Rajasthan Patrika 28-10-2007 |
कश्मीर से कन्याकुमारी और आसाम से गुजरात तक कृष्ण भक्त बिखरे हुए हैं। भारत की जितनी नृत्य कलाएं हैं, काव्य रचनाएं हैं, चित्र कलाएं हैं, वास्तु कलाएं हैं व संगीत कलाएं हंै, सब पर भगवान श्री राधाकृष्ण के प्रणय प्रसंगों की व लीलाओं की छाप स्पष्ट है। इसलिए ब्रज भारत की सांस्कृतिक राजधानी है। यही वह क्षेत्र है जहां 5 हजार वर्ष पहले भगवाने श्री राधाकृष्ण ने अनेक लीलाएं की। जबसे टीवी चैनलों पर भागवत कथाओं की बाढ आई है तब से ब्रज प्रेमियों की संख्या भी तेजी से बढ़ती जा रही है। पर इसके साथ ही बढता जा रहा है ब्रज का विनाश भी।
भागवतम् के दशम स्कंध के चोबीसवें अध्याय के 24वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण नंद बाबा से कहते हैं, ‘बाबा हम नगरों और गांवों के रहने वाले नहीं। हमारे घर तो ब्रज के वन और पर्वत हैं।’ ब्रज भक्ति विलास ग्रंथ के अनुसार 137 वन ब्रज में थे। जहां भगवान ने लीलाएं की। इनमें से अब मात्र 3 बचे हैं। शेष में धूल उड़ती है। लताआंे, वृक्षों व निकुंजों का नामोनिशान तक नहीं है। ब्रज में 72 वर्ग किलो मीटर क्षेत्र में पर्वत श्रृखलाएं हंै। जिन पर भगवान ने गो-चारण किया। वंशीवादन किया। रास किया व अनेक लीलाएं की। दुर्भाग्यवश राजस्थान की सरकार इन पर्वतों को खनन उद्योग के हवाले कर रात-दिन इनका विनाश करवा रही है। उधर गोवर्द्धन की परिक्रमा हो या बरसाने की वाटिकाएं। वृंदावन के निकंुज हों या जमुना जी के घाट, हर ओर विनाश का तांडव चल रहा है। अनेक भागवताचार्य एक ओर तो माया का मोह छोडने का उपदेश देते हैं और दूसरी ओर अपने यजमानों को ब्रज वास का लालच दिखा कर ब्रज में प्लाॅट व फ्लेट बेचने में जुटे हैं। दिल्ली और आसपास के बिल्डर्स भी बड़ी तादाद में ब्रज में फ्लैट व मकान बनवा रहे हैं ताकि ब्रज के प्रेम को पैसे में भुनाया जा सके।
इस प्रक्रिया में ब्रज के नैसर्गिक सौंदर्य का तेजी से विनाश हो रहा है। इन मकानों मंे 90 फीसदी से ज्यादा पूरे वर्ष खाली पड़े रहते हैं। दरअसल ब्रज जैसे तीर्थ स्थल के विकास और संवर्द्धन की तीनों ही प्रांतीय सरकारों व केन्द्रीय सरकार के पास न तो कोई दृष्टि है और नही ही कोई ठोस योजना। यहां तैनात प्रशासनिक अधिकारी भी ब्रज को आम शहरों की तरह अपनी कमाई का धंधा बना लेते हैं। स्थानीय नेताओं को भी केवल वोटों से मतलब हैं। उनके वोटर चाहे धरोहरों को नीलाम करें या उन पर अवैध कब्जें करें, वे विरोध नहीं करते। इसके विपरीत कब्जा करने वालों का ही साथ देते हैं। इन हालातों में जब दुनिया भर के करोडों कृष्ण भक्त यहां आते हैं तो यहां चल रही विनाश लीला और यहां की दुर्दशा देख कर धक्क रह जाते हैं।
पर कृष्ण भक्त भी इस विनाश के लिए कोई कम जिम्मेदार नहीं। कृष्ण भक्त देश-विदेश के नगरों में भगवत कथाओं में, छप्पनभोगों में, फूल बंगलों में, मंदिर निर्माणों में व भंडारों में करोडों रूपया पानी की तरह बहा देते हैं। अपने घर का मंदिर तो सजाते हैं पर भगवान के नित्यधाम ब्रज को सजाने के लिए कुछ नहीं करते। आलोचना करने से क्या कुछ बदल जाएगा ? अगर ब्रज को सजाना है तो कृष्ण भक्तों को अपनी सोच बदलनी होगी। मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध व जैन धर्मावलंबी अपने तीर्थों को सजा-सवार कर रखते हैं। पर कृष्ण भक्त ब्रज को सड़ा कर छोड जाने में ही गर्व का अनुभव करते हैं। भंडारे करने, मंदिर और फ्लैट बनवाने से कहीं ठोस सेवा है ब्रज को सजाना और संवारना। सरकारें यह कार्य करती नहीं। भागवताचार्य अपनी कमाई अपने ही ऐश्वर्य में लगा देते हैं। अगर भक्त ही नहीं जागे तो कौन सुधारेगा ब्रज की दशा घ् ब्रज फाउंडेशन जैसी कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं ब्रज में बहुत ऐतिहासिक कार्य कर रही हैं। जिनसे सलाह लेकर कृष्ण भक्त ब्रज को सजाने, संवारने का काम कर सकते हैं। अगर कृष्ण भक्त नहीं जागे तो ब्रज की इतनी बुरी दशा हो जाएगी कि भला आदमी वहां जाने की हिम्मत भी नहीं करेगा। सरकारों को भी नारे नहीं ठोस योजनाएं देनी चाहिए। वरना हम देश में धार्मिक, सांस्कृतिक पर्यटन की असीम संभावनाओं को विकसित होने से पहले ही कुचल देंगे।