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Monday, April 9, 2012

बाबा रामदेव हर कदम सोच - विचार कर उठाएं

ऐसा लगता है कि बाबा रामदेव को मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालने में मजा आता है। अभी कांग्रेस से उनकी पंगेबाजी चल ही रही है कि उन्होंने आयुर्वेद की दवाओं के निर्माताओं से भी पंगा ले लिया। जिससे देश की नामी आयुर्वेद कम्पनियों के निर्माता उनसे खासे नाराज हैं। योग सिखाते-सिखाते बाबा ने आयुर्वेद का कारोबार खड़ा कर डाला। अब तक वे इसे अपने केन्द्रों और अनुयायियों तक सीमित रखे हुए थे। पर अब वे उतर पड़े हैं खुले बाजार में और ताल ठोककर आयुर्वेद की दवाओं और प्रसाधनों के देशी और विदेशी निर्माताओं को चुनौती दे रहे हैं। बाबा अपने टी0वी0 पर सीधे प्रसारण में खुलेआम इन कम्पनियों के उत्पादनों की मूल्य सूची पर सवाल खड़े कर रहे हैं और जनता को बता रहे हैं कि ये कम्पनियां किस तरह से आयुर्वेद के नाम पर जनता को उल्टे उस्तरे से मूढ़ रही हैं। साथ ही वे अपने उत्पादनों की सूची जारी करके मूल्यों का तुलनात्मक मूल्यांकन कर रहे हैं।
क्या बाबा के इस नये शगूफे को विशुद्ध मार्केटिंग की रणनीति माना जाए? लगता तो ऐसे ही है कि आचार्य बालकृष्ण और बाबा रामदेव दोनों ने मिलकर आयुर्वेद के बाजार पर कब्जा करने का इरादा कर लिया है। वर्ना इस तरह योग गुरू को अपने उत्पादनों के लिए देश के विभिन्न नगरों में जाकर प्रचार करने की क्या जरूरत थी? पर आश्चर्य की बात यह है कि उनके दर्शक और श्रोता ऐसा नहीं मानते। बाबा के दूसरे अभियानों की तरह वे इसे भी जनचेतना का एक अभियान ही मान रहे हैं। उनका कहना है कि बाबा के रहस्योद्घाटन ने उनकी आँखे खोल दी हैं। वे अब तक लुटते रहे और उन्हें पता ही नहीं चला। उदाहरण के तौर पर जब दुनियाभर में ऐलोवेरा जैल बाजार में लाया गया तो विदेशी कम्पनियों ने इसे सेहत का रामबाण बताकर खूब महंगा बेचा। 1200 रूपये लीटर तक बिका। मुझे याद है कि सन् 2000 में अपने अमरीकी प्रवास के दौरान मैंने ऐलोवेरा का खूब शोर सुना। जिसे देखो इसकी बात करता था। मैं भी स्टोर में उत्सुकतावश ऐलोवेरा देखने पहुँचा। तब पता चला कि बचपन से घर के बगीचे में जिस ग्वारपाठा को देखा था, जिसके गूदे से माँ हलुवा और रोटी बनवाती थी, उसकी एक पत्ती चार डॉलर की बिक रही थी।
पिछले दिनों बाबा रामदेव के संस्थान ने ऐलोवेरा जैल को चैथाई कीमत पर जब बाजार में उतारा तो बड़ी-बड़ी कम्पनियों को अपने दाम घटाने पड़े। बाबा के सहयोगी आचार्य बालकृष्णन इसे अपनी नैतिक जीत बताते हैं। उनका दावा है कि हम आयुर्वेद का बाजार कब्जा करने नहीं जा रहे। इतना बड़ा देश है, हम ऐसा कर ही नहीं सकते। पर गुणवत्ता के उत्पादनों को ‘वाजिब दाम’ में बाजार में लाकर हम देशी और विदेशी कम्पनियों को चुनौती दे रहे हैं। उन्हें दाम कम करने के लिए मजबूर कर रहे हैं। इसलिए वे मानते हैं कि बाबा रामदेव का इन उत्पादनों के समर्थन में जनता को सम्बोधित करना एक आम मार्केटिंग का शगूफा नहीं है, बल्कि उनके राष्ट्र निर्माण अभियान का एक और कदम है। वे यह भी दावा करते हैं कि अगर देशभर में फैले छोटे निर्माता उनसे तकनीकि सीखकर इन औषधियों और प्रसाधनों का उत्पादन करना चाहें, तो वे इसे सहर्ष बांटने के लिए तैयार हैं।
यह बात दूसरी है कि बाबा के आलोचक बाबा के इस पूरे कार्यक्रम को धर्म की आड़ में चल रहे व्यापार की संज्ञा देते हैं। सीपीएम नेता वृंदा करात और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के बाबा पर होने वाले हमलों को छोड़ भी दें तो भी देश के अनेक धर्माचार्य रामदेव बाबा को धंधेबाज बताते हैं। जबकि रामदेव बाबा का कहना है कि वे भारत के सनातन ज्ञान को मार्केटिंग का पैकेज बनाकर इस लिए चल रहे हैं ताकि राष्ट्र निर्माण के उनके अभियान में उन्हें साधनों के लिए पूंजीपतियों या राजनैतिक दलों के आगे हाथ न फैलाना पड़े। उनका मानना है कि इन लोगों पर अपनी आर्थिक निर्भरता सौंपने के कारण ही हमारी राजनीति इतनी कलुषित हो गई है। जिनके मतों से राजनेता चुने जाते हैं, उनसे ज्यादा उन्हें उन लोगों की चिंता होती है, जिनकी आर्थिक मदद से वे चुनाव लड़ते हैं। इसलिए वे आर्थिक आत्मनिर्भरता के साथ राष्ट्रनिर्माण का आन्दोलन चलाना चाहते हैं। वे उदाहरण देते हैं महात्मा गांधी के स्वराज कोष का, जो गांधी जी ने राष्ट्रीय राजनीति में कूदते ही स्थापित किया था। पर बाबा के आलोचक इससे सहमत नहीं हैं। वे आरोप लगाते हैं कि गांधी जी की तरह बाबा इस कारोबार के संचालन से अनासक्त नहीं हैं। इसलिए उन्होंने अपने मुठ्ठीभर चहेतों के हाथ में सारा कारोबार सौंप रखा है। यह रवैया गैर लोकतांत्रिक है और अधिनायकवादी है। अपनी सफाई में बाबा इस आरोप से भी पल्ला झाड़ लेते हैं। उनका कहना है कि दूसरों के अनुभव से सीखकर वे नहीं चाहते कि उनकी योजनाओं को भी निहित स्वार्थ घुसपैठिया बनकर धराशायी कर दें। जिसके हाथ में तिजोरी की चाबी होती है, ताकत भी उसी के पास होती है। इसलिए बाबा अपने आर्थिक और योग के साम्राज्य को अपनी मुठ्ठी में बन्द रखना चाहते हैं।
जो भी हो, इतना तो स्पष्ट है कि बाबा रामदेव ने गत् चार-पांच वर्षों से हिन्दुस्तान की राजनीति में तूफान मचा दिया है। उन पर जितना सरकारी हमला तेज होता है, उतना ही वे और भड़कते हैं और बार-बार अपने अनुयायियों से एक बड़े आन्दोलन के लिए तैयार रहने को कहते हैं। जो उनकी घोषणा के अनुसार जल्द ही देश में शुरू होने वाला है। सोचने वाली बात यह है कि तमाम विरोधाभासों के बावजूद क्या बाबा रामदेव को सिर्फ इसलिए दरकिनार किया जा सकता है कि वे केसरिया कपड़े पहनते हैं? या वे योग और आयुर्वेद को एक कॉरपोरशन की तरह चलाते हैं? या फिर उनके उत्साह और ऊर्जा का भी मूल्यांकन किया जाए, जो वे अपने अभियान के लिए लगातार जनता के बीच में झोंके हुए हैं? बाबा रामदेव के जीवन का लक्ष्य सत्ता हासिल करना हो या राष्ट्र का निर्माण, वो पूरे जीवट से जुटे हैं और यही उनके व्यक्तित्व के आकर्षक या विवादास्पद होने का कारण है। बाबा रामदेव जैसे व्यक्तित्वों का सही मूल्यांकन शायद राजनीतिक जमात या मीडिया नहीं कर सकता। यह काम तो शायद जनता करेगी। जिनपर उनका प्रभाव पड़ रहा है। इसलिए बाबा को भी हर कदम खूब सोच-विचार कर उठाना चाहिए।

Tuesday, February 28, 2012

रामलीला मैदान से सबक

4/5 जून 2010 की रात को दिल्ली के रामलीला ग्राउण्ड में सो रहे बाबा रामदेव के भक्तों पर दिल्ली पुलिस के बर्बरतापूर्ण हमले की सर्वोच्च अदालत ने भत्र्सना की है। अदालत ने निहत्थे लोगों पर इस तरह से जुल्म ढाने के लिये दिल्ली पुलिस पर जुर्माना भी किया है। पर साथ ही बाबा रामदेव पर भी इस हादसे के लिये 25 फीसदी जुर्माना देने का आदेश दिया है। अदालत के इस फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। सबसे पहली बात तो यह है कि अब केन्द्र और प्रान्तों की पुलिस सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को कानून बताकर जन-आन्दोलनों को हतोत्साहित करने का काम करेगी। अब पुलिस तर्क देगी कि अगर हमने आपको धरने या प्रदर्शन की अनुमति दे दी तो किसी अप्रिय घटना के हो जाने पर हमारी फोर्स को सजा भुगतनी पड़ सकती है। इसलिये हम ऐसे हालात पैदा ही नहीं होने देंगे वर्ना हमें जुर्माना भी भरना पड़ सकता है। पर राजनैतिक कार्यकर्ताओं  का विश्वास है कि इस फैसले के बावजूद किसी भी प्रान्त या केन्द्र की सरकार जन-आन्दोलनों को रोक नहीं पायेंगी। क्योंकि लोकतंत्र में जनता की सत्ता सर्वोपरि होती है। दूसरी तरफ पुलिस के आला हाकिमों का यह कहना है कि बाबा रामदेव ने सारी शर्तों का उल्लंघन किया और योग शिविर को राजनैतिक रैली में बदल दिया। जिससे स्थिति बेकाबू हो रही थी। सुबह तक रूकते तो इससे भी ज्यादा खूनखराबा होता है। इसलिये उसने सावधानी बरती और यह कदम उठाया।

राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर बाबा रामदेव में सत्ता का चरित्र समझने की क्षमता होती, जन-आन्दोलनों का अनुभव होता और उनके अनुयायी मात्र योग के विद्यार्थी न होकर सामाजिक आन्दोलनों से जुड़े हुए होते तो बाबा के धरने की इतनी दुर्दशा नहीं होती। इसीलिये अदालत ने बाबा को भी दोषी ठहराया है। इस फैसले से अब यह भी स्पष्ट हो गया कि भविष्य में अराजकता या हिंसा के लिये जन-आन्दोलन करने वालों को भी जिम्मेदार माना जायेगा।

विपक्ष इस पूरे मामले को वोटों के लिये भुनाने को तत्पर है। इसलिये लगातार यह आरोप लगा रहा है कि इतना बड़ा हादसा भारत सरकार के गृहमंत्री के निर्देश के बिना हो ही नहीं सकता। इसलिये गृहमंत्री पी. चिदम्बरम को इस्तीफा देना चाहिये। पर विपक्ष की इस माँग में एक पेच है। अगर गृहमंत्री के आदेश पर दिल्ली पुलिस ने यह काम किया है तो यह भी मानना पड़ेगा कि गुजरात के दंगों में पुलिसिया जुल्म भी नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर हुए, पश्चिमी बंगाल में नक्सलवादियों पर पुलिस का जो जुल्म होता रहा वो सीपीएम सरकार के निर्देश पर हुआ और ब्रज के पर्वतों की रक्षा के लिये भरतपुर के बोलखेड़ा पहाड़ पर धरने पर बैठे साधु-संतों पर जो राजस्थान पुलिस की लाठी-गोली चलीं वो भाजपा सरकार के निर्देश पर हुआ या अयोध्या में कारसेवकों पर पुलिसिया जुल्म मुलायम सिंह यादव ने करवाया।

 मतलब है या तो हम यह मान लें कि राजनीतिक दल सत्ता में आकर अपने अधीन पुलिस का दुरूपयोग करते हैं और अपने विरोध को कुचलते हैं। फिर तो हर पुलिसिया जुल्म के लिये सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिये। ऐसे में सिर्फ अकेले चिदम्बरम ही इस्तीफा क्यों दें ? अब तक देश भर में हुए पुलिसिया जुल्म के लिये दोषी सभी मुख्यमंत्रियों पर कार्यवाही होनी चाहिये। अगर ऐसा नहीं है और पुलिस अपनी समझ के अनुसार निर्णय लेती है तो फिर केवल एक रामलीला ग्राउण्ड की घटना को ही इतना तूल क्यों दिया जाये ? जबकि हकीकत यह है कि भारत की पुलिस चाहें केन्द्र में हो या राज्यों में, आज भी अपने औपनिवेशिक स्वरूप को बदल नहीं पायी है। तकलीफ की बात तो यह है कि पुलिसिया जुल्म पर तो हम शोर मचाते हैं पर पुलिस के सुधार की कोई कोशिश नहीं करना चाहते। 1977 में केन्द्र में बनी पहली गैर-काँग्रेसी सरकार ने राष्ट्रीय पुलिस आयोग का गठन किया था। जिसकी सिफारिशें तीन दशकों से धूल खा रही हैं। उन्हें लागू करने की माँग कोई नहीं उठाता। अगर पुलिस आयोग की सिफारिशें लागू हो जायें तो न सिर्फ पुलिस के काम-काज में सुधार आयेगा, बल्कि देश की करोड़ों जनता को पुलिस मित्र जैसी दिखायी देगी, दुश्मन नहीं। 

उधर बाबा रामदेव को भी अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करना होगा। वे भ्रष्टाचार और काले धन के विरूद्ध राष्ट्रव्यापी आन्दोलन चलाने की बात तो कहते हैं पर राजनीति में उनका व्यवहार निष्पक्ष दिखायी नहीं देता। जबकि आम जनता मानती है कि भ्रष्टाचार के मामले में कोई भी राजनैतिक दल किसी से कम नहीं है। जिसका, जहाँ, जब, जैसा दाँव लगता है, वहीं मलाई खाता है। तो फिर बाबा रामदेव लगातार केवल एक दल के विरूद्ध बोलकर क्या यह सिद्ध करना चाहते हैं कि बाकी के दल सत्यवादी महाराजा हरिश्चन्द्र के पदचिन्हों पर चलते हैं ? क्यूँकि ऐसा नहीं है इसलिये बाबा रामदेव के आन्दोलन की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं। बाबा को यदि वास्तव में देश की चिन्ता है तो उन्हें अपनी मान्यतायें और रणनीति दोनों बदलनी होंगी। इसलिये सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले का गहरा मतलब है।

Thursday, June 2, 2011

बदलाव का दौर

Amar Ujala 2 June 2011
आमतौर पर बजट सत्र के बाद दिल्ली के बाबू राहत की साँस लेते हैं, पर गर्मी शुरू होते ही मंत्री से संतरी तक, सब पहाड़ या विदेशी दौरे पर निकल जाते हैं। पर इस बार दिल्ली कुछ हिली हुयी है। कनिमोझी से लेकर कलमाणी तक और 2जी स्पैक्ट्रम के उद्योग जगत के सितारों तक, सबका तिहाड़ जाना सत्ता के गलियारों में कौतुहल और आशंका का विषय बना हुआ है। विकीलीक्स हो या सर्वोच्च न्यायालय में पी.आई.एल. की सख्त सुनवाई, टी.वी. शो में छीछालेदर हो या जगह-जगह होने वाली गोष्ठियाँ, सब ओर भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया हुआ है। सभी दलों के राजनेता थोड़े विचलित हैं। पता नहीं कब किसकी धोती चैराहे पर खोल दी जाए। इस बार उठापटक में औद्योगिक घरानों की भूमिका भी विगत वर्षों के मुकाबले काफी बढ़ गयी है। वे टी.वी. चैनलों से लेकर और धरने प्रदर्शनों तक में रूचि ले रहे हैं और साधन मुहैया करा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि जबसे देश के जाने-माने उद्योगपतियों को संसदीय जाँच समिति के आगे पेश होना पड़ा है, तबसे उद्योग जगत में हलचल है और इसीलिए सामने आये बिना शायद बहुत से लोग राजनेताओं को शीशा दिखाने के काम में जुट गये हैं। इस रस्सा खिंचाई के बीच अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया है। एक बार फिर से प्रधानमंत्री बदले जाने की बात चल पड़ी है। सुशील शिन्दे का नाम इसमें टाॅप पर चल रहा है। हालांकि इसकी कोई आधिकारिक सूचना उपलब्ध नहीं है। उधर भट्टा गाँव की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि काँग्रेस और उसके युवा नेता राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश पर आक्रामक हमला कर रहे हैं। यह सारी कवायद अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखकर की जा रही है।

इधर दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरूद्ध सम्मेलनों और गोष्ठियों की बाढ़ आ गयी है। देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली आकर इन सम्मेलनों में भ्रष्टाचार से निपटने के कारगर तरीके सुझा रहे हैं। उधर आगामी 4 जून से बाबा रामदेव के प्रस्तावित धरने से निपटने के लिए सरकार अपनी तैयारी में जुटी है। बाबा रामदेव का लक्ष्य अपने 5 लाख अनुयायियों को 40 दिन तक दिल्ली के रामलीला ग्राउण्ड में बिठाने का है। 80 शहरों में ऐसे ही धरने किये जाने की बात वे कह रहे हैं। साथ ही यह भी कि एक दिन छोड़कर एक दिन अलग-अलग शहरों से 5 हजार लोगों का दस्ता रामलीला ग्राउण्ड में आता रहे। जिससे धरने में बैठे लोगों को राहत मिलती रहे। सब तैयारियाँ पूरी हैं। अब तो 4 जून का इंतजार है। उधर सत्ता के गलियारों में यह भी चर्चा चल पड़ी है कि बाबा रामदेव का विशाल आर्थिक साम्राज्य सहारा गु्रप के मालिक देख रहे हैं। इसकी सच्चाई किसी ने परखी नहीं है। पर यदि ऐसा है तो माना जा रहा है कि सरकार के लिए बाबा रामदेव के आन्दोलन की कलाई मरोड़ना और भी आसान हो जायेगा। बाबा की माँगे ऐसी नहीं हैं कि उनपर फौरन अमल किया जा सके। जैसे कालाधन बाहर से लाना या 5सौ-हजार के नोट बन्द करना या काले धन को जब्त करना और राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करना। फिर भी बाबा रामदेव के अनुयायियों में भारी उत्साह है और वे मानकर चल रहे हैं कि इस धरने के निर्णायक परिणाम आयेंगे। दूसरी तरफ जानकारों का कहना है कि जिस तरह अन्ना हज़ारे का धरना किन्हीं खास कारणों से इतना मीडिया पर छा गया, वैसा बाबा के धरने के साथ शायद नहीं होगा। अलबत्ता उनका चैनल इसका जरूर सीधा प्रसारण करता रहेगा। दूसरी चर्चा यह भी सुनने में आयी है कि सरकार इस धरने को बहुत दिन तक नहीं चलने देना चाहती, इसलिए दो-चार दिन के नाटक-नौटंकी के बाद ही किसी समिति की घोषणा कर दी जायेगी और बाबा रामदेव से धरना समाप्त करवा दिया जायेगा। क्या होगा अभी कहना मुश्किल है? क्योंकि इस पूरे अफरा-तफरी के माहौल में बड़े-बड़े खेल परदे के पीछे खेले जा रहे हैं।

देशभर से आये कुछ दर्जन भाजपाई मानसिकता के युवा इस माहौल को लेकर अतिउत्साहित हैं। उनका विश्वास है कि इस सबसे काँग्रेस लगातार कमजोर हो रही है और सरकार गिरने की संभावना बन रही है। इनका आंकलन है कि अगर बाबा रामदेव का धरना सफल हो जाता है तो 15 दिन में वे सरकार गिरा देंगे। वे संविधान को भी पूरी तरह बदलना चाहते हैं। पर जब इन लोगों से इस विषय पर गहराई से चर्चा की जाती है तो पता चलता है कि न तो इनके पास वैकल्पिक संविधान उपलब्ध है और न ही वैकल्पिक राजनैतिक नेतृत्व। अगर कुछ गोपनीय रखा गया है तो वह फिलहाल जनता के सामने नहीं है। उधर ये लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि अन्ना हजारे की टीम सरकार द्वारा प्रायोजित टीम है और उसी के इशारे पर काम कर रही है। ऐसे माहौल में गम्भीर लोगों के लिए असलियत को जान पाना मुश्किल हो रहा है। भ्रम की सी स्थिति बन रही है। ऐसा लग रहा है कि तमाम शुभेच्छा होने के बावजूद, काले धन से निपटने और सरकार में सुधार लाने का आन्दोलन अभी अपने लक्ष्य और रणनीति को स्पष्ट नहीं कर पाया है। जिसकी आज सख्त जरूरत है। ऐसे में देशवासी उत्सुकता से इस धरने का आगाज और अंजाम देखना चाहेंगे।

Sunday, May 29, 2011

अब एक और अनशन

Panjab kesari 30-05-2011
दिल्ली में भ्रष्टाचार के विरूद्ध सम्मेलनों और गोष्ठियों की बाढ़ आ गयी है। देश के कोने-कोने से लोग दिल्ली आकर इन सम्मेलनों में भ्रष्टाचार से निपटने के कारगर तरीके सुझा रहे हैं। उधर आगामी 4 जून से बाबा रामदेव के प्रस्तावित धरने से निपटने के लिए सरकार अपनी तैयारी में जुटी है। बाबा रामदेव का लक्ष्य अपने 5 लाख अनुयायियों को 40 दिन तक दिल्ली के रामलीला ग्राउण्ड में बिठाने का है। 80 शहरों में ऐसे ही धरने किये जाने की बात वे कह रहे हैं। साथ ही यह भी कि एक दिन छोड़कर एक दिन अलग-अलग शहरों से 5 हजार लोगों का दस्ता रामलीला ग्राउण्ड में आता रहे। जिससे धरने में बैठे लोगों को राहत मिलती रहे। सब तैयारियाँ पूरी हैं। अब तो 4 जून का इंतजार है। उधर lŸkk के गलियारों में यह भी चर्चा चल पड़ी है कि बाबा रामदेव का विशाल आर्थिक साम्राज्य सहारा गु्रप के मालिक देख रहे हैं। इसकी सच्चाई किसी ने परखी नहीं है। पर यदि ऐसा है तो माना जा रहा है कि सरकार के लिए बाबा रामदेव के आन्दोलन की कलाई मरोड़ना और भी आसान हो जायेगा। बाबा की माँगे ऐसी नहीं हैं कि उनपर फौरन अमल किया जा सके। जैसे कालाधन बाहर से लाना या 5सौ-हजार के नोट बन्द करना या काले धन को जब्त करना और राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करना। फिर भी बाबा रामदेव के अनुयायियों में भारी उत्साह है और वे मानकर चल रहे हैं कि इस धरने के निर्णायक परिणाम आयेंगे। दूसरी तरफ जानकारों का कहना है कि जिस तरह अन्ना हज़ारे का धरना किन्हीं खास कारणों से इतना मीडिया पर छा गया, वैसा बाबा के धरने के साथ शायद नहीं होगा। vycŸkk उनका चैनल इसका जरूर सीधा प्रसारण करता रहेगा। दूसरी चर्चा यह भी सुनने में आयी है कि सरकार इस धरने को बहुत दिन तक नहीं चलने देना चाहती, इसलिए दो-चार दिन के नाटक-नौटंकी के बाद ही किसी समिति की घोषणा कर दी जायेगी और बाबा रामदेव से धरना समाप्त करवा दिया जायेगा। क्या होगा अभी कहना मुश्किल है? क्योंकि इस पूरे अफरा-तफरी के माहौल में बड़े-बड़े खेल परदे के पीछे खेले जा रहे हैं।

Rajasthan Patirka 29-05-2011
देशभर से आये कुछ दर्जन भाजपाई मानसिकता के युवा इस माहौल को लेकर अतिउत्साहित हैं। उनका विश्वास है कि इस सबसे काँग्रेस लगातार कमजोर हो रही है और सरकार गिरने की संभावना बन रही है। इनका आंकलन है कि अगर बाबा रामदेव का धरना सफल हो जाता है तो 15 दिन में वे सरकार गिरा देंगे। वे संविधान को भी पूरी तरह बदलना चाहते हैं। पर जब इन लोगों से इस विषय पर गहराई से चर्चा की जाती है तो पता चलता है कि न तो इनके पास वैकल्पिक संविधान उपलब्ध है और न ही वैकल्पिक राजनैतिक नेतृत्व। अगर कुछ गोपनीय रखा गया है तो वह फिलहाल जनता के सामने नहीं है। उधर ये लोग यह भी आरोप लगाते हैं कि अन्ना हजारे की टीम सरकार द्वारा प्रायोजित टीम है और उसी के इशारे पर काम कर रही है। ऐसे माहौल में गम्भीर लोगों के लिए असलियत को जान पाना मुश्किल हो रहा है। भ्रम की सी स्थिति बन रही है। ऐसा लग रहा है कि तमाम शुभेच्छा होने के बावजूद, काले धन से निपटने और सरकार में सुधार लाने का आन्दोलन अभी अपने लक्ष्य और रणनीति को स्पष्ट नहीं कर पाया है। जिसकी आज सख्त जरूरत है। ऐसे में देशवासी उत्सुकता से इस धरने का आगाज और अंजाम देखना चाहेंगे।

उधर आमतौर पर बजट सत्र के बाद दिल्ली के बाबू राहत की साँस लेते हैं, पर गर्मी शुरू होते ही मंत्री से संतरी तक, सब पहाड़ या विदेशी दौरे पर निकल जाते हैं। पर इस बार दिल्ली कुछ हिली हुयी है। कनिमोझी से लेकर कलमाणी तक और 2जी स्पैक्ट्रम के उद्योग जगत के सितारों तक, सबका तिहाड़ जाना सŸाा के गलियारों में कौतुहल और आशंका का विषय बना हुआ है। विकीलीक्स हो या सर्वोच्च न्यायालय में पी.आई.एल. की सख्त सुनवाई, टी.वी. शो में छीछालेदर हो या जगह-जगह होने वाली गोष्ठियाँ, सब ओर भ्रष्टाचार का मुद्दा छाया हुआ है। सभी दलों के राजनेता थोड़े विचलित हैं। पता नहीं कब किसकी धोती चैराहे पर खोल दी जाए। इस बार उठापटक में औद्योगिक घरानों की भूमिका भी विगत वर्षों के मुकाबले काफी बढ़ गयी है। वे टी.वी. चैनलों से लेकर और धरने प्रदर्शनों तक में रूचि ले रहे हैं और साधन मुहैया करा रहे हैं। जानकारों का मानना है कि जबसे देश के जाने-माने उद्योगपतियों को संसदीय जाँच समिति के आगे पेश होना पड़ा है, तबसे उद्योग जगत में हलचल है और इसीलिए सामने आये बिना शायद बहुत से लोग राजनेताओं को शीशा दिखाने के काम में जुट गये हैं। इस रस्सा खिंचाई के बीच अटकलों का बाजार भी गर्म हो गया है। एक बार फिर से प्रधानमंत्री बदले जाने की बात चल पड़ी है। सुशील शिन्दे का नाम इसमें VkWi पर चल रहा है। हालांकि इसकी कोई आधिकारिक सूचना उपलब्ध नहीं है। उधर भट्टा गाँव की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि काँग्रेस और उसके युवा नेता राहुल गाँधी उत्तर प्रदेश पर आक्रामक हमला कर रहे हैं। यह सारी कवायद अगले साल होने वाले विधानसभा के चुनावों को ध्यान में रखकर की जा रही है।

Monday, May 9, 2011

बाबा रामदेव का शंखनाद

Punjab Kesari 9 May11
पिछले दो वर्षों से भ्रष्टाचार के विरूद्ध मोर्चा खोले हुए बाबा रामदेव ने अब सीधे संघर्ष का शंखनाद कर दिया है। आगामी 4 जून को, बाबा ने दिल्ली के रामलीला मैदान में एक विशाल रैली को संबोधित करने के बाद, भूख हड़ताल पर बैठने की घोषणा कर दी है। उनकी माँग है कि सरकार एक हजार व पाँच सौ के नोटों का चलन बन्द करे। जिससे काला धन बाहर निकल सके। इसके अलावा भी उनकी कई दूसरी माँगें हैं।

बाबा की धमकी से घबराये राजनेता यह कहकर बाबा का मजाक उड़ा रहे हैं कि अन्ना हज़ारे की भूख हड़ताल की सफलता से बौखलाये हुए बाबा रामदेव अन्ना की नकल कर रहे हैं। पर यह भूल जा रहे हैं कि लोकपाल विधेयक के समर्थकों को खुले दिल से सहायता और जनशक्ति देकर बाबा रामदेव ने ही उनके आन्दोलन में प्राण फूंक दिये। बाबा के अनुयायियों की संख्या आज देश में सबसे ज्यादा है। एक आंकलन के अनुसार 1 करोड़ लोग सीधे-सीधे बाबा से जुड़े हैं। अगर इसके पाँच फीसदी लोग भी बाबा रामदेव के साथ भूख हड़ताल पर बैठ गये तो उनकी अनदेखी करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। बाबा बड़ी भीड़ जुटाने में सक्षम हैं। उन्हें किसी के प्रायोजन की आवश्यकता नहीं। अगर बाबा के शिष्य पूरे देश से आकर रामलीला मैदान में डंट गये तो उनका आन्दोलन काफी जोर पकड़ लेगा।

जो लोग बाबा की मुहिम को अविवेकपूर्ण बताकर सवाल खड़े कर रहे हैं, उन्हें देश की असलियत की तरफ ध्यान देना चाहिए। आज देश में गरीबों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। विकास का लाभ चन्द लोगों के हाथों में सिमटता जा रहा है। योजना आयोग के अनुसार 2004-05 में भारत में गरीबों की संख्या 27 फीसदी थी। जो योजना आयोग के ही अनुसार अब बढ़कर 32 फीसदी हो गयी है। इतना ही नहीं, विकास की दर 8 या 9 प्रतिशत बताई जा रही है, उसके बावजूद गरीबों की संख्या इतनी बढ़ गयी है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद, जिसकी अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गाँधी हैं, ने कहा है कि यदि देश में खाद्य सुरक्षा कानून बनाना है तो भारत की 70 फीसदी आबादी को 2 या 3 रूपये प्रति किलो अनाज देना पड़ेगा। मतलब यह हुआ कि देश की 70 फीसदी आबादी अत्यंत गरीब है। फिर हम दुनिया के मंचों पर, मूँछों पर ताव देकर, यह क्यों कहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक प्रगति कर रहा है? भारत के कुछ लोग बेहद धनी होते जा रहे हैं, पर साफ ज़ाहिर है कि इस आर्थिक प्रगति का लाभ आम आदमी को नहीं मिल रहा। इसका मूल कारण है भ्रष्टाचार। जो धन जनता के हित की योजनाओं पर खर्च होना चाहिए, वह भ्रष्टाचारियों की जेब में जा रहा है और इस लूट में कई बड़े औद्योगिक घराने भी शामिल हैं। फिर भी भ्रष्टाचार के इस विकराल स्वरूप के बारे में कोई भी राजनैतिक दल गम्भीर नहीं है। बयान सब देते हैं। पर अपना आचरण बदलने को कोई तैयार नहीं। नतीज़तन आम जनता मंहगाई की मार झेल रही है।

ऐसे में जो नेतृत्व का शून्य पैदा हो गया था, उसे भरने के लिए अन्ना हजारे व बाबा रामदेव जैसे लोग मैदान में उतर रहे हैं। भ्रष्टाचार के विरूद्ध इनका अभियान बिल्कुल उचित है और इनका हठ भी सही है। क्योंकि बिना डरे राजनैतिक दल कुछ भी बदलने नहीं जा रहे। ये आपस में छींटाकशी करते रहेंगे और उसका राजनैतिक फायदा लेते रहेंगे। भ्रष्टाचार को निपटाने की कोई कोशिश नहीं करेंगे। इसलिए किसी न किसी को तो यह जिम्मेदारी लेनी ही थी। अब बाबा रामदेव ने ली है तो उन्हें इस लड़ाई को अंजाम तक ले जाना होगा। इसमें अनेक बाधाऐं भी आयेंगी। कुछ तो राजनैतिक दलों की ओर से और कुछ निहित स्वार्थों की ओर से। पर बाबा जैसे हठी हैं, वे मैदान नहीं छोड़ेंगे और उनके अनुयायी भी कमर कसकर बैठे हैं।

इस लड़ाई में देश के हर जागरूक नागरिक को हिस्सा लेना चाहिए। जरूरी नहीं कि सब एक मंच पर से ही लड़ें। भारत-पाकिस्तान का युद्ध होता है तो कश्मीर, पंजाब, राजस्थान और गुजरात के मोर्चे पर अलग-अलग लड़ा जाता है। भ्रष्टाचार से युद्ध भी भारत-पाक युद्ध से कम नहीं है। इसलिए जिसे जहाँ, जैसा मंच मिले, जुट जाना चाहिए। सफलता और असफलता तो भगवान के हाथ में है। रही बात बाबा रामदेव के अभियान की, तो उनके निकट रहने वालों का कहना है कि अपनी समस्त शुभेच्छा के बावजूद बाबा इस लड़ाई की स्पष्ट रणनीति नहीं बना पाये हैं। वे बिना गहरा चिंतन किये कुछ भी बयान देकर विवाद खड़ा कर देते हैं। उनके पास दूसरी पंक्ति के नेतृत्व का भारी अभाव है। वे हर निर्णय खुद लेते हैं, यहाँ तक कि टी.वी. पर क्या प्रसारित हो। इस तरह पूरा आन्दोलन व्यक्ति केन्द्रित बन गया है। बाबा में अभी महात्मा गाँधी जैसी समझ, गम्भीरता, दूरदृष्टि व वैकल्पिक योजना की तैयारी जैसे गुण दिखायी नहीं दे रहे हैं। ऐसे में आन्दोलन के किसी भी मोड़ पर भटक जाने की सम्भावना है।

राजनैतिक विश्लेषक, मीडिया, सिविल सोसाइटी, विभिन्न आन्दोलनों से जुड़े लोग और आम शहरी अब उत्सुकता से बाबा के आन्दोलन का इंतजार करेंगे। हृदय से सभी चाहते हैं कि ऐसे सभी प्रयास सफल हों और आम आदमी को भ्रष्टाचार से राहत मिले। पर लड़ाई इतनी आसान नहीं, जिसे बिना कुशल रणनीति के लड़ा और जीता जा सके। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि बाबा जैसे लोग अपने हृदय को विशाल करें और उन सब लोगों को जोड़ें जो इस लड़ाई में ठोस योगदान कर सकें और इसे सफलता की मंजिल तक ले जा सकें।