सेवानिवृत्त होकर अब तक वही प्रशासनिक अधिकारी मजे मारते थे जो अपने सेवा काल में बड़े औद्योगिक घरानों को फायदा पहुंचाते थे और बाद में उनके सलाहकार बन जाते थे। लेकिन अब जीवन भर ईमानदार रहे अधिकारियों की भी पूछ होगी। यह पहल करने जा रहा है केन्द्रीय सतर्कता आयोग। दरअसल भ्रष्टाचार से सभी त्रस्त हैं। पर हैरान है यह देख कर कि ये घटने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। लोग सोचते हैं कि सीबीआई है, केन्द्रीय सतर्कता आयोग है फिर भी इस पर अंकुश क्यों नहीं लगता ? सीबीआई केन्द्र की सरकारों के हाथ में अपने विरोधियों को परेशान करने का एक औजार मात्र बन कर रह गई थी। इसीलिए जैन हवाला कांड की सुनवाई के बाद सर्चोच्च न्यायालय ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के हाथ मजबूत करने का फैसला लिया और एक की बजाए तीन सदस्यों वाले आयोग का गठन कर दिया और सरकार को आदेश दिया कि इस आयोग को पूर्ण स्वायतत्ता प्रदान की जाए।
होता यह आया था कि बड़े अधिकारियों और मंत्रियों आदि के भ्रष्टाचार के मामलों में जांच शुरू करने से पहले सीबीआई को सरकार से अनुमति लेनी होती थी। सरकार वर्षों अनुमति नहीं देती थी। इस तरह भ्रष्ट अधिकारी और मंत्री सरकार के ही संरक्षण में फलते-फूलते रहते थे। ‘विनीत नारायण बनाम भारत सरकार’ नाम से मशहूर इस मुकद्दमें में सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए कि वह कानून में बदलाव करके इस तरह की अनुमति लेने की बाध्यता को समाप्त कर दे। उस समय इस फैसले को देश के मीडिया ने ऐतिहासिक बता कर प्रमुख खबर बनाया। लोेगों को भी लगा कि अब हालात बदलेंगे। पर जब यह मामला कानून बनाने के लिए संसदीय समिति के पास पहुंचा तो श्री शरद पवार की अध्यक्षता वाली समिति ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का जनाजा निकाल दिया। इसके बाद जो ‘केन्द्रीय सतर्कता आयोग कानून’ बना उसमें आयोग की स्वायतत्ता दिखावा मात्र थी। असली नियंत्रण सरकार ने अपने पास ही रखा। जो भी हो आयोग का नया रूप सामने आया और अब इसमें तीन सदस्यों की नियुक्ति होने लगी। इन सदस्यों ने उत्साह से काम करना शुरू किया। जनता ने भी शिकायतों के ढेर लगा दिए। पर फिर जल्दी ही समझ में आया कि आयोग के पास भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए समुचित मात्रा में अनुभवी लोग ही नहीं हैं। मौजूदा मुख्य सतर्कता आयुक्त श्री प्रत्यूष सिन्हा और उनके साथी सदस्य श्रीमती रंजना कुमार व श्री सुधीर कुमार ने इस समस्या का हल खोजा और तय किया कि क्यों न सेवानिवृत्त व ईमानदार छवि वाले वरिष्ठ अधिकारियों, बैंक प्रबंधकों व काॅरपोरेट मैंनेजमेंट के अनुभवी लोगों को बुला कर उनसे जांच करवाई जाए। ऐसा प्रस्ताव श्री सिन्हा ने सरकार को भेजा। सरकार कुछ फैसला ले पाती उससे पहले ही अदालत का एक आदेश आ गया कि आयोग को ऐसा करना चाहिए।
वैसे भी इस कानून के 8वें अनुच्छेद के तहत आयोग को अधिकार है कि आवश्यकता अनुसार वह सीधे जांच करवा सकता है। सामान्यतः आयोग यह जांच संबंधित विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी व सीबीआई के अधिकारियों की मदद से करवाता है। पर यह प्रक्रिया काफी लंबी होती है और अपराधी को जल्दी सजा नहीं मिल पाती। भारत सरकार के विभाग, निगम और सार्वजनिक उपक्रम हर साल लगभग 1 लाख करोड रूपए की खरीदारी करते हैं। ये खरीदारी निविदाएं आमंत्रित करके की जाती हैं। अक्सर इनमें काफी घपले होते हैं। पर आयोग चाह कर भी इनकी जांच नहीं कर पाता। कारण आयोग के पास जांच करवाने के लिए अपने तीन सदस्यों के अलावा तीन सचिव, दो अतिरिक्त सचिव, 16 उप सचिव और लगभग 11 सीडीआई हैं। इनके अलावा मात्र दो चीफ इंजीनियर हैं। बाकी लगभग 250 कर्मचारी और हैं। यह अमला पूरी ताकत लगाने के बाद भी सरकारी खरीद के कुल मामलों में 5 फीसदी मामले भी पकड़ नहीं पाता। उनकी जांच करना तो दूर की बात है। इसलिए इन उपक्रमों में लगे भ्रष्ट लोगों के मन में आयोग का कोई खौफ नहीं। वे जानते हैं कि आयोग के पास इतने साधन ही नहीं कि वह उनके खिलाफ जांच कर सके। इसलिए बेखौफ हो कर काली कमाई में लगे रहते हैं।
श्री सिन्हा का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह यह नियम बना दे कि सौ करोड रूपए सालाना से ज्यादा की खरीदारी करने वाले हर सौदे की जांच का अधिकार आयोग को होगा। फिर आयोग किसी भी सौदे की फाइलें मंगवा सकेगा। इससे निश्चित आयोग का डर बढ़ेगा। आज आयोग के पास गंभीर किस्म के लगभग 200 मामले विचाराधीन हैं पर उनको परखने वालों की कमी है। इसलिए अदालती आदेश के बाद आयोग ने फिलहाल 6 विशेषज्ञांे का पैनल बना लिया है। जिनमें से दो लोग प्रशासकीय अनुभव वाले हैं। दो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी रहे हैं और दो प्रबंधकीय क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं। अब कोई शिकायत आने पर आयोग इन विशेषज्ञों की मौजूदगी में फैसला करता है कि उसे मामले की जांच करनी है या नहीं। पर इससे भी समस्या हल नहीं होती। इसलिए आयोग अपने सलाहकारों का पैनल बड़ा करना चाहता है। जिसमें ईमानदार, अनुभवी व बेदाग लोगों को रखा जाए और उनसे समय-समय पर शिकायतों की जांच करवाई जाए। ऐसे लोगों की सूची आयोग तैयार करना चाहता है जो पूरी ईमानदारी और पारदर्शिता से हर मामले की जांच करें और इन्हंे सम्मानजनक मानदेय भी दिया जाए।
इसके साथ ही एक सुखद शुरूआत और हुई है। ‘बर्लिन पैक्ट’ नाम से मशहूर एक फैसले ने भ्रष्टाचार को रोकने का नया तरीका ईजाद कर लिया है। अब इसे भारत में भी लागू किया जाने लगा है। इसमें माल देने वाली फर्म और माल खरीदने वाली संस्था जैसे ओएनजीसी दोनों को एक साझे करार पर दस्तखत करने होते हैं। जिसमें दोनों पक्ष घूस न लेने और न देने की घोषणा करते हैं और ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल यह ध्यान रखती है कि समझौते की शर्तों का उल्लंघन न हो। आयोग इस परंपरा को आगे बढाना चाहता है।
सरकार को चाहिए कि वह आयोग को बाहर से विशेषज्ञ बुला कर जांच करवाने की अनुमति प्रदान करें और आयोग को चाहिए कि वह ऐसे विशेषज्ञों के चयन की प्रक्रिया को इतना पारदर्शी बनाए कि देश भर से सच्चे, ईमानदार, अनुभवी व कार्यकुशल लोग आयोग की मदद के लिए सामने आ सके। उनके अनुभव का फायदा उठा कर आयोग बड़े स्तर के भ्रष्टाचार की जांच इनसे करवा सकता है। यह एक अच्छी पहल होगी। फिर भी अगर सरकार आयोग को यह अनुमति नहीं देती है तो यही मानना पड़ेगा कि सरकार नहीं चाहती की भ्रष्टाचार पर अकुंश लगे। तब यह देश के लिए दुःखद स्थिति होगी।
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