समाज में हो। हम नहीं कोशिश करेंगे तो दूसरा कौन आकर हमारा देश सुधारेगा? इसलिए यह ज़िम्मेदारी अकेले केवल देश के नेतृत्व कर रहे नेताओं का नहीं है, इसके लिए अफ़सरशाही, मीडिया और जनता सभी का होना चाहिए।
 

Monday, January 16, 2023

पर्यावरण और विकास के बीच टकराव

उत्तराखंड में भगवान श्री बद्रीविशाल जी के शरद कालीन पूजा स्थल और आदि शंकराचार्य जी की तपस्थली ज्योतिर्मठ (जोशीमठ) नगर में विगत एक महीने से बड़ी लंबी-लंबी दरारें आ गई थीं, जो निरंतर दिन प्रतिदिन और गहरी व लंबी होती जा रही हैं। वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और धार्मिक लोगों के अनुसार, बेतरतीब ढंग से हुए ‘विकास’ और हर वर्ष बढ़ते पर्यटकों के सैलाब को इसका कारण माना जा सकता है।

जोशीमठ नगर बद्रीनाथ धाम से 45 किलोमीटर पहले ही अलकनंदा नदी के किनारे वाले, ऊंचे तेज ढलान वाले पहाड़ पर स्थित है। यहां पर फौजी छावनी और नागरिक मिलाकर 50,000 के लगभग निवासी रहते हैं। साल के छ महीने की गर्मियों के दौरान ये संख्या पर्यटकों के कारण दुगनी हो जाती है। 

बद्रीनाथ धाम में दर्शनार्थी तो आते ही हैं। इसके साथ ही विश्व प्रसिद्ध औली जाने वाले पर्यटक भी यहीं आते हैं। जो कि  बद्रीनाथ से क़रीब 50 किलोमीटर दूर है। जोशीमठ से मात्र 4 किलोमीटर पैदल चढ़ कर औली पहुंचा जा सकता है। इसलिए औली जाने वाले ज़्यादातर पर्यटक भी रात्रि विश्राम जोशीमठ में ही करते हैं। 


यहां से बद्रीनाथ धाम जाने हेतु 12 किलोमीटर नीचे की ओर विष्णु गंगा और अलकनंदा के मिलन विष्णु प्रयाग तक उतरना पड़ता है। जहां पर विष्णु प्रयाग जल विद्युत परियोजना (जेपी ग्रुप) का निर्माण कार्य चल रहा है। जिसके कारण बिजली बनाने हेतु बड़ी-बड़ी सुरंगे कई वर्षों से बनाई जा रही हैं। जिनमे से अधिकतर बन चुकी हैं। जोशीमठ शहर के नीचे दरकने और दरारें आने की मुख्य वजह ये सुरंगें ही बताई जा रही हैं। क्योंकि बारूद से विस्फोट करके ही ये सुरंग बनाई जाती है। इस कारण इन पहाड़ में दरारें आना स्वभाविक है। 

ये कार्य विगत चार दशकों से पूरे हिमालय, विशेषकर गढ़वाल और कुमाऊं के हिमालय क्षेत्र में हो रहा है। इसलिये बिजली बनाने हेतु कई सौ परियोजनाएं यहां चल रही है। मैदानों को दी जाने वाली बिजली बनाने के लिए कई दशकों से यहाँ अंधाधुंध व बेतरतीब ढंग से देवात्मा हिमालय में सुरंगों, सड़कों और पुलों का निर्माण किया गया है। जिसके कारण यहां की वन संपदा भी आधी रह गई है। 

अयोध्या से जुड़े राम भक्त संदीप जी द्वारा साझी की गई जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड स्थित बद्री, केदार, यमुनोत्री व गंगोत्री धामों के दर्शन करके इसी जन्म में मोक्ष पाने की सस्ती लालसा के पिपासुओं की भीड़ और नव धनाढ्यों की पहाड़ों में मौज मस्ती भी यहां के प्राकृतिक संसाधनों पर भारी पड़ी है। जिसके कारण समूचा गढ़वाल हिमालय क्षेत्र तेज़ी से नष्ट हो रहा है। 


जबकि ये देवात्मा हिमालय का सर्वाधिक पवित्र क्षेत्र माना जाता है। जिसकी भौगोलिक स्थिति का स्कंध पुराण में भी विस्तृत वर्णन मिलता है। यहां कदम-कदम पर व मोड़-मोड़ पर हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों के आश्रम और पौराणिक देवस्थान स्थित हैं। इन्हीं पर्वतों से गंगा व यमुना जैसी असंख्य पवित्र नदियां भी निकली हैं। 

ऐसे परम पवित्र पावन रमणीक हरे-भरे प्रदेश का, पर्यावरणविदों के लगातार विरोध के बावजूद, बिजली बनाने और पर्यटन हेतु वर्तमान बीजेपी सरकार सहित सभी पूर्ववर्ती सरकारों ने खूब दोहन किया है। जिसके कारण केदारनाथ त्रासदी जैसी घटनाएं घटित हो चुकी हैं और आगे और भी अधिक भयावह विनाश की खबरें आएंगी। 

क्योंकि जब देवताओं की निवास स्थली देवभूमि हिमालय मी पर्यटन के नाम पर अंडा, मांस, मदिरा का व्यापक प्रयोग और ना जाने कैसे-कैसे अपराध मनुष्य करेगा तो देवता तो रूष्ट होंगे ही। 


हर वर्ष गर्मियों में उत्तराखंड दर्शन और सैर सपाटे हेतु घुमक्कड़ों की भीड़ यहां इस कदर होती है कि पहाड़ों में गाड़ियों का कई किलोमीटर तक लंबा-लंबा जाम लगता है। इन्ही पर्यटकों के कारण यहां का परिस्थिति तंत्र चरमरा जाता है। यहाँ के हर शहर और गाँव में बढ़ती भीड़ हेतु होटल और गेस्ट हाउसों की बाढ़ सी आई हुई है। 

इस कारण परम पवित्र गंगा, यमुना व अलकनंदा जैसी असंख्य पवित्र नदियों में पर्यटकों का सारा मल-मूत्र और कचरा बहाया जाता है। जिसके कारण गंगा निरंतर मैली और मैली होती जा रही है। प्रश्न है कि मैदानों की बिजली की मांग तो निरंतर बढ़ती जाएगी तो इसका खामियाजा पहाड़ क्यों भरे? इसके लिए सरकारों को और बहुत से विकल्पों को आगे तलाशना होगा। क्यों ना यहां भी बढ़ती भीड़ हेतु कश्मीर घाटी के पवित्र अमरनाथ धाम के दर्शन की ही तरह दर्शनार्थियों को सीमित मात्रा में परमिट देने का सिस्टम विकसित किया जाए? हर वर्ष गर्मियों उत्तराखंड जाने वालों के नाम पते ऋषिकेश में नोट करने से ही बात नहीं बनेगी। बल्कि सख्ती से और सात्विक भावना से देवात्मा हिमालय का ख्याल हम सबको और सरकार को मिलकर रखना होगा। 

इस विषय में सबसे खास बात ये है कि सरकार समूचे हिमालय क्षेत्र हेतु एक खास दीर्घकालीन योजना बनाए। जिसमें देश के जाने-माने पर्यावरणविदों, इंजीनियर और वैज्ञानिकों के अनुभवों और सलाहों को खास तवज्जो दी जाए। तभी हिमालय का परिस्थिति तंत्र संभलेगा नहीं तो केदारनाथ त्रासदी और अभी हाल की जोशीमठ जैसी घटनाएं निरंतर और विकराल रूप में आएंगी ही आएंगी। 


दिल्ली विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रोफेसर एवं वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के एमिरेट्स साइंटिस्ट, प्रोफ़ेसर धीरज मोहन बैनर्जी के अनुसार कई साल पहले भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने एक जांच की थी। वह रिपोर्ट भी बोलती है कि यह क्षेत्र कितना अस्थिर है। भले ही सरकार ने वैज्ञानिकों या शिक्षाविदों को गंभीरता से नहीं लिया, कम से कम उसे भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए था। इस क्षेत्र में बेतरतीब ‘विकास’ के नाम पर हो रहे सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगनी चाहिए।

चिंता की बात यह है कि सरकार चाहे यूपीए की हो या एनडीए की वो कभी पर्यावरणवादियों की सलाह को महत्व नहीं देती। पर्यावरण के नाम पर मंत्रालय, एनजीटी और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन सब काग़ज़ी ख़ानापूरी करने के लिए हैं। कॉर्पोरेट घरानों के प्रभाव में और उनकी हवस को पूरा करने के लिए सारे नियम और क़ानून ताक पर रख दिये जाते हैं। पहाड़ हों, जंगल हों, नदी हो या समुद्र का तटीय प्रदेश, हर ओर विनाश का ये तांडव जारी है। मोदी सरकार द्वारा शुरू किया गया, उत्तराखण्ड के चार धाम को जोड़ने वाली सड़कों का प्रस्तावित चौड़ीकरण भविष्य में इससे भी भयंकर त्रासदी लाएगा। पर क्या कोई सुनेगा?   

देवताओं के कोप से बचाने वाले खुद देवता ही हैं। वो हमारी साधना से खुश होकर हमें बहुत कुछ देते भी हैं और कुपित होकर बहुत कुछ ले भी लेते हैं। संदीप जी जैसे भक्तों, प्रोफ़ेसर बनर्जी जैसे वैज्ञानिकों, भौगोलिक विशेषज्ञों और सारे जोशीमठ वासियों की पीड़ा हम सबकी पीड़ा है। इसलिए ऐसे संकट में सभी को एकजुट हो कर इस समस्या का हल निकालना चाहिए।