अभी जेट एयरवेज और नागरिक विमानन मंत्रालय के घोटालों का तूफान थमा भी नहीं था कि एक नया मुद्दा सामने आया है। पहले जेट एयरवेज के 131 पायलेट बिना पायलेट प्रोफिशैंसी जांच के विमान उड़ाए जा रहे थे और लाखों यात्रियों की जान से खिलवाड़ कर रहे थे। यह मामला उजागर होने के बाद इन 131 पायलेटों को सस्पेंड किया गया और चेतावनी दी गई। यह एक अकेला ऐसा मामला नहीं है, जहां नागरिक उड्डयन मंत्रालय और उसके अधीन नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) की निजी एयरलाइंस के साथ सांठगांठ सामने आई हो। अब वो चाहे पायलेटों की प्रोफिशैंसी जांच हो या शुरूआत दौर में ही उनको विमान उड़ाने का लाइसेंस दिया जाना हो, हर जगह घोटाला है। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी मानो आंख पर पट्टी बांधकर बैठे हैं। जैसी भी सिफारिश किसी भी निजी एयरलाइंस के मुखिया की तरफ से आती है, तो ये इन अधिकारियों के लिए फरमान से कम नहीं होती। उन्हें तो अपने इन आकाओं की हर बात को आंख मूंदकर मानना होता है। जाहिर है बिना मोटे फायदे के ऐसे गैर कानूनी काम कोइ क्यों करेगा?
उदाहरण के तौर पर एक अन्य निजी एयरलाइंस की महिला पायलेट सुश्री पारूल सचदेव ने शुरूआती दौर में ही अपनी शैक्षिक योग्यताओं को उस बोर्ड से दिखाया, जोकि भारत सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त ही नहीं था। अचंभे की बात है कि ये अधिकारी अपनी आंखों पर ऐसा चश्मा लगाते हैं कि इन्हें मान्यता प्राप्त संस्थाओं को जांचने का भी समय नहीं मिलता। इस महिला पायलेट ने मान्यता प्राप्त संस्थान केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के नाम से मिलती-जुलती फर्जी संस्था केंद्रीय उच्च शिक्षा बोर्ड (सीबीएचई) के दस्तावेज जमा कराकर न सिर्फ पायलेट का लाइसेंस ले लिया, बल्कि कई सालों तक उस निजी एयरलाइंस का विमान उड़ाती रही और हजारों यात्रियों की जान खतरे में डालती रही।
ये मामला भी उजागर तब हुआ, जब कालचक्र समाचार ब्यूरो द्वारा मांगी गई आरटीआई के बाद मंत्रालय को मजबूरन सभी एयरलाइंसों के पायलेटों के लाइसेंस को जांचना पड़ा। तब इस महिला पायलेट को भी दंड मिला, पर आधा अधूरा। बजाय इसके कि इस जालसाजी की जुर्म में इस महिला पायलेट का लाइसेंस रद्द किया जाता और थाने में केस दर्ज होता, मौजूदा नागरिक उड्डयन सचिव श्री आर. एन. चैबे ने 16 सितंबर, 2016 के अपने आदेश में न जाने किस दबाव में इस महिला पायलेट को विमानन नियम 1937 की नियम संख्या-39(1) के तहत 5 साल के बजाय मात्र 2 साल के लिए ही सस्पेंड किया और आदेश दिया कि इन 2 सालों में वे सभी जरूरी कागजात ठीक कर लें। कैसा मजाक है ? अगर आपकी बुनियादी योग्यता ही सही नहीं है, तो आप लाइसेंस के हकदार कैसे बन जाते हैं ? अगर आपने गैर मान्यता प्राप्त संस्था का प्रमाण पत्र दिया है, तो क्या आपका प्रमाण पत्र स्वीकृत होना उचित था ? यदि नहीं, तो लाइसेंस का निरस्त होना ही सही न्याय होगा।
आप सबको मैंग्लौर हवाई हादसे की याद तो होगी। वह हादसा क्यों हुआ था ? अगर पायलेटों से बात की जाए तो उनका कहना है कि मैंग्लौर के हवाई अड्डे पर विमान उतारना हर किसी के बस का नहीं है। अगर आप थकान से चूर हो, ऐसे में आपको विमान उड़ाने की अनुमति नहीं मिलती है। जेट एयरवेज के लिए यह कानून भी मान्य नहीं है। जेट एयरवेज के एक वरिष्ठ पायलेट कैप्टन मनोज महाना, जो कि जेट एयरवेज में बतौर प्रशिक्षक भी कार्यरत् हैं, उन्होंने 3 सितंबर, 2015 की सुबह 8 बजे मुंबई से दिल्ली एक अतिरिक्त क्रू-मेंबर के नाते हवाई यात्रा की। दिनभर उन्होंने दिल्ली में कई सारी मीटिंग कीं और वापिस मुंबई शाम 5 बजे के विमान से ठीक उसी तरह अतिरिक्त क्रू-मेंबर के नाते मुंबई तक की यात्रा की। उसी रात 1.20 पर कैप्टन महाना ने मुंबई से हाॅगकाॅग की उड़ान बतौर कैप्टर के नाते भरी। यह विमान अगले दिन 4 सितंबर को भारतीय समयानुसार सुबह 9.40 पर हाॅगकाॅग में उतरा। नागरिक विमानन नियमों के तहत किसी भी पायलेट को उड़ान भरने से पहले कम से कम 12 घंटे का विश्राम करना अनिवार्य है, जो कि कैप्टन महाना ने नहीं किया। यह इन नियमों के उल्लंघन का गंभीर मामला है।
यह मामला जब कालचक्र समाचार ब्यूरो के हत्थे चढ़ा, तो हमारी लिखित शिकायत पर एक बहुत मोटी फाइल बनी। उस फाइल में हर एक अधिकारी ने तमाम नियम और कानूनों का हवाला देते हुए कैप्टन मनोज महाना को दोषी पाया और उनके खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करने की सलाह दी। ऐसा नहीं है कि कैप्टन महाना ने ये पहली बार किया हो, सितंबर, 2006 में भी उन्हें ऐसी ही गलती किए जाने पर दोषी पाया गया था और इनके खिलाफ कार्यवाही हुई थी।
नागरिक विमानन कानून के सैक्शन 7 व भारतीय विमान कानून 1934 के तहत 2 साल की सजा और 10 लाख रूपए के जुर्माने का प्रावधान है। जेट एयरवेज के इशारे पर चलने वाले नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए कैप्टन महाना को 1 मार्च, 2016 के अपने आदेश के तहत पहले 2 साल के बजाए 1 साल और फिर 1 साल के बजाए मात्र 6 महीने की सजा ही दी।
देश का एक बड़ा औद्योगिक घराना जीवीके प्रोजेक्ट्स भी कुछ संदेहास्पद सवालों के घेरे में है। यह औद्योगिक घराना भारत के एक प्रतिष्ठित हवाई अड्डे का संचालन करता है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय के मौजूदा सचिव ने इस औद्योगिक घराने को ‘आउट आॅफ द वे‘ जाकर एक ऐसे कानून की अनदेखी कर दी है, जो बहुत ही गंभीर है। चाहे वो निजी एयरलाइन हो या हवाई अड्डे का प्रबंध करने वाली निजी कंपनी। उनके वरिष्ठ अधिकारियों की गृह मंत्रालय द्वारा सुरक्षा जांच होना अनिवार्य है। ये जिम्मेदारी हर उस निजी कंपनी की होती है, जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन है।
उदाहरण के तौर पर आपको याद दिलाना चाहूंगा कि इसी काॅलम के माध्यम से हमने जेट एयरवेज के वरिष्ठ अधिकारी कैप्टन हामिद अली की सुरक्षा जांच के न होने का पर्दाफाश किया था। उसका नतीजा यह हुआ कि जेट एयरवेज ने कालचक्र समाचार ब्यूरो द्वारा नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधिकारियों पर दबाव डाले जाने पर उस कैप्टन हामिद अली को रातों-रात अपने बोर्ड आॅफ डायरेक्टर के पद से हटाया। अब जीवीके ग्रुप के निदेशकों का भी कुछ ऐसा ही हाल है। ये निदेशक बिना अनिवार्य सुरक्षा जांच के कंपनी के बोर्ड पर बने रहे और नागरिक उड्डयन मंत्रालय आंख मूंदे खर्राटे भरता रहा। यहां पर फिर नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने इस कंपनी को ‘आउट आॅफ द वे‘ जा कर एक विशेष लाभ पहुंचाया और इस कंपनी व उसके निदेशक को मात्र चेतावनी देकर छोड़ दिया। ऐसा क्यों है कि मौजूदा नागरिक उड्डयन सचिव श्री चैबे सभी नियमों को ताक पर रखकर एक के बाद एक निजी एयरलाइंस या निजी कंपनी को सीधा फायदा पहुंचा रहे हैं ?
आज के दौर में जब हवाई यात्रा की संख्या काफी बढ़ गई है, तो नागरिक उड्डयन मंत्रालय की जिम्मेदारी भी कम नहीं हुई है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय को अपना काम कानून के दायरे में रहकर ही करना चाहिए, न कि लाखों यात्रियों की जान से खिलवाड़ करना चाहिए। नहीं तो हर हवाई यात्रा करने वाले को विमान के पायलेट या मंत्रालय के अधिकारियों की इन बेईमानियो के चलते केवल भगवान भरोसे ही यात्रा करनी होगी।
I am a sufferer of the same. Have put a complain against Malindo Air to DGCA.
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1.Irresponsible behavior by staff during a flight delay.
2.No back up plan for delay.
3.No tie up with other airline companies for back up.
4.Staff and crew is very rude.
5.Insufficient provision of Vegetarian meals.
6.Insufficient meal vouchers.
It is physical and mental harrasment of common man.