प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन जा रहे हैं। हो सकता है कुछ बड़े समझौते हों। जिनका जश्न मनाया जायगा। पर हर जो चीज चमकती है उसको सोना नहीं कहते। रक्षा, आंतरिक सुरक्षा, विदेश नीति और सामरिक विषयों के जानकारों का कहना है कि भारत धीरे-धीरे चीन के मायाजाल में फंसता जा रहा है। आज से 15 वर्ष पहले वांशिगटन के एक विचारक ने दक्षिण एशिया के भविष्य को लेकर तीन संभावनाएँ व्यक्त की थीं। पहली अपने गृह युद्धों के कारण पाकिस्तान का विघटन हो जाएगा और उसके पड़ोसी देश उसे बांट लेंगे। दूसरी भारत अपनी व्यवस्थाओं को इतना मजबूत कर लेगा कि चीन और भारत बराबर की ताकत बन कर अपने-अपने प्रभाव के क्षेत्र बांट लेंगे। तीसरी चीन धीरे-धीरे चारों तरफ से भारत को घेर कर उसकी आंतरिक व्यवस्थाओं पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेगा और धीरे-धीरे भारत की अर्थव्यवस्था को सोख लेगा।
आज यह तीसरी संभावना साकार होती दिख रही है। चीन का नेतृत्व एकजुट, केन्द्रीयकृत, विपक्षविहीन व दूर दृष्टि वाला है। उसने भारत को जकड़ने की दूरगामी योजना बना रखी है। अरूणाचल की जमीन पर 1962 से कब्जा जमाये रखने के बावजूद चीन को किसी भी मौके पर इस इलाके को भारत को वापिस करने में गुरेज नहीं होगा। उसने इसके लिए भारत में एक लाॅबी पाल रखी है। जो इस मुद्दे को गर्माए रहती है। ऐसा करके वह भारत के प्रधानमंत्री को खुश करने का एक बड़ा मौका देगा लेकिन उसके बदले में हमसे बहुत कुछ ले लेगा। ऐसा इसलिए कि उसे सामरिक दृष्टि से इस क्षेत्र में कोई रूचि नहीं है। यह कब्जा तो उसने सौदेबाजी के लिए कर रखा है। उसका असली खेल तो तिब्बत, पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान में है। जहाँ उसने रेल और हाइवे बनाकर अपनी सामरिक स्थिति भारत के विरूद्ध काफी मजबूत कर ली है। उसके लड़ाकू विमान हमारी सीमा से मात्र 50 किमी दूर तैनात है। युद्ध की स्थिति में सड़क और रेल से रसद पहुंचाना उसके लिए बांये हाथ का खेल होगा। जबकि ऐसी किसी भी व्यवस्था के अभाव में हम उसके सामने हल्के पड़ेंगे।
पिछले 10 वर्षों में ऊर्जा, संचार और पैट्रोलियम जैसे संवेदनशील और अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीन ने भारत में लगभग सारे अंतर्राष्ट्रीय ठेके जीते हैं। इससे हमारी धमनियों पर अब उसका शिकंजा कस चुका है। चीन से बने बनाएं टेलीफोन एंक्सचेन्ज भारत में लगाएं गये हैं। जिसकी देखभाल भी चीन रिमोट कन्ट्रोल से करता है। क्योंकि ठेके की यही शर्त थी। अब वो हमारी सारी बातचीत पर निगाह रख सकता है। यहां तक कि हमारी खुफिया जानकारी भी अब उससे बची नहीं है। वो जब चाहे हमारी संचार व्यवस्था ठप्प कर सकता है। जिस समय चीन ये ठेके लगातार जीत रहा था उस समय हमारे गृह और रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने लिखकर चिंता व्यक्त की थी। पर सरकार ने अनदेखी कर दी।
सब जानते हैं कि उद्योगपतियों के लिए मुनाफा देशभक्ति से बड़ा होता है। चीन ने अपने यहाँ आधारभूत सुविधाओं का लुभावना तंत्र खड़ा करके भारत के उद्योगपतियों को विनियोग के लिए खीचना शुरू कर दिया है। उत्पादन के क्षेत्र में तो वह पहले ही भारत के लघु उद्योगों को खा चुका है। उधर भारत का हर बाजार चीन के माल से पटा पड़ा है। जाहिरन इससे देश में भारी बेरोजगारी फैल रही है। जो भविष्य में भयावह रूप ले सकती है। प्रधानमंत्री का ‘मेक इन इंडिया‘ अभियान बहुत सामयिक और सार्थक है। उसके लिए प्रधानमंत्री दुनियाभर जा-जाकर मशक्कत भी खूब कर रहें हैं। पर जब तब देश की आंतरिक व्यवस्थाएँ, कार्य संस्कृति और आधारभूत ढ़ाचा नहीं सुधरता, तब तक ‘मेक इन इंडिया‘ अभियान सफल नहीं होगा। इन क्षेत्रों में अभी सुधार के कोई लक्षण दिखाई नहीं दे रहे हैं। जिनपर प्रधानमंत्री को गंभीरता से ध्यान देना होगा।
चीन भारत को चारों तरफ से घेर चुका है। नेपाल, वर्मा, दक्षिण पूर्व एशियाई देश, श्रीलंका और पाकिस्तान पर तो उसकी पकड़ पहले ही मजबूत हो चुकी थी। अब उसने मालदीव में भारत के जी.एम.आर. ग्रुप से हवाई अड्डा छीन लिया। इस तरह भारत पर चारों तरफ से हमला करने की उसने पूरी तैयारी कर ली है। इसका अर्थ यह नहीं कि वह हमला करेगा, बल्कि इस तरह दबाव बना कर वो अपने फायदे के लिए भारत सरकार को ब्लैकमेल तो कर ही सकता है।
इस पूरे परिदृश्य में केवल दो ही संभावनाएँ बची है। एक यह कि भारत आंतरिक दशा मजबूत करें और चीन के बढ़ते प्रभाव को रोके। दूसरा यह कि चीन में आंतरिक विस्फोट हो, जैसा कभी रूस में हुआ था और चीन की केन्द्रीयकृत सत्ता कमजोर पड़ जाएँ। ऐसे में फिर चीन भारत पर हावी नहीं हो पाएगा। जिसकी निकट भविष्य में कोई संभावना नहीं दिखती। ऐसे में चीन से किसी भी सहयोग या लाभ लेने की अपेक्षा रखना हमारे लिए बहुत बुद्धिमानी का कार्य नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दूर दृष्टि वाले व्यक्ति हैं इसलिए आशा कि जानी चाहिए कि चीन से संबंध बनाने कि प्रक्रिया में वे इन गंभीर मुद्दों को अनदेखा नहीं करेंगे।
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